न्यायिक अवसंरचना निगम और वकीलों की सहायता पर केंद्र का जवाब नहीं आया: सीजेआई रमना

सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि बढ़ते मामलों की वजह केवल न्यायाधीशों की कमी नहीं है बल्कि इससे निपटने के लिए बुनियादी सुविधाओं की भी ज़रूरत है. ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराए बिना यह आशा करना कि जज और वकील कोर्ट की जर्जर इमारत में बैठक कर न्याय देंगे, उचित नहीं है.

जस्टिस एनवी रमन्ना. (फोटो: पीटीआई)

सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि बढ़ते मामलों की वजह केवल न्यायाधीशों की कमी नहीं है बल्कि इससे निपटने के लिए बुनियादी सुविधाओं की भी ज़रूरत है. ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराए बिना यह आशा करना कि जज और वकील कोर्ट की जर्जर इमारत में बैठक कर न्याय देंगे, उचित नहीं है.

जस्टिस एनवी रमन्ना. (फोटो: पीटीआई)

वारंगल: भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना ने रविवार को यहां कहा कि न्यायिक अवसंरचना निगम (जुडीशियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन गठित करने और कोविड-19 से जीविकोपार्जन खो चुके वकीलों को आर्थिक मदद देने के प्रस्ताव पर अबतक केंद्र से जवाब नहीं आया है.

तेलंगाना के वारंगल में अदालत परिसर का उद्घाटन करने के बाद जस्टिस रमना ने कहा कि न्यायिक अवसंरचना निगम और ग्रामीण इलाकों में मोबाइल इंटरनेट की सुविधा स्थापित करने का प्रस्ताव जुलाई और जून में भेजा गया था, हालांकि इन पर कार्रवाई नहीं हुई है.

जस्टिस रमना ने कहा, ‘लेकिन उम्मीद है कि केंद्र सरकार संसद के चालू शीतकालीन सत्र में ही न्यायिक अवसंरचना निगम के गठन के लिए विधेयक लाएगी.’

जस्टिस रमना ने असंतुष्टि का भाव प्रकट करते हुए कहा, ‘मैंने केंद्र से कहा कि उन वकीलों के परिवारों की आर्थिक मदद करें जिन्होंने कोविड-19 की वजह से अपना जीविकोपार्जन खो दिया है. सरकार की ओर से अब तक उचित जवाब नहीं आया है. अवसंरचना स्थापित करने को लेकर भी जवाब नहीं आया है. मैं इन मुद्दों को जब भी मौका मिलता है, उन विभिन्न मंचों पर तब उठाता हूं जब प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति मौजूद होते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘देश में तीन मुद्दे हैं, मूलभूत अवसंरचना (Infrastructure) की कमी, न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई जाए और अर्हता रखने वाले वकीलों की वित्तीय मदद की जाए. अगर हम इन समस्याओं को दूर करेंगे तभी लोगों तक पहुंच पाएंगे. तभी न्याय तक पहुंच का मतलब होगा.’

जस्टिस रमना ने कहा कि बढ़ते मामलों की वजह केवल न्यायाधीशों की कमी नहीं है बल्कि इससे निपटने के लिए अवसंरचना की भी जरूरत है. जरूरी अवसंरचना मुहैया कराए बिना यह उम्मीद करना कि न्यायाधीश और वकील अदालत की जर्जर इमारत में बैठक कर न्याय देंगे उचित नहीं है. सरकार को, विशेषतौर पर केंद्र को इस पर संज्ञान लेना चाहिए.

सीजेआई ने कहा कि उन्होंने केंद्र और कानून मंत्री को ग्रामीण क्षेत्रों में वकीलों के लिए मोबाइल नेटवर्क वैन स्थापित करने के लिए पत्र लिखा है ताकि वे अदालत की कार्यवाही में डिजिटल रूप से शामिल हो सकें.

उन्होंने कहा कि जो वकील शहरों और कस्बो में रहते हैं वे वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये अदालत की कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के अधिवक्ता जो नेटवर्क को वहन नहीं कर सकते, अंतत: अपना पेशा खो देंगे.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, जस्टिस रमना ने कहा कि वकील कोविड -19 महामारी द्वारा उत्पन्न गई आभासी चुनौती से बच सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘समस्या अभी खत्म नहीं हुई है.’

साथ ही उन्होंने देश के सभी वकीलों से यह भी ध्यान रखने की अपील की कि वकील ही थे जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी और जीती और समाज के लिए काम करने के लिए हमेशा तैयार रहें. उन्होंने कहा, ‘अपने जीवन के उस हिस्से को मत छोड़ो.’

उन्होंने वर्तमान वास्तविकता को रेखांकित करते हुए कहा कि आज के समाज में कई वकीलों ने समाज सेवा छोड़ दी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)