सांप्रदायिकता डर का व्यापार है, मोदी गुजरात में डर बेच रहे हैं

मोदी चाहते हैं कि हम भारत के लोग ज्ञात-अज्ञात दुश्मनों से डरने वाली एक कमज़ोर क़ौम बनें ताकि सांप्रदायिक राजनीति का दैत्य निडर होकर घूम सके.

//

मोदी चाहते हैं कि हम भारत के लोग ज्ञात-अज्ञात दुश्मनों से डरने वाली एक कमज़ोर क़ौम बनें ताकि सांप्रदायिक राजनीति का दैत्य निडर होकर घूम सके.

narendra modi facebook
(फोटो साभार: फेसबुक/नरेंद्र मोदी)

सांप्रदायिकता डर का व्यापार है. हिंदुओं को मुसलमानों से डरते रहना चाहिए. मुसलमानों को हिंदुओं से डरते रहना चाहिए. हिंदुत्व और इस्लाम का खतरे में बने रहना जरूरी है. जिन्ना ने नारा दिया था- इस्लाम खतरे में है. मोदीजी नारा दे रहे हैं-हिंदू खतरे में हैं.

क्या हम अपने युग के जिन्ना से रूबरू हैं? जिन्ना ने देश को अंदर से बांट दिया था. उन्होंने डर फैलाया था कि ‘हिंदू’ कांग्रेस के आने से मुसलमान हिंदुओं के गुलाम हो जायेंगे. मोदीजी डर फैला रहे हैं कि ‘मुस्लिम’ कांग्रेस के आने से हिंदू मुसलमानों के गुलाम हो जायेंगे.

यह दोनों तरह की सांप्रदायिकताओं के लिए कांग्रेस ‘हिंदू’ या ‘मुस्लिम’ कैसे हो जाती है? आजादी के पहले मुस्लिम सांप्रदायिकता के लिए कांग्रेस एक ‘हिंदू’ संगठन था. गांधी हिंदुओं के नेता थे जो आजादी मिलते ही मुसलमानों को हिंदुओं का गुलाम बना देते.

आजादी के पहले और बाद की हिंदू सांप्रदायिकता के लिए कांग्रेस एक मुस्लिमपरस्त संगठन है. एक ऐसा संगठन जो अंदर-अंदर मुसलमानों के साथ मिलकर हिंदुओं के खिलाफ साजिश करता है. इनके लिए गांधी पाकिस्तान के हितैषी थे जिन्होंने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिए भारत सरकार को मजबूर कर दिया था.

आजादी के पहले तक कांग्रेस हिंदू और मुस्लिम दोनों तरह की सांप्रदायिक ताकतों की सामान्य दुश्मन थी. आजादी के बाद मुस्लिम सांप्रदायिकता भारत में बेहद कमजोर हो गई. इसलिए ‘हिंदू’ कांग्रेस का दुष्प्रचार चलन से बाहर हो गया. लेकिन हिंदू सांप्रदायिकता की आंख में ‘मुस्लिमपरस्त’ कांग्रेस किरकिरी बनकर खटकती रही.

दोनों तरह की सांप्रदायिकताओं को असल समस्या कांग्रेस के उस राष्ट्रवाद से थी जो इस देश के हर बाशिंदे को साथ लेकर देश बनाने निकली थी. आज इसीलिए जब मोदीजी को गुजरात में अपनी हार साफ दिखाई दे रही है, वो उसी ‘मुस्लिमपरस्त कांग्रेस’ का डर दिखाकर अपना आखिरी दांव खेल रहे हैं.

उनके मुताबिक डर यह है कि कांग्रेस राज का मतलब अपरोक्ष रूप से मुगलों का राज है. यह सिद्ध करने के लिए राहुल गांधी की फोटो के पीछे फोटोशॉप करके बाबर की फोटो लगा दी गई. मोदीजी ने राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नामांकन के बारे में यहां तक कहा कि कांग्रेस को औरंगजेब राज मुबारक हो.

अभी कितना वक्त बीता है जब ऑक्सफोर्ड में हुई एक बहस में शशि थरूर के भाषण पर भाजपा की आईटी सेल भी ताली बजा रही थी. इस बहस में शशि थरूर ने कहा था कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत दुनिया का सबसे संपन्न और समृद्ध देश था.

गुलाम होने के पहले लगभग दो हजार सालों तक भारत दुनिया की सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्था थी. इन दो हजार सालों में मुगलों के सवा दो सौ साल का शासन काल भी शामिल है. बल्कि कहा जा सकता है कि उनके शासनकाल में भारत ने व्यापार-वाणिज्य और कला-हस्तशिल्प की नयी ऊंचाइयों को छुआ था.

इन अर्थों में कहें तो मोदीजी के अवतार से पहले के ‘सत्तर साल’ भारत पर कांग्रेस रूपी मुगलों का शासन था. गुलामी की बर्बादी से उबरे भारत के लिए मुगलों का ही राज था जब नेहरु युग में शून्य से शुरू करके मनमोहन सिंह के समय तक आते-आते भारत फिर से दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में सफल हुआ.

मुगलों से होते हुए मोदीजी मुसलमानों पर आते हैं. उनका अगला निशाना मुसलमान होने के नाते कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल होते हैं. मोदीजी लोगों को पहले मुगलों का डर दिखाते हैं और फिर एक मुस्लिम को सामने लाकर खड़ा कर देते हैं.

उसके बाद हिंदुओं के खिलाफ इस मुगल-मुस्लिम साजिश को वो सीधा पाकिस्तान से जोड़ देते हैं. मणिशंकर अय्यर के घर हुई एक दावत का हवाला देकर वो कहते हैं कि पाकिस्तान चाहता है कि अहमद पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री बनें.

दरअसल, देशभर में दौड़ने वाले विकास के गुजरात मॉडल के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा खुद गुजरात वालों ने रोक लिया है. जनता इस बार हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की हर कोशिश को नाकाम कर रही है. लोग इस बार किसान-मजदूर-व्यापारी वर्ग की दिक्कतों सहित युवाओं के रोजगार जैसे मुद्दों पर बात करना चाह रहे हैं.

यही एक बात मोदीजी को अखर रही है. सांप्रदायिकता, संपन्न पूंजीपति वर्ग की ढाल है. अंबानी-अडानी के फायदों के लिए आम आदमी के हितों की बलि चढ़ाने के बाद मोदीजी चाहते हैं कि लोग किसी अज्ञात डर के डर में भाजपा को वोट दे दें.

हिंदू इस देश में बहुसंख्यक हैं जबकि मुसलमान अल्पसंख्यक. अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता मजबूत होते ही अलग देश की मांग करती है क्योंकि वो अपने से बड़ी आबादी के अत्याचार का डर पैदा करती है. बहुसंख्यक सांप्रदायिकता अपनी बड़ी तादाद की वजह से अल्पसंख्यकों को डराकर रखना चाहती है.

लेकिन मोदीजी चाहते हैं कि इस देश के बहुसंख्यक हिंदू अल्पसंख्यक मुस्लिमों से डरकर रहें. डरकर इसलिए क्योंकि आज भी इस देश का अधिकांश हिंदू आरएसएस के सांप्रदायिक जहर से मुक्त है. इसलिए मुसलमानों को डराने वाले अभियान को खुलेआम चलाने का अभी वक्त नहीं आया है. इसीलिए जरूरी है कि हिंदुओं में एक हीनताबोध और असुरक्षाबोध पैदा किया जाए ताकि लोग राजनीतिक हिंदुत्व की ओर आने पर मजबूर हो जाएं.

उससे भी काम न चले तो पाकिस्तान की साजिश का डर दिखाकर उन्हें फौरी तौर पर कांग्रेस को वोट देने के ‘देशद्रोह’ से बचाया जा सकता है. ऐसा कहते समय वो भूल जाते हैं कि इसी ‘मुगल’ और ‘मुस्लिम’ कांग्रेस ने 1965 और 1971 के युद्धों में पाकिस्तान को हराया था.

बहरहाल, मोदीजी क्यों चाहते हैं कि भारत के एक राज्य के चुनाव में लोग पाकिस्तान के डर से भाजपा को वोट दें?

पाकिस्तान के कई सैन्य तानाशाहों और राजनेताओं के लिए भारत-विरोधी नफरत अपनी राजनीतिक नाकामी छुपाने का सबसे मुफीद जरिया है. जब भी भूख, बेरोजगारी और दहशतगर्दी से जूझ रही आम पाकिस्तानी अवाम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े असल सवाल उठाती है, पाकिस्तान में भारत के खिलाफ जिहाद का नारा बुलंद हो जाता है.

आज जब गुजरात में जनता अपनी बदहाली से ऊबकर सांप्रदायिक होने से इनकार कर रही है, मोदीजी उसे पाकिस्तान का डर क्यों दिखा रहे हैं? वो विकास, भ्रष्टाचार और नोटबंदी-जीएसटी पर चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे?

क्या हम भारत के खिलाफ नफरत बेचकर मुनाफा कमाने वाली पाकिस्तानी राजनीतिक संस्कृति के भारतीय संस्करण से रूबरू हैं?

मुस्लिम सांप्रदायिकता की जिद पर खड़े पाकिस्तान को आज सत्तर साल हो चुके हैं. हिंदू यह साफ देख सकते हैं कि जिन्ना ने मुसलमानों के लिए कौन-सा दारुल इस्लाम बनाया था?

पाकिस्तान आज भी अपने सांप्रदायिक इतिहास से पल्ला नहीं छुड़ा पा रहा. उनके राष्ट्र की परिभाषा में ही नकली डर छुपा हुआ है. डर की स्वाभाविक प्रकृति है कि वो जल्द ही नफरत में तब्दील हो जाता है.

पाकिस्तान के अन्दर भी कांग्रेस के ‘हिंदू राज’ से शुरू हुआ डर आजाद भारत से नफरत में तब्दील हो गया. डर से उपजी यह घृणा दशकों तक इतनी तीखी थी कि पाकिस्तानी राष्ट्र भारत के खिलाफ सोचे बिना अक्सर राष्ट्रभक्त हो ही नहीं पाता था.

क्या मोदीजी चाहते हैं कि हम आम हिंदुस्तानी भी पाकिस्तान की तरह अपने भीतर हमेशा एक शत्रु देश का डर पाले बैठे रहें? कश्मीर समस्या हो या आतंकवाद को प्रश्रय देने का मामला-पाकिस्तान से डरकर तो हम पाकिस्तान से पार नहीं पा सकते.

अटल बिहारी बाजपेयी के समय पहली बार केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद पाकिस्तान की शायरा फहमीदा रियाज़ ने एक नज़्म लिखी थी, उसकी कुछ पंक्तियां थीं-

‘तुम बिल्कुल हम जैसे निकले/ अब तक कहां छुपे थे भाई/ वो मूरखता वो घामड़पन/ जिसमें हमने सदी गंवाई/ आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे/ अरे बधाई बहुत बधाई.’

अटल बिहारी बाजपेयी के समय तक यह बधाई पूरी तरह स्वीकारने का समय नहीं आया था. क्या मोदीजी ने हमारा इतना ‘विकास’ कर दिया है कि हम यह बधाई स्वीकार कर लें?

भले ही ‘वो मूरखता’ और ‘वो घामड़पन’ हासिल करने में हिंदू सांप्रदायिकता को दशकों लगेंगे, शुरुआती लक्षण तो साफ दिखाई दे रहे हैं. तालिबानी मानसिकता यही सब तो करवाती है जो राजसमंद के हत्यारे ने गर्व से हिंदू होकर किया.

वीडियो बनाते हुए खुद को इस्लाम का रखवाला सिद्ध करते हुए किसी का गला रेत देना वैसा ही है जैसा वीडियो बनाते हुए किसी का कत्ल करना और खुद को हिंदुत्व का अलमबरदार सिद्ध करना.

डर तो कमजोरी की निशानी है. नैतिक आत्मबल की कमी से ही डर उपजता है. नेहरूजी के शब्दों में कहें तो गांधीजी ने इस देश को एक छोटा-सा मंत्र दे दिया था- डरो मत. हमने अंग्रेजों से डरना छोड़ दिया तो हम आजाद हुए.

नेहरू और सरदार पटेल आदि हमारे राष्ट्रीय नेताओं ने बंटवारे का दंश झेलकर और पाकिस्तान की उद्दंडता का सामना करके भी पाकिस्तान के डर को अपने इतने भीतर तक नहीं आने दिया कि एक राज्य के चुनाव में हम लोगों को पाकिस्तान का डर दिखाने लगें.

आत्मविश्वास से भरा व्यक्ति डरता नहीं है. वैसे ही आत्मविश्वास से भरा देश भी डरता नहीं है. जो डरता नहीं है वो अपने दिल में नफरत भी नहीं पालता. मोदीजी और उनकी सांप्रदायिक राजनीति आत्मविश्वास से भरे हिंदुओं को डरना सिखा रहे हैं. वो चाहते हैं कि हिंदू उनके बताये डर के साए में रहना मंजूर कर लें ताकि वो जिन्ना की राह चलकर अपना पाकिस्तान बना लें.

याद रखिये जिनको जिन्ना के पाकिस्तान में जन्नत दिखाई देती थी, दोजख भी उन्हीं के मत्थे चढ़ी. आने वाली नस्लों ने जो भुगता वो तो भुगता ही. भारत में भी पाकिस्तान का हौव्वा दिखाने वाले लोग उसी सांप्रदायिक विचारधारा के पोषक हैं जो देश को अंदर से बांटती और कमजोर करती है.

मोदीजी चाहते हैं कि हम भारत के लोग ज्ञात-अज्ञात दुश्मनों से डरने वाली एक कमजोर कौम बनें ताकी सांप्रदायिक राजनीति का दैत्य निडर होकर घूम सके.

(लेखक राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट नामक संगठन के राष्ट्रीय संयोजक हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq