फेसबुकियों ने भी पेश किया एक्ज़िट पोलडांस

चुनाव संपन्न होने के बाद चैनलों और एजेंसियों ने एक्ज़िट पोल सर्वे पेश किए तो फेस​बुकिए क्यों पीछे रहते, उन्होंने भी गहन मंथन किया.

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चुनाव संपन्न होने के बाद चैनलों और एजेंसियों ने एक्ज़िट पोल सर्वे पेश किए तो फेसबुकिए क्यों पीछे रहते, उन्होंने भी गहन मंथन किया.

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पत्रकार दिलीप मंडल की फेसबुक वॉल से

उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों का चुनाव संपन्न हो गया है. 11 तारीख़ को नतीजे आ जाएंगे. इसके पहले एक्ज़िट पोल सर्वे के नतीजे भी घोषित हो गए हैं. जिस पार्टी को एक्ज़िट पोल में फ़ायदा दिख रहा है, उसके समर्थक ख़ुश हैं, बाक़ी पार्टियों के समर्थक एक्ज़िट पोल वालों का मज़ाक उड़ा रहे हैं. इसके अलावा जनता भी अपना-अपना सर्वे पेश करने में पीछे नहीं है. फेसबुक पर मौजूद हर एक यूजर ने चुनाव से जुड़ा कुछ न कुछ ज़रूर लिखा है.

ऐसे लोगों की संख्या भी पर्याप्त दिख रही है जो यह एक्जिट पोल सर्वे को फ़र्ज़ी और मैनेज किया हुआ मानते हैं. मोहित कुमार पांडेय ने लिखा है, एक्जिट पोल और तोतों की ज़ुबान से सरकार बनते देख कर तो लगता है कि ‘ये मीडिया बिक गई है’. इसके अलावा #ExitPollDance हैशटैग के साथ कई दर्जन यूजर्स ने पोस्ट डालते हुए लिखा है, ‘…और इस तरह पूरे ढाई दिन के लिए यूपी में भाजपा की सरकार बन गई..!’

पोस्ट पोल गठबंधन की चर्चाओं पर पृथ्वी पाल सिंह ने लिखा है, ‘बसपाई किसी कीमत पर भाजपा के साथ आने को तैयार नहीँ होगे. ये कांग्रेस से सपा से भीख मांग लेंगे. ये ऐंठन है. भाजपा स्पष्ट बहुमत पर यूपी में सत्ता संभालेगी, ये तय है. मोहताजी थोड़ी है.’

पत्रकार आशीष अवस्थी ने लिखा, ‘प्रदेश के यादवों ने अपनी अपनी लाठियों को तेल पिलाना शुरू किया. जय अखिलेश जय गठबंधन. लिख लीजिए, फिर कह रहा हूं सरकार गठबंधन बनाएगा. हो सकता है कि उत्तर प्रदेश बार फिर वो सियासी इबारत गढ़े जिससे भाजपा गिरोह गटर में चला जाएगा. अखिलेश जी महत्वपूर्ण संकेत दे चुके हैं. मित्र और सहाफी शिवम विज से भी यही बात मुख्यमंत्री ने कही है. फिलहाल स्थिति सुखदायी लग रही है.’

पेशे से इंजीनियर दीपक चौबे का मानना है, ‘एग्जिट पोल उस पीपल वाले भूत की तरह है जिसको मानता तो कोई नहीं है,पर पेड़ के पास पहुंचते ही हनुमान चालीसा सब रटते हैं.’

मोहम्मद अफ़ज़ल ख़ान का कहना है, ‘चुनाव परिणाम से प्रभु राम व्यथित हैं. बीजेपी जीती तो पांच साल उन्हें और मंदिर को भूल जाएगी. हारी तो कल से ही भक्तों को फिर उल्लू बनाएगी!’

नाज़िश अंसारी ने लिखा, ‘ये टीवी वाले तो सतवांसा बच्चा पैदा करवा लें. नौ महीने (11 मार्च) तक का सब्र नहीं है इनमें… इसीलिए टीवी एक ईडियट बॉक्स से ज़्यादा कुछ नहीं है.’

सुनील यादव ने तंज किया, ‘एक्जिट पोल में बीजेपी जीत गई. 11 तारीख को बसपा की सीटें सब एक्जिट पोल उठा के फेंक देंगी.’

पत्रकार अरविंद शेष ने पोल सर्वे की तुलना पंडे से करते हुए लिखा, ‘चुनावी सर्वेक्षणों और एक्जिट पोल की औकात मेरी नज़र में ठीक उस ठग पंडे या धूर्त बाबा के फ़र्ज़ीवाड़े के बराबर है जो भोले-भाले लोगों को यह धमकी देता है कि मुझसे यज्ञ कराओ, अपनी किडनी बेच के मुझे दक्षिणा दो, नहीं तो प्रलय आ जाएगा… तुम्हारा नाश हो जाएगा..!’

अमित सिंह विराट का कहना था, ‘दिल है कि सर्वे को मानता ही नहीं.’ कुमार मुकुल ने सलाह दी कि ‘क्यों ना एग्जिट पोल पर ही सरकार बना दी जाए. जनता का एक दिन क्यों बर्बाद हो!’ जोगिंदर रावत ने मज़ाक उड़ाते हुए लिखा, ‘सातवें चरण में भाजपा ने मात्र 32 सीट पर चुनाव लड़ा है, एग्ज़िट पोल में 40 जीत रही है!’

वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ शुक्ल ने पोल सर्वे छाप लोकतंत्र को आड़े हाथ लेते हुए लिखा, ‘सबको पता है कि एक्जिट पोल नतीजा नहीं होता पर देखिए झूठ की मायावी दुनिया भी कितनी लुभावनी है कि कल शाम से ही सरकार भी बनने लगी और मुख्यमंत्री भी तय होने लगे. इससे तो अच्छा राजतंत्र था जब हमें पहले से पता होता था कि राजा मरा तो युवराज ही राजा बनेगा.’

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ट्विटर पर शेयर हुई एक तस्वीर.

इसके अलावा कई गंभीर टिप्पणियां भी आपको देखने को मिल सकती हैं. पत्रकार अजय प्रकाश ने लिखा, ‘मैं आख़िरी के दो चुनावों से पहले तक मानता रहा कि उत्तर प्रदेश में बसपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी. दूसरे पर एसपी और तीसरे पर बीजेपी होगी. लेकिन बाद के 2 फेज में भाजपा सांप्रदायिक माहौल बनाने में कामयाब रही. तीन दिन के धरने और क़ब्रिस्तान-श्मशान का असर हुआ और भाजपा तीसरे से दूसरे पर आ गई. लेकिन बसपा अपनी जगह बनी रही. सरकार बनाने को लेकर अनुमान है कि सबसे पहले बसपा-कांग्रेस-रालोद. इससे काम नहीं चलेगा तो सपा भी साथ में. लेकिन भाजपा को इतने सीटें नहीं आएंगी कि वह सरकार बना सके. यही समझदारी मेरी अभी भी है. ऐसे में कल अगर मेरा अनुमान ग़लत साबित होता है और भाजपा को बहुमत मिलता है तो मैं यह मान लूंगा कि अस्सी और नब्बे के दशक में जो सामाजिक बराबरी की मांग के साथ जाति आधारित राजनीतिक उभार हुआ था, अस्मितावादी अंदोलन उठे थे, वह अब अपना समय पूरा कर धार्मिक और सांप्रदायिक उभार के भागीदार बन चुके हैं. ज़ाहिर तौर पर हम जैसे लोगों के लिए उत्तर प्रदेश चुनाव परिणाम एक बड़ी शिक्षा का जरिया बनेगा. एक नई समझदारी के शुरुआत के लिए भी और पुराने को नए ढंग से समझने के लिए भी.’

अनिल अविश्रांत की टिप्पणी यह दिखाती है कि जनता को सियासत की ख़राब छवि से भी कितनी उम्मीदें हैं. उन्होंने लिखा, ‘सपा-बसपा के शीर्ष नेतृत्व में जो भी समझदारी बने, पर कम-से-कम इन दलों के समर्थकों में यह समझदारी बनती दिख रही है कि अब पिछड़े और दलित की राजनीति करने वाले इन दलों को एक साथ आ जाना चाहिए. और यह गठजोड़ सिर्फ़ चुनावी लाभ अथवा सत्ता की प्राप्ति तक ही सीमित न रहे बल्कि दोनों मिलकर एक नया समाज-विमर्श पैदा करें. शीर्ष नेतृत्व में एका होने पर समर्थकों तक एक सकारात्मक संदेश जाएगा और एक साझा मोर्चा तैयार किया जा सकता है जो राजनीति के कार्पोरेटीकरण, निजीकरण और समाज से लेकर मनोरंजन और मीडिया तक फैल रहे अंधविश्वास, कुतर्क और विभेदमूलक मूल्यों के ख़िलाफ़ खड़ा हो. बड़ी सफाई से जनता के वास्तविक मुद्दे हाशिये पर विस्थापित कर दिए गए हैं जिन्हें इन राजनीतिक दलों द्वारा विमर्श के केंद्र में लाया जाए. उत्तर प्रदेश से इसकी शुरूआत की जा सकती है. इन दलों के लिए इससे बेहतर समय फिर नहीं आएगा.’

पत्रकार दिलीप मंडल ने एबीपी की एक हेडलाइन का स्क्रीन शॉट लगाकर लिखा है, ‘सारे के सारे एक्ज़िट पोल बता रहे हैं कि यूपी में ओबीसी बंट गया. दलित बंट गया. मुसलमान बंट गया. इनमें कोई भी सिर्फ़ जाति या धर्म के आधार पर वोट नहीं डालते. लेकिन इन दो जातियों (ब्राह्मण-राजपूत) ने एकजुट होकर बीजेपी के लिए बटन दबाया. यह हैं भारत की सबसे जातिवादी जातियां जो सांप्रदायिक भी हैं. देश की दो सबसे सांप्रदायिक जातियों का पता चल गया है. ये है बीजेपी का कोर वोट बैंक. प्रगतिशील सवर्णों को इन जातियों के बीच समाज सुधार का काम करना चाहिए.’

विनय प्रकाश ने लिखा है, ‘आप लगतार यह कह रहे हैं कि चैनल पैसा खाकर बीजेपी के पक्ष में सर्वे दिखा रहे हैं. मतदान के बाद भी ऐसा करने के लिए पैसा कौन देगा? जब कल परिणाम आने ही वाला है तो इस सर्वे को फर्जी घोषित करने की इतनी जल्दी क्यों है? यह सर्वे सिर्फ़ एक जमात के काम की चीज़ है वो हैं सटोरिये. तो आपको सेकुलर सटोरियों की इतनी फ़िक्र है. चैनलों को बेहूदा साबित करने के चक्कर में ख़ुद क्या कर रहे हैं? जाने भी दीजिए साहब, क्यों फ़र्ज़ी की झांव-झांव में फंसे हैं. वहां सेकुलर सरकार ने एक लड़के को मार डाला है. वो जीत भी गए तो हासिल क्या है?’

पंकज मिश्रा का कहना था, ‘चार-चार सौ सीट तो सबकी आ रही है, बाक़ी तीन में से दो जो ले जाएगा सरकार वही बनाएगा…झगड़ा तो बस उस दो सीट का है…’ सुशील यति ने सूचना दी, ‘मिठाई के ऑर्डर को लेकर मंथन शुरू.’ हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया है कि यह मंथन कौन कर रहा है. वह नतीजे के बाद पता चलेगा.

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