सोहराबुद्दीन मामला: मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक के ख़िलाफ़ पत्रकारों ने की हाईकोर्ट में अपील

विभिन्न राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों से जुड़े 9 पत्रकारों ने अपनी याचिका में कहा कि सुनवाई की मीडिया कवरेज पर पाबंदी ग़ैर-क़ानूनी है.

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विभिन्न राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों से जुड़े 9 पत्रकारों ने अपनी याचिका में कहा कि सुनवाई की मीडिया कवरेज पर पाबंदी ग़ैरक़ानूनी है.

सोहराबुद्दीन (फाइल फोटो)/रॉयटर्स
सोहराबुद्दीन (फाइल फोटो)/रॉयटर्स

पत्रकारों के एक समूह ने मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट से गुज़ारिश की है कि बहुचर्चित सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की मीडिया कवरेज की अनुमति दी जाए.

ज्ञात हो कि इस मामले की सुनवाई मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत में चल रही हैं, जिसने बीते 29 नवंबर को बचाव पक्ष की एक अर्जी के बाद मीडिया को अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिंग करने से रोक दिया था.

अदालत के इस आदेश को ‘गैरकानूनी’ बताते हुए इसके ख़िलाफ़ राष्ट्रीय अखबारों, समाचार चैनल और न्यूज़ पोर्टल के 9 पत्रकारों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है. पत्रकारों का कहना है कि यह मामला लोगों से जुड़ा है और इसमें कई पूर्व पुलिस अधिकारी आरोपी हैं, लिहाजा मामले में मौके पर कवरेज बेहद जरूरी है.

अदालत के इस आदेश से पहले बचाव पक्ष के वकीलों ने सुरक्षा मुद्दों को उठाते हुए एक जज की मौत के बारे में मीडिया में आई एक खबर का जिक्र किया. यह जज इस मामले से जुड़े थे.

बचाव पक्ष के वकीलों ने कहा कि गलत रिपोर्टिंग ने दोनों ओर पूर्वधारणा बनाई है. उन्होंने कहा कि यह एक संवेदनशील मामला है और यदि रिपोर्ट के प्रकाशन की इजाजत दी गई तो कुछ अप्रिय घटना हो सकती है. इस पर जज ने सहमति जताते हुए कहा था कि विषय की संवदेनशीलता को देखते हुए कुछ अप्रिय घटना होने की आशंका है जिससे मुकदमा प्रभावित हो सकता है.

एनडीटीवी की ख़बर के अनुसार पत्रकारों द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि अदालत द्वारा मीडिया रिपोर्टिंग पर दिया गया आदेश कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है. इसमें सीआरपीसी की धारा 327 का हवाला देते हुए कहा गया है कि अदालत का आदेश इस धारा के तहत मिले खुली सुनवाई के सिद्धांत का हनन है. साथ ही जब तक मुकदमा ‘इन-कैमरा’ न हो, तब तक माननीय अदालत को मीडिया पर कोई पाबंदी लगाने का अधिकार नहीं है.

पत्रकारों ने यह भी कहा है, ‘अदालत मीडिया पर रोक लगाने की ज़रूरी परिस्थिति बताने में भी असफल रहा है. साथ ही सीआरपीसी के तहत मीडिया पर पाबंदी लगाना जज के अधिकार क्षेत्र और शक्ति के बाहर है. संबंधित मुकदमा बहुत पहले से मीडिया में रिपोर्ट किया जाता रहा है. अब इस मोड़ पर मीडिया पर पाबंदी का कोई तुक नहीं है. साथ ही, मामले से जुड़े किसी आरोपी और उसके वकील की जान को मीडिया रिपोर्टिंग से कोई खतरा नहीं है. माननीय जज ने सिर्फ अनहोनी की आशंका की वजह से मीडिया पर पाबंदी लगा दी है. ये अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है.’

याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि सभी रिपोर्टरों को एक ही तरह से नहीं देखा जा सकता. न ही किसी एक ग़ैर-ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग की घटना के चलते बाकियों पर रोक लगायी जा सकती है.

इन याचिकर्ताओं में द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ भाटिया समेत वरिष्ठ पत्रकार नीता कोल्हात्कर, सुनील बघेल, शरमीन हाकिम, सदफ मोदक, रेबेका समेर्वल, नरेश फर्नांडिस, सुनील कुमार सिंह और विद्या कुमार शामिल हैं. इस याचिका की सुनवाई 12 जनवरी 2018 को होगी.

मालूम हो कि 20०5 में हुई सोहराबुद्दीन, उनकी पत्नी कौसर बी व तुलसीदास प्रजापति की हत्या में कथित तौर पर गुजरात पुलिस के अधिकारियों का हाथ था. 23 पूर्व पुलिस अधिकारियों सहित आरोपियों की मुंबई की एक विशेष अदालत में सुनवाई चल रही है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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