सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के कार्यरत जज को उसके पद से हटाना आसान नहीं है

संविधान में किसी कार्यरत जज को उसके पद से हटाए जाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है. संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति ही उन्हें हटा सकते हैं.

संविधान में किसी कार्यरत जज को उसके पद से हटाए जाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है. संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति ही उन्हें हटा सकते हैं.

CJI Dipak Misra
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा (फोटो साभार: ट्विटर)

संविधान में उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाने की बेहद जटिल प्रक्रिया है. इन अदालतों के न्यायाधीशों को सिर्फ साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ही हटाया जा सकता है.

संविधान के अनुच्छेद 124 (4) और न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 और उससे संबंधित नियमावली में इस बारे में समूची प्रक्रिया की विस्तार से चर्चा है.

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में है , जबकि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के प्रावधान का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 217 (1) (ख) में है.

संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में कहा गया है, ‘उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर उसे हटाए जाने के लिए संसद‌ के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्‍या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है.’

उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिये प्रस्ताव लोकसभा के कम से कम 100 सदस्यों या राज्यसभा के 50 सदस्यों द्वारा पेश किया जाना चाहिये. अगर प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति स्वीकार कर लेते हैं तो वे एक जांच समिति का गठन करते हैं.

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क्रेडिट: PRS India

इस जांच समिति में तीन सदस्य होते हैं- उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और कोई जाने-माने विधिवेत्ता इसके सदस्य होते हैं. यह समिति आरोप तय करती है और संबंधित न्यायाधीश को लिखित में जवाब देने को कहा जाता है.

न्यायाधीश को गवाहों का परीक्षण करने का भी अधिकार होता है. जांच के बाद समिति इस बात पर फैसला करती है कि आरोप सही हैं या नहीं और तब वह आखिरकार अपनी रिपोर्ट सौंपती है.

अगर जांच समिति न्यायाधीश को दोषी नहीं पाती है तो आगे कोई कार्रवाई नहीं की जाती है. अगर वे उसे दोषी पाते हैं तो संसद के जिस सदन ने प्रस्ताव पेश किया था, वह प्रस्ताव को आगे बढ़ाने पर विचार कर सकती है.

प्रस्ताव पर तब चर्चा होती है और न्यायाधीश या उनके प्रतिनिधि को अपना पक्ष रखने का अधिकार होता है. उसके बाद प्रस्ताव पर मतदान होता है. अगर प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्य संख्‍या के बहुमत का तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत का समर्थन मिल जाता है तो उसे पारित मान लिया जाता है.

यह प्रक्रिया फिर दूसरे सदन में भी दोहराई जाती है. उसके बाद सदन राष्ट्रपति को समावेदन भेजकर उनसे न्यायाधीश को पद से हटाने को कहता है.