बिंदी-काजल पर जीएसटी नहीं तो सैनिटरी नैपकिन पर क्यों: दिल्ली हाईकोर्ट

31 सदस्यीय जीएसटी परिषद में एक भी महिला सदस्य न होने पर भी अदालत ने नाराज़गी जाहिर की.

(फोटो: पीटीआई)

31 सदस्यीय जीएसटी परिषद में एक भी महिला सदस्य न होने पर भी अदालत ने नाराज़गी जाहिर की.

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नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को केंद्र सरकार से सवाल किया कि यदि बिंदी, सिंदूर और काजल जैसी चीजें वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी के दायरे से बाहर रखी जा सकती हैं तो महिलाओं के लिए बेहद जरूरी सैनिटरी नैपकिन को जीएसटी से छूट क्यों नहीं दी जा सकती.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि सैनिटरी नैपकिन एक जरूरत है तथा उस पर कर लगाने और अन्य वस्तुओं को जरूरी चीजों की श्रेणी में लाकर उन्हें कर के दायरे से बाहर करने का कोई स्पष्टीकरण नहीं हो सकता.

पीठ ने कहा, आप बिंदी, काजल और सिंदूर को छूट देते हैं लेकिन आप सैनिटरी नैपकिन पर कर लगा देते हैं. यह तो जरूरी चीज है. क्या इसका कोई स्पष्टीकरण है?

31 सदस्यीय जीएसटी परिषद में एक भी महिला सदस्य के नहीं होने पर भी अदालत ने नाखुशी जाहिर की.

पीठ ने कहा, ऐसा करने से पहले क्या आपने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से इस पर चर्चा की या आपने सिर्फ आयात एवं निर्यात शुल्क ही देखा. व्यापक चिंता को ध्यान में रखते हुए इसे करना है.

इस मामले की अगली सुनवाई 14 दिसंबर को होगी.

अदालत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय  में अफ्रीकी अध्ययन की शोधार्थी जरमीना इसरार खान की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जरमीना ने सैनिटरी नैपकिनों पर 12 फीसदी जीएसटी लगाने के फैसले को चुनौती दी है. याचिका में इस फैसले को गैर-कानूनी एवं असंवैधानिक करार दिया गया है.