‘अडॉप्ट अ हैरिटेज’ में शामिल होंगे और भी स्मारक, विरोध में उतरे इतिहासकार और गोवा सरकार

केंद्रीय पर्यटन मंत्री केजे अलफोंस ने कहा कि संप्रग सरकार ने भी हुमायूं का मकबरा, ताजमहल और जंतर-मंतर सहित पांच स्मारक निजी इकाईयों को रखरखाव के लिए सौंपे थे.

केंद्रीय पर्यटन मंत्री केजे अलफोंस ने कहा कि संप्रग सरकार ने भी हुमायूं का मकबरा, ताजमहल और जंतर-मंतर सहित पांच स्मारक निजी इकाईयों को रखरखाव के लिए सौंपे थे.

Lal Quila Red Forte Reuters
लाल क़िला (फोटो साभार: यूट्यूब)

नई दिल्ली: लाल किले के रखरखाव की जिम्मेदारी एक निजी कंपनी के हाथों में देने के फैसले को लेकर हो रही सरकार की आलोचनाओं से बेपरवाह केंद्रीय पर्यटन मंत्री केजे अल्फोंस ने बुधवार को कहा कि उनका मंत्रालय और भी स्मारकों को निजी रखरखाव के दायरे में लाने के लिए ‘अडॉप्ट अ हैरिटेज’ (धरोहर स्थल गोद लेने) की परियोजना का विस्तार करेगा.

वहीं इतिहासकारों, संरक्षणकर्ताओं और कलाकारों ने सीमेंट कंपनी डालमिया भारत समूह को लाल किले के रखरखाव की जिम्मेदारी सौंपने का विरोध करते हुए कहा कि कंपनी के पास वास्तुकला संबंधी संरक्षण या धरोहर प्रबंधन के काम को लेकर कोई अनुभव एवं साख नहीं है.

अल्फोंस ने साथ ही इस पहल का विरोध करने के लिए कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि विपक्षी दल की याद्दाश्त कमजोर है और वे भूल रहे हैं कि हुमायूं के मकबरे के रखरखाव एवं संचालन के लिए उन्होंने भी एक निजी इकाई की सेवा ली थी.

पर्यटन मंत्री ने कहा कि वे डालमिया भारत समूह द्वारा लाल किला गोद लेने से जुड़े विवाद को लेकर चिंतित नहीं हैं और उन खबरों को खारिज कर दिया कि 17वीं सदी का स्मारक योजना के तहत कॉरपोरेट घराने को 25 करोड़ रुपये में सौंपा जा रहा है.

अल्फोंस ने कहा, ‘सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए सरकार द्वारा लिया गया यह एक कार्यकारी फैसला है. मौजूदा परियोजना में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. हम और भी स्थलों एवं स्मारकों को शामिल करने के लिए परियोजना का विस्तार करेंगे.’

अल्फोंस ने ‘अडॉप्ट अ हैरिटेज’ परियोजना को स्पष्ट करते हुए कहा कि इसका लक्ष्य पर्यटकों की सुविधाओं के विकास के लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों एवं लोगों को धरोहर स्थल एवं स्मारक और दूसरे पर्यटन स्थल सौंपना है.

उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार के कार्यकाल में हुमायूं का मकबरा रखरखाव एवं संचालन के लिए आगा खान फाउंडेशन को दिया गया था जबकि सरकार के राष्ट्रीय संस्कृति कोष (एनसीएफ) के जरिये कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के तहत इंडियन होटल्स कंपनी (आईटीसी) को ताजमहल तथा एपीजे ग्रुप ऑफ होटल्स को जंतर मंतर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

अल्फोंस ने कहा, ‘कांग्रेस की याद्दाश्त कमजोर है और संप्रग सरकार ने निजी इकाइयों को पांच स्मारक दिए थे. वह एक शानदार प्रयोग था लेकिन उसमें कुछ समस्याएं थीं. हमने नये सिरे से पहल की है और सुनिश्चित कर रहे हैं कि यह सफल हो.’

उन्होंने कहा कि नई योजना के तहत कॉरपोरेट घरानों को पैसे खर्च करने होंगे और सरकार कोई धन मुहैया नहीं कराएगी. मंत्री ने कहा, ‘उन्हें केवल ब्रांडिंग का फायदा मिल रहा है और उसके लिए भी उन्हें हमारी मंजूरी की जरूरत होगी.’

इसी बीच तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने उन खबरों को खारिज कर दिया कि उनके नेतृत्व वाली संसदीय स्थायी समिति ने लाल किला कॉरपोरेट घराने को गोद देने से जुड़े पर्यटन मंत्रालय के प्रस्ताव को मंजूरी दी. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी सरकार का फैसला तत्काल रद्द करने की मांग करती है.

पर्यटन मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, परियोजना की शुरूआत उन 93 स्मारकों से होगी जहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) टिकट वगैरह का काम देखता है और देश के दूसरे प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक स्थलों को भी इसके दायरे में लाया जाएगा.

अल्फोंस ने कहा, ‘समस्या यह है कि विपक्षी दल कुछ पढ़ते नहीं है. उन्हें गलत सूचना मिली है. सहमति ज्ञापन से पूरी तरह साफ है कि कॉरपोरेट घराने स्मारकों को हाथ नहीं लगाएंगे. वे स्थल के आसपास मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराएंगे और उनका रखरखाव करेंगे ताकि हम आगंतुकों की संख्या बढ़ा सकें.’

इसी बीच इतिहासकारों, संरक्षणकर्ताओं और कलाकारों ने समझौते का विरोध किया है. इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि नई योजना में खामियां हैं.

उन्होंने कहा, ‘सबसे पहले अगर आपको धरोहर स्मारकों को गोद देने की योजना लागू करनी थी तो कम मशहूर ढांचे के साथ यह प्रयोग करना चाहिए था. न कि लाल किले के साथ. यह योजना की बुनियादी खामी है.’

हबीब ने कहा कि यह फैसला लाल किले को किसी निजी कंपनी को बेचने की तरह है. उन्होंने कहा, ‘मेरी चिंता पर्यटकों को ऑडियो बुक एवं अन्य के जरिये मुहैया कराई जाने वाली व्याख्या के तरीके को लेकर है.’

कलाकार विवान सुंदरम, इतिहासकार मुशीरुल हसन और रंगमंच कार्यकर्ता एमके रैना सहित अन्य के हस्ताक्षर वाले सहमति पत्र के एक बयान में सभी ने अपनी चिंताओं को जाहिर करते हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस का उल्लेख किया गया. उन्होंने समझौता रद्द करने की मांग की.

बयान में कहा गया, ‘इस समय सत्ता में बने हुए लोगों का हमारी विरासत को लेकर एक अरूचिकर अतीत रहा है. उन्हें तब कोई पछतावा नहीं हुआ जब उनके समर्थकों ने महज एक मस्जिद होने के कारण वास्तुकला के लिहाज से महत्वपूर्ण 450 साल पुराने एक स्मारक को नष्ट कर दिया था.’

इसमें कहा गया, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ताजमहल एवं दिल्ली के लाल किला सहित प्रमुख मध्ययुगीन स्मारकों को हिंदू ढांचे घोषित करने के मुद्दे को बढ़ावा देता रहा है.’

पेशेवर भारतीय इतिहासकारों के सबसे बड़े संगठन भारतीय इतिहास कांग्रेस (आईएचसी) ने समझौते की शर्तों को लेकर चिंता जताई. उसने एक बयान में कहा कि सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि कंपनी के पास स्मारकों के रखरखाव, संरक्षण, समझ आदि को लेकर कोई अनुभव नहीं है.

इसमें कहा गया, ‘इस बात को लेकर आशंका की पर्याप्त गुंजाइश है कि पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए इस परिसर में किसी विशिष्ट ढांचे को लेकर यह किसी गलत या अप्रमाणित व्याख्या को प्रचलित कर सकता है. यदि इस प्रकार के दावे एक बार चल निकले, खासकर जबकि वह सांप्रदायिक स्वरूप के हों तो, उससे निजात पाना बहुत मुश्किल हो जाता है.’

गोद देने के लिए राज्य के स्मारकों को सूची में शामिल करने को लेकर गोवा सरकार नाराज

वहीं, गोवा की भाजपा सरकार ने भी अपने कुछ स्मारकों को स्थानीय प्राधिकरणों से परामर्श किए बगैर केंद्र द्वारा गोद दिए जाने के कदम पर ऐतराज जताया है.

राज्य के मंत्रियों ने केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की इस योजना पर ऐतराज जताया है. राज्य के पुरातत्व मंत्री विजय सरदेसाई, पर्यटन मंत्री मनोहर अजगांवकर और ऊर्जा मंत्री पांडुरंग मडकैकर ने अापत्ति दर्ज कराई है.

सरदेसाई ने दावा किया है कि इस योजना के तहत गोवा में छह स्मारकों को गोद देने के लिए सूची में शामिल किया गया है. उन्होंने कहा कि गोवा सरकार को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.

वहीं, अजगांवकर ने दावा किया कि उनका विभाग पर्यटन को बढ़ावा देता है लेकिन उसे इस मुद्दे पर पूरी तरह से अंधेरे में रखा गया. साथ ही, मडकैकर ने कहा कि इस सिलसिले में प्रस्ताव लाने से पहले स्थानीय लोगों को विश्वास में नहीं लिया गया.

गौरतलब है कि पिछले महीने केंद्र सरकार ने दिल्ली स्थित ऐतिहासिक स्मारक लाल किला को रखरखाव के लिए डालमिया भारत ग्रुप को गोद दिया था.

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