लोक नाटकों के मंचन को राजद्रोह बताने वाला 140 साल पुराना क़ानून होगा रद्द

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पिछले तीन वर्षो के दौरान 1200 पुराने और अप्रचलित क़ानूनों को समाप्त कर चुकी है.

New Delhi: A view of Parliament in New Delhi on Sunday, a day ahead of the monsoon session. PTI Photo by Kamal Singh (PTI7_16_2017_000260A)
(फोटो: पीटीआई)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पिछले तीन वर्षो के दौरान 1200 पुराने और अप्रचलित क़ानूनों को समाप्त कर चुकी है.

New Delhi: Parliament during the first day of budget session in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by  Kamal Kishore  (PTI2_23_2016_000104A)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीआजादी के आंदोलन में लोक नाटकों और कलाओं के मंचन की ताकत को भांपकर ब्रिटिश सरकार ने इनके मंचन को निषिद्ध करने के लिए किसी जमाने में राजद्रोह और मानहानिकारक कानून बनाया था. अब इस 140 साल पुराने कानून को नरेंद्र मोदी सरकार समाप्त करने जा रही है.

यह कानून 1876 में अमल में लाया गया था. केंद्र सरकार ने पुराने एवं अप्रचलित कानूनों को समाप्त करने की श्रृंखला में इस कानून को समाप्त करने का निर्णय किया है.

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों में आजादी की अलख जगाने में नाटकों की महत्चपूर्ण भूमिका रही थी. पोवाडा, तमाशा, कीर्तन जैसे लोक माध्यमों में संगीत एवं नृत्य का समावेश करके लोगों के बीच आजादी का संदेश पहुंचाया जाता था.

इस श्रृंखला में गिरीश चंद्र घोष ने ‘सिराज उद दौला’ और ‘मीर कासिम’ नाट्य श्रृंखला लिखी जो अंग्रेजी शासनकाल के दमन चक्र को दर्शाती थी. इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. ऐसे नाटकों में ‘मृणालिनी’, ‘छत्रपति शिवाजी’, ‘कारागार’ जैसे नाटक प्रमुख हैं.

इसी प्रकार बंगाल में महत्वपूर्ण नाटक ‘नील दर्पण’ पर भी प्रतिबंध लगाया गया जिसे दीन बंधु मित्रा ने लिखा था. इसे कोलकाता स्थित नेशनल थियेटर ने पेश किया था. लांग जेम्स ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया था.

साल 1870 के बाद राष्ट्रवाद की भावना की अभिव्यक्ति वाले कई नाटक आए जिनमें अंग्रेजों के शासनकाल के दमन चक्र को प्रतिबिंबित किया गया था और जनमानस में इनका व्यापक प्रभाव देखा गया.

इसी श्रृंखला में ‘नाट्य प्रदर्शन अधिनियम’ 16 दिसंबर 1876 को प्रचलन में आया, जिसका प्रारूप थामस बेरिंग ने तैयार किया था और यह वायसराय नार्थब्रूक के समय में अमल में लाया गया था. लेकिन देश के आजाद होने के 70 वर्ष बाद भी यह कानून विद्यमान है.

सरकार ने संसद के मानसून सत्र में निरसन और संशोधन (दूसरा) विधेयक 2017 पेश किया था जिसके माध्यम से 131 पुराने और अप्रचलित कानूनों को समाप्त करने का प्रस्ताव किया गया था.

इनमें सरकारी मुद्रा अधिनियम 1862, पश्चिमोत्तर प्रांत ग्राम और सड़क पुलिस अधिनियम 1873, नाट्य प्रदर्शन अधिनियम 1876, राजद्रोहात्मक सभाओं का निवारण अधिनियम 1911, बंगाल आतंकवादी हिंसा दमन अनुपूरक अधिनियम 1932 शामिल है.

नाट्य प्रदर्शन अधिनियम 1876 में कहा गया है कि जब कभी राज्य सरकार की यह राय हो कि किसी सार्वजनिक स्थान में प्रदर्शित या प्रदर्शित किया जाने वाला कोई भी खेल, मूक अभिनय या अन्य नाटक कलंकात्मक या मानहानिकारक स्वरूप का है, अथवा विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति नफरत की भावना प्रदीप्त होने की आशंका हो या उसके कारण प्रदर्शन में उपस्थित व्यक्तियों के भ्रष्ट होने की आशंका हो….तब राज्य सरकार या उसकी ओर से नामित मजिस्ट्रेट उस प्रदर्शन को आदेश द्वारा निषिद्ध कर सकेगा.

अंग्रेजों शासनकाल में प्रदर्शित ऐसे ही नाटकों की श्रृंखला में ‘चक्र दर्पण’ और ‘गायकवाड दर्पण’ का प्रमुख स्थान हैं. इन नाटकों को मानहानिकारक, राजद्रोहात्मक बताकर प्रतिबंध लगाया गया था.

इसके साथ ही ‘गजदानंद एवं युवराज’, ‘हनुमान चरित्र’ पर भी प्रतिबंध लगाया गया. ‘द पुलिस आफ पिग एंड शीप’ भी ऐसे ही नाटक हैं. इसे तत्कालीन पुलिस कमीश्नर हाग और उस समय के पुलिस अधीक्षक लैम्ब के संदर्भ में पेश किया गया था. तब नाटक के निर्माता उपेंद्र नाथ दास एवं थियेटर से जुड़े अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था.

नाट्य प्रदर्शन अधिनियम 1876 में प्रवधान किया गया था कि जो कोई भी इस आदेश की अधिसूचना के बाद उसके प्रदर्शन में, प्रदर्शन संचालन में या उसके किसी भाग के दर्शक के रूप में उपस्थित रहेगा अथवा गृह, कमरे या स्थान को प्रदर्शन के लिये खोलेगा…. उसे दोष सिद्ध होने पर तीन माह का कारावास या जुर्माना या दोनों दंड प्रदान किया जाएगा.

औपनिवेशिक काल के इस कानून के अनुसार, राज्य सरकार यह आदेश भी दे सकती है कि ऐसे क्षेत्र के भीतर सार्वजनिक मनोरंजन के किसी स्थान में कोई भी नाट्य प्रदर्शन तक तक नहीं किया जायेगा, जब तक कि उस कृति की…… लिखित प्रति या मूक अभिनय का विवरण तीन दिन पहले नहीं दे दिया जाता है.

नाट्य प्रदर्शन अधिनियम 1876 में हालांकि कहा गया है कि इस अधिनियम की कोई बात धार्मिक उत्सवों में किन्हीं यात्राओं या उसी प्रकार के प्रदर्शनों पर लागू नहीं होती है .

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पिछले तीन वर्षो के दौरान 1200 पुराने और अप्रचलित कानूनों को समाप्त कर चुकी है. निरसन और संशोधन दूसरा विधेयक 2017 विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि यह विधेयक इसलिए लाया गया है क्योंकि पुराने पड़ गए और अप्रचलित अधिनियमों को खत्म करना आवश्यक हो गया था.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq