पत्रकार विनोद वर्मा की गिरफ़्तारी इमरजेंसी की याद दिला रही है

छत्तीसगढ़ पुलिस ने बीबीसी और अमर उजाला में वरिष्ठ पदों पर रह चुके पत्रकार विनोद वर्मा को उगाही के आरोप में शुक्रवार को सुबह साढ़े तीन बजे उनके ग़ाज़ियाबाद स्थित आवास से गिरफ़्तार कर लिया.

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छत्तीसगढ़ पुलिस ने बीबीसी और अमर उजाला में वरिष्ठ पदों पर रह चुके पत्रकार विनोद वर्मा को उगाही के आरोप में शुक्रवार को सुबह साढ़े तीन बजे उनके ग़ाज़ियाबाद स्थित आवास से गिरफ़्तार कर लिया.

Vinod Verma
वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा (फोेटो साभार: फेसबुक/विनोद वर्मा)

वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा की गिरफ्तारी एक पत्रकार के पेशेवर कामकाज में दखलंदाजी है. यह उनके मानवाधिकार का उल्लंघन है. यह घोर तानाशाही का उदाहरण है जब आप किसी पत्रकार के घर में सुबह तीन बजे बिना किसी वारंट के घुसकर उसकी पत्नी और बच्चे के सामने उसे गिरफ्तार कर लेते हैं.

यही नहीं, गिरफ्तारी के बाद पत्रकार को घंटों तक थाने में बिठा दिया जाता है. उनसे पूछताछ की जाती है. इस दौरान उनके वकीलों को भी ढंग से उनसे मिलने नहीं दिया जाता है. जब बहुत सारे पत्रकार और सीनियर एडिटर उनसे मिलने जाते हैं तो पुलिस कहती हैं कि हम उनसे किसी को मिलने नहीं देंगे और न ही किसी से उन्हें बात करने की अनुमति है.

इस तरह की पुलिसिया कार्रवाई या तो ब्रिटिश हुकूमत के जमाने में या फिर इमरजेंसी के जमाने में होती थी. स्वतंत्र भारत में ऐसा सिर्फ इमरजेंसी के जमाने में हुआ था जब किसी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, लेखक या पत्रकार को इस तरह से गिरफ्तार किया जाता था. उस जमाने में ऐसे ही लोगों को हिरासत में लेकर सरकार द्वारा जेल भिजवाने की कोशिश की जाती थी.

ऐसा नजारा आज मुझे फिर से दिखाई दे रहा है. यह बहुत ही चौंकाने वाली बात है कि एक वरिष्ठ पत्रकार जिसने बीबीसी जैसे संस्थान में लंबे समय तक काम किया है. जिसने अमर उजाला के डिजिटल एडिटर के रूप में कार्य किया है, जिसने देशबंधु अखबार के साथ काम किया है और भी तमाम बड़े-बड़े अखबारों और फोरम के लिए लेखन का काम किया है. उसे आप एक खतरनाक अपराधी और मुजरिम की तरह पेश करते हैं. वो भी सिर्फ इसलिए कि आपको लगता है कि वह किसी राजनीतिक दल या राज्य सरकार के किसी मंत्री के विरुद्ध कथित तौर पर किसी गतिविधि में संलिप्त है.

छत्तीसगढ़ सरकार ने जिस तरह से पुलिस को दिल्ली भेजकर विनोद वर्मा की गिरफ्तारी कराई है वो बहुत ही ख़तरनाक और निरंकुश आचरण की तरफ इशारा करती है.

अभी तक हमें जितनी जानकारी मिली है उसके हिसाब से ये एफआईआर गुरुवार को ही छत्तीसगढ़ में दर्ज कराई गई थी और आनन-फानन में राज्य की पुलिस गुरुवार को ही गाजियाबाद आ गई. इस मामले में कोई छानबीन नहीं की गई. सभी पहलुओं के बारे में कोई पड़ताल पुलिस ने नहीं की है. इस मामले में जो कथित अभियुक्त (विनोद वर्मा) हैं उनसे उनका पक्ष नहीं पूछा गया.

सिर्फ राज्य सरकार के दबाव में विनोद वर्मा को सुबह तीन बजे गिरफ्तार कर लिया गया है. ये सब कुछ बहुत ही खतरनाक है. मेरे हिसाब से ये विनोद वर्मा के बहाने देश के अन्य पत्रकारों को सबक सिखाने का एक प्रयास है. ये बताता है कि आप सरकार के खिलाफ किसी भी तरह का कुछ भी लेखन करना चाहेंगे तो आपके खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई हो सकती है.

आपको ख़तरनाक, बदनाम और चरित्रहनन करने वाली धाराओं में गिरफ्तार किया जा सकता है. फिलहाल जिस तरह का आचरण सरकार का दिख रहा है उसे लेकर एक पत्रकार के रूप में मैं बहुत ही चिंतित हूं.

मेरा मानना है कि अगर विनोद वर्मा ने कुछ गलत किया है तो आप पूछताछ करते, आप कानूनी तरीके से कार्रवाई करते, लेकिन रात में जिस तरह से गिरफ्तारी की गई वो बहुत ही ख़तरनाक है और तानाशाही की याद दिलाने वाला है.

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश से अमित सिंह की बातचीत पर आधारित)

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