भारत में लगभग 29 लाख बच्चों को नहीं लग पाता खसरे का टीका: रिपोर्ट

पूरी दुनिया में खसरे की बीमारी से हर साल लगभग 90,000 बच्चों की जान चली जाती है, भारत नाइजीरिया के बाद दूसरे नंबर पर.

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पूरी दुनिया में खसरे की बीमारी से हर साल लगभग 90,000 बच्चों की जान चली जाती है, भारत नाइजीरिया के बाद दूसरे नंबर पर.

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प्रतीकात्मक तस्वीर. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: भारत में लगभग 29 लाख बच्चों को खसरे का टीका नहीं लग पाता है. पूरी दुनिया में इस बीमारी से हर साल लगभग 90,000 बच्चों की जान चली जाती है. यह बात अग्रणी स्वास्थ्य संगठनों की एक नयी रिपोर्ट में कही गई है.

हाल ही में आई इस रिपोर्ट में कहा गया कि विश्व अभी भी खसरे को मिटाने के क्षेत्रीय लक्ष्यों तक पहुंच पाने से दूर है क्योंकि दो करोड़ आठ लाख बच्चे अब भी खसरे के टीके की पहली खुराक से दूर हैं.

इनमें से आधे से ज्यादा बच्चे छह देशों में हैं-नाइजीरिया 33 लाख, भारत 29 लाख, पाकिस्तान 20 लाख, इंडोनेशिया 12 लाख, इथियोपिया 9 लाख और कांगो गणराज्य 7 लाख.

वर्ष 2016 में खसरे से करीब 90 हजार बच्चों की मौत हो गई. यह आंकड़ा वर्ष 2000 के मुकाबले 84 प्रतिशत कम है. उस साल खसरे से 5,50,000 बच्चों की मौत हुई थी.

यह रिपोर्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन और गावी-द वैक्सीन एलायंस ने तैयार की है.

कुछ अन्य हालिया आंकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2008 से 2015 के बीच हर रोज औसतन 2,137 नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई है. जबकि देश में अब भी शिशु मृत्यु की पंजीकृत संख्या और अनुमानित संख्या में बड़ा अंतर दिखाई देता है. आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2008 से 15 के बीच हर घंटे औसतन 89 नवजात शिशुओं की मृत्यु होती रही है. 62.40 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु जन्म के 28 दिनों के भीतर हुई.

भारत के महापंजीयक की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015 में भारत में 76.6 प्रतिशत मृत्युओं का ही पंजीयन हुआ. बिहार में मृत्यु के 31.9, मध्यप्रदेश में 53.8, उत्तर प्रदेश में 44.2 और पश्चिम बंगाल में 73.5 प्रतिशत पंजीयन हुए.

इसमें माना जा सकता है कि पंजीयन की व्यवस्था न हो पाने के कारण नवजात शिशुओं की मृत्यु की वास्तविक स्थिति, नवजात शिशु मृत्यु दर और अनुमानित जीवित जन्मों के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलती है.

आंकड़े कहते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा नवजात शिशु मृत्यु भारत में होती हैं. वर्ष 2008 से 2015 के भीच भारत में 62.40 लाख बच्चे जन्म लेने के 28 दिनों के भीतर ही मृत्यु को प्राप्त हो गए.

बच्चों के लिए काम करने वाले एनजीओ सेव द चिल्ड्रन का कहना है कि भारत में पांच साल से नीचे की उम्र वाले 3,671 बच्चों की प्रतिदिन मौत हो जाती है. एनजीओ के आंकड़े कहते हैं कि 56 प्रतिशत मौतें जन्म के 28 दिन के भीतर हो जाती हैं. इनमें से 50 प्रतिशत की मौत कुपोषण के कारण होती है. दुनिया भर में जितने नवजात बच्चों की मौतें होती हैं, उनमें से 21 प्रतिशत अकेले भारत हैं.

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एनजीओ का कहना है कि भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र वाले 1.25 मिलियन यानी 12.5 लाख बच्चे ऐसी वजहों से मर जाते हैं जिनका इलाज संभव है. हर साल 5.7 लाख बच्चे जन्म से सात दिन के भीतर मर जाते हैं. 10.5 लाख बच्चे एक साल पूरा करने से पहले मर जाते हैं.

पिछले साल अप्रैल में स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने संसद में बताया था कि भारत में हर साल पांच साल की उम्र पूरी करने से पहले 1.26 मिलियन यानी 12.6 लाख बच्चों की मौत हो जाती है. चौंकाने वाला एक आंकड़ा यह है कि इनमें से 57 प्रतिशत 28 दिन की उम्र भी नहीं पूरी कर पाते.

संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि भारत में प्रतिवर्ष कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज़्यादा है. पूरे दक्षिण एशिया में कुपोषण के मामले में सबसे ख़राब हालत भारत में है.

कुपोषण का एक प्रकार उम्र के हिसाब से वजन न बढ़ना है, भारत में अभी 35.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं. भारत में विश्व की 17.3 प्रतिशत आबादी रहती है, जबकि विश्व की कुल कुपोषित आबादी का 24.5 प्रतिशत भारत में है. 118 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान 97वां हैं.

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