नफ़रत भरे भाषणों के सिलसिले में याचिका दाख़िल कर अदालत की निगरानी में जांच की मांग

उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं द्वारा एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया था, जिसमें मुसलमान एवं अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरे भाषण देने के साथ उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया था. इसी तरह दिल्ली में हिंदु युवा वाहिनी के एक कार्यक्रम में सुदर्शन टीवी के संपादक सुरेश चव्हाणके ने कहा था कि वह भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने के लिए ‘लड़ने, मरने और मारने’ के लिए तैयार हैं.

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New Delhi: A view of the Supreme Court, in New Delhi, on Thursday. (PTI Photo / Vijay Verma)(PTI5_17_2018_000040B)
(फोटो: पीटीआई)

उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं द्वारा एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया था, जिसमें मुसलमान एवं अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरे भाषण देने के साथ उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया था. इसी तरह दिल्ली में हिंदु युवा वाहिनी के एक कार्यक्रम में सुदर्शन टीवी के संपादक सुरेश चव्हाणके ने कहा था कि वह भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने के लिए ‘लड़ने, मरने और मारने’ के लिए तैयार हैं.

New Delhi: A view of the Supreme Court, in New Delhi, on Thursday. (PTI Photo / Vijay Verma)(PTI5_17_2018_000040B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दाखिल कर पैगंबर मोहम्मद के व्यक्तित्व और देश के विभिन्न हिस्सों में कुछ लोगों द्वारा मुस्लिमों की आस्था पर लगातार कथित ‘हमलों’ से संबंधित घृणा अपराध के मामले में अदालत की निगरानी में जांच और अभियोजन का अनुरोध किया गया है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी के माध्यम से दाखिल याचिका में केंद्र को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि नफरत वाले भाषणों, विशेष रूप से पैगंबर मोहम्मद की शख्सियत को निशाना बनाकर दिए गए बयानों के संबंध में विभिन्न राज्यों द्वारा की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट दी जाए.

अधिवक्ता एमआर शमशाद द्वारा दाखिल याचिका में देशभर में घृणा भाषणों से संबंधित अपराधों के सिलसिले में की गईं समस्त शिकायतों को एक साथ शामिल करके स्वतंत्र जांच समिति गठित करने का निर्देश जारी करने का भी अनुरोध किया गया है.

याचिका में कहा गया, ‘पैगंबर मोहम्मद का अपमान इस्लाम की पूरी बुनियाद पर ही हमला करने के समान है और इस तरह यह अत्यंत गंभीर प्रकृति का है, क्योंकि इसके नतीजतन न केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों पर निशाना साधा जाता है, बल्कि उनकी आस्था की बुनियाद पर भी हमला किया जाता है.’

इसमें कहा गया कि ऐसे भाषण किसी अन्य की आस्था की आलोचना की स्वीकार्य सीमा से परे जाकर दिए जा रहे हैं और निश्चित रूप से धार्मिक असहिष्णुता को भड़का सकते हैं.

याचिका के अनुसार राज्य और केंद्र के अधिकारियों को इन्हें विचारों तथा धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता के संदर्भ में असंगत मानना चाहिए और समुचित प्रतिबंधात्मक कदम उठाने चाहिए.

संगठन ने कहा कि उसने काफी समय तक इंतजार करने और शासकीय अधिकारियों को उचित कदम उठाने के लिए पर्याप्त वक्त देने के बाद यह याचिका दायर की है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, याचिका में कहा गया है, ‘हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के प्राधिकारी इस संबंध में पूरी तरह से विफल रहे हैं. याचिकाकर्ताओं ने पुलिस अधिकारियों के समक्ष उचित शिकायत दर्ज कराकर भी कदम उठाए हैं.’

याचिका के अनुसार, ‘कई अन्य सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील भाषणों के खिलाफ, पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की है और यदि पीड़ित व्यक्तियों ने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए उचित दिशा-निर्देश की मांग करते हुए मजिस्ट्रेट की अदालत का दरवाजा खटखटाया है, तो मजिस्ट्रेट ने शिकायतों को खारिज कर दिया है.’

इसमें कहा गया है कि तथ्यों पर विचार करते हुए यह आवश्यक है कि अदालत उचित निर्देश जारी करके सिस्टम के भीतर रखे गए जिम्मेदार व्यक्तियों की जवाबदेही तय करे, नफरत भरे भाषणों के मुद्दे और इस तरह के भाषण देने के आरोपितों से समयबद्ध तरीके से कैसे निपटा जाए, इस बारे में कुछ दिशानिर्देश दे.

इसमें कहा गया है, ‘याचिकाकर्ताओं ने इस तथ्य के प्रति सचेत रहते हुए ये बताया कि ये घृणास्पद भाषण, विशेष रूप से जब वे पैगंबर मोहम्मद जैसे धार्मिक व्यक्तित्व और बड़े पैमाने पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ किए जाते हैं, तब देश में विविधता और विभिन्न धार्मिक अनुयायियों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व गंभीर खतरे में आ जाता है.’

इसमें कहा गया है कि देश के सभी नागरिकों की विविधता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की रक्षा करना समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है, जिसमें कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार अधिकारी भी शामिल हैं.

याचिका में कहा गया है, ‘बड़े पैमाने पर मुस्लिम समुदाय पर लगातार हो रहे हमलों को देखने और कई हिंसक कृत्य हुए हैं जिनमें कई कीमती जानें चली गई हैं, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग हैं, की पृष्ठभूमि में यह आवश्यक है कि यह अदालत याचिका में की गईं प्रार्थनाओं पर उचित निर्देश पारित करने पर विचार करे.’

बता दें कि उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया था, जिसमें मुसलमान एवं अल्पसंख्यकों के खिलाफ खुलकर नफरत भरे भाषण (हेट स्पीच) दिए गए, यहां तक कि उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया था.

कार्यक्रम के आयोजकों में से एक यति नरसिंहानंद ने मुस्लिम समाज के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी करते हुए कहा था कि वह हिंदू प्रभाकरण बनने वाले व्यक्ति को एक करोड़ रुपये देंगे.

इसी तरह हिंदु युवा वाहिनी द्वारा बीते 19 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में हिंदुत्ववादियों ने खुलकर हेट स्पीच दिया और सुदर्शन टीवी के एडिटर इन चीफ सुरेश चव्हाणके ने कहा था कि वह भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने के लिए ‘लड़ने, मरने और मारने’ के लिए तैयार हैं.

इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के 76 वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना को पत्र लिखकर दिल्ली और हरिद्वार में हुए हालिया कार्यक्रमों में मुस्लिम समाज के खिलाफ भड़काऊ बयान देने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई के लिए निर्देश देने की मांग की है.

उन्होंने पत्र में आरोप लगाया है कि आयोजनों में दिए गए भाषण न केवल नफरत भरे थे, बल्कि ‘एक पूरे समुदाय की हत्या का खुला आह्वान’ भी थे.

पत्र के अनुसार, ‘ये भाषण न केवल हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरा हैं, बल्कि लाखों मुस्लिम नागरिकों के लिए भी खतरा पैदा करते हैं.’

वकीलों ने कहा कि इस तरह के भाषण पहले भी सुनने में आते रहे हैं और इसलिए इस तरह के आयोजनों को रोकने के लिए तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी है.

पत्र में वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद, दुष्यंत दवे और मीनाक्षी अरोड़ा समेत अन्य वकीलों के दस्तखत हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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