नौकरियों में वृद्धि धीमी है लेकिन रोज़गार विहीन वृद्धि की बात सही नहीं है: नीति आयोग

नीति आयोग से जुड़ी संस्था का कहना है, 'रोज़गार की समस्या बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी के उपयोग और उपयुक्त कौशल की कमी की वजह से है.'

 नीति आयोग से जुड़ी संस्था का कहना है, ‘रोज़गार की समस्या बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी के उपयोग और उपयुक्त कौशल की कमी की वजह से है.’

NIti Aayog Reuters
फोटो: रॉयटर्स

नई दिल्ली: देश में नौकरियों में पर्याप्त संख्या में वृद्धि नहीं होने का कारण बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का उपयोग और उपयुक्त कौशल का अभाव है. देश के एक प्रमुख शोध एवं शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान ने यह बात कही है.

नीति आयोग के अंतर्गत आने वाला स्वायत्त संस्थान राष्ट्रीय श्रम अर्थशास्त्र अनुसंधान एवं विकास संस्थान (एनआईएलईआरडी) का यह भी कहना है कि नौकरियों में वृद्धि धीमी जरूर है लेकिन रोजगार विहीन वृद्धि की बात सही नहीं है.

यह बात ऐसे समय कही गई है जब देश में पर्याप्त संख्या में रोजगार सृजन नहीं होने को लेकर विपक्ष के साथ सत्तारूढ़ दल भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा समेत अन्य सरकार की आलोचना कर रहे हैं.

पूर्व में एप्लाइड मैनपावर रिसर्च के नाम से चर्चित संस्थान का कहना है कि कौशल विकास, श्रम गहन इकाइयों को प्रोत्साहन, घरेलू श्रम बाजार की स्थिति के हिसाब से अनुकूल प्रौद्योगिकी के विकास आदि के जरिये पर्याप्त संख्या में रोजगार सृजित किया जा सकता है.

एनआईएलईआरडी के महानिदेशक डॉ. अरूप मित्रा ने कहा, रोजगार विहीन वृद्धि की बात सही नहीं है. रोजगार में वृद्धि हो रही है लेकिन आर्थिक वृद्धि की तुलना में नौकरी सृजन की गति धीमी है और इसका कारण अवसरों की तुलना में श्रम की अत्यधिक आपूर्ति है.

राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय (एनएसएसओ) के 2011-12 के सर्वे के अनुसार देश में कुल कार्यबल 47.41 करोड़ है. वहीं श्रम मंत्रालय का मानना है कि देश में हर महीने करीब 10 लाख लोग कार्यबल में जुड़ रहे हैं. दूसरी तरफ रोजगार में इसकी तुलना में काफी कम वृद्धि हो रही है.

पर्याप्त संख्या में रोजगार सृजन नहीं होने के कारण के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, श्रम बल की आपूर्ति की तुलना में रोजगार में कम वृद्धि का कारण प्रौद्योगिकी है. खासकर आयातित प्रौद्योगिकी है. हम पूंजी गहन प्रौद्योगिकी को अपना रहे हैं. दूसरी तरफ उपयुक्त कौशल का भी अभाव है.

डॉ. मित्रा ने कहा उनकी व्यक्तिगत राय में इस समय कृषि क्षेत्र वास्तव में उत्पादक रोजगार अवसर सृजित करने की स्थिति में नहीं है और न ही ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि क्षेत्र कोई बड़े अवसर उपलब्ध कराने की हालत में है. वहीं श्रम को खपाने को लेकर संगठित उद्योग की क्षमता भी सीमित है.

इंस्टीट्यूट आॅफ इकोनॉमिक ग्रोथ में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. मित्रा ने कहा, कृषि क्षेत्र में बिना प्रौद्योगिकी क्रांति के उत्पादक रोजगार असंभव है. वहीं सेवा क्षेत्र में उच्च उत्पादकता वाला क्षेत्र के पास अकुशल और अर्द्धकुशल कार्यबल के लिये ज्यादा गुंजाइश नहीं है.

रोजगार वृद्धि के उपाय के बारे में पूछे जाने पर प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा, कौशल विकास, श्रम गहन इकाइयों को प्रोत्साहन, घरेलू श्रम बाजार की स्थिति के हिसाब से अनुकूल प्रौद्योगिकी के विकास को आगे बढ़ाने, बुनियादी ढांचा विकास, पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगीकरण को बढ़ावा देकर रोजगार में वृद्धि की जा सकती है.

यह पूछे जाने पर कि हर साल लाखों छात्र इंजीनियरिंग और उच्च शिक्षा लेकर आते हैं, लेकिन उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिलती, उन्होंने कहा, इसका कारण तकनीकी शिक्षा और संस्थानों में दिए जाने वाले कौशल की खराब गुणवत्ता है.

इसके समाधान के बारे में मित्रा ने कहा, हमें शिक्षा और प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार के साथ और अधिक शिक्षण और प्रशिक्षण संस्थान की जरूरत है. हमें अधिक आईटीआई की जरूरत है. इसके अलावा सभी प्रकार के कर्मचारियों के लिए रोजगार प्रशिक्षण की आवश्यकता है. कौशल भारत कार्यक्रम उपयुक्त कौशल विकास में मदगार हो सकता है.