गढ़चिरौली से ग्राउंड रिपोर्ट: नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष में गांववाले पिस रहे हैं

गढ़चिरौली में बीते दिनों हुए 'एनकाउंटर' में कसनसुर गांव के लोग बच तो गए लेकिन उनके चेहरों पर चिंता साफ़ दिखती है. वे दशकों से जिस भंवरजाल में फंसे हैं, वहां हमेशा एक तरफ पुलिस का ख़तरा बना रहता है तो दूसरी ओर नक्सलियों का.

//

गढ़चिरौली में बीते दिनों हुए ‘एनकाउंटर’ में कसनसुर गांव के लोग बच तो गए लेकिन उनके चेहरों पर चिंता साफ़ दिखती है. वे दशकों से जिस भंवरजाल में फंसे हैं, वहां हमेशा एक तरफ पुलिस का ख़तरा बना रहता है तो दूसरी ओर नक्सलियों का.

Gadchiroli Armed forces The Wire
गढ़चिरौली जिले के गांवों में सुरक्षा बलों का दिखना सामान्य बात है. (फोटो: सुकन्या शांता/द वायर)

गढ़चिरौली, महाराष्ट्र में 40 ‘नक्सलियों’ को मार गिराने के पुलिस के दावे के बाद ग्राउंड जीरो से दो रिपोर्टों की श्रृंखला की दूसरी कड़ी. पहली रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

गढ़चिरौली (महाराष्ट्र): 22 अप्रैल को गढ़चिरौली में हुए पुलिसिया कार्रवाई में एक शादी की वजह से कसनसुर गांव के लोगों की जान बच गई थी. पुलिस और कथित नक्सलियों के बीच हुए इस ‘मुठभेड़’ में 34 ‘नक्सलियों’ की जान गई थी.

ये कथित नक्सली गांव के बाहर इंद्रावती नदी के किनारे कैंप लगाए हुए थे. अगर गांव के लोग शादी में शामिल नहीं हुए होते तो वे उस नक्सल कैंप में ही होते जिस पर पुलिस ने हमला किया था.

35 साल के लच्छु माट्टे वडावी ने बताया, ‘जब वे (नक्सल) हमें बुलाते हैं तो हमें जाना होता है. हमारे पास कोई दूसरा चारा नहीं होता. उस सुबह भी हमें बुलाया गया था. लेकिन हम गांव में हो रही एक शादी में जाने की तैयारी में लगे हुए थे. इसलिए हमें छोड़ दिया गया. शादी की वजह से हमारी जान बच गई.’

गांव वाले इसे किसी चमत्कार की तरह बता रहे हैं. गांव वाले भले ही अब बच चुके हैं और सुरक्षित हैं लेकिन कसनसुर गांव के लोगों के चेहरे पर अपनी ज़िंदगी को लेकर चिंताएं साफ पता चलती है. वो दशकों से जिस भंवरजाल में फंसे हुए है, उसमें हमेशा एक तरफ पुलिस का ख़तरा बना रहता है तो दूसरी ओर नक्सलियों का.

गढ़चिरौली के सुदूर घने जंगलों में रहने वाले इन लोगों का बाहरी दुनिया से बहुत कम वास्ता पड़ता है. ये लोग तेंदू के पत्ते इकट्ठा कर अपनी ज़िंदगी बसर करते हैं. इनकी ज़िंदगी बेहद मुश्किल हालात में गुजरती है. समय-समय पर उन्हें मानवाधिकार हनन से दो-चार होना पड़ता है, फिर चाहे वो सरकार द्वारा हो या फिर नक्सलियों के.

कई स्थानीय लोगों ने द वायर  को अपनी ज़िंदगी की मुश्किलों के के बारे में बताया. हालात गंभीर होने के बावजूद इस इलाके में कोई राहत नज़र नहीं आती.

22 अप्रैल को देर रात नक्सली गांव के नजदीक इकठ्ठा हुए और गांववालों को मिलने के लिए बुलाया. गांव वालों का कहना है कि इस तरह की बैठकें नक्सली नेता के गांव में या गांव के आस-पास लगाए जाने वाले कैंप के दौरान की जाती हैं. इन बैठकों में अमूमन गांव वालों के उन मुद्दों पर बात की जाती है, जो उन्हें प्रभावित कर रहे हों.

एक अधेड़ महिला अपनी स्थानीय भाषा मडिया में कहती हैं, ‘वे लोग बड़े दयालु लोग हैं. वे हमें डराते-धमकाते नहीं हैं. वे सिर्फ हमें अपने सामने हाजिर होने और अपनी तकलीफ बताने को कहते हैं.’

इस महिला के बेटे ने मराठी में अनुवाद कर उनकी बात बताई. इसके साथ ही वे यह भी कहती हैं कि उन (लोगों) के पास जाने और मिलने में डर लगा रहता है. उन्होंने कहा, ‘पुलिस समझती है कि हम उनके समर्थक हैं. इसलिए उनके साथ मिलना हमें पुलिस के निशाने पर ले आता है.’

एक दूसरे गांववाले मंगु कुडमे बताते हैं, ‘अगर हम उनसे मिलने से मना कर देते हैं तो वे लोग इसे धोखा देना मानते हैं.’ ऐसे कई मामले हमारे सामने हैं जिसमें नक्सलियों ने गांव वालों को ‘धोखा’ देने की वजह से मार डाला है.

gadchiroli_map3
क्रेडिट: Ita Mehrotra

पिछले दिनों पुलिस की ओर से 34 ‘खतरनाक नक्सलियों’ को मार गिराए जाने के बाद से कसनसुर गांव सुर्खियों में बना हुआ है. पुलिस का दावा है कि ये सभी ‘खतरनाक नक्सली’ थे. अब ये बात सामने आई है कि मारे गए लोगों में से कम से कम आठ कम उम्र के लड़के-लड़कियां हैं जो कि बगल के गांव गट्टेपल्ली से शादी में शामिल होने के लिए आए थे.

इस गांव के लिए पुलिस की मौजूदगी या फिर नक्सली गतिविधि कोई नई बात नहीं है. कई साल पहले गांव के कुछ लोग नक्सली आंदोलन में शामिल हुए थे.

गढ़चिरौली के भामरागड डिविजन के घने जंगलों से होते हुए बाइक से यहां पहुंचने में दो घंटे लगते हैं. ऊबड़-खाबड़ कच्चा रास्ता होने की वजह से इस रास्ते पर हमेशा दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है. कसनसुर गांव में 32 परिवार रहते हैं. ये सभी मडिया जनजाति के हैं.

कमांडो दस्ते की आवाजाही, गोली की आवाज़, अचानक छापामारी और घेराबंदी यहां के रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा है. इस इलाके के हर गांव में कम से कम एक ऐसा मामला जरूर है जो नक्सल के नाम पर हत्या और फर्जी आत्मसमर्पण से जुड़ी हुई है.

गढ़चिरौली के पुलिस निरीक्षक अभिनव देशमुख के मुताबिक 22 अप्रैल को यहां छुपे ‘नक्सलियों’ पर 2,000 राउंड से ज्यादा गोलियां चलाई गई थीं. जबकि गांववालों का कहना है कि उस सुबह उन्होंने गोलियों की जितनी आवाज़ सुनी थी ये उसकी आधी भी नहीं है.

एक गांव वाले ने बताया कि, ‘छह घंटे तक ऐसा लग रहा था जैसे लगातार पटाखे छूट रहे हो.’ उस शाम कमांडो अपनी ‘कामयाबी’ पर हिंदी और मराठी गानों पर शराब पीकर नाचते हुए जश्न मनाते देखे गए.

कसनसुर और उसके बगल का गांव बोरिया इंद्रावती नदी के किनारे बसे हुए हैं. बोरिया गांव से इंद्रावती नदी तक जाने के एक संकरा सा रास्ता है जिससे होकर कसनसुर गांव की तुलना में आसानी से नदी तक पहुंचा जा सकता है. इसलिए पुलिस वालों ने बोरिया गांव के लोगों का इस्तेमाल नदी से लाशें बाहर निकालने में किया.

बोरिया गांव के लोगों ने बताया कि गोलीबारी के अगले दिन 23 अप्रैल को सी-60 कमांडो ने सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) के साथ मिलकर सर्च ऑपरेशन चलाया था.

स्थानीय ग्राम सभा के एक सदस्य रामू गावाडे ने बताया, ‘वे बड़ी संख्या में आए थे और हमें नदी की ओर चलने को कहा. उन्होंने हमसे नदी से लाशें निकाल कर एक लाइन रखने को कहा. गांव वालों ने 17 लाशों में से दो 22 अप्रैल को और बाकियों को 23 अप्रैल को निकाला.’

18वीं लाश उस दिन मिली थी जिस दिन मैं वहां पहुंची थी.

गावाडे बताते हैं कि नदी में मगरमच्छ भरे पड़े हुए हैं जिससे सर्च ऑपरेशन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. वे बताते हैं, ‘हमें इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि नदी में कितनी लाशें हैं. हम गोता लगाकर एक के बाद एक लाशें निकालते रहे. कई लाशें बहुत बुरी हालत में थीं. उन्हें मगरमच्छों ने खाया हुआ था.’

गांववालों का कहना है कि उन्होंने नदी से लाशें निकालने का विरोध किया था. राजू नाम के एक गांववाले का कहना है, ‘जिस नदी का पानी हम इस्तेमाल करते हैं, उसमें तैरती हुई लाशें देखना हमारे लिए एक ख़ौफनाक मंज़र था. जब हमने कहा कि हम ये काम नहीं कर सकते तो उन्होंने हमें डराया-धमकाया. फिर हम में से कुछ जाना पड़ा.

गावाडे ने बताया कि उन्होंने जो दो लाशें निकाली थीं उनसमें एक लाश एक ‘जवान लड़की’ की थी और वो लाश बिना कपड़ों की थी. वो बताते हैं, ‘उसके चेहरे और सिर पर गोली लगने के जख्म थे. शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था. यह अकेली ऐसी लाश थी जो बिना कपड़ों की थी.’

28 अप्रैल को जब द वायर  की टीम बोरिया गांव पहुंची तो कुछ गांववाले पुलिसवालों से बहस कर रहे थे. वे पुलिस को आगे किसी सर्च ऑपरेशन में हिस्सा बनने से इनकार कर रहे थे थे, जिसमें आखिरकार वे कामयाब रहे.

Gadchiroli Boriya Village The Wire
बोरिया गांव के लोगों को एनकाउंटर में मारे गए लोगों के शव इंद्रावती नदी से निकलने को कहा गया था. (फोटो: सुकन्या शांता/द वायर)

पुलिस के हमले के बाद से सी-60 कमांडो और सीआरपीएफ के लिए गांव किसी छावनी में तब्दील हो चुका है. गांव के ऊपर हेलिकॉप्टर मंडरा रहे हैं और गांव के अंदर-बाहर जाने वाले पर नज़र रखे हुए हैं. गांववालों ने दावा किया कि ये हेलिकॉप्टरों में कुछ रिपोर्टरों भी साथ आते थे, जो नागपुर से पुलिस के साथ आए थे.

45 साल के माट्टे वाडावी ने हमें बताया, ‘वे पुलिस के साथ आए और उन्हीं के साथ लौट गए. वे गांव में हम से यह पूछने के लिए ठहरे भी नहीं कि सालों से यहां क्या होता आ रहा है?’

जब मैं गांववालों से घोटूल के अंदर बैठकर बात कर रही थी तब एक कमांडो ने पास आकर गांव में हमारे होने के बारे में पूछताछ की. घोटूल वो जगह होती है जहां गांव के सारे अहम मुद्दों पर बात की जाती है.

कमांडो पीएसआई घाबाड़े घोटूल में हमारे साथ रहने पर जोर देता है. इसके तुरंत बाद गांववाले वहां से चले जाते हैं. घाबाड़े और दूसरे पुलिस वाले हमें और स्थानीय ज़िला परिषद के प्रतिनिधि लालसू सोमा नागोटी को पूछताछ करने से रोकते हैं. लालसू सोमा नागोटी ने ही हमारे गांव तक पहुंचने में मदद की थी.

घाबाड़े हमें कहते हैं, ‘यह एक संरक्षित इलाका है. यहां किसी बाहरी को आने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है.’

नक्सलियों से ही मिली थी ख़ुफ़िया जानकारी?

पुलिस का दावा है कि यह एनकाउंटर एक बिल्कुल ‘सटीक दांव’ था क्योंकि इससे एक दिन पहले ही ठोस गुप्तचर सूचनाएं पुलिस को मिली थी. राज्य के गुप्तचर विभाग के स्रोतों का दावा है कि ये सूचना नक्सली समूह के अंदर से ही आई थी.

विभाग के एक अधिकारी ने द वायर  को बताया, ‘यह एक अंदरूनी कलह का नतीजा था. हमें 20 अप्रैल को उनके बड़े नेताओं और कैंप के बारे में सूचना मिली थी. इसके बाद करीब 120 कमांडो छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के पेंगुंडा गांव से इस इलाके में बुलाए गए.’

जब नक्सली सुबह-सुबह अपने-अपने हथियार अलग रखकर नाश्ते के लिए एक जगह इकट्ठा हुए, तभी कमांडो ने उनपर हमला कर दिया.

गढ़चिरौली के नक्सल विरोधी अभियान के एक अधिकारी का दावा है, ‘कमांडो ने ऊंचाई से हमला किया था, जिससे उन्हें मदद मिली. 16 लोग वहीं मारे गए. बाकी जो जख्मी थे, वे नदी में कूद गए.’

नक्सली समूह के तीन अहम सदस्य इस हमले में मारे गए हैं. मारे गए इन तीन अहम सदस्यों में पहले हैं 32 साल के साइनाथ उर्फ दोलेश माधी आतरम जो पेरमेल्ली दालम के कथित तौर पर कमांडर थे. वो गाट्टेपल्ली से थे. (पुलिस के मुताबिक उन्हें हाल ही में डिविजनल कमेटी मेम्बर के तौर पर प्रमोट किया गया था.) डिविजन कमेटी (जिसे डीवीसी के नाम से जाना जाता है) रैंक सदस्य श्रीनु उर्फ श्रीनाथ और नंदू दो अन्य मुख्य नक्सली हैं जो इस हमले में मारे गए हैं.

इनमें से पहले दो तो इंद्रावती नदी के किनारे मारे गए जबकि दी गयी जानकारी के अनुसार नंदू और उनके पांच दूसरे साथी, 23 अप्रैल को राजाराम खांडला जंगल के कापेवांचा क्षेत्र में पुलिस का निशाना बने.

Gadchiroli Kasansur Village The Wire
कसनसुर गांव (फोटो: सुकन्या शांता/द वायर)

पुलिस के मुताबिक 23 अप्रैल को नंदू और उनके दूसरे पांच साथी अहेरी तालुका के जिमालगट्टा गांव में छुपे हुए थे. यह जगह जहां 22 अप्रैल को एनकाउंटर हुआ उससे 100 किलोमीटर की दूरी पर है.

पुलिस स्रोतों के मुताबिक ये छह ‘नक्सली’ कथित तौर पर हथियारों से लैस थे लेकिकन जब पुलिस ने इन पर गोलीबारी शुरू की तो इन्हें इसका बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं चला. मारे गए 40 लोगों में से 20 की शिनाख़्त अभी भी नहीं हो पाई है.

जिमालगट्टा में हुए हमले को लेकर सवाल उठ रहे हैं. कसनसुर गांव के नजदीक से प्राप्त साक्ष्यों के मुताबिक नंदू, श्रीनु और साइनाथ मारे जाने से एक दिन पहले कसनसुर के नजदीक एक गांव में ठहरे हुए थे.

जिस तरह से इस एनकाउंटर को अंज़ाम दिया गया है उसे लेकर ज़िला प्रशासन ने सवाल खड़े किए हैं और इसके दो अलग-अलग जांच के आदेश भी दिए हैं.

पहचान न बताने की शर्त पर 21 साल के उस शख्स, जिसने इन तीनों को अपने घर में पनाह दी थी, ने द वायर  से बात की.

उनके कहने पर उनकी और उनके गांव की पहचान हम जाहिर नहीं कर रहे हैं. उन्होंने हमें बताया, ‘नंदू, श्रीनु और साइनाथ तीनों 21 अप्रैल की सुबह हमारे घर आए थे और देर रात हमारे यहां ही रुके रहे. उन्होंने मुझसे खाना खिलाने को कहा और वे एक ही कमरे में सोए.’

यह बताते हुए उन्होंने अपने घर के नज़दीक अलग बने एक कमरे की ओर इशारा किया. उनके मुताबिक तीनों के पास हथियार थे. नंदू के पास सेल्फ लोडिंग राइफल (एसएलआर) था जबकि बाकी दोनों के पास एके-47 थी.

उन्होंने आगे बताया, ‘वे तीनों देर शाम मेरे घर से चले गए. उनकी बीजापुर जाने से पहले कसनसुर में रुकने की योजना थी. उन्होंने मुझे भी वहां बुलाया था. लेकिन मुझे दूसरे काम थे और मैं वहां जाने से डर भी रहा था इसलिए मैंने वहां न जाने का फैसला लिया.’

उन्होंने यह भी दावा किया कि 22 अप्रैल की रात को उन्हें जहां गोलीबारी हुई वहां एक 21 साल की जख्मी लड़की को बीजापुर पहुंचाने में मदद करने के लिए बुलाया गया था.

वो बताते हैं, ‘उसके सिर से गोली छूकर निकल गई थी. वो जख्मी थी लेकिन गंभीर रूप से जख्मी नहीं थी. उसने फौजी कपड़े पहन रखे थे और उसके पास कोई हथियार नहीं था. उसने मुझे अपना नाम मुन्नी बताया था.’

उन्होंने बताया कि वो दो घंटे में उस लड़की को बीजापुर छोड़ आए. वो कहते हैं, ‘मुझे सिर्फ उसे वहां छोड़ने का काम सौंपा गया था. स्थानीय लोगों की मदद से वो वहां से आगे गई.’

उनके मुताबिक एक दूसरे आदमी को एक दूसरे नक्सली की मदद करने का जिम्मा सौंपा गया था. उसके टखने में गोली लगी थी. वो कहते हैं, ‘मुझे नहीं पता उसे कहां ले जाया गया. वो घायल था और उसे दर्द हो रहा था.’

कसनसुर और गढ़चिरौली के दूसरे गांवों में जो कुछ हुआ, वो यह दिखाता है कि जिनकी पहचान सरकार नक्सली के तौर पर करती हैं, उनके साथ ‘जंग’ छिड़ने की हालत में स्थानीय लोगों को दोनों तरफ से नुकसान हो रहा है.

अगर वो मारे नहीं गए और किसी तरह से बच गए हैं तो उनके ऊपर दोनों ही तरफ से दबाव बना हुआ है और उनकी सुरक्षा ख़तरे में हैं.

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25