पाकिस्तान में हिंदू मैरिज बिल को मिला कानूनी दर्जा

राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं के विवाह को क़ानूनी मान्यता देने वाले हिंदू मैरिज बिल को सहमति दे दी है. इस क़ानून का मकसद हिंदू विवाहों को क़ानूनी मान्यता देने के अलावा महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना है.

A bride and groom sit together during a mass marriage ceremony held in Karachi January 2, 2015. REUTERS/Athar Hussain/Files

राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं के विवाह को क़ानूनी मान्यता देने वाले हिंदू मैरिज बिल को सहमति दे दी है. इस क़ानून का मकसद हिंदू विवाहों को क़ानूनी मान्यता देने के अलावा महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना है.

(फोटो: रॉयटर्स/अतहर हुसैन)

प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के कार्यालय से जारी आदेश के अनुसार राष्ट्रपति ने इस बिल को क़ानून का दर्जा देने के लिए सहमति दे दी है. पाकिस्तान में हिंदुओं के विवाह अब इस क़ानून के अनुसार ही मान्य होंगे. गौरतलब है कि पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी वहां की कुल आबादी का तकरीबन 1.6 प्रतिशत है.

इस क़ानून के तहत पाकिस्तानी हिंदू महिलाओं को पहली बार उनके वैवाहिक अधिकार मिल सकेंगे. इस क़ानून का एक बड़ा फायदा यह है कि इससे हिंदू महिलाओं के ज़बर्दस्ती करवाए जाने वाले धर्मांतरण पर रोक लगेगी. यह पाकिस्तान में लागू किया गया पहला पर्सनल लॉ है. यह क़ानून सिंध को छोड़कर पाकिस्तान के सभी प्रांतों में लागू होगा. सिंध में पहले से ही हिंदू विवाह अधिनियम लागू है.

इस क़ानून में लड़के व लड़की दोनों के लिए विवाह की उम्र 18 साल तय की गई है. इस नियम के अनुसार हिंदू अपने रीति रिवाज़ों के अनुसार विवाह कर सकते हैं और शादी के 15 दिन के अंदर उन्हें इसका पंजीकरण करवाना होगा. पंजीकरण के बाद उन्हें मुस्लिमों को दिए जाने वाले निक़ाहनामे की तरह एक दस्तावेज दिया जाएगा.

इस क़ानून में विच्छेद की स्थिति के लिए भी नियम दिए गए हैं. अगर पति-पत्नी एक साल से अधिक समय से साथ नहीं रह रहे हैं या आगे साथ नहीं रहना चाहते तो वे आपसी समझौते के आधार पर शादी रद्द कर सकते हैं. भारत में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह-विच्छेद के लिए भी एक निश्चित समय सीमा तक साथ रहने की शर्त दी जाती है.

इसके अलावा हिंदू विधवा को पति की मृत्यु के 6 महीने बाद ही दूसरा विवाह करने का अधिकार दिया गया है. ज्ञात हो कि भारत के हिंदू विवाह अधिनियम में विधवा पुनर्विवाह से संबंधित कोई समयसीमा या नियम नहीं है. शादी के पंजीकरण की वजह से हिंदू विधवाओं और उनके बच्चों को सरकार द्वारा विधवाओं और उनके बच्चों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का लाभ मिल सकेगा.

यह क़ानून को अच्छी तरह से काम करे इसके लिए पाकिस्तान सरकार को हिंदू आबादी वाले इलाकों में मैरिज रजिस्ट्रार की नियुक्तियां करने की ज़िम्मेदारी भी दी गई है. इस क़ानून के आने से पहले हुई हिंदू शादियों को भी वैध माना जाएगा, साथ ही इस क़ानून के तहत की गई शिकायत फैमिली कोर्ट में ही सुनी जाएगी.

यह बिल 9 मार्च को संसद में पास कर दिया गया था, जिसके बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था. इस बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने कहा कि उनकी सरकार पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों को समान अधिकार दिलाने के लिए हमेशा काम करती रही है. उन्होंने अल्पसंख्यकों के बारे में बोलते हुए कहा कि वे लोग (हिंदू) भी उतने ही मुल्कपरस्त हैं जितने बाकी किसी मज़हब के लोग, ऐसे में उनको समान सुरक्षा देना सरकार की ज़िम्मेदारी है.

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