नॉर्थ ईस्ट डायरीः मणिपुर के छात्र हत्या मामले में भाजपा विधायक के भाई समेत छह ने सरेंडर किया

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में मणिपुर, असम, मेघालय और नगालैंड के प्रमुख समाचार.

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(प्रतीकात्मक तस्वीर: एएनआई)

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में मणिपुर, असम, मेघालय और नगालैंड के प्रमुख समाचार.

(फोटोः एएनआई)

इम्फाल/गुवाहाटी/शिलॉन्ग/कोहिमा: मणिपुर के थौबल जिले के हीरोक गांव में 21 साल के कॉलेज छात्र की हत्या और उसके पिता को घायल करने की घटना के दो दिन बाद भाजपा विधायक के छोटे भाई सहित छह आरोपियों ने शुक्रवार को आत्मसमर्पण कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के दो दिनों के भीतर हत्या में शामिल दोषियों के खिलाफ मामला दर्ज करने के आश्वासन के एक दिन बाद यह आत्मसमर्पण किया गया.

इन छह आरोपियों की पहचान भाजपा के थौबल से विधायक थोकचोम राधेश्याम के छोटे भाई थोकचोम पुत्रो सिंह, निंगथौजम पानन सिंह, थोकचोम संनातोई सिंह, थोकचोम हेनिरक, लैशराम बिकेन और खुंडोंगबाम निकी हैं.

बता दें कि 22 दिसंबर की तड़के आरोपी कथित तौर पर एन. रोहित (21) के हेरोक पार्ट-2 मयाई लेकाई स्थित घर में घुसे और उसकी गोली मारकर हत्या कर दी. इस घटना में उसके पिता घायल हो गए.

मृतक के भाई एन. रोशन ने पुत्रो सहित छह लोगों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

शिकायत में रोशन ने उल्लेख किया कि पुत्रो ने ही उनके छोटे भाई की हत्या की और उसके पिता पर भी गोलियां चलाईं. इसके बाद पुलिस ने हत्या, अतिक्रमण सहित कई मामलों में एफआईआर दर्ज की.

यह हत्या हेरोक बाजार में कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच झड़प के कई घंटों बाद हुई, जिसमें एक व्यक्ति को गोली लगी थी.

जिला प्रशासन ने अगले दन पूरे हेरोक विधानसभा क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया था. इस बीच रोहित का शुक्रवार को अंतिम संस्कार किया गया.

मालूम हो कि पुलिस की बड़ी टुकड़ी के अलावा जिला प्रशासन ने सीमा सुरक्षाबल और इंडिया रिजर्व बटालियन की दो कंपनियों को तैनात किया.

असमः कैग रिपोर्ट में खुलासा- राज्य की वृद्धि दर घटी, राजकोषीय घाटा, कर्ज बढ़ा

असम की वृद्धि दर में गिरावट के साथ ही 2019-2020 के अंत में राज्य के राजकोषीय घाटे और कर्ज में काफी वृद्धि हुई है. राज्य के वित्त पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट ने शुक्रवार को यह बात कही.

राज्य की विधानसभा के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन सदन में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य का जीएसडीपी 2015-16 के 2,27,959 करोड़ रुपये से बढ़कर 2019-20 में 3,51,318 करोड़ रुपये (त्वरित अनुमान) हो गया.

संचयी रूप से सालाना वृद्धि दर 11.42 फीसदी रही जबकि राष्ट्रीय स्तर पर संचयी सालाना वृद्धि दर 10.37 फीसदी थी.

हालांकि, 2019-20 में वृद्धि दर घटकर 11.22 फीसदी रह गई, जो 2015-16 में 16.47 फीसदी थी.

कैग रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान राजकोषीय घाटा सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 4.25 फीसदी रहा, जो असम राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन कानून के तहत नियत तीन फीसदी से कहीं ज्यादा है.

राज्य का बकाया कर्ज 2019-20 में बढ़कर 72,256.52 करोड़ रुपये पहुंच गया जो 2015-16 में 39,054.59 करोड़ रुपये था.

असम सरकार ने परियोजनाओं के 9,000 से अधिक उपयोग प्रमाणपत्र जमा नहीं किए- कैग रिपोर्ट

 कैग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2001-2002 से 2018-2019 के बीच असम सरकार के 52 विभागों की विभिन्न परियोजनाओं के 9,000 से अधिक उपयोग प्रमाण पत्र जमा नहीं किए गए.

कैग ने ‘खातों की गुणवत्ता और वित्तीय रिपोर्टिंग प्रथाओं’ के तहत राज्य के वित्त पर अपनी रिपोर्ट में कहा कि 9,379 बकाया उपयोग प्रमाण पत्र में 68 प्रतिशत से अधिक 2015-16 से पिछले चार वर्षों के हैं.

लंबित उपयोगिता प्रमाण पत्र के चलते 20,402.48 करोड़ रुपये की राशि लंबित है.

विधानसभा में शुक्रवार को पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2018-19 के 1,345 उपयोगिता प्रमाण पत्र के लिए कम से कम 7,197.84 करोड़ रुपये की राशि लंबित है, जबकि 2016-17 के 24 ऐसे दस्तावेज जमा नहीं किए गए हैं, जिसकी कुल लंबित राशि 1,607.23 करोड़ रुपये है.

मेघालयः कांग्रेस छोड़ टीएमसी में गए 12 विधायकों को अयोग्य करार देने की याचिका खाारिज

मेघालय विधानसभा अध्यक्ष एम. लिंगदोह ने कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए 12 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की याचिका गुरुवार को खारिज कर दी.

कांग्रेस ने इन 12 विधायकों को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित करने के लिए एक याचिका दी थी. इसके साथ ही तृणमूल अब मेघालय में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है.

लिंगदोह ने इन विधायकों के इस कदम को संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत वैध घोषित किया.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, यह जोर देते हुए कि तृणमूल कांग्रेस में इन विधायकों का शामिल होना संवैधानिक है. कांगेस के 10 विधायकों ने लिंगदोह को अलग-अलग जवाब दिए और उनसे आग्रह किया कि उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जाए.

विधायकों से जवाब मिलने पर स्पीकर ने तृणमूल कांग्रेस में उनके शामिल होने को मंजूरी दे दी. स्पीकर लिंगदोह ने 23 दिसंबर को जारी आदेश में कहा, ‘मैं संतुष्ट हूं कि कांग्रेस के 12 सदस्यों का तृणमूल में शामिल होना वैध है और अयोग्यता का पात्र नहीं है.’

बता दें कि कांग्रेस के अब राज्य में सिर्फ पांच विधायक बचे हैं.

मालूम हो कि 25 नवंबर को मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा सहित 11 अन्य कांग्रेसी विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे, जिससे तृणमूल 60 सदस्यीय विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल बन गया.

जनता के कड़े विरोध के बाद उमंगोट जलविद्युत परियोजना रद्द

मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस (एमडीए) सरकार ने खासी और जैंतिया हिल्स क्षेत्र में लोगों के कड़े विरोध के बाद 210 मेगावॉट उमंगोट जलविद्युत परियोजना (एचईपी) रद्द कर दी है.

नॉर्थईस्टटुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, उपमुख्यमंत्री प्रेस्टन तिनसॉन्ग ने 23 दिसंबर को पत्रकारों को बताया, हमने इस चैप्टर को समाप्त करने का पहले ही फैसला ले लिया है. उमंगोट एचईपी के क्रियान्वयन के लिए बांध निर्माण का कोई प्रस्ताव नहीं है.

उन्होंने बताया कि हाल ही में राज्य मंत्रिमंडल ने उमंगोट एचईपी को रद्द करने के फैसले को मंजूरी दी.

यह पूछे जाने पर तिनसॉन्ग ने कहा कि उमंगोट बिजली परियोजना निजी डेवलपर्स को आवंटित की गई थी.

उन्होंने कहा, ‘खासी और जैंतिया हिल्स जिले के भूमि मालिकों ने विरोध किया था. इस विरोध को ध्यान में रखते हुए हमने कहा कि ठीक है निजी डेवलपर्स और सरकार के बीच हुए इस समझौता ज्ञापन को रद्द कर दिया जाए.’

इस बीच उपमुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि कई परियोजनाएं हैं, जो निजी डेवलपर्स को सौंपी गई है.

असम: पासपोर्ट कार्यालय ने मंत्री के ख़िलाफ़ चुनाव लड़े कार्यकर्ता की नागरिकता ‘संदिग्ध’ बताई

पिछले असम विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दल से चुनाव लड़ने वाले एक प्रत्याशी और अधिकार कार्यकर्ता की नागरिकता को पुलिस ने अपनी सत्यापन रिपोर्ट में ‘संदिग्ध’ करार दिया है. यह रिपोर्ट पुलिस ने पासपोर्ट नवीनीकरण प्रक्रिया के तहत दी है.

राज्य के मूल मिशिंग समुदाय के सदस्य प्रणब डोले ने बताया कि यहां स्थित क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर उनकी नागरिकता का सबूत देने को कहा है. डोले ने बताया कि उनका नाम 31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्ट्रर (एनआरसी) में भी दर्ज था.

रिपोर्ट के मुताबिक, डोले असम के गोलाघाट जिले के बोकाखाट सब-डिवीजन के अंतर्गत आने वाले पनबारी मिसिंग गांव के रहने वाले हैं. वह असम के स्वदेशी मिशिंग समुदाय से हैं, जो पूर्वोत्तर राज्य में रहने वाली सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है.

असम के अधिकार कार्यकर्ता प्रणब डोले जो राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के मुखर आलोचक रहे हैं, को क्षेत्रीय अधिकारियों ने यह कहते हुए कि उनकी भारतीय राष्ट्रीयता को असम पुलिस द्वारा ‘संदिग्ध’ कहा गया है, पासपोर्ट देने से इनकार कर दिया.

उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव के दौरान डोले ने आंचलिक गण मोर्चा (एजीएम) के टिकट पर असम गण परिषद (अगप) के अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री अतुल बोरा के खिलाफ बोकाखाट से चुनाव लड़ा था और पासपोर्ट कार्यालय से उन्हें सोमवार को नोटिस मिला है.

आंचलिक गण मोर्चा कांग्रेस नीत ‘महागठबंधन’ का हिस्सा था. गोलाघाट में अहम किसान संगठन ‘जीपाल कृषक श्रमिक संघ’ के वरिष्ठ नेता डोले ने दावा किया कि ‘यह उन्हें चुप कराने का हथकंडा है क्योंकि वे अक्सर भाजपा नीत सरकार के खिलाफ बोलते हैं.’

उन्होंने दावा किया, ‘यह इसलिए हुआ क्योंकि मैं (सरकार के खिलाफ) आलोचनात्मक और मुखर रुख रखता हूं. मैं जननेता हूं और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ रहा हूं… मुझे निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि मैंने चुनाव लड़ा और कड़ी टक्कर दी.’

उल्लेखनीय है कि वे बीते विधानसभा चुनाव में अपनी सीट पर दूसरे स्थान पर रहे उम्मीदवार थे.

गौरतलब है कि डोले ने इस साल सात अप्रैल को पासपोर्ट का नवीनीकरण कराने के लिए आवेदन किया था. पासपोर्ट कार्यालय द्वारा डोले को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि ‘पुलिस सत्यापन रिपोर्ट के मुताबिक उनकी नागरिकता संदिग्ध’ है.

अपने गृहनगर बोकाखाट से द वायर  से बात करते हुए, डोले ने कहा कि 20 दिसंबर को उन्हें गुवाहाटी स्थित क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय से एक पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि उनके नवीनीकरण फॉर्म को प्रोसेस करते समय इसमें ‘कमियां’ पाई गई थी. इसमें कहा, ‘पुलिस रिपोर्ट के अनुसार आपकी राष्ट्रीयता संदिग्ध है.’

उन्हें व्यक्तिगत रूप से पासपोर्ट कार्यालय में (अपनी भारतीय नागरिकता के बारे में) संदेह  स्पष्ट करने की सलाह दी गई थी.

डोले ने गोलाघाट के पुलिस अधीक्षक (एसपी) कार्यालय पर अपने राजनीतिक आकाओं के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘यह स्पष्ट रूप से मेरे खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध है. ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं बेदखली अभियान (काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की परिधि के आसपास) और सरकार की विभिन्न नीतियों के बारे में मुखर रहा हूं.’

वहीं, इस मामले पर राज्य के विपक्षी दलों ने तीखी प्रक्रिया दी है. एआईयूडीएफ विधायक अशराफुल हुसैन ने आरोप लगाया कि डोले का उत्पीड़न करने के लिए ‘सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया जा रहा है.’ असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी की मुख्य प्रवक्ता बबीता शर्मा ने इसे शर्मनाक कहा है.

नगालैंड: विधानसभा ने आफ़स्पा हटाने की मांग करने वाला प्रस्ताव पारित किया

नगालैंड विधानसभा ने केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर, खास तौर से नगालैंड से आफस्पा हटाने की मांग को लेकर सोमवार को एक प्रस्ताव पारित किया.

बीते चार दिसंबर को राज्य के मोन जिले उग्रवाद विरोधी अभियान चलाने के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा 14 नागरिकों की हत्या के बाद सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफस्पा), 1958 और नगालैंड में उसके क्रियान्वयन पर बुलाए गए विधानसभा के एक दिवसीय विशेष सत्र में मुख्यमंत्री नेफ्यो रियो द्वारा रखा गया प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हो गया.

प्रस्ताव में ‘मोन जिले के ओटिंग-तिरु गांव में चार दिसंबर को हुई घटना और जिले में ही पांच दिसंबर को हुई घटना में लोगों की मौत की आलोचना की गई है.

सदन ने सक्षम प्राधिकार से माफी मांगने और कानून के माध्यम से हिंसा पीड़ितों और हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों दोनों के लिए न्याय की मांग की.

विधानसभा ने मोन जिले के लोगों, सिविल सोसायटी, राज्य की जनता और संगठनों से अनुरोध किया है कि वे इस संबंध में राज्य सरकार के साथ सहयोग करें.

आफस्पा सुरक्षा बलों को बिना किसी पूर्व वारंट के कहीं भी अभियान चलाने और किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार देता है. पूर्वोत्तर में यह असम, नगालैंड, मणिपुर (इंफाल नगर परिषद क्षेत्र को छोड़कर) और असम की सीमा से लगे अरुणाचल प्रदेश के कुछ जिलों में लागू है.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, नगालैंड विधानसभा ने पहले 1971 और 2015 में आफस्पा को वापस लेने के प्रस्तावों को पारित किया था.

14 नागरिकों की मौत की पृष्ठभूमि में 60 सदस्यीय विधानसभा की बैठक सोमवार को आपात सत्र में हुई.

प्रस्ताव में कहा गया है, ‘नगा लोग लंबे समय से नगा राजनीतिक मुद्दे के शांति और शीघ्र समाधान के लिए रो रहे हैं. यह सबसे महत्वपूर्ण है कि लोगों की आवाज सुनी जाए और उनका सम्मान किया जाए. इसलिए, सदन एक बार फिर भारत-नगा राजनीतिक बातचीत के वार्ताकारों से अपील करता है कि वे जल्द से जल्द एक सम्मानजनक, समावेशी और स्वीकार्य समझौते पर पहुंचकर वार्ता को उसके तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचाएं.’

यह प्रस्ताव नगालैंड में आफस्पा और इसके आवेदन पर दिनभर की चर्चा का परिणाम था, जिसे भारतीय जनता पार्टी के उप-मुख्यमंत्री यानथुंगो पैटन ने शुरू किया था.

पैटन ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों के सदस्यों द्वारा घोर दुर्व्यवहार के कई उदाहरण सामने आए हैं. सबसे हाल ही में मोन जिले के ओटिंग-तिरु गांव क्षेत्र में भीषण गोलीबारी की घटनाएं हैं, जिसमें हमारे 14 प्रिय कोन्याक लोगों की जान चली गई थी.’

मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने ओटिंग हत्याओं का हवाला देते हुए कहा कि सुरक्षा बलों ने कई बार आफस्पा प्रावधानों का दुरुपयोग किया है.

रियो ने कहा कि यद्यपि आफस्पा की उत्पत्ति नगा राजनीतिक मुद्दे और उसके बाद हुए सशस्त्र विद्रोह में हुई है. केंद्र और सभी नगा राजनीतिक समूह (म्यांमार स्थित एनएससीएन-के युंग आंग गुट के अपवाद के साथ) वर्तमान में राजनीतिक बातचीत में लगे हुए हैं और युद्धविराम समझौतों के तहत हैं. जिसके कारण हाल के वर्षों में किसी बड़े सशस्त्र संघर्ष या संघर्ष की सूचना नहीं मिली है.

रियो ने कहा, ‘आफस्पा की धारा 3 के तहत किसी राज्य या किसी क्षेत्र को ‘अशांत क्षेत्र’ के रूप में घोषित करना भारत सरकार द्वारा आम तौर पर एक बार में 6 महीने की अवधि के लिए किया जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘हर बार हमारा यही रुख रहा है कि नगालैंड को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित करने की कोई जरूरत या औचित्य नहीं है. लेकिन हर बार हमारे विचारों और हमारी आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है और पिछले कई सालों से बार-बार इसे ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित कर दिया जाता है.’

रिपोर्ट के अनुसार, नगालैंड में लगा ‘अशांत क्षेत्र’ टैग दिसंबर के अंत तक समाप्त होने वाला है. नेफ्यू रियो ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार इसे और आगे नहीं बढ़ाएगी.

मंत्री तेमजेन इम्ना अलोंग, जो भाजपा की नगालैंड इकाई के अध्यक्ष हैं, ने भी आफस्पा को निरस्त करने के लिए मजबूत समर्थन दिया.

उन्होंने कहा, ‘यह देखना वास्तव में दर्दनाक है कि भारत जैसे महान देश में सुरक्षा बलों द्वारा युद्ध की कार्रवाई अपने ही लोगों पर हुई है और उनके पास आफस्पा के रूप में अपना बचाव भी है. लोकतंत्र में इस तरह के अधिनियम के लिए कोई जगह नहीं है.’

मंत्री पी. पाइवांग कोन्याक, जो उस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें तिरु-ओटिंग क्षेत्र स्थित है, ने कहा कि जो कोई भी आफस्पा प्रावधानों और अशांत क्षेत्र अधिनियम पढ़ता है, उसे एहसास होगा कि अगर प्रावधानों को अनुचित तरीके से संभाला जाता है तो नागरिकों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है.

ओटिंग हत्याओं पर एक ग्राउंड रिपोर्ट साझा करते हुए, जिसे सेना ने ‘खुफिया विफलता’ और ‘गलत पहचान’ करार दिया था, कोन्याक ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट लाई जाएगी.

गौरतलब है कि बीते चार और पांच दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच सेना की गोलीबारी में कम से कम 14 नागरिकों के मौत के बाद पूर्वोत्तर से सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम, 1958 यानी आफस्पा को वापस लेने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है.

नगालैंड में हालिया हत्याओं के बाद से राजनेताओं, सरकार प्रमुखों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में आफस्पा को हटाने की मांग उठाई है. इन्होंने कहा है कि यह कानून सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करता है और यह मोन गांव में फायरिंग जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है.

नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की सांसद अगाथा संगमा ने भी यह मुद्दा बीते सात दिसंबर को लोकसभा में उठाया था और कहा था कि पूर्वोत्तर के राज्यों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आफस्पा) हटाया जाना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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