योगी सरकार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ मुक़दमा वापस लेने का आदेश दिया

साल 1995 में निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला, भाजपा विधायक शीतल पांडेय और 10 अन्य लोगों के ख़िलाफ़ गोरखपुर ज़िले के पीपीगंज थाने में केस दर्ज हुआ था.

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Hubbali: Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath being garlanded at a public meeting during the Karnataka BJP chief BS Yeddyurappa’s Parivartan Yatra in Hubbali on Thursday. PTI Photo (PTI12_21_2017_000206B)

साल 1995 में निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला, भाजपा विधायक शीतल पांडेय और 10 अन्य लोगों के ख़िलाफ़ गोरखपुर ज़िले के पीपीगंज थाने में केस दर्ज हुआ था.

Hubbali: Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath being garlanded at a public meeting during the Karnataka BJP chief BS Yeddyurappa’s Parivartan Yatra in Hubbali on Thursday. PTI Photo (PTI12_21_2017_000206B)
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. (फाइल फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश में ‘उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक’ (यूपीकोका) लागू करने की तैयारी कर रही राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ दर्ज एक मुक़दमा वापस लेने का आदेश दिया है.

1995 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, शिव प्रताप शुक्ला (केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री), शीतल पांडेय (सहजनवा से भाजपा सांसद) और दस दूसरे लोगों के ख़िलाफ़ निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने का केस दर्ज किया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मामला गोरखपुर ज़िले के पीपीगंज थाने में दर्ज किया गया था. स्थानीय अदालत में विचाराधीन इस मुक़दमे में इससे पहले कोर्ट में हाज़िर न होने की वजह से सभी आरोपियों के ख़िलाफ़ ग़ैर ज़मानती वॉरंट जारी करने का निर्देश दिया गया था.

गोरखपुर के अभियोजन अधिकारी बीडी मिश्रा ने बताया, ‘मामले के सभी नामज़द आरोपियों के ख़िलाफ़ कोर्ट ने ग़ैर ज़मानती वॉरंट जारी करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन इन्हें कभी जारी नहीं किया गया.’

रिपोर्ट के अनुसार, बीते 20 दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार ने गोरखपुर ज़िला मजिस्ट्रेट को एक पत्र भेजा है जिसमें निर्देश दिया गया है कि इस मामले को रद्द करने के लिए कोर्ट में अपील की जाए.

इस आदेश पत्र में कहा गया है कि 27 अक्टूबर को ज़िला मजिस्ट्रेट से मिले एक पत्र और मामले से जुड़े तथ्यों की जांच के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि इस मामले को वापस ले लिया जाए.

राज्य सरकार की ओर से भेजे गए इस आदेश पत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, शिव प्रताप शुक्ला, शीतल पांडेय और 10 दूसरे लोगों के नामों का भी ज़िक्र किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में गोरखपुर के अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट (सिटी) रजनीश चंद्र ने इस बात की पुष्टि की है कि मुक़दमा रद्द के संबंध में कोर्ट में अपील करने का आदेश मिला है.

रजनीश चंद्र ने बताया, ‘अभियोजना अधिकारी से संबंधित अदालत में मुक़दमा रद्द करने के लिए अपील करने को कहा गया है. इस आदेश पत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा, केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला और भाजपा विधायक शीतल पांडेय का नाम है.’

पीपीगंज पुलिस स्टेशन में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार, आईपीसी की धारा 188 (वैध रूप से जारी किसी आदेश का किसी लोक सेवक द्वारा उल्लंघन करना) के तहत योगी आदित्यनाथ और 12 अन्य के ख़िलाफ़ पीपीगंज कस्बे में ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा निषेधाज्ञा लागू किए जाने के बावजूद सभा करने पर 27 मई 1995 को केस दर्ज किया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में अभियोजन अधिकारी बीडी मिश्रा ने कहा, ‘मामले में एफआईआर दर्ज करने के बाद स्थानीय अदालत में आरोपों से संबंधित दस्तावेज़ ज़िला प्रशासन ने दाख़िल किए थे. अदालत ने सभी आरोपियों के ख़िलाफ़ समन जारी किया था लेकिन आरोपियों ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो तकरीबन दो साल पहले अदालत ने उनके ख़िलाफ़ ग़ैर ज़मानती वॉरंट जारी किया था.’

मिश्रा ने आगे कहा, ‘केस रद्द करने से जुड़ा राज्य सरकार का आदेश पत्र मुझे मिल चुका है. जाड़े की छुट्टियां ख़त्म होने के बाद हम अदालत से मुक़दमा वापस लेने की अपील करेंगे.’

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने कहा, ‘मैंने सभा नहीं बुलाई थी. यह मामला 22 साल पुराना है. मुझे मेरे ख़िलाफ़ कोई मुक़दमा होने या ग़ैर ज़मानती वॉरंट जारी होने के संबंध में कोई जानकारी नहीं है.’ वहीं भाजपा विधायक शीतल पांडेय के बेटे दिगंबर ने कहा कि 1995 में पीपीगंज थाने में दर्ज मामले में उनके पिता का नाम था.

गोरखपुर योगी का गृह जनपद है और वह पांच बार यहां से लोकसभा के लिये चुने गए हैं. इस साल वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और बाद में वह विधान परिषद के सदस्य बने.

इस साल मई में योगी के प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कहा था कि वह गोरखपुर में 2007 में कथित भड़काऊ भाषण के बाद दंगे भड़काने के मामले में उनके ख़िलाफ़ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.

जनवरी 2007 में गोरखपुर में दंगा भड़का था. आरोप है कि उस समय वहां के तत्कालीन सांसद योगी ने मोहर्रम के जुलूस के मौके पर दो समुदायों के लोगों के बीच टकराव में एक युवक की मौत होने के बाद कथित रूप से भड़काऊ भाषण दिया था.

तत्कालीन भाजपा सांसद योगी को तब गिरफ्तार किया गया था और 10 दिनों तक जेल में रखा गया था. अदालत से ज़मानत मिलने पर वह बाहर आए थे.

उत्तर प्रदेश सरकार ने एक दशक पुराने दंगे के मामले में मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने की इजाज़त नहीं दी थी. भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए के तहत दर्ज किए गए भड़काऊ भाषण के इस मामले में सुनवाई राज्य सरकार की मंज़ूरी मिलने पर ही हो सकती थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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