जज लोया के दोस्त ने कहा, उनकी मौत पूर्व नियोजित हत्या

दिल्ली में हुई एक बैठक में सीबीआई जज बृजगोपाल लोया के दोस्त और वरिष्ठ अधिवक्ता उदय गवारे ने बताया कि जज की अचानक मौत पर उनके साथियों को संदेह हुआ था.

दिल्ली में हुई एक बैठक में सीबीआई जज बृजगोपाल लोया के दोस्त और वरिष्ठ अधिवक्ता उदय गवारे ने बताया कि जज की अचानक मौत पर उनके साथियों को संदेह हुआ था.

Loya Uday Gaware
सीबीआई जज बृजगोपाल लोया और उनके दोस्त उदय गवारे (फोटो साभार: द कारवां/फेसबुक)

नई दिल्ली: सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले की सुनवाई करने वाले सीबीआई जज बृजगोपाल लोया की ‘संदिग्ध’ परिस्थितियों में मौत पर कानूनविदों और पत्रकारों ने सोमवार 15 जनवरी को दिल्ली में सभा कर मामले की जांच मांग की. ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम (एआईपीएफ) के बैनर तले एक जनसभा में जज लोया के दोस्त और लातूर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष उदय गवारे ने जज लोया की मौत को संदिग्ध बताया और कहा उन्हें यकीन है कि यह पूर्वनियोजित हत्या है.

कार्यक्रम में जज लोया की मौत पर पहली रिपोर्ट करने वाले द कारवां के पत्रकार निरंजन टाकले, पत्रिका के पॉलिटिकल एडिटर हरतोष सिंह बल, बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस बीजी कोल्से पाटिल के साथ सुप्रीम कोर्ट की वकील इंदिरा जयसिंह भी शामिल हुए थे. इन सभी ने मामले को संवेदनशील और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा का सवाल बताया.

ज्ञात हो कि सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले की सीबीआई की विशेष अदालत में सुनवाई कर रहे जज लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में हुई थी, जिसकी वजह दिल का दौरा पड़ना बताया गया था. वे नागपुर अपनी सहयोगी जज स्वप्ना जोशी की बेटी की शादी में गए हुए थे.

क्या है पूरा मामला

बीते नवंबर में द कारवां पत्रिका में जज लोया की बहन और पिता के हवाले से छपी एक रिपोर्ट में उनकी मौत से संबंधित संदिग्ध परिस्थितियों पर सवाल उठाया गया था. यह रिपोर्ट निरंजन टाकले की जज लोया की बहन और पिता से बातचीत पर आधारित थी.

निरंजन से बातचीत में जज लोया की बहन अनुराधा बियानी ने कहा था कि उनके भाई से सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में मनचाहा फैसला देने के लिए उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मोहित शाह द्वारा 100 करोड़ रुपये का प्रस्ताव दिया गया था.

इस कार्यक्रम में आये निरंजन ने बताया कि जब उन्होंने जज बृजगोपाल लोया की मौत पर स्टोरी ब्रेक की थी, तब बहुत से लोगों ने कहा कि टाकले डर गया है क्योंकि मेरा फोन 8-10 दिन बंद था.

उन्होंने कहा कि अगर डरता तो ये स्टोरी ही नहीं करता. जानता हूं एक दिन डरने का हुक्म जारी होगा कि डरना है, लेकिन हमें डरना नहीं है.

टाकले ने कहा, ‘मैं क्राइम कवर करने वाला पत्रकार नहीं हूं. मैंने हमेशा से राजनीति को कवर किया है. मैं एक स्टोरी के सिलसिले में पुणे गया था और जहां मैं रुका, वहां मुझे एक दोस्त ने कहा कि उनकी एक दोस्त मुझसे मिलना चाहती है. वो नूपुर बियानी थी जो जज लोया की भांजी हैं और उसने मुझे इस मामले के बारे में बताया. मैंने सोचा कि यह जो बोल रही है यह तो सुनी हुई बातें है, इसलिए मैं उसकी मां से बात करना चाहता था, क्योंकि वे हर जगह मौजूद थी और लोया उनसे बात भी करते थे.’

टाकले ने बताया कि जब उन्होंने अनुज से बात करने की कोशिश की तो जज लोया के पिता ने कहा कि ये किसी से बात नहीं करता और इसे किसी पर भी भरोसा नहीं है. न मीडिया, अदालत न ही सरकार.

टाकले ने कहा, ‘मैंने निश्चित किया कि अनुज का अगर सरकार और अदालत पर भरोसा नहीं है, इसके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता, लेकिन मैं जिस काम में हूं उस पर भरोसा दिलाने के लिए कुछ तो कर सकता हूं.’

अनुज द्वारा किये गए प्रेस कॉन्फ्रेंस पर टाकले ने कहा, ‘अनुज को परिवार की तरफ से बोलने के लिए किसने कहा. पहले तो वो कुछ भी नहीं बोल रहा था और एक पत्र भी लिख चुका था. उसके मीडिया में आकर बयान देने से ऐसा नहीं है मामला ख़त्म हो गया, बल्कि अब और सवाल खड़े हो गए हैं. पहले के सवाल भी है, लेकिन अब और ज्यादा प्रश्न है, जिसका उत्तर तब ही मिल सकता है, जब मामले की सही से जांच हो और सच सबके सामने आए.’

‘गांधी की मौत की जांच आज हो सकती है, लेकिन तीन साल पहले हुई लोया की मौत की नहीं!’

लातूर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष उदय गवारे ने जज लोया की मौत को संदिग्ध बताया और कहा उन्हें यकीन है कि यह पूर्वनियोजित हत्या है. गवारे ने लोया के साथ वकालत की पढ़ाई की थी, साथ ही कुछ समय साथ काम भी किया.

उन्होंने बताया, ‘जिस दिन लोया का निधन हुआ, उसी दिन कई न्यायाधीशों सहित कई लोगों ने मुझे कहा कि लोया को धोखा दिया गया है. यह मामला इतना संवेदनशील था कि कोई भी शिकायत दर्ज करने की हिम्मत नहीं करता. अब मुझे लगता है, हमें इतना डरना नहीं चाहिए था. लोया की मृत्यु एक पूर्वनियोजित हत्या थी.’

सोहरबुद्दीन फ़र्ज़ी एनकाउंटर मामले पर उदय ने कहा, ‘उस मामले में 10,000 हजार पन्नों चार्जशीट थी और लोया बिना पढ़े फैसला नहीं देना चाहते थे इसलिए उन्होंने अध्ययन कर आगे बढ़ने का फैसला किया, लेकिन उनके बाद जो जज गोसावी आए उन्होंने इतने पन्नों की चार्जशीट 15 दिनों के भीतर पढ़कर फैसला सुना दिया.’

उदय ने कहा, ‘बेहद सामान्य परिवार से आने के बाद वो इतने बड़े पद पर पहुंचे. उन्होंने मौत को गले लगाया, लेकिन ईमान नहीं बेचा. मुझे उन पर गर्व है.’

उदय का कहना है कि पूरा सिस्टम ख़राब है. जिला अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में गड़बड़ियां हैं. कोई इस पर बात नहीं करना चाहता है, लेकिन अब लोग बोल रहे हैं और बोलते रहना होगा.

उदय ने लोया के अंतिम संस्कार के समय के बारे में बताया कि जब उनका अंतिम संस्कार हो रहा था, तब बहुत सारे न्यायपालिका से जुड़े लोग आए थे. वहां सब कह रहे थे कि लोया के साथ धोखा हुआ है.

उदय के न्यायपालिका के बारे में कहा कि एक सीबीआई जज जो इतना बड़ा मामला देख रहा था और जब उसकी मौत हुई, तो अदालत को खुद जांच के आदेश देने चाहिए थे. जनता का आख़िरी में सबसे ज्यादा विश्वास अदालत पर है और अगर अदालत ठीक से काम नहीं करेगा, तो लोकतंत्र को लकवा मार जाएगा.

उदय ने बीते हफ्ते हुई चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर आपत्ति जताने वालों पर चुटकी लेते हुए कहा, ‘अभी चार जजों ने मीडिया के सामने अपना दुःख बताया तो लोग बोल रहे हैं कि जजों का मीडिया में बयान देना जजों के लिए निर्धारित नियमों का उल्लंघन है. मैं पूछना चाहता हूं कि लोया की मौत के मामले में जज गवई और जज शुक्रे का इंडियन एक्सप्रेस को बयान देना क्या नियम का उल्लंघन नहीं है? तब सब को मजा आया, लेकिन अब तकलीफ़ हो रही है. गांधी चार गोली से मरे या तीन गोली से इसकी जांच आज हो सकती है, लेकिन तीन साल पहले लोया की मौत की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए?’

New Delhi: Hartosh Singh Bal, noted journalist and political editor, The Caravan, speaks during a public meeting on 'Judge Loya's Suspicious Death' in New Delhi on Monday. PTI Photo by Kamal Kishore (PTI1_15_2018_000198B)
दिल्ली में हुए कार्यक्रम में बोलते हरतोष सिंह बल (फोटो: पीटीआई)

‘राडिया टेप यूपीए पर काला दाग और लोया की मौत राजग पर’

द कारवां के पॉलिटिकल एडिटर हरतोष सिंह बल भी इस कार्यक्रम में शामिल थे. उन्होंने बताया कि जब एक जज की मौत पर प्रश्न खड़ा होने लगे और उसकी जांच न हो यह बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. खासकर तब जब वो व्यक्ति सोहराबुद्दीन एनकाउंटर जैसा मामला देख रहा हो, तो बिल्कुल भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

हरतोष ने कहा कि राडिया टेप यूपीए काल में काला दाग था, उसी प्रकार लोया की मौत भी राजग के शासन काल में काले दाग के रूप में सामने आया है. उन्होंने बताया कि यूपीए काल में लोकतंत्र के चारों स्तम्भों में से न्यायपालिका बच गया था, लेकिन मौजूदा सरकार में न्यायपालिका भी बच नहीं पाई.

उन्होंने कहा, ‘सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले के ट्रायल पर पहुंचने से पहले आपको 2002 मुस्लिम विरोधी दंगों को देखना होगा और यह कड़ी वहीं से जुड़ी है. इसकी शुरुआत राज्य के गृहमंत्री हरेन पंडया की मौत से हुई क्योंकि वो व्यक्ति सब जानता था कि 2002 दंगों में प्रशासन की क्या भूमिका थी. उनकी मौत के पर आज भी सवाल हैं. इसके बाद सोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति की मौत और फिर जज लोया की मौत, जो और भी महत्वपूर्ण है. इन सब के मौत पर सवाल कायम है. अदालत अगर इन मामलों में न्याय नहीं दे सकती तो लोकतंत्र के मूल्यों पर सवाल खड़ा हो जाएगा.’

हरतोष ने इंडियन एक्सप्रेस द्वारा की गई रिपोर्ट पर हमला करते हुए कहा कि मीडिया में बतौर पत्रकार काम करने के लिए एक तरीका है और उन्होंने आज तक कोई ऐसे खोजी पत्रकारिता नहीं देखी, जहां मेडिकल रिपोर्ट की तारीख को ही नज़रअंदाज़ कर दिया गया हो.

बीते रविवार को जज लोया के बेटे अनुज लोया ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उन्हें अपने पिता की मौत पर कोई संदेह नहीं है.

इस पर हरतोष का कहना था, ‘अनुज की प्रेस कॉन्फ्रेंस दरअसल और ज्यादा सवाल खड़ा करती है. उस कॉन्फ्रेंस में अनुज नहीं बल्कि बगल बैठा वकील बोल रहा था. मुझे यकीन है जब अनुज सबूतों को देखेगा, तो उसे भी संदेह होगा. सब सवाल का एक जवाब है कि मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और सच जनता के सामने आना चाहिए.’

‘न्यायपालिका को सीता की तरह अग्निपरीक्षा देनी होगी’

बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस बीजी कोल्से पाटिल ने लोया की मौत की जांच को पूरे न्यायपालिका की प्रतिष्ठा की बात बताई. उन्होंने बताया कि न्यायपालिका की इज्जत दांव पर लगी है जिसे सभी को और अदालत को मिलकर बचाना है.

कोल्से पाटिल ने कहा कि आज भी देश में डर का माहौल बना हुआ है और लोया की मौत दरअसल संदेश था, उन तमाम जजों को कि यह तो 100 करोड़ ले लो या मर जाओ. यह मामला बहुत कुछ खोल सकता है.

उन्होंने कहा कि ऐसे संदिग्ध मौत की जांच खुद सरकार को करवाना चाहिए और सरकार को क्या तकलीफ है जांच करवाने में.

पाटिल ने कहा, ‘जैसे सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी, उसी प्रकार न्यायपालिका को भी अग्निपरीक्षा देनी होगी और अपनी ईमानदारी साबित करनी होगी.’

पाटिल ने बताया कि अगर लोया की मौत की परिस्थिति और पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखेंगे, तो बहुत सारे सवाल सामने आते हैं और उनका जवाब मिलना चाहिए.

उन्होंने आगे बताया कि न्यायपालिका में कोई कुछ नहीं बोलता डर के मारे. तबादला भी हो जायेगा, तब भी कुछ नहीं बोलते. उन्होंने चार सुप्रीम कोर्ट के जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर कहा कि उन्होंने समाज पर उपकार किया है और इसके चलते अब बहुत लोग बोलने लगे हैं.

चारों जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर देश पर उपकार किया 

सुप्रीम कोर्ट में वकील इंदिरा जयसिंह ने बताया कि जब वे सीबीआई की तरफ से सोहराबुद्दीन मामले की वकील थी, तब एक भी आरोपी अफसर को जमानत नहीं मिली थी.

उन्होंने आपातकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा इस्तीफे को चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस से जोड़कर कहा कि उस समय उन्होंने इस्तीफा देकर देश पर एहसान किया और इन लोगों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके.

गुजरात के पूर्व गृह मंत्री हरेन पंडया की मौत पर इंदिरा ने कहा, ‘हरेन पंडया की मौत कैसे हुई किसी को पता नहीं. जो राज्य अपने गृहमंत्री को नहीं बचा सकता, वो आम लोगों को कैसे बचाएगा. इसलिए यह मामला महत्वपूर्ण और संवेदनशील था, जिसके चलते मामले को गुजरात से बाहर मुंबई में चालने को कहा गया था.’

इंदिरा ने सुप्रीम कोर्ट जस्टिस अरुण मिश्रा को लोया की मौत का मामला मिलने पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि उनका पुराना इतहास है कि उन्होंने गुजरात सरकार के पक्ष में फैसला दिया है, जो 20 साल से ज्यादा समय से सत्ता में है.