विकास के कथित पुजारी आख़िर में मंदिर राग क्यों गाने लगे?

लोकसभा चुनाव में पूरे देश में गुजरात मॉडल बेचा गया था, लेकिन गुजरात में अस्मिता, क्षेत्रीयता और अंतत: मंदिर मुद्दा बनता दिख रहा है. क्या विकास एक चुनावी झांसा है?

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Gandhinagar:Prime Minister Narendra Modi along with Mahant Swami Maharaj offer puja at Akshardham on the occasion of Akshardham silver jubilee celebration in Gandhinagar, Gujarat on Thursday. PTI Photo/Twitter(PTI11_2_2017_000211A)

लोकसभा चुनाव में पूरे देश में गुजरात मॉडल बेचा गया था, लेकिन गुजरात में अस्मिता, क्षेत्रीयता और अंतत: मंदिर मुद्दा बनता दिख रहा है. क्या विकास एक चुनावी झांसा है?

Gandhinagar:Prime Minister Narendra Modi along with Mahant Swami Maharaj offer puja at Akshardham on the occasion of Akshardham silver jubilee celebration in Gandhinagar, Gujarat on Thursday. PTI Photo/Twitter(PTI11_2_2017_000211A)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली/अहमदाबाद: भाजपा और संघ के सपनों के चिर शत्रु पाकिस्तान तक से झगड़ा लड़ाई त्याग कर गरीबी से लड़ने की अपील करने वाले प्रधानमंत्री अपनी विकास की राजनीति से डगमगाते दिख रहे हैं. लोकसभा चुनाव में पूरे देश में गुजरात मॉडल बेचा गया था.

जनता से यह कहा गया था कि हम देश का विकास करके इसे विश्वगुरु बनाएंगे. सारे हिंदू-मुसलमान जैसे फालतू झगड़ों को किनारे करके विकास करेंगे. लेकिन गुजरात में अस्तिमा, क्षेत्रीयता और अंतत: मंदिर मुद्दा बनता दिख रहा है. क्या विकास एक चुनावी झांसा भर था?

गुजरात चुनाव में पहले भाजपा ने राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर जाने को मुद्दा बनाया, उसके बाद अब चुनावी सभाओं में राम मंदिर का मुद्दा उछाला जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने मंदिर मुद्दे की सुनवाई टालने का अनुरोध किया, जिसका भाजपा कोर्ट में विरोध करने की जगह गुजरात चुनाव में मुद्दा बनाती दिख रही है.

इसके पहले भी प्रधानमंत्री मोदी राहुल गांधी की पार्टी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी को ‘औरंगज़ेबी राज’ बता चुके हैं. परिवारवाद की आलोचना वे हमेशा से करते हैं, लेकिन मुग़लों से इसकी तुलना नया अध्याय है. यह तुलना उसी तरह अनर्गल थी, जैसे सर्वोच्च अदालत में लंबित मामले को चुनावी सभा में उठाना और एक वकील की दलील को पार्टी का रुख बताकर उस पर जवाब मांगना.

बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह दोनों ने गुजरात में यह मुद्दा उछाला. गुजरात के धंधुका में रैली के दौरान नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद तक राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले की सुनवाई टालने की मांग करने के लिए वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं वकील कपिल सिब्बल पर निशाना साधा और पूछा कि क्या इस तरह के मुद्दे को राजनीतिक लाभ-हानि के लिए अनिर्णीत रखा जाना चाहिए.

मोदी ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि विवाद में पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड जब अयोध्या मामले का समाधान चाहता है तो कांग्रेस क्यों बाधा पैदा करना चाह रही है. मोदी ने कहा कि वह सुन्नी वक्फ बोर्ड को बधाई देते हैं कि उसने कहा कि अदालत में सिब्बल का तर्क गलत था और वह मुद्दे का त्वरित समाधान चाहता है.

मोदी ने गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि उनकी सरकार ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में संभावित नुकसान का खतरा मोल लेते हुए उच्चतम न्यायालय में तीन तलाक का विरोध करने का फैसला किया था. उन्होंने साथ ही देश में एक साथ लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव कराने की भी मांग की.

प्रधानमंत्री ने कहा, मंगलवार को सिब्बल ने मुस्लिम समुदाय के मुद्दे की वकालत की. उन्हें ऐसा करने का हक है और हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है. आप बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए सभी तथ्यों एवं कानूनों का हवाला देते हुए अपनी दलील पेश कर सकते हैं.

उन्होंने अहमदाबाद जिले में चुनाव रैली में कहा, लेकिन आप यह नहीं कहें कि मामले में 2019 के चुनाव तक सुनवाई नहीं होनी चाहिए. आप चुनाव के नाम पर राम मंदिर मुद्दा की सुनवाई रोकना चाहते हैं.

मोदी ने कहा कि वह अब समझते हैं कि कांग्रेस ने क्यों कई मुद्दों को उलझाए रखा. उन्होंने इसे लेकर विस्तार में कुछ नहीं कहा लेकिन इसके पीछे राजनीतिक लाभ हासिल करने को कारण बताया.

उन्होंने कांग्रेस से पूछा, क्या वक्फ बोर्ड चुनाव लड़ता है? क्या चुनाव के लिए सुनवाई टालने के विचार वक्फ बोर्ड के हैं? देश में कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ रही है. आप चुनाव में राजनीतिक लाभ-हानि के लिए मामले को उलझाए रखना चाहते हैं.

हालांकि भाजपा नेता ने कहा कि कांग्रेस का कहना है कि उच्चतम न्यायालय में मामले में एक पक्ष की पैरवी कर रहे सिब्बल के विचार उनके खुद के हैं. देश में हर छह महीने में कहीं ना कहीं चुनाव होता है. हर चीज को राजनीतिक नफा नुकसान के नजरिये से देखने के रुख से देश का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है.

उन्होंने कहा कि इसी कारण वह एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की वकालत करते हैं क्योंकि इससे चुनाव में वाले होने वाला खर्च भी कम हो जाएगा.

गौरतलब है कि सिब्बल ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में कहा था कि चूंकि मामले में फैसले का गंभीर असर होगा, इसलिए सुनवाई जुलाई, 2019 तक के लिए टाल दी जाए, तब तक आम चुनाव हो जाएंगे. हालांकि उच्चतम न्यायालय ने यह दलील स्वीकार नहीं की और मामले में सुनवाई अगले साल आठ फरवरी को तय कर दी.

प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी ऐसी ही स्थिति का सामना किया था जब उनकी सरकार को उच्चतम न्यायालय में तीन तलाक के विवादित मुद्दे पर अपना रुख साफ करना था.

उन्होंने कहा, हर कोई यह कह रहा था कि अगर हमने इसके खिलाफ रुख अपनाया तो हमें उत्तर प्रदेश चुनाव में नुकसान का सामना करना पड़ेगा, लेकिन हमने रुख अपनाया और उच्चतम न्यायालय ने हमसे छह महीने के भीतर कानून बनाने को कहा.

मोदी ने कहा कि हमारी संसद एक बार में तीन तलाक की विवादित प्रथा को प्रतिबंधित करने के लिए कानून पारित करेगी जिससे हमारी मांओं एवं बहनों की जिंदगी तबाह करने वालों के लिए जेल की सजा का प्रावधान होगा.

उन्होंने कहा, क्या फैसलों को चुनावी लाभ-हानि का मोहताज बनाया जा सकता है या फिर पूरे देश के फायदे के लिए ये फैसले लिए जाएं?

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में कपिल सिब्बल कांग्रेस के प्रतिनिधि की हैसियत से नहीं, बल्कि वकील की हैसियत से पेश हो रहे हैं, लेकिन वहां उनकी दलीलों को कांग्रेस पार्टी की दलील बताया जा रहा है.

वक्फ बोर्ड ने कांग्रेस नेता के साथ असहमति जताई

कपिल सिब्बल की ओर से अयोध्या मामले की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद तक टालने की दलील देने के बाद बुधवार को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि वह इस राय के खिलाफ है और मामला का जल्द निपटारा चाहती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने पर आए सिब्बल ने दावा किया कि उन्होंने सुन्नी वक्फ बोर्ड की पैरवी नहीं की. सिब्बल ने कहा कि मोदी को उनकी आलोचना करने से पहले तथ्यों की जांच करनी चाहिए.

सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी ने कहा, बोर्ड का मत है कि मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करके उसका निबटारा किया जाना चाहिए. मुझे यह नहीं पता कि मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने किसके निर्देश पर 2019 में सुनवाई की बात कही. हमारी तरफ से तो ऐसे कोई निर्देश नहीं थे.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बाबरी मस्जिद कमेटी के संयुक्त संयोजक सैयद कासिम रसूल इलियास ने बताया, सिब्बल इस मामले के प्रमुख वादी रहे हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल की तरफ से उच्चतम न्यायालय की तरफ से पेश हुए थे.

फारूकी ने कहा कि सिब्बल का जो भी नजरिया रहा हो, लेकिन बोर्ड की तरफ से ऐसे कोई निर्देश नहीं थे. बोर्ड तो चाहता ही है कि मामले का जल्द समाधान निकले. बाबरी मामले के एक पक्षकार हाजी महबूब ने भी संवाददाताओं से कहा कि वह भी मामले का जल्द से जल्द निपटारा चाहते हैं. वह सिब्बल के बयान से सहमत नहीं हैं.

राम मंदिर मुद्दे पर कांग्रेस का रुख़ शर्मनाक: अमित शाह

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बुधवार को राम मंदिर मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर हमला तेज करते हुए विपक्षी पार्टी पर शर्मनाक रुख अपनाने का आरोप लगाया.

शाह ने ट्वीट किया, अब सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा है कि वे उस बात से सहमत नहीं हैं जो अदालत में कपिल सिब्बल ने कही है. निश्चित है कि सिब्बल ने कांग्रेस नेता के नाते अपनी बात रखी और उन्हें अपने आलाकमान का आशीर्वाद है. राम मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस का शर्मनाक रुख.

सिब्बल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य हैं और उच्चतम न्यायालय में अयोध्या विवाद पर चल रहे कानूनी विवाद में एक पक्षकार की ओर से पेश हो रहे हैं. उन्होंने कोर्ट में मामले को 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद तक टालने की मांग की थी. खबरों के अनुसार सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा है कि वह सिब्बल के विचारों से सहमत नहीं है.

इसके पहले मंगलवार को भी अमित शाह ने पत्रकारों से बातचीत में सिब्बल की दलील पर कांग्रेस से सफाई मांगी थी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सिब्बल की दलील के बाद कांग्रेस से कहा कि वह राम जन्मभूमि मुद्दे पर अपना रुख साफ करे.

शाह ने कांग्रेस पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि एक तरफ पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी गुजरात में मंदिरों का चुनावी दौरा कर रहे हैं जबकि दूसरी तरफ उनकी पार्टी राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई को टालना चाह रही है.

‘सिब्बल ने कोर्ट में एक कांग्रेस नेता के रूप में जिरह की थी’

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने आरोप लगाया कि कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हाईकमान के इशारे पर एक कांग्रेस नेता के रूप में जिरह की थी जो राम मंदिर मुद्दे पर कांग्रेस के शर्मनाक चेहरे को रेखांकित करता है.

शाह ने अपने बयान में कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के बयान से अब यह बिलकुल स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस राम मंदिर की सुनवाई में रोड़े अटकाना चाहती है.

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होने कहा कि राम मंदिर मुद्दे को लटकाए रखना कांग्रेस का छिपा एजेंडा है, वह इस मुद्दे पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहती है. राम मंदिर पर कांग्रेस पार्टी का दोहरा रवैया अब जनता के सामने उजागर हो गया है.

कांग्रेस का रुख़ साफ करना चाहिए

भाजपा अध्यक्ष ने अहमदाबाद में पत्रकारों को बताया कि पूरा देश चाहता है कि इस मामले की सुनवाई जल्द हो, लेकिन आज जब मामला सुप्रीम कोर्ट में आया तो सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील सिब्बल ने इसकी सुनवाई 2019 के आम चुनाव संपन्न होने तक टालने की मांग की. शाह ने कहा कि राहुल को इस मुद्दे पर कांग्रेस का रुख साफ करना चाहिए कि क्या वह सिब्बल के नजरिये से सहमत है.

उन्होंने कहा, कपिल सिब्बल ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने का पुरजोर विरोध किया. अपने मुस्लिम याचिकाकर्ताओं की दलीलों के साथ तैयार होकर आए सिब्बल मंदिर निर्माण रोकने पर लगे हुए थे. जब उच्चतम न्यायालय ने उनकी दलीलें नकार दीं तो उन्होंने अदालत से बाहर जाने की भी कोशिश की.

शाह ने कहा, मैं राहुल गांधी से अपील करता हूं कि वह राम जन्मभूमि के मुद्दे पर कांग्रेस का रुख साफ करें. मैं कांग्रेस से भी पूछना चाहता हूं कि क्या वह कपिल सिब्बल के नजरिये से सहमत है और क्या उनका नजरिया पार्टी का आधिकारिक रुख है. उन्होंने कहा कि भाजपा सहित पूरा देश चाहता है कि इस मामले की सुनवाई और उस पर फैसला जल्द से जल्द हो.

सिब्बल ने अदालत को बताया था, कृपया मामले की सुनवाई जुलाई 2019 में तय करें और हम आश्वासन देते हैं कि हम कोई स्थगन नहीं मांगेंगे. न्याय सिर्फ किया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि यह भी दिखना भी चाहिए कि न्याय किया गया.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने प्रथमदृष्टया सिब्बल और राजीव धवन सहित कई वकीलों की इस मांग को खारिज कर दिया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के खिलाफ दायर अपीलें मामले की संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए पांच या सात जजों वाली पीठ को भेज दी जाएं. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई अगले साल 8 फरवरी को करेगा.

मोदी को सार्वजनिक रूप से कुछ कहने से पहले तथ्यों की जांच कर लेनी चाहिए: सिब्बल

कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने बुधवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के समक्ष प्राथमिकताओं के बारे में ज्यादा चिंता करनी चाहिए, बजाय इसके कि अदालत में कौन किसका प्रतिनिधित्व कर रहा है. उन्होंने दावा किया कि अयोध्या मामले में उन्होंने सुन्नी वक्फ बोर्ड का कभी प्रतिनिधित्व नहीं किया.

मोदी को दिए जवाब में पूर्व केंद्रीय मंत्री ने उनसे सार्वजनिक रूप से कुछ कहने से पहले तथ्यों की जांच कर लेने को कहा. सिब्बल ने कहा, मुझे पता चला कि प्रधानमंत्री और अमित शाह ने कहा है कि मैंने उच्चतम न्यायालय में सुन्नी वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व किया लेकिन अयोध्या मामले में मैंने सुन्नी वक्फ बोर्ड का कभी प्रतिनिधित्व नहीं किया.

उन्होंने कहा, यह बेहतर होता कि प्रधानमंत्री ज्यादा सावधान रहते और सार्वजनिक रूप से कुछ कहने से पहले तथ्यों की जांच कर लेते. मैंने न्यायालय में उनके विभाजनकारी एजेंडा के बारे में जो कहा, उसे उन्होंने एक ही दिन में सही साबित कर दिया.

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने कल सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य की यह अपील खारिज कर दी कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के मालिकाना हक संबंधी विवाद की सुनवाई अगले आम चुनाव के बाद जुलाई 2019 में की जाए. न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए अगले साल आठ फरवरी की तारीख तय की.

सिब्बल ने कहा कि न्यायालय में वह किसका प्रतिनिधित्व करते हैं, इस बारे में चिंता करने की बजाय प्रधानमंत्री को देश और अपने गृह राज्य गुजरात के समक्ष मौजूद समस्याओं के बारे में चिंतित होना चाहिए.

उन्होंने कहा नोटबंदी के फैसले और जीएसटी को लागू किए जाने से गंभीर समस्याएं पैदा हो रही हैं. इसके अलावा नौकरियों, शिक्षा और स्वास्थ्य के अभाव को लेकर भाजपा के खिलाफ युवा आंदोलन कर रहे हैं.

सिब्बल ने कहा, हम देश को आगे ले जाना चाहते हैं लेकिन वे इसे पीछे ले जाना चाहते हैं. हम समाज को एकजुट करना चाहते हैं लेकिन वे इसे बांटना चाहते हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या वह चाहते हैं कि मंदिर बनना चाहिए, सिब्बल ने कहा कि ऐसा होना भगवान राम और न्यायालय पर निर्भर है, ना कि नरेंद्र मोदी पर.

उन्होंने कहा, ईश्वर और भगवान राम में हमारी आस्था है, मोदी में नहीं. जब भगवान चाहेंगे और अदालतें फैसला करेंगी तभी अयोध्या में राम मंदिर बनेगा, ना कि मोदी के चाहने पर.

न्यायालय के फैसले को स्वीकार करेगी कांग्रेस: शर्मा

वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में वादी नहीं है और उच्चतम न्यायालय इस पर जो भी फैसला करेगा, उसे पार्टी स्वीकार करेगी.

शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शीर्ष अदालत में अयोध्या मामले में एक पक्षकार की ओर से पैरवी कर रहे कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल को चाय पर बुलाकर इस मुद्दे पर बातचीत करनी चाहिए.

एक दिन पहले ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस से राम जन्मभूमि मुद्दे पर रुख स्पष्ट करने को कहा था क्योंकि सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय में मांग की थी कि मामले की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद तक टाल दी जाए.

शर्मा ने संवाददाताओं से कहा, प्रधानमंत्री कपिल सिब्बल जी को चाय पर चर्चा के लिए बुला सकते हैं. हम कांग्रेस पार्टी के नाते इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि हम इसमें वादी नहीं हैं. उन्होंने कहा, कांग्रेस स्पष्ट है कि मामला उच्चतम न्यायालय के सामने है और अदालत जो भी कहेगी, हमारी पार्टी उसका समर्थन करेगी.

सिब्बल ने जो कहा, हमसे पूछकर कहा: रहमानी

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने बुधवार को कहा कि कपिल सिब्बल ने उनकी तथा अन्य मुस्लिम पक्षकारों की राय से मामले की सुनवाई वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कराने की बात कही थी.

रहमानी ने टेलीफोन पर को बताया कि अयोध्या प्रकरण में उच्चतम न्यायालय में मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता सिब्बल तथा टीम के अन्य वकीलों ने वर्ष 2019 में मामले की सुनवाई की, जो बात कही वह उनसे तथा कुछ अन्य मुस्लिम पक्षकारों से सलाह मशविरा करने के बाद कही है.

रहमानी ने कहा कि यह बात बिल्कुल सही है कि अयोध्या प्रकरण की सुनवाई का यह ठीक समय नहीं है. उनका मानना है कि अगर इस मामले की अगली सुनवाई शुरू हुई तो इसका राजनीतिक फायदा उठाया जाएगा.

उन्होंने कहा कि मामले की मंगलवार को ही सुनवाई हुई थी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सिब्बल के बयान पर प्रतिक्रिया दे दी. अगर मामले की नियमित सुनवाई हुई तो क्या होगा, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.

इस सवाल पर कि उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड अयोध्या मामले कि जल्द से जल्द सुनवाई करके निपटारे की बात कह रहा है. रहमानी ने कहा कि उनकी सुन्नी वक्फ बोर्ड से कोई बात नहीं हुई थी.

मालूम हो कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी ने कहा, बोर्ड का मत है कि मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करके उसका निबटारा किया जाना चाहिए. मुझे यह नहीं पता कि मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने किसके निर्देश पर 2019 में सुनवाई की बात कही.

उन्होंने कहा कि सिब्बल सम्भवत: अयोध्या प्रकरण के प्रमुख वादकारी रहे हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी की तरफ से पेश हुए थे. उनका जो भी नजरिया रहा हो, लेकिन क्योंकि सिब्बल मुस्लिम पक्ष की तरफ से बात कर रहे थे. लिहाजा इसी कौम का पक्षकार होने के नाते सुन्नी वक्फ बोर्ड अपनी प्रतिक्रिया दे रहा है.

 सामने आई मंदिर की राजनीति

गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान निकट आ रहा है और लोगों की आखें दो मंदिरों की तरफ टिक गई हैं, जो पाटीदार समुदाय के गौरव और ताकत का प्रतीक है और सदस्यों के बीच इनका बहुत प्रभाव है.

राजकोट जिले का खोडलधाम मंदिर और मेहसाणा जिले का उमियाधाम मंदिर विधानसभा चुनावों के लिए कराए जाने वाले मतदान से पहले राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बन गया है.

खोडलधाम मंदिर का निर्माण पाटीदार समुदाय की लेउवा उपजाति जबकि उमियाधाम मंदिर का निर्माण कडवा उपजाति ने कराया गया है. समाजशास्त्री गौरांग जानी कहते हैं कि पिछले दो साल के दौरान बने ये मंदिर संबंधित समूहों के गौरव एवं सत्ता का केंद्र बन चुके हैं.

मंदिरों के ट्रस्टी चुनाव मैदान में

खोडलधाम मंदिर के दो ट्रस्टी दिनेश चोवाटिया तथा रविभाई अम्बालिया कांग्रेस के टिकट पर क्रमश: राजकोट दक्षिण और जेतपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं. एक अन्य ट्रस्टी गोपालभाई वस्तापारा अमरेली जिले के लाठी बाबरा क्षेत्र से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं.

गुजरात में राजनीतिक कारणों से मंदिर हमेशा चर्चा में रहते हैं. भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष एलके आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए 1990 में अपनी रथयात्रा प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर से शुरू की थी.

प्रदेश में 2002 में हुए विधानसभा चुनावों में मंदिर राजनीति उस समय सामने आई जब साबरमती एक्सप्रेस को आग लगाई गई जिसमें अयोध्या से लौट रहे हिंदू श्रद्धालुओं की मौत हो गई. इसके बाद राज्य के दूसरे हिस्से में दंगा फैल गया था.

श्रीखोडलधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेशभाई पटेल ने पटेल आरक्षण के लिए आंदोलन करने वाले नेता हार्दिक पटेल से पिछले हफ्ते मुलाकात की थी. बाद में हार्दिक ने दावा किया कि वह नरेशभाई पटेल का शंका समाधान करने में सफल रहे हैं.

ट्रस्ट ने बडी संख्या में पाटीदार समुदाय के लोगों के बदतर स्थिति में रहने के हार्दिक के दावे से सहमति जताई लेकिन उसने साफ किया कि वह राजनीतिक तौर पर तटस्थ रहेगा.

राजकोट के एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, नरेशभाई सार्वजनिक तौर कभी लोगों सामने नहीं आए हैं लेकिन उन्होंने हार्दिक के साथ अपनी तस्वीर मीडिया में जारी करने की अनुमति दी थी. खोडलधाम ट्रस्ट हार्दिक के आरक्षण की मांग का समर्थन करता है लेकिन हार्दिक राजनीतिक विजय के रूप में इसे प्राप्त करना चाहते हैं. इसका साफ मतलब है कि समुदाय हार्दिक के निकट बढ़ रहा है.

उन्होंने यह भी कहा कि नरेशभाई पटेल लेउवा पंथ का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पाटीदारों का करीब 70 फीसदी है और उन्होंने अपनी तस्वीर हार्दिक के साथ जारी किए जाने की अनुमति दी जो कडवा पटेल हैं. उन्होंने कहा, गुजरात में हवा किस तरफ बह रही है यह अनुमान लगाने के लिए क्या यह काफी नहीं है.

एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक हेमंत शाह कहते हैं कि भाजपा पाटीदारों के लिए सत्ता का प्रतीक थी और पिछले कुछ सालों से ये दोनों मंदिर उनके लिए महत्वपूर्ण बन गए हैं जिसका निर्माण समुदाय के दो अलग अलग उपजातियों ने कराया है.

शाह ने कहा, दोनों मंदिरों के उद्घाटन के समय लाखों की संख्या में पाटीदार आए. यह एक स्पष्ट संदेश है कि पाटीदारों ने भाजपा से बाहर सत्ता के अपने केंद्र का निर्माण कर लिया है.

मंदिरों के चक्कर लगा रहे कांगेसी-भाजपाई

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान गुजरात में विभिन्न मंदिरों में गए. राहुल इन दोनों मंदिरों में भी गए थे और न्यासियों से मुलाकात की थी.

राहुल के दौरे के तुरंत बाद गुजरात के मुख्यमंत्री विजय कुमार रूपाणी भी खोडलधाम मंदिर गए और नरेशभाई के साथ बातचीत की. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि उन्हें उम्मीद है कि दोनों मंदिर राज्य में विधानसभा चुनावों में भूमिका निभाएंगे, लेकिन यह कहना गलत होगा कि ये चुनाव में पांसा पलट देंगे.

नाम नहीं बताने की शर्त पर कांग्रेस नेता ने कहा, लोग पहले ही भाजपा और इसके हाल के राजनीतिक क्रिया कलाप से लोग नाउम्मीद हैं. यह सही है कि पाटीदार समुदाय के लोग इन दोनों मंदिरों के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं. उन लोगों ने इसके लिए फंड भी एकत्र किया है. लेकिन यह कहना गलत होगा कि मंदिर चुनाव का रूख मोड देंगे.

कांग्रेस नेता ने कहा, महत्वपूर्ण यह है कि राज्य और केंद्र सरकार की विफल योजनाएं और गलत नीतियां इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने जा रही हैं.

ऐसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी मंदिर के प्रभाव को गंभीरता पूर्वक ले रही है क्योंकि रूपाणी के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ नेता इन दोनों मंदिरों के ट्रस्टियों के साथ बैठक कर चुके हैं. उन्होंने पाटीदार समुदाय की समस्या को सुलझाने का भरोसा भी दिलाया है. गुजरात में पाटीदार समुदाय मुख्यरूप से दो उपजातियों- कडवा और लेउवा में बंटा है. दोनों में पटेल उपनाम आम है.

गुजरात से लगातार यह खबरें आ रही हैं कि जनता में सत्ता विरोधी लहर है. गुजरात की जनता, खासकर पाटीदार तबका भाजपा से जबरदस्त नाराज है. क्या इससे निपटने के लिए भाजपा चुनाव को हिंदू मुस्लिम बनाना चाहती है? प्रधानमंत्री का अपने पद की गरिमा को भी ताक पर रखकर बयानबाजी करना संदेह पैदा करता है.

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)