बापू ने अयोध्या में कहा था, हिंसा कायरता का लक्षण और तलवारें कमज़ोरों का हथियार हैं

साल 1921 में गांधीजी ने फ़ैज़ाबाद में निकले जुलूस में देखा कि ख़िलाफ़त आंदोलन के अनुयायी हाथों में नंगी तलवारें लिए उनके स्वागत में खड़े हैं. जिसकी उन्होंने सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी.

साल 1921 में गांधीजी ने फ़ैज़ाबाद में निकले जुलूस में देखा कि ख़िलाफ़त आंदोलन के अनुयायी हाथों में नंगी तलवारें लिए उनके स्वागत में खड़े हैं. जिसकी उन्होंने सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी.

Mahatma-Gandhi-HD-Wallpapers

महात्मा गांधी के बारे में यह जानना किसी को भी हैरत में डाल सकता है कि जिन राम के राज के अपने सपने को साकार करने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी, अपने समूचे जीवन में राम की जन्मभूमि अयोध्या की उन्होंने सिर्फ़ दो यात्राएं कीं. अलबत्ता, अपने संदेशों से इन दोनों ही यात्राओं को महत्वपूर्ण बनाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी.

10 फरवरी, 1921 को उनकी पहली यात्रा के समय, जानकार बताते हैं कि अयोध्या व उसके जुड़वां शहर फ़ैज़ाबाद में उत्साह व उमंग की ऐसी अभूतपूर्व लहर छायी थी कि लोग उनकी रेलगाड़ी आने के निर्धारित समय से घंटों पहले ही रेलवे स्टेशन से लेकर सभास्थल तक की सड़क व उसके किनारे स्थित घरों की छतों पर जा खड़े हुए थे.

हर कोई उनकी एक झलक पाकर धन्य हो जाना चाहता था. फ़ैज़ाबाद के भव्य चौक में स्थित ऐतिहासिक घंटाघर पर शहनाई बज रही थी- हमें आज़ाद कराने को श्री गांधीजी आते हैं.

सभा फ़ैज़ाबाद व अयोध्या के बीच स्थित जालपा नाले के पश्चिम और सड़क के उत्तर तरफ स्थित मैदान में होनी थी. 1918 में अंग्रेज़ों ने प्रथम विश्वयुद्ध में अपनी जीत का जश्न इसी मैदान पर मनाया था और कांग्रेसियों ने गांधीजी की सभा के लिए जानबूझकर इसको चुना था ताकि अंग्रेज़ों को उनका व गांधीजी का फ़र्क़ समझा सकें.

लेकिन रेलगाड़ी स्टेशन पर आई और तिरंगा लहराते हुए स्थानीय कांग्रेसियों के दो नेता-आचार्य नरेंद्र देव व महाशय केदारनाथ- गांधीजी के डिब्बे में गए तो उनका बड़ी ही अप्रिय स्थिति से सामना हुआ.

पता चला कि गांधीजी ने गाड़ी के फ़ैज़ाबाद जिले में प्रवेश करते ही डिब्बे की अपने आसपास की सारी खिड़कियां बंद कर ली हैं और किसी से भी मिलने-जुलने या बातचीत करने से मनाकर दिया है.

दरअसल, वे इस बात को लेकर नाराज़ थे कि अवध में चल रहा किसान आंदोलन ख़ासा उत्पाती हो चला था और उसूलों व सिद्धांतों से ज़्यादा युद्धघोष की भाषा समझता था. उसके लिए अहिंसा कोई बड़ा मूल्य नहीं रह गई थी.

ख़ासकर फ़ैज़ाबाद ज़िले के किसान तो एकदम से हिंसा के रास्ते पर चल पड़े थे और बिडहर में बग़ावती तेवर अपनाकर उन्होंने तालुकेदारों व ज़मींदारों के घरों में आगज़नी व लूटपाट तक कर डाली थी.

यह स्थिति गांधीजी की बर्दाश्त के बाहर थी, लेकिन अनुनय विनय करने पर उन्होंने यह बात मान ली कि वे सभा में चलकर लोगों से अपनी नाराज़गी ही जता दें.

उनके साथ अबुल कलाम आज़ाद के अलावा ख़िलाफ़त आंदोलन के नेता मौलाना शौकत अली भी थे, जो लखनऊ कांग्रेस में हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल, असहयोग और ख़िलाफ़त आंदोलनों के मिलकर एक हो जाने के बाद के हालात में साथ-साथ दौरे पर निकले थे.

मगर गांधीजी मोटर पर सवार होकर जुलूस के साथ चले तो देखा कि ख़िलाफ़त आंदोलन के अनुयायी हाथों में नंगी तलवारें लिए उनके स्वागत में खड़े हैं. उन्होंने वहीं तय कर लिया कि वे अपने भाषण में हिंसक किसानों के साथ इन अनुयायियों की भर्त्सना से भी परहेज़ नहीं करेंगे.

सूर्यास्त बाद के नीम अंधेरे में बिजली व लाउडस्पीकरों से अभाव में उन्हें सुनने को आतुर भारी जनसमूह से पहले तो उन्होंने हिंसा का रास्ता अपनाने के बजाय ख़ुद कष्ट सहकर आंदोलन करने को कहा, फिर साफ़ व कड़े शब्दों में किसानों की हिंसा व तलवारधारियों के जुलूस की निंदा की. कहा, हिंसा बहादुरी का नहीं कायरता का लक्षण है और तलवारें कमज़ोरों का हथियार हैं.

ग़ौरतलब है कि उन्होंने देशवासियों को ये दो मंत्र देने के लिए उस अयोध्या को चुना जिसके राजा राम के राज्य की कल्पना साकार करने के लिए वे अपनी अंतिम सांस तक प्रयत्न करते रहे. रात में वे जहां ठहरे वहां ऐसी व्यवस्था की गई कि वे विश्राम करते रहें और उनका दर्शन चाहने वाले चुपचाप आते व दर्शन करके जाते रहें.

हज़ारों की संख्या में किसानों ने उस रात आंखों में पश्चाताप के आंसू लिए अपने मुक्तिदाता के सामने मूक क्षमायाचना की. सुबह सरयू स्नान के बाद गांधीजी अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़ गए तो भी किसानों द्वारा ‘आंदोलन को धक्का पहुंचाने व शर्मिंदगी दिलाने वाली’ हिंसा उनको सालती रही. उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से इन भटके किसानों को सही राह दिखाने को कहा.

यह तब था जब नेहरू ने उक्त हिंसा के एक दो दिन में ही हिंसक किसानों की सभा आयोजित कर उनसे सार्वजनिक रूप से गुनाह कुबूल करा लिया था और अनेक किसानों ने अपनी ग़लती स्वीकारते हुए ख़ुद को क़ानून के हवाले कर लंबी-लंबी सज़ाएं भोगना स्वीकार कर लिया था.

इस घटना से पता चलता है कि वे स्वतंत्रता के संघर्ष में सत्य व अहिंसा जैसे मूल्यों व नैतिक सैद्धांतिक मानदंडों के कितने कठोर हिमायती थे. यह बात तो सारा देश जानता है कि चौरीचौरा कांड के बाद उन्होंने समूचा असहयोग आंदोलन ही स्थगित कर दिया था.

§§§ 2 §§§

ग़ौरतलब है कि बापू अयोध्या आए तो ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ के उद्घोषक बाल गंगाधर तिलक का निधन हो चुका था और देश के स्वाधीनता आंदोलन को नए सिरे से संजोने की ज़िम्मेदारी उन पर आ पड़ी थी.

सो, 10 फरवरी, 1921 को वाराणसी में काशी विद्यापीठ का शिलान्यास करके उसी दिन वे ट्रेन से फ़ैज़ाबाद पहुंचे तो अयोध्या के साधुओं के बीच जाकर उनको आंदोलन से जोड़ने को भी यात्रा के उद्देश्यों में शामिल कर रखा था.

यह इस अर्थ में बहुत महत्वपूर्ण था कि तब तक तुर्की की स्वाधीनता और इस्लाम की धार्मिक संस्थाओं की स्वतंत्रता की बाबत ब्रिटिश प्रधानमंत्री के वायदों के संदर्भ में शुरू हुए ख़िलाफ़त आंदोलन को हिंदू-मूुस्लिम एकता को मज़बूत करने के बड़े अवसर में बदलने की उनकी कोशिशें रंग लाने लगी थीं.

इस वक़्त वे न सिर्फ़ ख़िलाफ़त को अपने ढंग के आंदोलन में ढाल रहे थे बल्कि अंग्रेज़ों द्वारा इस एकता की राह में डाले जा रहे रोड़े भी बुहार रहे थे.

इन रोड़ों में सबसे प्रमुख था- गोहत्या का मसला, जिसे अंग्रेज़ लगातार सांप्रदायिक रंग दे रहे थे. स्वाभाविक ही था कि गांधीजी अयोध्या में इस मसले पर खुलकर बोलते. यकीनन, उन्होंने जिस तरह गोहत्या के लिए अंग्रेज़ों को कठघरे में खड़ाकर गोरक्षा के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता को अपरिहार्य बताया, वह सिर्फ़ और सिर्फ़ वे ही कर सकते थे और हां, ऐसा करते हुए उन्होंने जहां स्वतंत्रता संघर्ष के दूसरे पहलुओं की कतई अनदेखी नहीं की, वहीं तथाकथित राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद का कतई संज्ञान नहीं लिया.

भले ही यह उनके आराध्य राजा राम की जन्मभूमि व राजधानी की उनकी पहली यात्रा थी. इससे पहले 1915 में कलकत्ता से हरिद्वार के कुंभ मेले में जाते हुए वे वहां से गुज़रे ज़रूर थे लेकिन उसकी धरती पर उतरे नहीं थे.

देर शाम फ़ैज़ाबाद की सभा को संबोधित कर वे 11 फरवरी की सुबह अयोध्या के सरयू घाट पर पंडित चंदीराम की अध्यक्षता में हो रही साधुओं की सभा में पहुंचे तो शारीरिक दुर्बलता और थकान के मारे उनके लिए खड़े होकर बोलना मुश्किल हो रहा था. इसलिए उन्होंने सबसे पहले अपनी शारीरिक असमर्थता के लिए क्षमा मांगी, फिर बैठे-बैठे ही साधुओं को संबोधित करने और आईना दिखाने लगे.

उन्होंने कहा, ‘कहा जाता है कि भारतवर्ष में 56 लाख साधु हैं. ये 56 लाख बलिदान के लिए तैयार हो जाएं तो मुझे विश्वास है कि अपने तप तथा प्रार्थना से भारत को स्वतंत्र करा सकते हैं. लेकिन ये अपने साधुत्व के पथ से हट गए हैं. इसी प्रकार से मौलवी भी भटक गए हैं. साधुओं और मौलवियों ने कुछ किया है तो केवल हिंदुओं तथा मुसलमानों को एक-दूसरे से लड़ाया है. मैं दोनों के लिए कह रहा हूं.. यदि आप अपने धर्म से वंचित हो जाएं, विधर्मी हो जाएं और अपना धर्म समाप्त कर दें, तब भी ईश्वर का कोई ऐसा आदेश नहीं हो सकता जो आपको ऐसे दो लोगों के बीच शत्रुता उत्पन्न करने की अनुमति दे, जिन्होंने एक-दूसरे के साथ कोई ग़लती नहीं की है.’

वे यहीं नहीं रुके. आगे कहा, ‘मैंने हरिद्वार में साधुओं से कहा था कि यदि वे गाय की रक्षा करना चाहते हैं तो मुसलमानों के लिए अपनी जान दें. अंग्रेज़ हमारे पड़ोसी होते तो मैं आपको परामर्श देता कि आप उनसे भी प्रार्थना करें कि उनके धर्म में गाय की हत्या तथा उसका मांस खाने का निषेध नहीं है, तो भी वे हम लोगों के लिए उसे बंद कर दें… परन्तु वे हाथ उठाते हैं और कहते हैं कि वे शासक हैं और उनका शासन हम लोगों के लिए रामराज्य है! मैं साधुओं से अपील करता हूं कि यदि वे गाय की रक्षा करना चाहते हैं तो ख़िलाफ़त के लिए जान दे दें… वे गाय की रक्षा के लिए मुसलमानों की हत्या करते हैं तो उन्हें हिंदू धर्म का परित्याग कर देना चाहिए. हिंदुओं को इस प्रकार के निर्देश कहीं भी नहीं दिए गए हैं.’

आगे उन्होंने ऐसी ही और नसीहतें दीं. कहा, ‘आजकल हिंदू नगरपालिका द्वारा गोवध बंद कराना चाहते हैं. मैं इसे बेवकूफ़ी समझता हूं. इस मामले में कुछ नासमझ परामर्शदाताओं के बहकाने पर कलकत्ता के हमारे मारवाड़ी बंधुओं ने मुझसे कसाइयों के हाथों से 200 गायों की रक्षा के लिए कहा. मैंने कहा कि मैं एक भी गाय की रक्षा नहीं करूंगा, जब तक कसाइयों को यह न बता दिया जाए कि वे बदले में कौन-सा दूसरा पेशा अख़्तियार करें क्योंकि वे जो करते हैं, हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं करते… बंबई में क्या हुआ? वहां कसाइयों के पास सैकड़ों गायें थीं. कोई भी हिंदू उनके पास नहीं गया. ख़िलाफ़त कमेटी के लोग गए और कहा कि यह ठीक नहीं है. वे गायों को छोड़ दें और बकरियां ख़रीदें. कसाइयों ने सब गायें समर्पित कर दीं. किसी को भी एक पैसा नहीं देना पड़ा. इसे गाय की रक्षा कहते हैं.’

उन्होंने साफ़ किया कि गाय की रक्षा का तात्पर्य किसी जानवर की रक्षा से नहीं है. ‘इसका तात्पर्य निर्बल एवं असहाय की रक्षा से है और ऐसा करके ही भगवान से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने का अधिकार मिल सकता है. भगवान से अपनी रक्षा की प्रार्थना करना पाप है, जब तक कि हम कमज़ोरों की रक्षा नहीं करते… हम लोग इस तरह प्यार करना सीखें, जैसे राम सीता से करते थे. जब तक हम अपने धर्म का पालन सेवा और निष्ठा से नहीं करेंगे, तब तक हम लोग इस राक्षसों की सरकार को नष्ट नहीं कर सकेंगे. न स्वराज्य प्राप्त कर सकेंगे और न ही अपने धर्म का राज्य. यह हिंदुओं की शक्ति से बाहर है कि वे पुनः रामराज्य वापस ले आएं.’

अपने भाषण का समापन उन्होंने यह कहकर किया, ‘मैं अधिक नहीं कहना चाहता. संस्कृत के विद्यार्थी यहां आए हुए हैं. मैं उनसे कहता हूं कि वे अपने मुसलमान भाइयों के लिए जीवन का बलिदान करें… हर विद्यार्थी जो निर्वाण हेतु ज्ञान उपार्जन करना चाहता है, वह समझ ले कि अंग्रेज़ों से ज्ञान उपार्जन करना ज़हर का प्याला पीना है. इस ज़हर के प्याले को स्वीकार मत कीजिए. सही रास्ते पर आइए… यहां एक मूर्ति है, जिसे विदेशी वस्त्र अर्पित किए जाते हैं. यदि आप स्वयं विदेशी वस्त्र नहीं चाहते तो इस प्रथा का अंत कर दीजिए. आप स्वदेशी हो जाइए. अपने भाइयों तथा बहनों द्वारा काते हुए धागों का प्रयोग कीजिए. मैं आशा करता हूं कि यहां के साधुओं के पास जो कुछ है, उसका कुछ अंश वे मुझे दे देवेंगे… साधु पवित्र माने जाते हैं और वे जो कुछ दे सकें, दे देवें. स्वराज्य के लिए यह सहायक होगा.’

गांधीजी के इस भाषण का अंग्रेज़ी अनुवाद लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश राजकीय अभिलेखागार में संरक्षित है, जो तत्कालीन गोपनीय श्रेणी के अभिलेखों में से एक है. इस भाषण से पहले वे फ़ैज़ाबाद की सभा में दक्षिण अफ्रीका में अपने सत्याग्रह पर प्रकाश डालकर लोगों से अंग्रेज़ी सरकार से शांतिपूर्वक असहयोग करने, विदेशी वस्त्रों को त्यागने, सरकारी सहायताप्राप्त विद्यालयों का बहिष्कार करने और चरखा चलाने व सूत कातने का आह्वान कर चुके थे. अयोध्या की सभा में उन्होंने यह कहकर इस आह्वान को नहीं दोहराया था कि आज मैं उस विषय पर नहीं बोलना चाहता जिस पर कल रात बोला था.

§§§ 3 §§§

1929 में वे अपने हरिजन फंड के लिए धन जुटाने के सिलसिले में एक बार फिर अपने राम की राजधानी आए. फ़ैज़ाबाद शहर के मोतीबाग में हुई सभा में उन्हें उक्त फंड के लिए चांदी की एक अंगूठी प्राप्त हुई तो वे वहीं उसकी नीलामी कराने लगे.

ज़्यादा ऊंची बोली लगे, इसके लिए उन्होंने घोषणा कर दी कि जो भी वह अंगूठी लेगा, उसे अपने हाथ से पहना देंगे. एक सज्जन ने 50 रुपये की बोली लगाई और नीलामी उन्हीं के नाम पर ख़त्म हो गई.

तब वायदे के मुताबिक उन्होंने वह अंगूठी उन्हें पहना दी. सज्जन के पास 100 रुपये का नोट था. उन्होंने उसे गांधीजी को दिया और बाकी के पचास रुपये वापस पाने के लिए वहीं खड़े रहे.

मगर गांधीजी ने उन्हें यह कहकर लाजवाब कर दिया कि हम तो बनिया हैं, हाथ आए हुए धन को वापस नहीं करते. वह दान का हो तब तो और भी नहीं. इस पर उपस्थित लोग हंस पड़े और सज्जन उन्हें प्रणाम करके ख़ुशी-ख़ुशी लौट गए.

इस यात्रा में गांधीजी धीरेंद्र भाई मजूमदार द्वारा अकबरपुर में स्थापित देश के पहले गांधी आश्रम भी गए थे. वहां ‘पाप से घृणा करो पापी से नहीं’ वाला अपना बहुप्रचारित संदेश देते हुए अंग्रेज पादरी स्वीटमैन के बंगले में ठहरे और आश्रम की सभा में लोगों से संगठित होने, विदेशी वस्त्रों का त्याग करने, चरखा चलाने, जमींदारों के ज़ुल्मों का अहिंसक प्रतिरोध करने, शराबबंदी के प्रति समर्पित होने और सरकारी स्कूलों का बहिष्कार करने को कहा.

फिर तो अवध के उत्पाती किसानों ने भी न सिर्फ़ हिंसा का रास्ता त्याग दिया बल्कि पुलिस के ज़ुल्मों व ज़्यादतियों को अविचलित रहकर सहना और गोरी सरकार को फौज़ की सहायता से अपने दमन का औचित्य सिद्ध करने के बहाने देने से मना कर दिया.

(कृष्ण प्रताप सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और फैज़ाबाद में रहते हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq