नगालैंड नागरिकों की मौत: एसआईटी के सामने सेना ने कहा, पहचानने में ग़लती से हुई घटना

नगालैंड में दिसंबर माह में सेना की गोलीबारी में हुई आम नागरिकों की मौतों की जांच के लिए एसआईटी गठित की गई थी. जांच के दौरान एसआईटी के सामने बयान देने वाले सेना के 37 जवान इस बात पर अड़े हैं कि उन्हें जो ख़ुफ़िया जानकारी मिली थी, वह ग़लत साबित हुई जिसके चलते 13 आम नागरिक मारे गए.

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सशस्त्र बलों द्वारा कथित तौर पर मारे गए 14 लोगों को उनके रिश्तेदारों और स्थानीय लोगों ने नगालैंड के मोन शहर में छह दिसंबर 2021 को श्रद्धांजलि दी. (फोटो: पीटीआई)

नगालैंड में दिसंबर माह में सेना की गोलीबारी में हुई आम नागरिकों की मौतों की जांच के लिए एसआईटी गठित की गई थी. जांच के दौरान एसआईटी के सामने बयान देने वाले सेना के 37 जवान इस बात पर अड़े हैं कि उन्हें जो ख़ुफ़िया जानकारी मिली थी, वह ग़लत साबित हुई जिसके चलते 13 आम नागरिक मारे गए.

सशस्त्र बलों द्वारा कथित तौर पर मारे गए 14 लोगों को उनके रिश्तेदारों और स्थानीय लोगों ने नगालैंड के मोन शहर में छह दिसंबर 2021 को श्रद्धांजलि दी. (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: नगालैंड के मोन जिले में 13 निहत्थे आम नागरिकों की भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा हत्या के ठीक दो दिन बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में दावा किया था कि घटना ‘पहचान करने में हुई गलती’ का नतीजा थी.

इस असंवेदनशील बयान और हत्याओं को जल्दबाजी में छिपाने के शाह के इस प्रयास की हर ओर आलोचना हुई. लेकिन, अब एक महीने बाद सेना भी अपने बचाव में शाह की राह पर चल दी है.

द वायर  को मिली जानकारी के अनुसार, फायरिंग और उसके बाद हुई मौतों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के सामने गवाही देने वाले सुरक्षा बल के 37 जवान सर्वसम्मति से इस बात पर अड़े हुए हैं कि उन्हें जो खुफिया जानकारी मिली थी, वह गलत साबित हुई जिसके चलते 13 नागरिक मारे गए.

पूछताछ में शामिल सेना के इन 37 जवानों में से 31 उस ऑपरेशन में शामिल थे. एसआईटी ने अन्य 85 नागरिकों से भी पूछताछ की, इनमें से ज्यादातर उस ओटिंग गांव से थे जहां घटना हुई.

इनमें से दो बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए. एसआईटी का मानना है कि ये दो गवाह जांच के लिए महत्वपूर्ण हैं और वे अपने बयान से पीछे नहीं हटेंगे.

ऑपरेशन में शामिल रहे सेना के अधिकारियों को अलग-अलग तारीखों पर गवाही के लिए बुलाया गया था और उनके बयान 6 दिसंबर से मध्य जनवरी के बीच दर्ज किए गए थे.

एसआईटी जांच की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने द वायर  से इस बात की पुष्टि की है कि सेना के ‘बिना सोचे-समझे दिए गए जवाब’ जवाबों से अधिक सवाल खड़े करते हैं, खासकर कि सेना ने हाल के महीनों में कई बार मिली समान तरह की खुफिया सूचनाओं की अनदेखी क्यों की, जबकि विशेष तौर पर 4 दिसंबर को मिली प्राप्त जानकारी पर कार्रवाई की.

पुलिस अधिकारी ने पुष्टि की है कि ये सूचनाएं इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के तहत काम करने वाले मल्टी एजेंसी सेंटर के जरिये मिली थीं.

उन्होंने आगे बताया कि सभी एजेंसियां ​​नियमित तौर पर खुफिया सूचनाओं का एक सामान्य पूल बनाती हैं और उनके ऑपरेशन इन सूचनाओं पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं. अगर कोई इनपुट या सूचना गलत होती है, तो इससे ऑपरेशन की योजना पर गंभीर प्रभाव भुगतना पड़ता है.

एसआईटी ने पाया है कि 4 दिसंबर को नगालैंड पुलिस, आईबी, सैन्य एजेंसी और कुछ सहयोगी एजेंसियों से खुफिया जानकारी मिली थी. अब उन सूचनाओं की बारीकी से जांच की जा रही है.

अधिकारी ने यह भी बताया कि अब एसआईटी घटना वाले दिन मिले खुफिया इनपुट और अतीत में मिले ऐसे इनपुट्स  की बारीकी से तुलना करने जा रही है.

उन्होंने बताया कि सेना को रोजाना ऐसी सूचनाएं मिलती हैं. हर सूचना चरमपंथियों की गतिविधियों की ओर इशारा करती है.

उन्होंने आगे कहा कि सुरक्षा बलों की टीम ने घात लगाकर हमला किया था, इसलिए यह अचानक हुआ टकराव नहीं था और ऐसा नहीं था कि विशेष बल इससे अनजान थे.

बता दें कि कोन्याक जाति से ताल्लुक रखने वाले सभी ग्रामीण कोयला खदान में मजदूरी करते थे. जब उन्हें गोली मारी गई तब शाम के चार बजे से कुछ अधिक ही समय हुआ था और उस समय उजाला भी था.

पुलिस अधिकारी ने बताया कि घात लगाए बैठे सैन्यकर्मियों का दावा है कि उन्होंने तब ग्रामीणों के पास हथियार जैसा कुछ देखा था. हालांकि, वे सभी निहत्थे थे. उनमें से छह की मौके पर ही मौत हो गई जबकि बाकी दो गंभीर रूप से घायल हो गए.

भले ही, ग्रामीणों को शाम के चार बजे मार दिया गया था लेकिन सशस्त्र बल के जवान मौके पर 9 बजे तक तक रहे. पुलिस अधिकारी का कहना है कि इन पांच घंटों तक उनका मौके पर मौजूद रहना गंभीर सवाल खड़ा करता है.

उन्होंने आगे कहा, ‘जब 9 बजे के करीब ग्रामीण मौके पर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि उनके परिजनों के शव तिरपाल में लपेट दिए गए थे. यह संभव है कि सेना के जवान शवों को मौके से उठाकर अपने बेस कैंप में ले जाना चाहते थे. इससे ग्रामीणों ने आक्रोशित होकर सेना के वाहनों में आग लगा दी.’

इसके बाद, नौ बजे के बाद हुए घटनाक्रम में सेना ने गोलीबारी कर दी. इस दूसरी घटना में सात और ग्रामीणों की जान चली गई.

बहरहाल, एसआईटी मामले के कई अहम पहलुओं की जांच कर रही है. जैसे कि, अगर आम नागरिकों को गलती से उग्रवादी समझ भी लिया तो क्या उन पर गोली चलाई जा सकती है? क्या सेना अपनी पहली ही प्रतिक्रिया में गोली चला सकती है?

पुलिस अधिकारी ने बताया कि एसआईटी अपनी जांच का आधार ‘न्यूनतम बल प्रयोग’ के सिंद्धांत को बना रही है. भले ही क्षेत्र मे आफस्पा लागू हो, सेना सिर्फ ‘आशंका होने’ का दावा करके बच नहीं सकती.

हालांकि, अपने बयानों में सैन्य अधिकारियों ने दावा किया है कि उन्होंने संयम दिखाया था और दो घायलों को इलाज के लिए असम भी लेकर गए.

बहरहाल, घटना को अंजाम देने वाला असम का 21 पैरा विशेष बल, म्यांमार में 2015 की सर्जिकल स्ट्राइक में भी शामिल था. इस बल को भारत के सबसे कुख्यात बलों में शुमार किया जाता है.

वहीं, सेना द्वारा ऐसे मामलों में गलत पहचान होने संबंधी बहाना देना नई बात नहीं है, लेकिन पुलिस अधिकारी का कहना है कि शायद यह पहला मौका है जब उनके खिलाफ इतनी बारीकी से जांच की जा रही है.

द वायर  ने नगालैंड के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) संदीप तमगाडगे से संपर्क किया और जुटाई गई जानकारी उसने साझा की, उन्होंने न तो इसकी पुष्टि की और न ही इसे खारिज किया और कहा कि जल्द ही रिपोर्ट अदालत को सौंप दी जाएगी, तब सब-कुछ सार्वजनिक दस्तावेज के तौर पर सबके सामने होगा.

गौरतलब है कि घटना के तुरंत बाद ही एसआईटी का गठन कर दिया गया था, तब यह बहुत छोटी टीम थी. लेकिन जब तमगाडगे को जांच प्रमुख बनाया गया तो उन्होंने टीम का विस्तार किया. फिलहाल इसमें 21 सदस्य अलग-अलग पहलुओं पर काम कर रहे हैं.

इससे पहले यह जांच तिज़ित पुलिस थाने के हवाले थी, जिसने अपनी प्राथमिकी में कहा था कि सेना ने ऑपरेशन के लिए स्थानीय पुलिस को साथ न लेकर नियमों का उल्लंघन किया है.

बहरहाल, एसआईटी में तमगाडगे समेत सात भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी शामिल हैं और कई अधिकारी ऐसे भी शामिल हैं जो पीड़ितों के कोन्याक जनजाति से ही ताल्लुक रखते हैं.

तमगाडगे ने बताया कि टीम का विस्तार अपराध की गंभीरता और जांच के विभिन्न पहलुओं में लोगों की कमी को देखते हुए किया गया.

एसआईटी के काम पर मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो करीबी नजर रखते हैं. घटना के बाद उनकी सरकार ने केंद्र सरकार को राज्य से आफस्पा हटाने के लिए पत्र भी लिखा था और सदन का विशेष सत्र भी बुलाया गया था, जिसमें आफस्पा के खिलाफ एक प्रस्ताव पास किया गया था. रियो ने ट्विटर पर भी आफस्पा हटाने की बात कही थी.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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