चीफ जस्टिस के ख़िलाफ़ महाभियोग ख़ारिज होने को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कांग्रेस सांसद

राज्यसभा के उपसभापति के फ़ैसले को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने वाले दो कांग्रेस सांसदों को जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस एसके कौल की पीठ ने मंगलवार को आने को कहा.

राज्यसभा के उपसभापति के फ़ैसले को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने वाले दो कांग्रेस सांसदों को जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस एसके कौल की पीठ ने मंगलवार को आने को कहा.

CJI Dipak Misra
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा (फोटो: ट्विटर)

नई दिल्ली: राज्यसभा के सभापति द्वारा प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग नोटिस खारिज किए जाने को चुनौती देने वाली विपक्षी सांसदों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अधिवक्ताओं से कहा कि वे मंगलवार को उसके समक्ष आएं, तब वे इस मुद्दे को देखेंगे.

गौरतलब है कि सभापति ने यह कहते हुए नोटिस खारिज कर दिया था कि जस्टिस मिश्रा के खिलाफ किसी प्रकार के कदाचार की पुष्टि नहीं हुई है. सभापति के इस निर्णय को विपक्ष के दो सांसदों ने सोमवार को न्यायालय में चुनौती दी.

महाभियोग नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों में शामिल वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस एसके कौल की पीठ से तत्काल सुनवाई के लिए यचिका को सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया.

पीठ ने मास्टर ऑफ रोस्टर के संबंध में संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए सिब्बल और अधिवक्ता प्रशांत भूषण से कहा कि वह तत्काल सुनवाई के लिए याचिका प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखें.

यह याचिका दायर करने वाले सांसदों में पंजाब से कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा और गुजरात से अमी हर्षदराय याज्ञनिक शामिल हैं. दोनों, जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस कौल ने आपस में विचार किया और सिब्बल तथा भूषण से कहा कि वे कल यानी मंगलवार को उनके समक्ष आएं, ताकि इस मुद्दे पर गौर किया जा सके.

सिब्बल ने कहा कि मास्टर ऑफ रोस्टर के संबंध में संविधान पीठ का फैसला उन्हें ज्ञात है, लेकिन महाभियोग नोटिस प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ होने के कारण शीर्ष अदालत का वरिष्ठतम न्यायाधीश तत्काल सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध कर सकता है.

सिब्बल ने कहा, ‘मुझे प्रक्रिया की जानकारी है, लेकिन इसे किसी अन्य के समक्ष नहीं रखा जा सकता. एक व्यक्ति अपने ही मुकदमे में न्यायाधीश नहीं हो सकता. मैं सिर्फ तत्काल सुनवाई का अनुरोध कर रहा हूं, मैंने कोई अंतरिम राहत नहीं मांगी है.’

उन्होंने कहा कि प्रधान न्यायाधीश सूचीबद्ध करने का आदेश नहीं दे सकते हैं, ऐसी स्थिति में इस न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को ही कुछ आदेश देना होगा क्योंकि यह संवैधानिक महत्व का मामला है.

सिब्बल के अनुसार, पहले कभी ऐसे हालात पैदा नहीं हुए और न्यायालय को आदेश देना चाहिए कि मामले की सुनवाई कौन करेगा और कैसे करेगा.

जस्टिस कौल ने याचिका का मसौदा तैयार करने वाले सिब्बल से पूछा कि क्या याचिका का पंजीकरण हो गया है? इस पर सिब्बल ने जवाब दिया कि उन्होंने याचिका रजिस्ट्री में दाखिल की है, लेकिन वह इसे पंजीकृत करने के इच्छुक नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘इस न्यायालय की प्रक्रिया बहुत सरल है. मैं पिछले 45 वर्ष से यहां वकालत कर रहा हूं. इस मामले में रजिस्ट्रार प्रधान न्यायाधीश से आदेश नहीं ले सकते. प्रधान न्यायाधीश मास्टर ऑफ रोस्टर के अपने अधिकार रजिस्ट्रार को नहीं सौंप सकते हैं. मैं जस्टिस चेलमेश्वर से सिर्फ इसपर विचार करने का अनुरोध कर रहा हूं.’

जस्टिस चेलमेश्वर ने उत्तर दिया, ‘मैं सेवानिवृत्त होने वाला हूं.’ सिब्बल ने न्यायालय से याचिका पर कब सुनवाई होगी और कौन करेगा इस संबंध में आदेश देने का अनुरोध किया.

सिब्बल के साथ पेश हुए अधिवक्ता भूषण ने कहा कि नियमों के अनुसार, प्रधान न्यायाधीश कोई भी आदेश देने में अक्षम हैं और सिर्फ वरिष्ठतम न्यायाधीश ही मामले को सूचीबद्ध करने का आदेश दे सकता है.

राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को पद से हटाने के संबंध में विपक्ष की ओर से दिए गए नोटिस को 23 अप्रैल को खारिज कर दिया था.