बोफोर्स मामला: आरोपियों के ख़िलाफ़ आरोप निरस्त करने को सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 31 मई, 2005 को अपने फैसले में 64 करोड़ रुपये की दलाली मामले में हिंदुजा बंधुओं सहित सारे आरोपियों को आरोप मुक्त कर दिया था.

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(फोटो साभार: विकिपीडिया)

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 31 मई, 2005 को अपने फैसले में 64 करोड़ रुपये की दलाली मामले में हिंदुजा बंधुओं सहित सारे आरोपियों को आरोप मुक्त कर दिया था.

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नई दिल्ली: केंद्रीय जांच ब्यूरो ने राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड में आरोपी व्यक्तियों के ख़िलाफ़ सारे आरोप निरस्त करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के 2005 के फैसले को शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी.

बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा याचिका दायर करना एक महत्वपूर्ण मोड़ है क्योंकि हाल ही में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्च न्यायालय के फैसले के ख़िलाफ़ 12 साल बाद अपील दायर नहीं करने की उसे सलाह दी थी.

हालांकि सूत्रों ने बताया कि गहन विचार विमर्श के बाद विधि अधिकारियों ने अपील दायर करने की हिमायत की क्योंकि सीबीआई ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिए ‘कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ और साक्ष्य’ उनके समक्ष पेश किए.

दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आरएस सोढी (अब सेवानिवृत्त) ने 31 मई, 2005 को अपने फैसले में 64 करोड़ रुपये की दलाली मामले में हिंदुजा बंधुओं सहित सारे आरोपियों को आरोप मुक्त कर दिया था.

इससे पहले, अटॉर्नी जनरल ने सीबीआई को सलाह दी थी कि उच्च न्यायालय के 2005 के फैसले को चुनौती देने वाली भाजपा नेता अजय अग्रवाल की याचिका में ही बतौर प्रतिवादी अपना मामला बनाये.

जांच एजेंसी द्वारा फैसला सुनाए जाने के 90 दिन के भीतर उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर करने में विफल रहने पर अजय अग्रवाल ने याचिका दायर की थी.

अग्रवाल, जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी को रायबरेली में चुनौती दी थी, लंबे समय से शीर्ष अदालत में इस मामले में सक्रिय हैं.

भारत और स्वीडन की हथियारों का निर्माण करने वाली एबी बोफोर्स के बीच सेना के लिए 155एमएम की 400 होवित्ज़र तोपों की आपूर्ति के बारे में 24 मार्च, 1986 में 1437 करोड़ रुपये का क़रार हुआ था.

इसके कुछ समय बाद ही 16 अप्रैल, 1987 को स्वीडिश रेडियो ने दावा किया था कि इस सौदे में बोफोर्स कंपनी ने भारत के शीर्ष राजनीतिकों और रक्षाकार्मिकों को दलाली दी.

इस मामले में 22 जनवरी, 1990 को केंद्रीय जांच ब्यूरो ने आपराधिक साज़िश, धोखाधड़ी और जालसाज़ी के आरोप में भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निवारण क़ानून के तहत एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्दबो, कथित बिचौलिये विन चड्ढा और हिंदुजा बंधुओं के ख़िलाफ़ प्राथिमकी दर्ज की थी.

इस मामले में सीबीआई ने 22 अक्टूबर, 1999 को चड्ढा, ओतावियो क्वोत्रोची, तत्कालीन रक्षा सचिव एसके भटनागर, मार्टिन आर्दबो और बोफोर्स कंपनी के ख़िलाफ़ पहला आरोप पत्र दायर किया था. इसके बाद, नौ अक्टूबर, 2000 को हिंदुजा बंधुओं के ख़िलाफ़ पूरक आरोप पत्र दायर किया गया.

दिल्ली में विशेष सीबीआई अदालत ने चार मार्च, 2011 को क्वोत्रोची को यह कहते हुए आरोप मुक्त कर दिया था कि देश उसके प्रत्यर्पण पर मेहनत से अर्जित राशि ख़र्च करना बर्दाश्त नहीं कर सकता क्योंकि इस मामले में पहले ही 250 करोड़ रुपये ख़र्च हो चुके हैं.

क्वोत्रोची 29-30 जुलाई 1993 को देश से भाग गया ओर कभी भी मुक़दमे का सामना करने के लिए देश की अदालत में पेश नहीं हुआ. बाद में 13 जुलाई, 2013 को उसकी मृत्यु हो गई.

यह मामला लंबित होने के दौरान ही पूर्व रक्षा सचिव भटनागर और विन चड्ढा का भी निधन हो चुका है.

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