केंद्र सरकार ने संसद में बताया- क़ानूनों के तहत एंटी-नेशनल शब्द परिभाषित नहीं

केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी के सवाल के जवाब में यह जानकारी दी. ओवैसी ने बीते तीन साल में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों की संख्या भी पूछी थी, जिसके जवाब में कहा गया कि सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस राज्य के विषय हैं, ऐसी गतिविधियों में गिरफ़्तार लोगों के आंकड़े केंद्र सरकार के स्तर पर नहीं रखे जाते.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय. (फोटो: पीटीआई)

केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी के सवाल के जवाब में यह जानकारी दी. ओवैसी ने बीते तीन साल में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों की संख्या भी पूछी थी, जिसके जवाब में कहा गया कि सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस राज्य के विषय हैं, ऐसी गतिविधियों में गिरफ़्तार लोगों के आंकड़े केंद्र सरकार के स्तर पर नहीं रखे जाते.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में बताया कि कानूनों के अंतर्गत ‘राष्ट्र विरोधी’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है. साथ ही यह भी बताया गया कि आपातकाल के दौरान सबसे पहले 1976 में संविधान में इसे शामिल किया गया और फिर एक साल बाद हटा भी दिया गया.

केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एआईएमआईएम नेता और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी के सवाल के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी.

ओवैसी ने दरअसल सवाल किया था कि क्या सरकार ने देश के किसी कानून, 11 नियमों या किसी अन्य कानूनी अधिनियम के तहत राष्ट्र विरोधी शब्द का अर्थ परिभाषित किया है.

इसके जवाब में कहा गया कि आपातकाल के दौरान संवैधानिक संशोधन के जरिये राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को शामिल किया गया था लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया.

उन्होंने कहा कि संविधान (42वां संशोधन) अधनियम, 1976 के तहत इसका उल्लेख किया गया था और आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 31 डी के तहत ‘राष्ट्र विरोधी गतिविधि’ को परिभाषित किया गया। इसके बाद संविधान (43वां संशोधन) अधिनियम, 1977 के तहत अनुच्छेद 31डी को हटा दिया गया।

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्री ने जवाब में कहा, ‘हालांकि, गैरकानूनी और विध्वंसक गतिविधियों से निपटने के लिए आपराधिक कानून और विभिन्न न्यायिक घोषणाएं हैं. इस संबंध में इसका उल्लेख करना तर्कसंगत है कि संविधान के 42वां संशोधन अधिनियम 1976 को संविधान के अनुच्छेद 31 डी (आपातकाल के दौरान) में शामिल किया गया, जिसने राष्ट्र विरोधी गतिविधि को परिभाषित किया. हालांकि, बाद में इस अनुच्छेद 31डी को संविधान के 43वें संशोधन अधिनियम 1977 से हटा दिया गया था.’

ओवैसी ने राष्ट्र विरोधी गतिविधि से जुड़े अपराध से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के विवरण और बीते तीन साल में इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों की संख्या के बारे में भी पूछा.

इसके जवाब में कहा गया कि संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस राज्य के विषय हैं और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में गिरफ्तार लोगों की संख्या के आंकड़े केंद्र सरकार के स्तर पर नहीं रखे जाते.

जवाब में कहा गया, ‘जांच, अपराधों के पंजीकरण, मुकदमा चलाने, जीवन और संपत्ति की रक्षा सहित कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकार की है.’

उल्लेखनीय है कि जब साल 2019 में जब राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने साल 2017 के लिए भारत में वार्षिक अपराध रिपोर्ट जारी की तो इसमें पहली बार राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा किए गए अपराध के नाम से एक नया अध्याय शामिल किया गया.

इस अध्याय में उत्तरपूर्वी विद्रोहियों, वामपंथियों और आतंकियों (जिहादी आतंकी सहित) के रूप में तीन राष्ट्र विरोधी तत्व बताए गए.

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