मौलिक अधिकारों के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता: मुख्य न्यायाधीश

संविधान दिवस: केंद्रीय क़ानून मंत्री ने कहा, शासन का काम उनके पास रहना चाहिए जो इसके लिए निर्वाचित हुए हों. सीजेआई बोले, नागरिकों का अधिकार सर्वोच्च होना चाहिए.

//
फोटो: पीटीआई

संविधान दिवस: केंद्रीय क़ानून मंत्री ने कहा, शासन का काम उनके पास रहना चाहिए जो इसके लिए निर्वाचित हुए हों. सीजेआई बोले, नागरिकों का अधिकार सर्वोच्च होना चाहिए.

फोटो: पीटीआई
फोटो: पीटीआई

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा ने रविवार को कहा कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता है. यह बात उन्होंने केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद की इस दलील का जवाब देते हुए कही जिसमें उन्होंने कहा था कि शासन का काम उनके पास रहना चाहिए जो शासन करने के लिए निर्वाचित किए गए हों.

प्रसाद ने कहा था कि जनहित याचिका शासन का विकल्प नहीं बन सकती है. इसपर सीजेआई ने कहा कि उच्चतम न्यायालय संवैधानिक संप्रभुता में विश्वास करता है और उसका पालन करता है.

उन्होंने कहा, मौलिक अधिकार संविधान के मूल मूल्यों में हैं और वे संविधान का मूल सिद्धांत हैं. एक स्वतंत्र न्यायपालिका को न्यायिक समीक्षा की शक्ति के साथ संतुलन स्थापित करने के लिए संविधान के अंतिम संरक्षक की शक्ति दी गई है ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि संबंधित सरकारें कानून के प्रावधान के अनुसार अपने दायरे के भीतर काम करें.

संविधान दिवस मनाने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि नागरिकों के मौलिक अधिकार के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता. न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, नागरिकों का अधिकार सर्वोच्च होना चाहिए.

संविधान को स्पष्ट और जीवंत दस्तावेज बताते हुए उन्होंने कहा, उच्चतम न्यायालय का आज मानना है कि हम सिर्फ संवैधानिक संप्रभुता के तहत हैं और हमें इसका पालन करना चाहिए.

सीजेआई ने कार्यक्रम में कहा, यद्यपि कोई भी अधिकार पूर्ण नहीं है, लेकिन ऐसी कोई बाधा नहीं होनी चाहिए जो संविधान के मूल सिद्धांतों को नष्ट करे. इस कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया.

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि न्यायपालिका का ध्यान लंबित मामलों को कम करने, महत्वहीन मुकदमों को खारिज करने और मामलों का निपटारा करने के लिये वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र पर जोर देने पर होना चाहिए.

कार्यपालिका और विधायिका का विकल्प नहीं हो सकती जनहित याचिका

कार्यक्रम में विधि मंत्री ने कहा कि यद्यपि जनहित याचिका गरीबों को न्याय प्रदान करने में उद्देश्यों की पूर्ति करती है, लेकिन उसका इस्तेमाल शासन के विकल्प और कार्यपालिका और विधायिका की कानून बनाने की शक्तियों के विकल्प के तौर पर नहीं किया जा सकता है.

प्रसाद ने कहा, जनहित याचिकाएं शासन और सरकार का विकल्प नहीं बननी चाहिए क्योंकि हमारे संस्थापकों ने यह अधिकार उन्हें दिया है जो शासन करने के लिये निर्वाचित हुए हों.

प्रसाद ने कहा कि विधि निर्माण उनके अधिकार क्षेत्र में छोड़ा जाना चाहिए जो कानून बनाने के लिए निर्वाचित किए गए हों. उन्होंने कहा, हमारे संस्थापकों का साफ तौर पर आशय था कि शासन उन लोगों पर छोड़ा जाना चाहिए जिन्हें भारत की जनता ने चुना हो और जो भारत की जनता के प्रति जवाबदेह हों.

उन्होंने कहा, जहां न्यायपालिका की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, वहीं न्यायिक जवाबदेही, शुचिता और ईमानदारी और शिष्टाचार भी उतना ही जरूरी है. उन्होंने कहा, न्यायपालिका के मामले में जवाबदेही अदृश्य है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, लेकिन ईमानदारी और शिष्टाचार भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं.

उन्होंने कहा कि लापरवाही भरे आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए या उसपर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय द्वारा जनहित याचिका के विकास को वरदान बताया और कहा कि इसने देश के गरीब नागरिकों की मदद की है.

सभी धर्मों का धर्म है संविधान: न्यायमूर्ति लाहोटी

भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश आरसी लाहोटी ने कहा कि संविधान सभी धर्मों का धर्म है और यदि शासन की अन्य इकाइयां असफल हो जाएं फिर भी न्यायपालिका को अपने मूल्य बरकरार रखने के दौरान डगमगाना नहीं चाहिए.

संविधान दिवस मनाने के लिए उच्चतम न्यायालय की ओर से यहां आयोजित एक कार्यक्रम में संवैधानिक मूल्य विषय पर व्याख्यान देते हुए न्यायमूर्ति लाहोटी ने कहा कि संविधान के आदेश के आगे बिना शर्त समर्पण और संकीर्ण विचारों से पर उठकर कई मुद्दों का समाधान किया जा सकता है.

उन्होंने न्यायपालिका को अपनी स्वयं की सीमाओं के उल्लंघन के प्रति भी आगाह किया और कहा कि उसे शक्तियों के विभाजन को संरक्षित और उसकी रक्षा करनी है.

उन्होंने कहा कि एक न्यायाधीश को यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता की निगाहें लगातार उस पर हैं और जब वह सुनवाई के लिए बैठता है तो उसकी स्वयं की परीक्षा होती है.

न्यायमूर्ति लाहोटी ने कहा कि लोगों को प्रेरित करने के लिए देश को नि:स्वार्थ और समर्पित नेताओं की जरूरत है ताकि वे राष्ट्रीय हितों को वर्ग के हितों से पर रखें.

न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच नाजुक संतुलन कायम रखना महत्वपूर्ण: राष्ट्रपति

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने रविवार को कहा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच नाजुक संतुलन कायम रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे सब समान हैं.

उन्होंने कहा कि राज्य के तीनों अंगों को अपनी स्वतंत्रता को लेकर सचेत रहना चाहिए और अपनी स्वायत्तता की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए. राष्ट्रपति ने कहा कि हालांकि उन्हें सजग रहना चाहिए कि वे अनजाने में भी दो अन्य शाखाओं में से किसी एक के क्षेत्र में घुसपैठ कर शक्तियों को अलग कर आपसी भाईचारे को बाधित नहीं करें.

राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह का उद्घाटन करते हुए कहा कि राज्य की तीनों शाखाओं के बीच के संबंधों पर गौर करते समय नाजुक संतुलन को ध्यान में रखना अहम है. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका सभी समान हैं.

उन्होंने कहा कि हमारा संविधान गतिहीन नहीं है, बल्कि एक जीवंत दस्तावेज है. उन्होंने राज्य की तीनों शाखाओं के बीच संवाद में संयम और विवेक की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि इससे राज्य की तीनों समान शाखाओं के बीच भाईचारे को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने कहा कि राज्य के तीनों अंगों की संविधान के प्रति खास जिम्मेदारी है. इससे आम नागरिक भी आश्वस्त होंगे कि संविधान सुरक्षित है और परिपक्व हाथों में है.

उन्होंने कहा कि अदालतों में सुनवाई भी, अगर संभव हो तो ऐसी भाषा में होनी चाहिए जो साधारण याचिकाकर्ता समझा सकें. उन्होंने मामलों के निस्तारण की प्रक्रिया में भी तेजी लाने की जरूरत पर बल दिया. राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि यह उच्च न्यायपालिका पर है कि वे निचली न्यायपालिका को प्रोत्साहित करें और इस प्रक्रिया में राज्य सरकार का सहयोग भी काफी जरूरी है.

उन्होंने कहा, मुझे यह जानकर खुशी हुई कि कुछ उच्च न्यायालय इस दिशा में कदम उठा रहे हैं. 30 जून 2017 तक झारखंड उच्च न्यायालय के तहत सत्र एवं जिला अदालतों में करीब 76 हजार मामले थे जो पांच साल या उससे अधिक समय से लंबित थे. उच्च न्यायालय ने ऐसे मामलों में से करीब आधे मामलों को 31 मार्च 2018 तक निस्तारण का लक्ष्य रखा है.

राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान एक अमूर्त आदर्श मात्र नहीं है और इसे देश की हर गली, हर गांव और हर मोहल्ले में आम जनता के जीवन को सार्थक बनाना होगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25