आॅनलाइन गुंडागर्दी: ट्रोल्स वो बंदर हैं जिनके हाथ सोशल मीडिया का उस्तरा लग गया है

ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ बता रहे हैं कि ट्रोल्स को गंभीरता से लिए जाने की ज़रूरत नहीं है.

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ट्रोलिंग पर विशेष सीरीज़: वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ बता रहे हैं कि ट्रोल्स को गंभीरता से लिए जाने की ज़रूरत नहीं है.

Vinod Dua Episode 84

एक विज्ञापन आता है दाग अच्छे हैं तो मेरा मानना है ट्रोल अच्छे हैं. क्योंकि ट्रोल का असली मतलब कुछ और है. ट्रोल एक गुड़िया होती है. जिसका अविष्कार 1959 में एक डेनमार्क के लकड़हारे ने किया था. माना जाता है कि इस गुड़िया के बाल खड़े होते हैं. अगर इस गुड़िया के बालों को अपने बालों से रगड़ा जाए तो किस्मत अच्छी होती है. तो इस तरह से ट्रोल अच्छे हैं.

आज जो ट्रोलिंग सोशल मीडिया पर हो रही है उसकी शुरुआत सोशल मीडिया के साथ नहीं हुई थी. मुझे अच्छी तरह याद है 1992 में मैंने एक कार्यक्रम शुरू किया था परख नाम का, ये कार्यक्रम दूरदर्शन पर आता था.

उसमें हजारों चिट्ठियां आती थीं और उस समय ट्रोल क्या था, एक ग्रुप था. जो लाल रंग के बॉल पेन से सिर्फ गालियां लिखता था. जिन गालियों को आज सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग कहते हैं वो गालियां तब पोस्टकार्ड के जरिए आती थीं. उसमें धमकियां भी होती थी कि तुम्हारे बच्चों और परिवार के साथ कुछ गलत कर दिया जाएगा. हमने कभी इनको गंभीरता से नहीं लिया. ये बस छोटे-छोटे संगठित समूह हैं.

आज की सोशल मीडिया में जो ट्रोलिंग हो रही है उसे भी हम गंभीरता से नही लेते हैं. इनका काम बस बोलना है. आप अक्सर देखेंगे इनके नाम भी सही नहीं होंगे, प्रोफाइल भी फर्जी होगी. ये छुपे हुए लोग हैं जो सामने आकर बात नहीं करते. इनको गंभीरता से लेना ही नहीं है.

मेरी जो फोटो सोनिया गांधी को गुलाल लगाते हुए वायरल की जाती है बार-बार, जिसमें कहा गया मैं गुलाल लगा रहा हूं. असल में वो केपी सिंह थे जो कि कांग्रेस के नेता हैं. उनके परिवार में भी ये मजाक चलता है कि उनकी शक्ल विनोद दुआ से बहुत मिलती है, ये बात उन्होंने खुद बताई.

उनके साथ कैप्टन प्रवीन डावर खड़े हैं जो खुद एक वरिष्ठ कांग्रेस के नेता हैं. केपी सिंह तो ब्रिगेडियर रहे हैं, कैप्टन प्रवीन डावर टैंक रेजिमेंट के कैप्टन रहें हैं, वो दोनों खड़े हैं और गुलाल लगा रहें है. बस हमारे चेहरे में थोड़ी बहुत समानता है.

हमें मालूम है ये सब कहां से शुरू हुआ, कुछ लोग हैं जिन्हें लोकप्रियता और प्रचार चाहिए होती है. इस तरह के लोगों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है और जब-जब वो फोटो वायरल हुई हमने स्पष्ट कर दिया कि वो मैं नहीं हूं.

गौरी लंकेश की हत्या के बाद जिन लोगों ने उनको कुतिया बुलाया अगर आप उन जैसे लोगों पर ध्यान देगें तो उन्हें जगह मिलेगी यही वो चाहते हैं कि उनके बारे में चर्चा हो. उनकी प्रासंगिकता इसी से बढ़ती है. उन्हें करने दो वो जो कर रहे हैं.

जो इंसान उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष होगा जैसे मैं खुद हूं वो कभी उग्रवादी नहीं हो सकता. जिन लोगों ने ऐसी शिक्षा प्राप्त की है जो उन्हें अलग-अलग लोगों और मुद्दों को समझने के लिए सक्षम बनाती है, वो व्यक्ति उग्रवादी नहीं हो सकता है.

उग्रवादी सिर्फ वही होता है जिसकी सोच बहुत संकीर्ण होती है जिसे खास तौर पर समझाया जाता है कि इतिहास को कैसे समझना है, किस तरह सोचना है और जीवन शैली कैसी होनी चाहिए जो हमारे पूर्वजों ने जी. यह वो लोग होते हैं जो खुद से अलग कुछ भी देखते हैं तुरंत असहज हो जाते हैं और डरने लगते हैं. हमें उनकी परवाह नहीं करनी चाहिए.

2014 तक जो सरकार रही वो कहने को भी धर्मनिरपेक्ष थी और अपने कामों में भी इस ढंग से कुछ नहीं करती थी जैसा आजकल होता है जिस तरह हालिया सरकार के लोग करते हैं. क्योंकि उग्रवादी वही होता है जो उदारवादी नहीं होता.

अगर मैं कांग्रेस के मंत्रियों पर निशाना साधता था अपने कार्यकमों में, जनवाणी से लेकर परख तक. उस वक्त ये विपक्ष की पार्टियां बहुत खुश होती थीं और मुझे ट्रोल नहीं करती थी. कांग्रेस वालों में इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि मुझे कुछ बोलें. जब मैंने रामजन्म भूमि पर बोलना शुरू किया तब लाल पेन वाली और गलियों वाली चिठ्ठियां आनी शुरू हुईं.

मैं नहीं मानता कि वास्तविक समाज में भी जहर भर चुका है. सोशल मीडिया नया-नया लोगों के हाथ में आया है. मैं 43 सालों से मेनस्ट्रीम टेलीविजन में काम कर चुका हूं.

हम लोग आजादी के साथ जिम्मेदारी से मीडिया को संभालते आएं है. हम जैसे लोग चीखते-चिल्लाते नहीं हैं. सनसनी नहीं फैलाते हैं और इशतहार बाजी नहीं करते.

सोशल मीडिया नया-नया आया है लोग उसका अपने अपने तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं. नई-नई दोस्तियां बनी हैं. नए-नए सेल्फ हेल्प ग्रुप बनें हैं. क्लब की तरह भी इसका प्रयोग हुआ है. जैसे उदाहरण के तौर पर साड़ी ग्रुप है जिसकी सदस्य मेरी पत्नी भी हैं. उसके हर शहर में ब्रांच खुल गए हैं जिसके जरिए हाथ से बने कपड़ों को बढ़ावा दे सकें.

दूसरा प्रयोग समझिए जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा आ गया है जिससे वो कुछ भी कर सकता है, सोशल मीडिया उनके लिए वैसा ही है.

किसी घर में सिर्फ उस घर के मालिक नहीं रहते हैं अमूमन कीड़े, चीटियां सब रहते हैं जिनसे निपटने के लिए आप कभी कभार कीटनाशक सप्रे करा देते हैं. अक्सर छोड़ भी देते हैं कि पड़े रहो अपनी जगह पर.

रही बात परिवार की तो मैंने कभी परिवार को इसमें शामिल नहीं किया हमारे परिवार में सबकी अपनी जिंदगी है. परिवार को कभी इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा और जहां तक बात मेरे पेशे की तो इस पर भी कोई फर्क कभी नहीं पड़ा.

ये ट्रोल करने वाले लोग पीछे से हमला करने वाले लोग हैं.

(अमित सिंह से बातचीत पर आधारित)

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