उत्तर प्रदेश के सीतापुर में कुत्तों ने एक हफ्ते में ली छह बच्चों की जान

आदमखोर कुत्तों के हमलों के चलते सीतापुर में पिछले छह महीने में कुल 12 बच्चों की मौत हो चुकी है. पशु विज्ञानियों का कहना है कि अपनी पसंद का खाना न मिलने से आदमखोर बन रहे हैं कुत्ते.

प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: रायटर्स)

आदमखोर कुत्तों के हमलों के चलते सीतापुर में पिछले छह महीने में कुल 12 बच्चों की मौत हो चुकी है. पशु विज्ञानियों का कहना है कि अपनी पसंद का खाना न मिलने से आदमखोर बन रहे हैं कुत्ते.

प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: रायटर्स)
प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: रॉयटर्स)

सीतापुर: उत्तर प्रदेश के सीतापुर में आदमखोर कुत्तों ने एक और बच्चे को अपना शिकार बनाया है. पुलिस सूत्रों ने रविवार को बताया कि तालगांव थाना क्षेत्र में बकरियां चराने गए 10 साल के कासिम पर कुत्तों के झुंड ने हमला कर दिया और उसे नोंच डाला, जिससे उसकी मौत हो गई. पिछले एक हफ्ते के दौरान आदमखोर कुत्तों के हमलों में हुई यह छठी मौत है.

उन्होंने बताया कि बिहारीपुर गांव के पास भी कुत्तों ने इरफान नाम के एक लड़के पर हमला कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया.

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले हफ्ते की पहली घटना एक मई की है जब टिकरिया में 11 वर्षीया शामली बाग़ में आम बीनने गई थी और उस पर कुत्तों ने हमला कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई.

इसी दिन गुरपालिया में 12 वर्षीया ख़ालिद आम बीनने गया था और उस पर कुत्तों के झुंड ने हमला कर दिया. ख़ालिद की मौके पर ही मौत हो गई.

कोलिया में अपने ननिहाल आई 10 वर्षीया कोमल सहेलियों के साथ खेल रहे थी. उसे भी कुत्तों ने हमला कर मार डाला.

चार मई को खैराबाद के मासूनपुर गांव में सात वर्षीय गीता और शहर कोतवाली के बुढ़ानपुर गांव में 10 वर्षीय वीरेंद्र भी आदमखोर कुत्तों के शिकार बन गए.

पिछले छह महीने में 12 बच्चों को इन आदमखोर कुत्तों ने मार डाला है.

पांच मई को भगौतीपुर गांव के 10 वर्षीय कासिम पर भी कुत्तों के झुंड ने हमला कर दिया. उसकी भी मौत हो गई.

जिलाधिकारी शीतल वर्मा ने जिले में आतंक का पर्याय बने इन कुत्तों को पकड़ने के लिए लखनऊ और दिल्ली नगर निगमों से मदद मांगी है. उन्होंने बताया कि अब तक 30 कुत्तों को पकड़ा जा चुका है.

अमर उजाला से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘मथुरा की टीम करीब 30 आवारा और आदमखोर कुत्तों को पकड़ चुकी है. इन्हें जंगल में छुड़वा दिया गया है. कुत्तों को पकड़ने के लिए लखनऊ व दिल्ली से भी टीमें बुलाई गई हैं.’

इस बीच, सीतापुर में कुत्तों द्वारा बच्चों पर हमला कर उन्हें खाने की घटनाओं को प्रदेश सरकार ने गंभीरता से लिया है. जिले की प्रभारी मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने सीतापुर पहुंचकर इस सम्बंध में प्रशासन द्वारा उठाए जा रहे कदमों की समीक्षा की.

प्रभारी मंत्री ने खैराबाद में स्थानीय ग्राम प्रधानों, नगर पालिका अध्यक्ष, मीडिया तथा गठित टीमों के अधिकारियों एवं जिला प्रशासन के साथ बैठक की. उन्होंने अधिकारियों को इस समस्या से शीघ्र निपटने के निर्देश दिए.

समाजवादी पार्टी नेता दिग्विजय सिंह देव ने ‘द वायर’ से बात करते हुए बताया, ‘मैंने इसी संदर्भ में पुलिस और प्रशासन को नियमित पत्र लिखकर अवगत कराया कि इस समस्या का निवारण हो, लेकिन पिछले छह महीने से सिर्फ कमेटी गठित हो रही हैं, कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है. सरकार इस मामले को हल्के में ले रही है.

दिग्विजय आगे बताते हैं, ‘कुत्तों के आतंक के चलते लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे हैं और यहां तक कि अपने ही गांव में लोग कैदी की तरह रह रहे हैं, 12 मौतों के बाद भी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.’

दिग्विजय बच्चों की सुरक्षा और मृतकों के परिजनों को उचित मुआवजा मिले, इस मांग के साथ 10 मई से जिला मुख्यालय पर अनशन पर बैठने की बात करते हैं.

वहीं, अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक जिला प्रशासन सीतापुर के आदमखोर कुत्तों की लखनऊ में ले जाकर नसबंदी करा रहा है. अब तक 22 कुत्तों को सीतापुर से लखनऊ ले जाकर उनकी नसबंदी कराई जा चुकी है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि सीतापुर में नसबंदी किए जाने की सुविधा नहीं है.

पसंद का खाना ना मिलने से आदमखोर हो रहे कुत्ते: पशु विज्ञानी

पशु विज्ञानियों के मुताबिक, कुत्तों के व्यवहार में आई इस अप्रत्याशित आक्रामकता का मुख्य कारण उन्हें उनका वह भोजन ना मिल पाना है, जिसके वे फितरतन आदी हैं. उनकी खाने संबंधी आदत बदलना इतना आसान भी नहीं है.

भारतीय पशु विज्ञान संस्थान (आईवीआरआई) के निदेशक डॉक्टर आरके सिंह ने सीतापुर में कुत्तों के आदमखोर होने के कारणों के बारे में पूछे जाने पर बताया, ‘पहले बूचड़खाने चलते थे, तो कुत्तों को जानवरों के बचे-खुचे अवशेष खाने को मिल जाया करते थे. अब बूचड़खाने बंद हो गए. जो लोग मांसाहार का सेवन करते हैं वे पशुओं की हड्डियां खुले में फेंकने से परहेज करते हैं. इन कारणों के चलते धीरे-धीरे कुत्तों के भोजन में कमी आ गई, इसीलिए यह दिक्कत हो रही है.’

उन्होंने कहा कि मांस और हड्डियां खाना कुत्तों की आदत हो चुकी है. इसे बदलने में वक्त लगेगा. कुत्ते जब घर का बचा खाना पाने लगेंगे तो चीजें धीरे-धीरे ठीक हो जाएंगी.

सिंह कहते हैं, ‘मैंने अभी तक जितना अध्ययन किया है, तो कुत्तों में पहले इस तरह के व्यवहार सम्बंधी बदलाव पहले नहीं देखे.’

उन्होंने कहा कि इससे पहले कुत्तों के इस कदर आक्रामक होने की बात सामने नहीं आई थी. हालांकि सीतापुर में हमलावर कुत्तों को आदमखोर कहना सही नहीं होगा. यह मुख्यतः ‘ह्यूमन एनिमल कॉन्फ्लिक्ट’ का मामला है.

पशु चिकित्सक अनूप गौतम ने बताया कि मुख्यतः भोजन की कमी की वजह से ही कुत्तों में शिकार की प्रवृत्ति बढ़ी है. दूसरी बात यह भी कि खानाबदोश लोग आमतौर पर कुत्तों को जानवरों के शिकार के लिए पालते हैं. वह खुद भी मांसाहार खाते हैं और कुत्तों को भी मांस खिलाते हैं. अब उनके लिए भोजन की कमी हो गई है. प्रबल आशंका है कि घुमंतू लोगों ने ही उन कुत्तों को छोड़ा हो.

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ) 

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