हिजाब पर प्रतिबंध बरक़रार रखने संबंधी कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती एक छात्रा निबा नाज़ ने दी है. निबा उन पांच छात्राओं में से नहीं हैं जिन्होंने मूल रूप से हिजाब प्रतिबंध के ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी. वहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका लगाने वाली छात्राओं ने अदालती फैसले को असंवैधानिक बताते हुए कहा है कि हम बिना हिजाब कॉलेज नहीं जाएंगे, हम इंसाफ़ और अपने अधिकारों के लिए आगे लड़ाई लड़ेंगे.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती एक छात्रा निबा नाज़ ने दी है. निबा उन पांच छात्राओं में से नहीं हैं जिन्होंने मूल रूप से हिजाब प्रतिबंध के ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी. वहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका लगाने वाली छात्राओं ने अदालती फैसले को असंवैधानिक बताते हुए कहा है कि हम बिना हिजाब कॉलेज नहीं जाएंगे, हम इंसाफ़ और अपने अधिकारों के लिए आगे लड़ाई लड़ेंगे.

16 फरवरी 2022 को उडुपी के पीयू कॉलेज में प्रवेश न मिलने के बाद परिसर से निकलती छात्राएं. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कक्षा के अंदर हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में याचिका दायर की गई है. समाचार एजेंसी पीटीआई ने इसकी पुष्टि की है.

एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में एक छात्रा निबा नाज़ ने चुनौती दी है, जो उन पांच छात्राओं में शामिल नहीं थीं, जिन्होंने मूल रूप से हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ याचिका दायर की थी.

इस बीच, मामले को लेकर कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने वाली मुस्लिम छात्राओं ने मंगलवार को कहा कि वे बिना हिजाब के कॉलेज नहीं जाएंगी और इंसाफ मिलने तक कानूनी तौर पर लड़ेंगी. छात्राओं ने फैसले को ‘असंवैधानिक’ करार दिया है.

एक छात्रा ने प्रेस वार्ता में कहा, ‘हमने कक्षाओं में हिजाब पहनने की इजाजत के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था. आदेश हमारे खिलाफ आया है. हम बिना हिजाब के कॉलेज नहीं जाएंगे, लेकिन इसके लिए लड़ेंगे. हम सभी कानूनी तरीकों का इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे. हम इंसाफ और अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे.’

छात्रा ने कहा, ‘आज आया फैसला असंवैधानिक है… संविधान हमें हमारे मज़हब का पालन करने का अधिकार देता है और यह भी अधिकार देता है कि मैं कुछ भी पहन सकती हूं.’

उन्होंने पांच फरवरी के सरकार के आदेश का भी हवाला दिया जो परिसर में शांति, सद्भाव और लोक व्यवस्था को बाधित करने वाले किसी भी तरह के कपड़े को पहनने पर रोक लगाता है. उनके मुताबिक, परिपत्र उनके उच्च न्यायालय का रुख करने के बाद आया.

सरकार पर परिपत्र जारी करके इसे एक मुद्दा बनाने का आरोप लगाते हुए छात्राओं ने इल्ज़ाम लगाया कि यह दबाव में किया गया था.

छात्राओं का आरोप है, ‘उन्होंने इसका कितना मसला बना दिया. या अल्लाह… उन्होंने इसे सभी कॉलेजों का मसला बना दिया. वे सभी लड़कियों को शिक्षा से महरूम कर रहे हैं. यह दवाब में किया गया था.’

उन्होंने फिर कहा कि हिजाब उनके मज़हब का जरूरी हिस्सा है.

बता दें कि मंगलवार सुबह दिेए फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और उसने कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति देने संबंधी मुस्लिम छात्राओं की खाचिकाएं खारिज कर दी थीं और राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध बरकरार रखा.

तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि यूनिफॉर्म का नियम एक उचित पाबंदी है और संवैधानिक रूप से स्वीकृत है, जिस पर छात्राएं आपत्ति नहीं उठा सकतीं.

मुख्य न्यायाधीश ऋतु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की पीठ ने आदेश में कहा था, ‘हमारी राय है कि मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है.’

पीठ ने यह भी कहा था कि सरकार के पास 5 फरवरी 2022 के सरकारी आदेश को जारी करने का अधिकार है और इसे अवैध ठहराने का कोई मामला नहीं बनता है. इस आदेश में राज्य सरकार ने उन वस्त्रों को पहनने पर रोक लगा दी है, जिससे स्कूल और कॉलेज में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था बाधित होती है. मुस्लिम लड़कियों ने इस आदेश को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

अदालत में अपने आदेश में सभी रिट याचिकाएं खारिज कर दी थीं.

जिसके बाद, कर्नाटक सरकार ने हर किसी से आदेश का पालन करने का अनुरोध करते हुए कहा कि शिक्षा जरूरी हैं. वहीं, मुस्लिम छात्र संघ ‘कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया’ ने इसे ‘संविधान विरोधी आदेश’ बताकर प्रदर्शन किया और संवैधानिक तथा निजी अधिकारों की रक्षा के सभी प्रयास करने का आह्वान किया.

वहीं, सरकार ने कहा कि ‘गुमराह’ हुई मुस्लिम लड़कियों का दिल जीतने की कोशिश की जाएगी.

गौरतलब है कि हिजाब का विवाद कर्नाटक के उडुपी जिले के एक सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में सबसे पहले तब शुरू हुआ था, जब छह लड़कियां पिछले साल दिसंबर में हिजाब पहनकर कक्षा में आईं और उन्हें कॉलेज में प्रवेश से रोक दिया गया.

उनके हिजाब पहनने के जवाब में कॉलेज में हिंदू विद्यार्थी भगवा गमछा पहनकर आने लगे. धीरे-धीरे यह विवाद राज्य के अन्य हिस्सों में भी फैल गया, जिससे कई स्थानों पर शिक्षण संस्थानों में तनाव का माहौल पैदा हो गया था.

इस विवाद के बीच इन छह में से एक छात्रा ने कर्नाटक हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर करके कक्षा के भीतर हिजाब पहनने का अधिकार दिए जाने का अनुरोध किया था.

याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि हिजाब (सिर पर दुपट्टा) पहनना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 के तहत एक मौलिक अधिकार है और यह इस्लाम की एक अनिवार्य प्रथा है.

हिजाब के मुद्दे पर सुनवाई कर रही कर्नाटक हाईकोर्ट की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने 10 फरवरी को मामले का निपटारा होने तक छात्रों से शैक्षणिक संस्थानों के परिसर में धार्मिक कपड़े पहनने पर जोर नहीं देने के लिए कहा था. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.

इस पर तुरंत सुनवाई से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 फरवरी को कहा था कि वह प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेगा और कर्नाटक हाईकोर्ट के उस निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ‘उचित समय’ पर विचार करेगा, जिसमें विद्यार्थियों से शैक्षणिक संस्थानों में किसी प्रकार के धार्मिक कपड़े नहीं पहनने के लिए कहा गया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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