गुजरात चुनाव सिर पर है और विकास अवकाश पर है

मेरे किसान भाइयों! तुम्हें तो अब ख़ुदकुशी भी करने की ज़रूरत नहीं है. सरकार आजकल तुम्हें ख़ुद गोली मार देती है. चलो इस बहाने ज़हर का ख़र्चा भी ख़त्म हुआ.

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मेरे किसान भाइयों! तुम्हें तो अब ख़ुदकुशी भी करने की ज़रूरत नहीं है. सरकार आजकल तुम्हें ख़ुद गोली मार देती है. चलो इस बहाने ज़हर का ख़र्चा भी ख़त्म हुआ.

modi twitter
(फोटो साभार: Twitter@narendramodi)

‘परिणाम’ लफ्ज़ से मेरा अजीब से रिश्ता है. मुझे परिणाम का मतलब हिंदी की क्लास में कभी नहीं समझ आया. लेकिन परिणाम ने अपना अर्थ मुझे इतिहास और साइंस की क्लास में समझा दिया. इतिहास में परिणाम की खूबसूरत व्याख्या मिलती है. अशोका के कलिंग के युद्ध के परिणाम, पानीपत की तीनों लड़ाइयों के परिणाम, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम. ‘परिणाम’ शब्द खुद का परिणाम है.

परिणाम असल में प्रमाण है, प्रत्यक्ष का. पर प्रत्यक्ष भी तो आजकल उतना ज़ाहिर नहीं है. वो भी छुपा हुआ है, टनों मलबे के नीचे. मलबा प्रोपेगेंडा का. जिसके पास पैसा और ताक़त है वो ये मलबा बनाकर, प्रत्यक्ष को छुपा सकते हैं.

मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, लेकिन फेसबुक पर चीज़ें टटोलते एक फेसबुक पोस्ट पढ़ी और अप्रत्यक्ष अचानक, प्रत्यक्ष हो गया. ये लेख भी उसी फेसबुक पोस्ट से निकला है.

तो फेसबुक पोस्ट थी एक महाशय की, जिनका नाम है, पेरी महेश्वर. मैं उनको जानता नहीं हूं. ‘करिअर्स 360’ नाम की कंपनी चलाते हैं. जो कि मुझे उनकी फेसबुक प्रोफाइल से पता चला. उन्होंने अपने पोस्ट में बीते हफ्ते तो बड़ी खूबसूरती और सरलता से पेश किया है.

यहां मैं उनकी ही कही हुई बातों को अपने अल्फाज़ में पेश करूंगा. लेकिन मैं इस हफ्ते की मियाद कुछ और दिन बढ़ाकर बात करूंगा.

तो मैंने शुरुआत में परिणाम की बात की. आइये, यहां से कान वापस पकड़ते है. फिर उस कान के परिणाम की बात करते हैं.

सबसे पहले इन परिणामों पर एक मासूम सी नज़र डालते हैं:

1. दीवाली पर मोदी जी ने नेहरू जैकेट उतार, सेना की कैमफ्लाज़ जैकेट पहन ली. 2019 के संग्राम का बिगुल बजा दिया. वैसे तो हमने सुना था कि सेना की वर्दी कमाई जाती है, पर मोदी जी प्रधान सेवक है, उन्हें न कमाने से कौन रोक सकता है.

मोदी जी पहले भी दिवाली सेना के साथ मना चुके हैं. लेकिन इस बार, एक साथ, साम दाम और दंड भेद की कैमफ्लाज़ जैकेट पहन कर खड़े हो गए.

2. ताज महल को सफ़ेद से हरा पोत दिया गया. हिंदुस्तान की शान कहलाने वाला ताज महल, बेचारा, बेघर हो गया. उसे पता चला कि वो भारत की संस्कृति का हिस्सा नहीं है. वो रोने लगा, उसके आंसू देख पास बहती जमुना ने पूछा, ‘क्या हुआ?’ वो बोला, ‘यार मैं तो यहीं पैदा हुआ हूं, मैं अब कहां जाऊं?’ तो जमुना ने उसे दिलासा दिया, ‘तूने गंगा का नाम सुना है?’

ताज बोला, ‘हां’. तो जमुना बोली, ‘गंगा और जमुना मिलकर एक तहज़ीब बनती है, तू उसी का हिस्सा है.’ ताज तो जमुना की इस बात से कन्विंस हो गया पर लगता है बहुत सारे लोग अब भी ताज को पराया साबित करने की जी तोड़ कोशिश में लगे हुए हैं.

3. रामलला और अयोध्या, अभी कुछ सालों से ग़ायब थे. आसपास रहते थे, पर सौतेले भाई बहनों की तरह. विकास सगा भाई था, इसलिए उसकी बात ज्यादा होती थी. विकास क्लास में फर्स्ट आया, विकास की नौकरी लग गयी. विकास से सब जलते थे. विकास ने सबकी खाट खड़ी कर रखी थी. पर तभी एक चोट हो गयी.

विकास गुजरात में कहीं घूम रहा था और वहां से ख़बर आई कि ‘विकास पागल हो गया है’. गुजराती में ‘विकास गांडो थायो छे.’ अब क्या था, घर में हुडदंग मच गया. अपना सगा भाई पागल हो गया था, तो इस वजह से सौतेले भाई बहनों को वापस लाना पड़ा.

4. मोदी जी ने एक और बात कही जो ध्यान देने लायक है. ‘जीएसटी मेरा अकेले का फैसला नहीं है.’ देखो मित्रों, जब जीएसटी का तोहफ़ा भारत को दिया गया तब संसद का अर्द्धरात्रि सत्र बुलाकर, जैसे कि भारत को वापस आज़ाद किया था, लेकिन अब जब जीएसटी पर जनता सर फुट्टव्वल करने को उतारू है तो पाले बदल गए हैं.

अक्सर फिल्मों में निर्देशक ऐसी बातें करते हैं, जो फिल्म चल गयी तो सारी तारीफ मेरी, जो बेइज्ज़ती हुई तो सब आपस में बराबर बांट लेंगे. जैसे आजकल बच्चे कहते है न. मोदी जी, ‘लोल’.

5. भाजपा के सत्ता में करीब साढ़े तीन से ज़्यादा बीत जाने के बाद बोफोर्स की फाइलें खुल रही हैं. सीबीआई की जांच चल रही बताई गयी. फिल्म दोस्ताना का एक गाना है, ‘किस तरफ है आसमान, किस तरफ ज़मीं; ख़बर नहीं, ख़बर नहीं.’

उसी की तर्ज़ पर, ‘2G, कोलगेट, CWG, चॉपर स्कैम का क्या हुआ; ख़बर नहीं, ख़बर नहीं.’ पर एक बात तो साफ़ है. बोफोर्स हुआ था 1987 में और आज 2017 में उसकी फाइलें खुल रही है. अब बस तीस साल और इंतज़ार कीजिये, 2G वगैरह की फाइलें भी खुल जाएंगी. फैसला कब आएगा, उसका हिसाब हम बोफोर्स के फैसले से लगा लेंगे.

6. पांचवें प्वाइंट से जुड़ी एक और छोटी-सी और मामूली ख़बर है, सुखराम जी याद हैं, अपने टेलीकॉम स्कैम वाले, जिन्हें कोर्ट ने 3 साल की सज़ा भी सुनाई थी. उन्होंने और उनके बेटे ने मिलकर भाजपा का हाथ पकड़ लिया है. भाजपा वो गंगा है जिसमें जाते ही सबके पाप धुल जाते हैं. बाक़ी आप लोग खुद समझदार हैं.

मेरे अपने राज्य राजस्थान में, जहां मैं पैदा हुआ, पला-बढ़ा, सुना है वहां एक नया कानून आने वाला है, जिसके तहत, सांसद, विधायक, जज और अफसरों के खिलाफ़ जांच करना न सिर्फ मुश्किल होगा बल्कि ये कानून उनको सुरक्षा भी मुहैया कराएगा.

7. सात सितंबर को पारित आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 के अनुसार ड्यूटी के दौरान, इन लोगों के खिलाफ कोर्ट के माध्यम से भी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जा सकती. इसके लिए सरकार की स्वीकृति अनिवार्य होगी. हालांकि यदि सरकार इजाज़त नहीं देती है तब 180 दिन के बाद कोर्ट के माध्यम से प्राथमिकी दर्ज कराई जा सकती है.

हद तो ये है कि मीडिया को भी इन लोगों के बारे में बात करने की इजाज़त नहीं होगी. अगर ग़लती से ख़बर छाप दी तो 2 साल तक की सज़ा का प्रावधान है. देखिये कितनी बढ़िया डेमोक्रेसी खेली जा रही है. पूरी की पूरी सरकारी टीम को इम्युनिटी दे दी गयी है.

सरकारी लेवल पर बिग बॉस खेला जा रहा है. और सुना है ये तो अभी बस पहला प्रयोग है जिसकी शुरुआत राजस्थान से की जा रही है. लोगों का मूड चेक कर रहे हैं. अगर ऐसे फासीवादी कानून को लोगों ने स्वीकार कर लिया तो तो बाकी भारत में भी ये लागू होगा.

8. एक और छोटी सी ख़बर है. सोशल मीडिया से पता चला कि ‘दीवाली मुबारक’ कहना इतना बड़ा घोर अपराध है कि इस बात पर आपकी दोस्ती टूट सकती है. मुबारक शब्द असल में एक गाली है क्योंकि वो उर्दू का शब्द है और आज के ज़माने में उर्दू से बड़ी गाली और कोई नहीं है क्योंकि बेचारी यहीं पैदा हुई और फिर लावारिस हो गयी.

वैसे हैप्पी दीवाली कह सकते हैं. पर फिर भी आपके दोस्ती के मार्क्स काट लिए जायेंगे. अब से हर चीज़ कहने का सिर्फ एक तरीका है, दीवाली के लिये ‘शुभ दीवाली.’

9. वाड्रा की भी फाइलें वापस खुली हैं. अब आप ये कहेंगे की वाड्रा पे तो कार्रवाई होनी चाहिए? तो मैं कहूंगा टाइमिंग देखिये जनाब. ये किसी की बेईमानी का परिमाण नहीं है, किसी और की बेईमानी का परिणाम है.

10. पटाखों से लेकर काजू कतली तक में आजकल मुसलमानों की तरह ‘हिंदू ख़तरे में है.’ बचपन में सुनते थे, हर वक़्त मुसलमान ख़तरे में रहता था. डर के मारे लगता था अल्लाह बस मुझे ही देख रहा है. मुझमें कुछ ऊपर वाले का स्पेशल इंटरेस्ट है.

पर आजकल नीचे वालों में बड़ी फ़िक्र. हिंदू बड़े खतरे में हैं. जैसे जैसे बड़े हुए तो ये समझा कि जब हम डरे हुए होते हैं, तो मुल्ला-मौलवी की सब सुनते हैं. वरना इन लोगों की कौन सुनता है. पर आजकल ये हिंदुओं में ये डर सूट और टाई पहनकर टीवी स्टूडियो में बैठे लोग फैला रहे हैं. सोचिये, हिंदुओं में भी सूट-टाई वाले मौलाना है.

11. और आखिर में, अभी मेरसल नाम की एक तमिल फिल्म रिलीज़ हुई है. जिसमे एक डायलॉग, सिर्फ एक डायलॉग है, जो जीएसटी के बारे में बात करता है और उसने भारत सरकार के गलियारे हिला रखे हैं.

कुछ ख़ास नहीं है उस डायलॉग में, आप या तो उस बात से सहमत हो सकते हैं या नहीं. पर भारत सरकार ने निर्देश दिए हैं कि इस सेंसर से पास हुई फिल्म के इस डायलॉग को वापस सेंसर किया जाए. मतलब, बात भी मत करो, वरना जूते पड़ेंगे. सड़क पे निकलोगे तो गोली पड़ेगी. जैसे किसानों को मारी थी मध्य प्रदेश में. लेकिन अब अगर बात भी करी, तो तुम्हारा मुंह नोंच लेंगे.

तो ये तो हो गए परिणाम. पर आइये एक बार नज़र डालते हैं, एक आदर्श भारत में, जहां अगर आदर्श स्कैम नहीं होता तो आदर्श विचार-विमर्श किन बातों पे हो रहा होता:

हम भुखमरी में सौवें नंबर पर आ गए हैं. जिस देश में इतनी भुखमरी हो वहां अगर ये ख़बर ख़बर न हो तो हम सब बेख़बर हैं.

नोटबंदी भी कुछ नदारद है. सोचिये अगर नोटबंदी कामयाब होती तो अभी 8 नवंबर को उसकी सालगिरह के लिये सरकार 4,000 करोड़ के विज्ञापन निकाल चुकी होती. शायद फिर संसद का अर्धरात्रि अधिवेशन बुलवा लेती.

वो 2 करोड़ जॉब मिल गए क्या? मेरे युवा दोस्तों, वो जिन जॉब्स की वजह से तुमने भाजपा को वोट दिया था, वो सारे जॉब्स ठीक चल रहे हैं न? थोड़े पैसे घर भी पंहुचा देना.

मेरे किसान भाइयों. तुम्हें तो अब खुदकुशी भी करने की ज़रूरत नहीं है. सरकार आजकल तुम्हें खुद गोली मार देती है. चलो इस बहाने ज़हर का खर्चा भी ख़त्म हुआ.

और वो जीडीपी का क्या हुआ? वो जो गिर पड़ रही थी. वो उठ कर दौड़ने लग गयी क्या? कोई ख़बर नहीं आई उसकी भी.

और अक्सर आपने देखा होगा की मोदी जी पब्लिक में जाकर ये कह देते हैं ये लोग उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं. ये लोग कौन हैं?

ये कोई 46 लोग है, ये इतने भी नहीं हैं कि विपक्ष का नेता चुनने के लिये क्वालीफाई भी कर सकें? मोदी जी जो आज बहुमत के पहाड़ पर बैठे हैं. एनडीए की 335 सीटें हैं जिसमे अकेली भाजपा की 275. लेकिन मोदी जी बड़े परेशान हैं इन 46 निकम्मे लोगों से.

तो ये है भारत वर्ष का आजकल का राजनैतिक कारोबार. गुजरात के इलेक्शन बस सिर पर हैं. विकास अवकाश पर है और बौद्धिक विनाश विकास पर है. जैसे, एक-दो हफ्ते में 2014 का सारा मेनिफेस्टो रद्दी के भाव बेच दिया गया है और भगवा रंग के एशियन पेंट के करोड़ो डिब्बे खरीद लिए हैं.

पुताई चालू है, 2019 तक सारी दीवारें और चेहरे पोत दिए जायेंगे. जो नहीं पुतेंगे, उनके मुंह के लिये एंटी नेशनल पेंट के रंग को चीन से आयात करने का आर्डर दे दिया गया है.

अब इतना सीधे और घुमाकर कान पकड़ चुका हूं कि बस एक बात कहने को बची है, अगर अब भी आप लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या कह रहा हूं. तो जो मैं अब तक मोदी जी से कह रहा था, वो आप सब लोगों से कह रहा हूं… मेरे प्यारे, भोले-भाले भारत वासियों, ‘लोल.’

(दाराब फ़ारूक़ी पटकथा लेखक हैं और फिल्म डेढ़ इश्किया की कहानी लिख चुके हैं.)

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