‘नाना-परनाना की बजाय ये क्यों नहीं बताते कितने घर, रोज़गार, स्कूल-अस्पताल दिए?’

सोशल मीडिया: गुजरात चुनाव प्रचार में विकास की जगह राहुल के परनाना ने ले ली तो फेसबुक और ​ट्विटर पर लोगों ने प्रधानमंत्री की भाषा और ग़लतबयानियों पर जमकर चुटकी ली.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो: ट्विटर/नरेंद्र मोदी)

सोशल मीडिया: गुजरात चुनाव प्रचार में विकास की जगह राहुल के परनाना ने ले ली तो फेसबुक और ट्विटर पर लोगों ने प्रधानमंत्री की भाषा और ग़लतबयानियों पर जमकर चुटकी ली.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो: ट्विटर/नरेंद्र मोदी)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो: ट्विटर/नरेंद्र मोदी)

नई दिल्ली: गुजरात चुनाव के दौरान एक रैली में राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर जाने पर टिप्पणी करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाषा पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है. प्रधानमंत्री की टिप्पणी को लेकर सोशल मीडिया पर उनकी खासी आलोचना हो रही है. तमाम लोगों ने इस टिप्पणी को प्रधानमंत्री पद की गरिमा गिराने वाला बताया.

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने ट्विटर पर लिखा, ‘नाना-परनाना, दादा-दादी, चाचा-चाची जैसी फ़ालतू भाषणबाज़ी की बजाय ये क्यों नहीं बताते कितने घर दिए, रोज़गार दिया, स्कूल-अस्पताल दिए? हिम्मत है तो वहां जीएसटी और नोटबंदी के फ़ायदे बताते! महंगाई की बतियाते. कहते दलित-ओबीसी यहां सब ख़ुश है. कहां है विकासवा?’

एक अन्य ट्विट में लालू प्रसाद ने लिखा, ‘मोदी सरकार संसद में विधेयक पारित कर यह अनिवार्य कर दे कि वही व्यक्ति मंदिर में प्रवेश कर सकता है जिसके नाना-परनाना ने मंदिर बनवाया है. बाक़ी के लिए नो-एंट्री का बोर्ड लगा दें.’

गौरतलब है कि राहुल गांधी बुधवार को गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर गए थे, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘आज जिन लोगों को सोमनाथ याद आ रहे हैं, इनसे एक बार पूछिए कि तुम्हें इतिहास पता है? तुम्हारे परनाना, तुम्हारे पिता जी के नाना, तुम्हारी दादी मां के पिता जी, जो इस देश के पहले प्रधानमंत्री थे. जब सरदार पटेल सोमनाथ का उद्धार करा रहे थे तब उनकी भौहें तन गईं थीं.’

मोदी ने कहा, ‘भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेद्र प्रसाद को सरदार बल्लभभाई पटेल ने उद्घाटन के समय सोमनाथ आने का न्योता दिया. तब तुम्हारे परनाना पंडित जवाहर लाल नेहरू ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पत्र लिखकर सोमनाथ के कार्यक्रम में जाने पर नाराजगी व्यक्त की थी.’

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दुर्भाग्य से नरेंद्र मोदी ने जिस तरह की स्तरहीन टिप्पणी की, तमाम लोगों ने भी प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ताक पर रखकर उन पर टिप्पणियां कीं.

निलेश शेवगांवकर नाम के ट्विटर अकाउंट से लिखा गया, ‘मोदी और बीजेपी की हालत इतनी ख़राब है कि उसे राहुल के नाना परनाना याद आ रहे हैं.
18 तारीख को जनता नानी याद दिलाएगी.’

रुद्र प्रताप ने लालू यादव की पोस्ट को रीट्वीट करते हुए लिखा, ‘…और अगर ये विधेयक पारित हो गया कि जिसके नाना-परनाना ने देश के लिए लहू दिया है वही देश में रह सकता है तो सारे भाजपाई-संघियों को देश छोड़ना पड़ जाएगा.’

सोशल मीडिया पर सक्रिय पत्रकार लेखक गिरीश मालवीय ने फेसबुक पर लिखा, ‘फिर वही हिंदू मुस्लिम का शगूफा उछाल कर खड़े हो गए, राहुल गांधी के नाना, सोमनाथ का मंदिर आदि आदि… आप कहेंगे कि नए राफेल सौदे से देश को इतना नुकसान क्यो हुआ? वो कहेंगे कि राहुल गांधी सही है कि नाम राहुल खान होना चाहिए! आप पूछेंगे कि जस्टिस लोया की संदेहास्पद मृत्यु कैसे हुई? वो बताएंगे कि नेहरू के कितनी महिलाओं के साथ कैसे कैसे फोटो थे! आपका सवाल होगा नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे व्यापारियों को तबाह कर दिया? उनका जवाब होगा कि इस बार अयोध्या में कैसी अच्छी दीवाली मनाई! इनके लिए तो सिर्फ एक ही बात करना चाहिए…

तू इधर-उधर की न बात कर, ये बता कि मेक इन इंडिया का, विकास का, रोजगार का, अर्थव्यवस्था का कारवां क्यों लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है.’

आजाद सफर ने ट्वीट किया, ‘गुजरात में हालत इतनी खराब है कि गुजरात मॉडल वाले नाना-परनाना पर आ गए… कुछ दिन इंतजार कीजिए, मां-बहन पर भी आएंगे. यह बौखलाहट बताती है कि गुजरात मॉडल कितना खोखला और देश से बोला गया कितना बड़ा झूठ था. क्या पूरे देश को धोखा देने वाले के खिलाफ जनता को कार्रवाई नहीं करनी चाहिए?’

गौरव नाम के एक छात्र ने फेसबुक पर टिप्पणी की, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस प्रकार की टिप्पणी करना मुझे न बहुत अलग लगा और न ही असहज हुआ. मोदी जी ने हमेशा निम्न स्तर की राजनीति की है. गुजरात चुनाव में साख का सवाल है तो सब जायज है. आगे-आगे देखते जाइए अभी और कितना गिरते हैं लोग.’

सामाजिक कार्यकर्ता अजीत साहनी ने लिखा, ‘राहुल के नाना राष्ट्र निर्माता हैं, मंदिर निर्माता नहीं साहेब, तुम वो भी न बना पा रहे, झांसे दे रहे हो, विहिप 1800 करोड़ चंदा खा गया.’

अजय कुमार ने ट्विटर पर लिखा, ‘पीएम के नाना-परनाना वाले भाषण से याद आया कि राजनीति में लोकप्रिय होने के लिए पढ़ाई में पीएचडी नहीं, गाली गलौज में पीएचडी होनी चाहिए.’

पत्रकार रूबी अरुण ने फेसबुक पर लिखा, ‘उनके परनाना ने नहीं तो आपके बाप ने भी तो नहीं बनवाया ना हुज़ूर. …इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया… तब देश में सरकार, उनके नाना की ही पार्टी की थी साहिबेआलम!’

एक अन्य टिप्पणी में उन्होंने लिखा, सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे फिर गिराया गया. सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और विनाश का सिलसिला जारी रहा. इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया… सब परधान के मुख्यमंत्री बनने से पहले हुआ… और उस समय सरकार तो नाना की पार्टी की ही थी.’

डीयू के प्रोफेसर ने फेसबुक पर सवाल उठाया, ‘मैंने आज तक ऐसा कोई मंदिर, मस्ज़िद, चर्च या गुरुद्वारा नहीं देखा, जहां धर्म या लिंग के हिसाब से आगंतुकों का रजिस्टर रखा जाता है. हालांकि सुनता आया हूं कि कुछ हिंदू मंदिरों में ऐसा भेदभाव किया जाता है. हिंदू धर्मों के धारकों के लिए यह दुख और लज्ज़ा की बात है. मैं भी जन्मना हिंदू होने के नाते इस लज्ज़ा में शामिल हूं. हमें इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए. दुनिया का कोई धर्ममत ईश्वर के सामने ऐसा भेदभाव नहीं करता. हिंदू इतने अनुदार क्यों हैं? सोमनाथ मंदिर का धार्मिक रजिस्टर हटना चाहिए.’

रोशन सिंह ने ट्वीट किया, ‘आदरणीय मोदी जी के अनुसार अब मंदिर वही जा सकता है जिसके नाना परनाना ने मंदिर बनवाया हो. देश के सभी नाना से गुजारिश है कि वे एक एक मंदिर जरूर बनवाएं ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी मंदिर जा सके.

पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने फेसबुक पर एक लंबी पोस्ट लिखकर सनातन हिंदू धर्म और राजनीतिक हिंदुत्व के बीच फर्क पर टिप्पणी की. उन्होंने लिखा, ‘राहुल गांधी के सनातनी होने में कोई दिक्‍कत नहीं है. उनके ईष्‍ट देवता कोई भी हो सकते हैं. उनकी जाति, धर्म, पंथ कुछ भी हो सकता है. जन्‍मना पहचान सनातनी होने के आड़े नहीं आती. अपने यहां 33 करोड़ देवी-देवता होते हैं. गांव के बरम बाबा, डीह बाबा से लेकर रोजगारेश्‍वर महादेव और अर्धकपारेश्‍वर महादेव तक. सनातन का वितान बहुत बड़ा है. सबको अपने में समो लेता है. जबरदस्‍त तरीके से बहुलतावादी है.’

उन्होंने आगे लिखा, ‘दिक्‍कत तब पैदा होती है जब सनातन ‘हिंदू’ बन जाता है. फिर उसका राजनीतिक मूल्‍य पैदा होता है, तो पीछे से ‘हिंदुत्‍व’ आता है. हिंदुत्‍व को 33 करोड़ देवताओं से दिक्‍कत है… सनातन की विविधता, बहुलता, जटिलता, रहस्‍यमयता, इहलौकिकता हिंदू या हिंदुत्‍व के लिए अपचनीय है. सनातन का हिंदू/हिंदुत्‍व के रूप में रूढ़ कर दिया जाना दरअसल एक राजनीतिक प्रोजेक्‍ट है. धर्म का राजनीति से क्‍या लेना-देना? सनातन धर्म तो पंचतत्‍वों का धर्म था. प्रकृति का, मनुष्‍य का धर्म था.

पत्रकार सर्वप्रिया सांगवान ने फेसबुक पर टिप्पणी की, ‘दूसरे देशों में जाकर देश की ख़ासियत बताते हैं कि एक सिख प्रधानमंत्री रहा, एक मुस्लिम राष्ट्रपति रहा और अपने घर में ये राष्ट्रीय समस्या है कि राहुल गांधी हिंदू नहीं हैं.’

पत्रकार प्रकाश के रे ने फेसबुक पर लिखा, ‘प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी के दादा-नाना की बात लाकर कोई पहली बार अपनी सतही सोच का प्रदर्शन नहीं किया है. धर्म को लेकर भी संघी पैंतरा दे रहे हैं. इस देश को बनाने में नेहरू जैसे राष्ट्रनिर्माताओं की जन्मकुंडली तो इतिहास ने लिख दिया है, कोई कूढ़मगज और बदज़ेहन न जाने, तो उसकी फूटी क़िस्मत. पर, यह भी याद रखा जाए कि देश को बनाने में हर व्यक्ति का योगदान रहा है. इसीलिए मैं आप सभी से आग्रह कर रहा हूं कि अपने दादा-नाना, दादी-नानी की कथा लिखें. इससे दो बातें होंगी- एक, हम अपने पुरखों को याद रख सकेंगे, और दूसरे कि उनके योगदान और उनके होने के महत्व को रेखांकित कर सकेंगे. इतिहास को राजपथ से गांव-मोहल्ले में ले चलो…’

प्रसन्न प्रभाकर ने फेसबुक पर लिखा, ‘अच्छा ठीक है, सरदार पटेल ने नेहरू की इच्छा के विरुद्ध सोमनाथ में मंदिर स्थापित करवा दिया. आज राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी की इच्छा के विरुद्ध एक कदम भी उठाकर दिखा दें! उस वक्त नेहरू सैद्धांतिक थे, तो पटेल हमविचार होते हुए भी, जूनागढ़ रियासत की जनता के साथ किए वायदे के साथ थे. बातचीत उन्होंने ही की थी. यही महीन फर्क होता है जब हमविचार होते हुए भी दो लोग अलग-अलग कदम उठाते हैं. मिली परिस्थितियों से फर्क आ ही जाता है.’

आगे उन्होंने लिखा, ‘यदि सरदार पटेल के मन में शुरुआत से इस मंदिर के पुनर्निर्माण का ध्येय होता तो जाने कितनी बार इस घटना के पहले इस मुद्दे को उठा चुके होते. लेकिन कभी नहीं उठाया. स्पष्ट है- रणनीति मात्र थी. इसे सैद्धांतिक बनाकर पेश न किया जाए. आज हम याद रखते हैं कि नेहरू ने राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को भी रोकना चाहा. इस घटना के बाद भी पटेल ने नेहरू को अपना लीडर माना और राजेंद्र प्रसाद ने अपनी तरफ से पहल करते हुए विदेश गए नेहरू को भारतरत्न के लिए नामित किया. यह प्रोपेगंडा है कि नेहरू ने स्वयं को भारतरत्न दिया. उस समय प्रक्रिया अलग होती थी. आज के मोदी होते तो राजनाथ बर्खास्त हो चुके होते और महामहिम राष्ट्रपति को गालियां पड़ रही होतीं.’

मिस्बाह सिद्दीकी ने लिखा, ‘सोमनाथ मंदिर क्या उन (राहुल गांधी) के नाना का है? नेहरू सोमनाथ मंदिर के बनने से खुश नही थे. राहुल गांधी ने अपने आपको गैर हिंदू लिखा. शर्म महसूस होती है जब इस तरह की निर्लज्जता भारी बयानबाज़ी प्रधान सेवक के स्तर से होती है. साहेब किसी को नीचे गिराने के चक्कर में खुद इतना नीचे मत गिरो…’

अनिल गुप्ता ने ट्वीट किया, ‘मोदीजी कितनी घटिया स्तर की राजनीति कर रहे हैं कि सोमनाथ मंदिर राहुल के नाना परनाना ने नहीं बनावाया था. इसका मतलब इस सार्वजनिक मंदिर में राहुल नहीं जा सकते. प्राइवेट मंदिर में भी कोई मना नहीं करता है. क्या मोदी जी के पास कोई और मुद्दा नहीं है? यह चुनाव में हताशा तो नहीं है?’

पंकज सिंह ने फेसबुक पोस्ट में लिखा, ‘जिन देशद्रोहियों को गुजरात मॉडल का सच जानना हो वह जान लें कि राहुल गांधी मुसलमान हैं. जिन बेरोजगारों को रोजगार चाहिए वे जान लें कि राहुल गांधी मुसलमान हैं. जिन किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य चाहिए वो जान ले कि राहुल गांधी मुसलमान हैं. जिन देशद्रोहियों को कालेधन में हिस्सेदारी चाहिए वो जान ले कि राहुल गांधी मुसलमान हैं. जिन लोगों को अच्छे दिन दिखाई नहीं दे रहे हैं वो जान ले कि राहुल गांधी मुसलमान हैं. जिन लोगों को न्यू इंडिया बनने पर संदेह हो वो यह जान लें कि राहुल गांधी मुसलमान हैं. जिन लोगों को जय शाह का धनिया वाला फार्मूला समझ नहीं आ रहा है वो यह जान ले कि राहुल गांधी मुसलमान हैं. सब समस्याओं का एक समाधान, राहुल गांधी हैं मुसलमान.’

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