मथुरा के जवाहर बाग़ कांड की सीबीआई जांच के आदेश

बीते साल मथुरा के जवाहर बाग पार्क में अवैध रूप से डेरा डाले लोगों से पार्क की ज़मीन खाली कराने के दौरान हुई झड़प में दो पुलिस अधिकारियों सहित 20 से अधिक लोग मारे गए थे. ये अतिक्रमणकारी यहां रामवृक्ष यादव के नेतृत्व में डेरा जमाए हुए थे.

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बीते साल मथुरा के जवाहर बाग़ पार्क में अवैध रूप से डेरा डाले लोगों से पार्क की ज़मीन खाली कराने के दौरान हुई झड़प में दो पुलिस अधिकारियों सहित 20 से अधिक लोग मारे गए थे. ये अतिक्रमणकारी यहां रामवृक्ष यादव के नेतृत्व में डेरा जमाए हुए थे.

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मथुरा का जवाहर बाग. (फाइल फोटो: पीटीआई)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच के गुरुवार को आदेश दिए. उत्तर प्रदेश चुनाव के दो चरण बाकी रहते ये फैसला आना प्रदेश की अखिलेश सरकार के लिए झटका माना जा रहा है. दरअसल अखिलेश सरकार मामले की सीबीआई जांच के खिलाफ रही है.

चीफ जस्टिस डीबी भोसले और जस्टिस यशवंत वर्मा की एक खंडपीठ ने इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया.

अपने आदेश में हाईकोर्ट ने कहा कि यह मसला बहुत गंभीर है. इसमें पुलिसकर्मियों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी थी. मामले में तेजी व स्वतंत्र रूप से जांच हो ताकि दोषियों को सजा मिल सके.

मामले की सीबीआई से जांच कराने वालों में दिल्ली के भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और मथुरा के निवासी विजय पाल सिंह तोमर शामिल हैं. पिछले साल हुई इस झड़प में मारे गए पुलिस अधीक्षक मुकुल द्विवेदी की पत्नी अर्चना द्विवेदी और भाई प्रफुल्ल द्विवेदी ने भी सीबीआई जांच की मांग की थी.

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पिछले साल हिंसक झड़प के समय जवाहर बाग. (फाइल फोटो: पीटीआई)

ये है मामला
न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के अनुसार, रामवृक्ष यादव इस मामले का सरगना था. 15 मार्च 2014 में तकरीबन 200 लोगों के साथ मथुरा आया था. प्रशासन से यहां रहने के लिए दो दिन की इज़ाज़त ली थी लेकिन दो दिन बाद भी वो यहां से हटा नहीं. शुरुआत में वो यहां एक छोटी सी झोपड़ी बना कर रहता था. धीरे-धीरे यहां पर और झोपड़ियां बनीं. इसके बाद 270 एकड़ क्षेत्र में फैले पार्क पर कब्जा जमाकर वह यहां एकछत्र राज करने लगा था. अपनी सत्ता चलाने लगा. यही नहीं उसने पार्क में ही आटा चक्की मिल, राशन की दुकानें, सब्जी मंडी और ब्यूटी पार्लर तक खुलवा दिया था. वह इतना ताकतवर हो गया कि प्रशासन भी उसका कुछ नहीं कर पा रहा था.

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रामवृक्ष यादव. (फाइल फोटो)

रामवृक्ष यादव ख़ुद को नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अनुयायी बताता था. पार्क के अंदर ‘आज़ाद हिंद सरकार’ नाम से अपना शासन चलाता था. सरकारी नियमों की निंदा करता था. और तो और भारतीय मुद्रा को नहीं मानता था. यह भी सुना गया था कि पार्क के अंदर उसकी ख़ुद की अदालत भी चलती थी.

मथुरा में 2014 से लेकर 2016 तक इस पर 10 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं, जिसमें पुलिस अधिकारियों पर हमला, सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जा शामिल है. विजयपाल तोमर नामक एक याचिकाकर्ता जब इसक कब्जे के खिलाफ कोर्ट गए तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे खाली करने का आदेश दिया था.

इसके बाद मई में रामवृक्ष यादव इस आदेश के खिलाफ कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज करते हुए 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था. लगातार तीन दिन से पुलिस इस जगह को खाली करने की घोषणा कर रही थी. इस दौरान उसने शूटरों और अपराधियों को अपने कैंप में रखने लगा. हैंड ग्रेनेड, हथगोला, रायफल, कट्टे, कारतूस छिपाकर जुटाए गए थे.

दो जून, 2016 को पुलिस फोर्स जवाहर बाग़ को खाली कराने पहुंची. जहां रामवृक्ष यादव के नेतृत्व में सशस्त्र अतिक्रमणकारियों हमला बोल दिया. इस हमले में एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एसओ संतोष कुमार यादव शहीद हो गए थे. इस हिंसक झड़प में रामवृक्ष यादव भी मारा गया था.

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