बाल विवाह पीड़िताओं ने पत्र से बताई व्यथा, हैदराबाद हाईकोर्ट ने पत्र को पीआईएल में बदला

हाईकोर्ट ने कहा कि उनके लिए कोई आश्रय गृह नहीं हैं इसलिए बाल विवाह की क़ैद से मुक्त होने के बाद भी वे अपने ससुराल जाने के लिए बाध्य होती हैं. जहां उन्हें हिंसा और अत्याचार सहना पड़ता है.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

हाईकोर्ट ने कहा कि उनके लिए कोई आश्रय गृह नहीं हैं इसलिए बाल विवाह की क़ैद से मुक्त होने के बाद भी वे अपने ससुराल जाने के लिए बाध्य होती हैं. जहां उन्हें हिंसा और अत्याचार सहना पड़ता है.

(फोटो: रॉयटर्स)
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हैदराबाद: बाल विवाह की शिकार 11 पीड़िताओं द्वारा हैदराबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे एक पत्र का संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया है. उक्त पत्र में अपनी आपबीती और तेलंगाना राज्य में बाल विवाह पीड़िताओं की बदहाली का जिक्र करते हुए उनके पुनर्वास के प्रयास करने के लिए कदम उठाने की गुजारिश की है.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बी. महालता और अन्य 10 पीड़िताओं (जिनकी उम्र 15 से 19 के बीच है) ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में कहा है कि बाल विवाह के कारण वे विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं, जिनमें कुछ तो गर्भ और प्रसव के दौरान मर जाती हैं. बाकी कम वजन के बच्चों को जन्म दे रही हैं, जिससे वे और उनके बच्चे हमेशा स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहते हैं.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पत्र को जनहित याचिका में तब्दील करते हुए हाईकोर्ट ने कहा, ‘बहुत सी लड़कियां कच्ची उम्र में ही गर्भ धारण कर रही हैं. वे या तो गर्भवती होने के दौरान मर जाती हैं या फिर प्रसव के दौरान. सौभाग्य से वे बच भी जाती हैं तो उन्हें व उनके बच्चों को स्वास्थ्य समस्याएं जकड़े रहती हैं, जिससे उनका शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘बहुत सी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभ पीड़िताओं को उपलब्ध ही नहीं हैं. राष्ट्रीय स्तर पर भी बनाई गई योजनाओं का लाभ केवल 18 प्रतिशत पीड़िताओं तक ही पहुंच पाता है. उनके लिए कोई आश्रय गृह नहीं हैं इसलिए बाल विवाह की कैद से मुक्त होने के बाद भी वे अपने ससुराल जाने के लिए ही बाध्य होती हैं. जहां उन्हें विभिन्न कष्ट, हिंसा और अत्याचारों को सहना पड़ता है. उनके माता पिता भी उन हालातों में नहीं होते कि उनके लिए कानूनी लड़ाई लड़कर उन्हें इन योजनाओं का लाभ दिलाना सुनिश्चित कर सकें. अगर कोई अदालत जाता भी है तो उसके लिए बार-बार चक्कर लगाना कठिन होता है. नतीजतन वे हताश हो जाते हैं.’

पीड़ितों द्वारा मांग की गई है कि सभी शैक्षणिक संस्थानों में बाल विवाह पीड़िताओं के लिए 5 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जाएं. विशिष्ट कौशल प्रदान करने वाले केंद्र शुरू किए जाएं और पीड़ितों की तब तक आर्थिक सहायता करनी चाहिए जब तक कि वे इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए स्वरोजगार न पा लें. सार्वजनिक वितरण प्रणाली और एकीकृत बाल विकास योजनाओं का लाभ भी पीड़िताओं को पहुंचाया जाए. मामले पर इसी हफ्ते सुनवाई होने की संभावना है.