नगालैंड: नगा संगठनों और आदिवासी समूहों ने आफ़स्पा की अवधि बढ़ाए जाने की निंदा की

केंद्र सरकार ने नगालैंड की स्थिति को अशांत और ख़तरनाक क़रार देते हुए विवादास्पद आफ़स्पा के तहत छह और महीने के लिए पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया है. सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद नगालैंड से विवादास्पद आफ़स्पा को वापस लेने की संभावना की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति के गठन के कुछ दिनों बाद केंद्र द्वारा यह क़दम उठाया गया है. 

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(फोटो: रॉयटर्स)

केंद्र सरकार ने नगालैंड की स्थिति को अशांत और ख़तरनाक क़रार देते हुए विवादास्पद आफ़स्पा के तहत छह और महीने के लिए पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया है. सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद नगालैंड से विवादास्पद आफ़स्पा को वापस लेने की संभावना की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति के गठन के कुछ दिनों बाद केंद्र द्वारा यह क़दम उठाया गया है.

(फोटो: रॉयटर्स)

कोहिमा/डिब्रूगढ़: कड़े सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (आफस्पा) को और छह महीने तक बढ़ाने संबंधी केंद्र के फैसले को अस्वीकार्य बताते हुए प्रमुख नगा संगठनों ने कहा है कि इस कदम का मकसद नगाओं की आने वाली पीढ़ियों को दबाए रखना है.

केंद्र ने बृहस्पतिवार को नगालैंड की स्थिति को अशांत और खतरनाक करार दिया तथा आफस्पा के तहत 30 दिसंबर से छह और महीने के लिए पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया था.

यह कदम केंद्र सरकार द्वारा नगालैंड से विवादास्पद आफस्पा को वापस लेने की संभावना की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति के गठन के कुछ दिनों बाद उठाया गया है.

नगालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 लोगों की मौत के बाद बढ़े तनाव को कम करने के मकसद से दशकों से नगालैंड में लागू विवादास्पद सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (आफस्पा) को हटाने की संभावना पर गौर करने के लिए बीते 26 दिसंबर को केंद्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है. यह समिति 45 दिन में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी.

आफस्पा नगालैंड में दशकों से लागू है.

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में नगा जनजातियों के निकाय ‘नगा होहो’ के महासचिव के एलु नडांग ने कहा, ‘भारत सरकार ने नगा लोगों की इच्छाओं की अनदेखी की है. सभी नगा लोग भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं और अधिनियम को निरस्त करने के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं. नगा लोग इसे नहीं मानते. हम अधिनियम को निरस्त करने के लिए भारत सरकार पर दबाव बनाने के वास्ते किसी भी हद तक जाएंगे.’

उन्होंने आश्चर्य जताया कि राज्य में शांति के बावजूद आफस्पा को क्यों बढ़ाया गया. उन्होंने कहा, ‘जब तक सेना को निर्दोष लोगों को गोली मारने का अधिकार है, तब तक हमारी भूमि में शांतिपूर्ण माहौल नहीं हो सकता है.’

उन्होंने आरोप लगाया कि आम लोग या नगा राजनीतिक समूह राज्य में कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा नहीं कर रहे हैं बल्कि सशस्त्र बल ऐसा कर रहे है.

ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ईएनपीओ) के अध्यक्ष आर. त्सापिकिउ संगतम ने कहा कि संगठन ने आफस्पा के विस्तार पर चर्चा के लिए सात जनवरी को एक बैठक बुलाई है.

नगा मदर्स एसोसिएशन (एनएमए) की सलाहकार प्रो. रोजमेरी दजुविचु ने आफस्पा के विस्तार पर अफसोस जताते हुए कहा कि नागरिकों के विरोध और मोन जिले में हत्याओं की चल रही जांच के बीच ऐसा नहीं होना चाहिए था. उन्होंने कहा कि आफस्पा के विस्तार को टाला जा सकता था.

राज्य सरकार के किसी भी वरिष्ठ अधिकारी से अभी तक इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), जो नगालैंड में सर्वदलीय संयुक्त लोकतांत्रिक गठबंधन (यूडीए) सरकार का हिस्सा है, ने एक बयान में कहा कि यह हैरान और अपमानित करने वाला है. क्योंकि 23 दिसंबर की बैठक के कुछ दिनों बाद आफस्पा को बढ़ाया गया है, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने की थी.

23 दिसंबर के बैठक में नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो, उप-मुख्यमंत्री यानथुंगो पैटन और एनपीएफ विधायक दल के नेता टीआर जेलियांग, साथ ही असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने भाग लिया था. इसमें यह निर्णय लिया गया था कि नगालैंड में आफस्पा वापस लेने की संभावना पर गौर करने के लिए केंद्र एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करेगा.

एनपीएफ द्वारा गुरुवार को जारी एक बयान में कहा गया है, ‘यह विस्तार आफस्पा केंद्र सरकार द्वारा छोटे राज्यों, विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी भारत की आवाजों के प्रति पूरी तरह से अवहेलना का प्रकटीकरण है. वह भी यह देखते हुए कि नगालैंड विधानसभा ने आफस्पा पर विचार-विमर्श करने के लिए 20 दिसंबर को एक विशेष एकदिवसीय सत्र बुलाया था. सदन ने सर्वसम्मति से इसे आफस्पा निरस्त करने की मांग करने का संकल्प लिया था.’

बयान में कहा गया है कि पार्टी नगालैंड से आफस्पा को हटाने के लिए लोकतांत्रिक तरीके अपनाएगा और जब तक केंद्र सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं करती तब तक वह चुप नहीं बैठेगी.

नगालैंड सरकार के एक वरिष्ठ नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, ‘लोग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, हालांकि यह एक सामान्य अभ्यास है (‘अशांत क्षेत्र’ की स्थिति का विस्तार), जो हर छह महीने में किया जाता है. इस बार यह ऐसे समय आया, जब लोगों की भावनाएं (14 लोगों की मौत से) आहत हैं.’

साथ ही उन्होंने कहा कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट बेहद महत्वपूर्ण होगी.

उन्होंने कहा, ‘कई लोगों का मानना ​​है कि आफस्पा के विस्तार को (14 नागरिकों की मौत को लेकर बनी) उच्चस्तरीय समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने तक रोककर रखा जाना चाहिए था.’

राज्य के शीर्ष आदिवासी निकाय नगा होहो ने कहा कि वह नगा लोगों की आवाज को नजरअंदाज करने के लिए केंद्र के रवैये से बेहद स्तब्ध है.

संगठन ने एक बयान में कहा, ‘यह एक सीधी चुनौती है और भारत सरकार की ओर से नगाओं के अविभाज्य अधिकारों को कुचलने का एक संदेश है. अगर भारत वास्तव में एक लोकतांत्रिक देश है, तो लोगों की आवाज सुनी जानी चाहिए थी. जबकि इसके विपरीत नगा लोगों की गरिमा और अधिकारों का न तो सम्मान किया जाता है और न ही उन्हें इंसान माना जाता है.’

इसने प्रत्येक नगा से आने वाले दिनों में किसी भी घटना के लिए तैयार रहने का भी आह्वान किया.

सरकारी सूत्रों ने कहा कि नवीनतम विस्तार केवल आफस्पा के खिलाफ विरोध को तेज करेगा. 14 नागरिकों की मौत के बाद अधिनियम को निरस्त करने के लिए बड़े पैमाने पर रैलियां पहले राजधानी कोहिमा के साथ-साथ पूर्वी नागालैंड जिलों में आयोजित की गई थीं.

राज्य के सर्वोच्च छात्र निकाय नगा स्टूडेंट फेडरेशन (एनएसएफ) ने कहा कि वे लोकतांत्रिक आंदोलनों की एक श्रृंखला के माध्यम से आफस्पा विस्तार का विरोध करेंगे.

एनएसएफ ने एक बयान में कहा, ‘भारत सरकार के अड़ियल रवैये को देखते हुए नगा लोगों को इस नए साल में उनका सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए.’

मालूम हो को कि बीते चार दिसंबर को सेना की एक टुकड़ी द्वारा मोन जिले में की गई गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद आफस्पा को वापस लेने के लिए नगालैंड के कई जिलों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

बीते 19 दिसंबर को नगालैंड विधानसभा ने केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर, खास तौर से नगालैंड से आफस्पा हटाने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया था. प्रस्ताव में ‘मोन जिले के ओटिंग-तिरु गांव में चार दिसंबर को हुई इस दुखद घटना में लोगों की मौत की आलोचना की गई थी.

नगालैंड में हालिया हत्याओं के बाद से राजनेताओं, सरकार प्रमुखों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में आफस्पा को हटाने की मांग उठाई है.

इन्होंने कहा है कि यह कानून सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करता है और यह मोन गांव में फायरिंग जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है.

नगालैंड एसआईटी ने 14 लोगों के मारे जाने के सिलसिले में सैनिकों से पूछताछ की

नगालैंड सरकार के विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मोन जिले में सुरक्षा बलों की गोलीबारी से हुई 14 नागरिकों की मौत के सिलसिले में बृहस्पतिवार को भारतीय सेना के 21 पारा स्पेशल फोर्स के कर्मचारियों से पूछताछ की.

असम और नगालैंड के सूत्रों के अनुसार, 22 सदस्यीय एसआईटी ने असम के जोरहाट जिले में स्थित वर्षा वन अनुसंधान संस्थान (आरएफआरआई) में सेना के कर्मचारियों से पूछताछ की.

सूत्रों ने बताया कि नगालैंड पुलिस के अतिरिक्त डीजीपी (कानून-व्यवस्था) संदीप एम. तामगडगे नीत एसआईटी ने बृहस्पतिवार देर शाम तक सैनिकों से पूछताछ की और यह शुक्रवार सुबह फिर से की जाएगी.

नगालैंड पुलिस और भारतीय सेना से पूछताछ के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए बार-बार संपर्क किया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली.

आरएफआरआई परिसर में सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया है और मीडिया को प्रवेश की अनुमति नहीं है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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