2जी मामले में सीबीआई की चार्जशीट में ग़लत तथ्य थे: विशेष अदालत

विशेष न्यायाधीश ने कहा, 'मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि सीबीआई किसी भी आरोपी के ख़िलाफ़ कोई आरोप साबित करने में नाकाम रहा है, जो आरोपपत्र में लगाए गए थे.'

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विशेष न्यायाधीश ने कहा, ‘मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि सीबीआई किसी भी आरोपी के ख़िलाफ़ कोई आरोप साबित करने में नाकाम रहा है, जो आरोपपत्र में लगाए गए थे.’

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2जी स्पेक्ट्रम पर विशेष अदालत का फैसला आने के बाद डीएमके सांसद कनिमोझी को ख़ुशी से चूमतीं उनकी मां. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: गुरुवार को 2जी स्पेक्ट्रम मामले में आरोपियों के ख़िलाफ़ ग़लत तथ्यों के साथ दाखिल किये गये आरोपपत्र को लेकर सीबीआई को विशेष अदालत से आलोचना का सामना करना पड़ा. दरअसल, केंद्रीय जांच एजेंसी इस मामले में आरोप साबित करने में नाकाम रही.

विशेष न्यायाधीश ओपी सैनी ने कहा कि पूर्व संचार मंत्री ए राजा और अन्य के ख़िलाफ़ दाखिल सीबीआई के आरोपपत्र में ग़लत तथ्य दिए गए और वे लोग बरी होने के हक़दार हैं.

अदालत ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज तीन अलग मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया. अदालत ने कहा, बहस का आख़िरी नतीजा यह है कि मुझे यह क़रार देने में कोई हिचक नहीं है कि अभियोजन सीबीआई किसी भी आरोपी के ख़िलाफ़ कोई आरोप साबित करने में नाकाम रहा है, जो बख़ूबी गढ़े गए आरोपपत्र में लगाए गए थे.

जज ने कहा, मैं यह कह सकता हूं कि आरोपपत्र में दिए गए कई तथ्य तथ्यात्मक रूप से ग़लत हैं, जैसे कि वित्त सचिव का पुरज़ोर तरीक़े से प्रवेश शुल्क की सिफ़ारिश करना, ए राजा द्वारा मसौदा इरादा पत्र का प्रावधान ख़त्म करना, प्रवेश शुल्क के लिए भारतीय दूरसंचार प्राधिकरण ट्राई की सिफ़ारिशें आदि.

इस पेचीदा मुद्दे में वकीलों की सहायता मिलने को लेकर अदालत ने उनकी सराहना भी की. न्यायाधीश ने कहा कि इस बड़े तकनीकी, और पेचीदा मुकदमे की सुनवाई के दौरान कड़ी मेहनत करने को लेकर वह दोनों पक्षों के वकीलों की भी सराहना करते हैं. इस मामले का रिकॉर्ड तीन-चार लाख पन्नों का है.

अदालत ने जमानत पर रिहा आरोपियों में प्रत्येक को अपीलीय अदालत के समक्ष जरूरत पड़ने पर उपस्थित होने के लिए पांच लाख रुपये का जमानत बॉन्ड के साथ, इतनी ही राशि का एक मुचलका भरने के लिए कहा है.

‘पूरी शिद्दत से सात साल बैठे, लेकिन कोई सबूत पेश नहीं किया गया’

विशेष सीबीआई न्यायाधीश ओपी सैनी ने गुरुवार को अफ़सोस जताया कि 2जी घोटाले से जुड़े मामलों में सात साल का समय पूरी शिद्दत से समर्पित करने के बावजूद सीबीआई ने उसके सामने क़ानूनी रूप से स्वीकार्य कोई सबूत पेश नहीं किया.

न्यायाधीश ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच वाले तीन मामलों में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, द्रमुक सांसद कनिमोझी और कई अन्य को बरी करने के अपने फैसले में यह टिप्पणी की.

सैनी ने कहा, मैं यह भी जोड़ना चाहता हूं कि बीते करीब सात साल में, गर्मियों की छुट्टियों सहित सभी कामकाजी दिनों में मैं पूरी शिद्दत से सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक खुली अदालत में इस इंतज़ार में बैठा कि कोई क़ानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत लेकर आएगा लेकिन सब बेकार चला गया.

2जी घोटाला जांच से जुड़े मामलों पर अलग से सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुरूप 14 मार्च 2011 को विशेष न्यायाधीश की अदालत गठित की गई थी.

अदालत ने कहा, एक भी व्यक्ति सामने नहीं आया. इससे संकेत मिलते हैं कि हर कोई अफ़वाह, बातचीत और अटकलों से पैदा आम नजरिये पर जा रहा है. हालांकि न्यायिक कार्यवाही में आम नजरिये की कोई जगह नहीं है.

2जी फैसले पर विधि विशेषज्ञों में मतभेद

2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला मामलों से पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और द्रमुक सांसद कनिमोझी सहित सभी आरोपियों को बरी करने के विशेष अदालत के फैसले पर विधिक विशेषज्ञों की ओर से अलग अलग विचार व्यक्त किए गए.

एक वर्ग ने जहां बरी किए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया और कहा कि इससे राजनीतिक रूप से एक गंभीर स्थिति खड़ी होगी वहीं दूसरे वर्ग ने कहा कि एक बुलबुला बनाया गया था जो कि सबूत की कमी के कारण फूट गया.

पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने कहा कि वह फैसले को बिना पढ़े अच्छा या खराब नहीं कह सकते. उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि यह कोई अंतिम फैसला नहीं है और इसके खिलाफ उच्च अदालतों में अपील की जा सकती है.

पूर्ववर्ती राजग कार्यकाल में शीर्ष विधिक अधिकारी रहे सोराबजी ने कहा, यह केवल एक विशेष अदालत का फैसला है जिसके खिलाफ अपील की जा सकती है. सीबीआई उच्च न्यायालय में अपील कर सकती है. मैंने फैसला पढ़ा नहीं है इसलिए यह नहीं कह सकता कि यह अच्छा है या खराब.

यद्यपि वरिष्ठ अधिवक्ताओं अजित कुमार सिन्हा और दुष्यंत दवे ने असफलता के लिए अभियोजन पर सवाल उठाया. उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सिन्हा ने जहां फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया, वहीं दवे ने कहा, यह दिखाता है कि मामले की जांच में सही ढंग से नहीं की गई क्योंकि अभियोजन मामले को साबित करने में असफल रहा और यह फैसला जांच एजेंसियों विशेष तौर पर सीबीआई जैसी प्रमुख एजेंसी पर गंभीर संदेह खड़ा करता है.

उन्होंने कहा, राजनीतिक रूप से यह देश में एक गंभीर स्थिति उत्पन्न करता है. हमें इसे दीर्घकाल में राजनीतिक दायरे में देखना होगा. सिन्हा और दवे से अलग रुख व्यक्त करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह और उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढ़ी ने कहा कि अभियोजन के पास अपना मामला साबित करने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं थी.

सोढ़ी ने कहा, सबूत की कमी थी. यह हमारी न्यायपालिका की स्थिति बताता है. उनके पास इस मामले में सर्वश्रेष्ठ विशेष लोक अभियोजक थे. मामले में कुछ नहीं था. एक बुलबुला बनाया गया था जो अब फूट गया है.

वहीं सिंह ने कहा कि यदि कोई घोटाला था तो वह केवल पात्रता को लेकर था जो कि पहले आओ पहले पाओ से बदल दी गई थी. उन्होंने कहा, यद्यपि अभियोजन के पास वह भी साबित करने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं थी और इसलिए इस मामले में सभी किसी भी सजा से बच गए.

2जी मुद्दा उठाने वालों को स्पष्टीकरण देना चाहिए: शिवसेना

शिवसेना ने गुरुवार को कहा कि एक विशेष अदालत द्वारा 2जी घोटाला मामले में सभी आरोपियों को बरी कर देने के बाद भाजपा को देश को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उसने उक्त मुद्दा इतने जोरशोर से क्यों उठाया था.

शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि क्या फ़ैसले का मतलब यह है कि कोई घोटाला हुआ ही नहीं. राउत ने किसी पार्टी का नाम लिए बिना कहा, घोटाले के आरोप लगाने वाले अब देश में सत्तारूढ़ हैं. यह उन्हें स्पष्ट करना है.

इस बीच राकांपा नेता सुप्रिया सुले ने 2जी फ़ैसले पर प्रसन्नता जताई और कहा कि न्याय हुआ है. बारामती लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाली सुले ने द्रमुक सांसद कनिमोझी का उल्लेख करते हुए ट्वीट किया, अपने मित्र कन्नी के लिए बहुत खुश हूं…न्याय हुआ है.

सुले शरद पवार की पुत्री हैं जो संप्रग सरकार में कृषि मंत्री रहे थे. पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, द्रमुक सांसद कनिमोझी और अन्य आरोपियों को राजनीतिक रूप से संवेदनशील 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला मामलों में एक विशेष अदालत ने बरी कर दिया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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