अनवर जलालपुरी ऐसी दुनिया का ख़्वाब देखते थे, जिसमें ज़ुल्म और दहशत की जगह न हो

शायर अनवर जलालपुरी ऐसे गुलाब थे जिसकी ख़ुशबू जलालपुर की सरहदों को पार कर पूरी दुनिया में फैली और दिलों को महकाया.

शायर अनवर जलालपुरी. (फोटो साभार: यूट्यूब/उर्दू स्टूडियो)

शायर अनवर जलालपुरी ऐसे गुलाब थे जिसकी ख़ुशबू जलालपुर की सरहदों को पार कर पूरी दुनिया में फैली और लोगों के दिलों को महकाया.

शायर अनवर जलालपुरी. (फोटो साभार: यूट्यूब/उर्दू स्टूडियो)
शायर अनवर जलालपुरी. (फोटो साभार: यूट्यूब/उर्दू स्टूडियो)

ग़म में डूबे हैं नज़ारे, अलविदा कहते हुए

कांपते हैं लब हमारे, अलविदा कहते हुए

शख़्सियत थी आपकी यूं इल्म-ओ-फ़न की आबरू

जिस तरह होती है फूलों से चमन की आबरू

दिल से उठते हैं शरारे, अलविदा कहते हुए

आपके इल्म-ओ-हुनर का क़द्र दां हाशिम भी है

हैं जहां सब दर्द में डूबे वहां हाशिम भी है

टूटने को हैं सहारे, अलविदा कहते हुए.

गीता को उर्दू में पढ़ने वाले, हमारे मुल्क़ हिंदुस्तान की गंगा जमुनी तहज़ीब के परचमदार, यश भारती पुरस्कार से सम्मानित अनवर जलालपुरी ने बीती दो जनवरी इस जहान को अलविदा कह दिया.

घाघरा नदी की गोद में एक नदी बहती है जिसे तमसा नदी के नाम से जाना जाता है. इस नदी के किनारे पर जब मुग़ल वंश के सबसे महान सम्राट जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर का काफिला रुका तो उन्होंने इस धरती का नाम जलालपुर (जिला अंबेडकरनगर, उत्तर प्रदेश) रखा. इस धरती की मिटटी बहुत ही उपजाऊ है. मेरा विचार है कि जब अल्लामा इक़बाल ने यह कहा होगा…

नहीं हूं ना उम्मीद इक़बाल अपनी किश्ते वीरां से

ज़रा नम हो तो यह मिट्टी बड़ी ज़रखेज़ है साकी

तो अप्रत्यक्ष रूप से अल्लामा इक़बाल के दिमाग में जलालपुर जैसी ही कोई जगह रही होगी. इस धरती के गुलदस्ते में कई रंगों और किस्मों के फूल हैं, कोई गुलाब है तो कोई गुलदाउदी, कोई बेला है तो कोई गेंदा, कोई नर्गिस है तो कोई नस्तरन, कोई चमेली है तो कोई रात की रानी वगैरह-वगैरह…

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उन्हीं फूलों में से एक फूल वो गुलाब है जिसकी ख़ुशबू जलालपुर की सरहदों को चीर कर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में फैली और लोगों के दिल और दिमाग को महकाया. वो गुलाब कोई और नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर और मशहूर संचालक अनवर जलालपुरी हैं.

अनवर जलालपुरी अपनी शायरी को शाब्दिक जादूगरी से आज़ाद रखकर हमेशा समाज को एक पैग़ाम देने की कोशिश करते हैं…

तुम प्यार की सौगात लिए घर से तो निकलो

रस्ते में तुम्हें कोई भी दुश्मन न मिलेगा

तुम अपने सामने की भीड़ से होकर गुज़र जाओ

कि आगे वाले तो हरगिज़ न देंगे रास्ता तुमको

हमारे समाज में नई पीढ़ी के लिए उनकी शायरी एक प्रकार की शिक्षा का काम करती है.

दुश्मन को दुआ दे के यह दुनिया को बता दो

बाहर कभी आपे से समंदर नहीं होता

कुछ वस्फ़ तो होता है दिमागों में दिलों में

यूं ही कोई सुकरात-ओ-सिकंदर नहीं होता

अनवर जलालपुरी इंसानी रिश्तों का बेहद सम्मान करते हैं और उनकी नज़र में हर शख़्स का अलग स्थान है.

हवा हो तेज़ तो शाखों से पत्ते टूट जाते हैं

ज़रा सी देर में बरसों के रिश्ते टूट जाते हैं

अब मुझे कल के लिए भी ग़ौर करना चाहिए

अब मेरा बेटा मेरे क़द के बराबर हो गया

अनवर जलालपुरी अपनी जागती आंखों से एक ऐसे संसार का ख़्वाब देखते थे जिसमें ज़ुल्म, अत्याचार और दहशत की कोई जगह न हो.

हर दम आपस का यह झगड़ा, मैं भी सोचूं तू भी सोच

कल क्या होगा शहर का नक़्शा, मैं भी सोचूं तू भी सोच

एक ख़ुदा के सब बंदे हैं एक आदम की सब औलाद

तेरा मेरा ख़ून का रिश्ता, मैं भी सोचूं तू भी सोच

हमारा देश भारत विभिन्न धर्मों का संगम है, यहां पर एक दूसरे से धार्मिक और विचारात्मक विभिन्नता होने के बावजूद भी हम लोगों के दिलों में एक दूसरे के लिए मोहब्बतों के चिराग रौशन हैं. यह हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति का नतीजा है.

अनवर जलालपुरी की हमेशा यही कोशिश रहती थी कि हमारी इस तहज़ीब को किसी की नज़र न लगे और आपसी भाईचारे का ज़ज़्बा परवान चढ़े.

हम काशी काबा के राही, हम क्या जाने झगड़ा बाबा

अपने दिल में सबकी उल्फत, अपना सबसे रिश्ता बाबा

हर इंसां में नूर-ए-ख़ुदा है, सारी किताबों में लिखा है

वेद हो या इंजीले मोक़द्दस, हो कुरान कि गीता बाबा

आज जहां शायरी से वास्तविक प्रेम विलुप्त हो गया है, वहां अनवर जलालपुरी की शायरी में इश्क़ अपनी पूरी पाकीज़गी के साथ मौजूद है.

ढूंढ़ना गुलशन के फूलों में उसी की शक्ल को

चांद के आईने में उसका ही चेहरा देखना

चाहो तो मेरी आंखों को आईना बना लो

देखो तुम्हें ऐसा कोई दर्पन न मिलेगा

तू मेरे पास था या तेरी पुरानी यादें

कोई एक शेर भी तन्हा नहीं लिखा मैंने

अनवर जलालपुरी ख़ुद को मीरो ग़ालिब और कबीरो तुलसी का असली वारिस मानते थे, उनका यह दावा सिर्फ दावा नहीं था बल्कि वो इसके लिए मज़बूत दलील भी प्रस्तुत करते हैं.

कबीरो तुलसी ओ रसखान मेरे अपने हैं

विरासत-ए-ज़फ़रो मीर जो है मेरी है

दरो-दीवार पे सब्ज़े की हुकूमत है यहां

होगा ग़ालिब का कभी अब तो यह घर मेरा है

मैंने हर अहेद की लफ़्ज़ों से बनाई तस्वीर

कभी खुसरो कभी ख़य्याम कभी मीर हूं मैं

(लेखक युवा शायर हैं.)

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