पेगासस जासूसी: एल्गार परिषद मामले के आरोपी, उनके वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट समिति को पत्र लिखा

सुप्रीम कोर्ट समिति ने तीन जनवरी को एक नोटिस जारी करके लोगों से अपील की थी कि अगर उन्हें लगता है कि उनका फोन भी पेगासस हमले का शिकार हुआ था तो वे समिति से संपर्क कर सकते हैं.

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(इलस्ट्रेशन: द वायर)

सुप्रीम कोर्ट समिति ने तीन जनवरी को एक नोटिस जारी करके लोगों से अपील की थी कि अगर उन्हें लगता है कि उनका फोन भी पेगासस हमले का शिकार हुआ था तो वे समिति से संपर्क कर सकते हैं.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

मुंबई: एल्गार परिषद मामले में फंसे कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों व उनके वकीलों ने पेगासस जासूसी मामले की जांच कर रही सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तकनीकी समिति को लिखा है कि उनके फोन पर भी पेगासस सॉफ्टवेयर का हमला हुआ था.

बता दें कि तीन जनवरी को समिति ने एक नोटिस जारी करके लोगों से अपील की थी कि अगर उन्हें लगता है कि उनका फोन भी पेगासस हमले का शिकार हुआ था तो वे समिति से संपर्क कर सकते हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, एल्गार परिषद मामले में कई आरोपियों की पैरवी कर रहे वकील निहाल सिंह राठौड़ ने इस संबंध में समिति को लिखित में भेजा है. उनके साथ ही एक अन्य वकील जगदीश मेश्राम और सांस्कृतिक समूह कबीर कला मंच की सदस्य रूपाली जाधव ने भी समिति को इस संबंध में लिखा है. ये तीनों उन लोगों में शुमार हैं जिन्हें 2019 में टोरंटो विश्वविद्यालय की सिटीजन लैब ने उनके फोन में हुई संभावित जासूसी के संबंध में सबसे पहले सूचित किया था.

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू और वकील व सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज ने भी समिति के समक्ष अपनी बात भेजी है.

एल्गार परिषद मामले में भारद्वाज हाल ही में जमानत पर रिहा हुई हैं, जबकि हेनी बाबू अभी जेल में हैं. इसलिए समिति के सामने हेनी बाबू ने अपना पक्ष पत्नी जेनी रोवेना के माध्यम से भेजा है.

राठौड़ ने अपने आवेदन में उल्लेख किया है कि उन्हें 2019 की शुरुआत में वॉट्सऐप पर अनजान अंतरराष्ट्रीय नंबरों से वीडियो कॉल आने शुरू हुए थे, जिनका जवाब देने की कोशिश करने पर वे कट जाते थे. ऐसा बार-बार होने पर तंग आकर उन्होंने उन नंबरों को ब्लॉक कर दिया.

राठौड़ ने लिखा है कि इसके बावजूद भी अन्य अंतरराष्ट्रीय नंबरों से बार-बार कॉल आने पर उन्होंने आधिकारिक तौर पर वॉट्सऐप से इसकी शिकायत की.

एल्गार परिषद मामले में ही गिरफ्तार सुरेंद्र गाडलिंग की पत्नी मीनल गाडलिंग, मेश्राम और पिछले वर्ष अप्रैल में गुजरे सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और अभिनेता वीरा साथीदार भी ऐसे ही संदिग्ध कॉल आने की बात कह चुके हैं.

राठौड़ ने अपने पत्र में लिखा है कि उनका शक तब यकीन में बदल गया जब सिटीजन लैब के वरिष्ठ शोधकर्ता जॉन स्कॉट-राइलटन ने उन्हें फोन करके जासूसी करने वाले इस सॉफ्टवेयर की जानकारी दी. जाधव, मेश्राम, गाडलिंग और साथीदार से भी सिटीजन लैब ने संपर्क किया था.

राठौड़ का कहना है कि वे तब से कई संवेदनशील मामलों की पैरवी कर रहे हैं, जिनमें नागपुर केंद्रीय जेल में माओवादियों के साथ संपर्क होने के आरोप में उम्र कैद की सजा काट रहे जीएन साईबाबा का मामला भी शामिल है.

उन्होंने लिखा है कि उनके मुवक्किलों (क्लाइंट्स) से जुड़ी अहम जानकारियां खुफिया तरीके से हासिल करने के लिए उनके फोन की जासूसी की जा रही थी.

मालूम हो कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम, जिसमें द वायर  भी शामिल था, ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे.

इस कड़ी में 18 जुलाई से द वायर  सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थी, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे.

इस एक पड़ताल के मुताबिक, इजरायल की एक सर्विलांस तकनीक कंपनी एनएसओ ग्रुप के कई सरकारों के क्लाइंट्स की दिलचस्पी वाले ऐसे लोगों के हजारों टेलीफोन नंबरों की लीक हुई एक सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर हैं, जिन्हें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है.

यह खुलासा सामने आने के बाद देश और दुनिया भर में इसे लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया. बता दें कि एनएसओ ग्रुप यह मिलिट्री ग्रेड स्पायवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचती हैं. भारत सरकार ने पेगासस की खरीद को लेकर न तो इनकार किया है और न ही इसकी पुष्टि की है.

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