बिहार: शराबबंदी के तहत जेल में बंद लोगों में सबसे ज़्यादा दलित, आदिवासी और पिछड़े

बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद पिछले दो साल में 1,22,392 लोग जेल में बंद हैं.

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो साभार: फेसबुक)

बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद पिछले दो साल में 1,22,392 लोग जेल में बंद हैं.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो साभार: फेसबुक)
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो साभार: फेसबुक)

पटना: बिहार में शराबबंदी क़ानून को लागू हुए दो साल से ज़्यादा वक़्त बीत चुका है. पिछले महीने छह अप्रैल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि शराबबंदी क़ानून का सबसे ज़्यादा फायदा पिछड़ा, दलित और आदिवासी समाज को हुआ है, लेकिन अगर राज्य की जेलों के आंकड़े देखे जाएं तो मालूम पड़ता है कि इस क़ानून से सबसे ज़्यादा नुकसान दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के लोगों को हुआ है.

‘प्रोहिबिशन इन बिहार: द फॉलआउट’ नाम से जारी इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की आठ केंद्रीय जेल, 32 जिला जेल और 17 सब जेल के आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं. साल 2016 के अप्रैल महीने से लागू शराबबंदी क़ानून के उल्लंघन के चलते गिरफ़्तार हुए लोगों में अनुसूचित जाति के 27.1 प्रतिशत लोग हैं, जबकि राज्य की कुल आबादी का वह महज़ 16 प्रतिशत हैं. वहीं अनुसूचित जनजाति के 6.8 प्रतिशत लोग गिरफ्तार हुए हैं, जबकि कुल आबादी का वह केवल 1.3 प्रतिशत हैं.

अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से लगभग 34.4 प्रतिशत लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, जबकि राज्य की कुल जनसंख्या का वे 25 प्रतिशत हैं.

जेल एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 80 प्रतिशत कैदी जो उनकी जेल में बंद हैं, वे सभी दो साल पहले लागू हुए शराबबंदी क़ानून के तहत गिरफ़्तार हुए हैं और वे सभी नियमित शराबी हैं.

सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने इस क़ानून के तहत बड़े लोगों पर शिकंजा कसने का काम नहीं किया, जो लोग राज्य में शराब माफिया के रूप में काम कर रहे हैं, उन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.

इंडियन एक्सप्रेस ने पटना, गया, मोतिहारी जेल क्षेत्रों, जिसमें तीन केंद्रीय जेल, 10 ज़िला जेल और नौ उप जेल शामिल हैं, में बंद लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन किया है.

राज्य के आठ जेल क्षेत्रों में शराबबंदी क़ानून के तहत पिछले दो साल में गिरफ़्तार 1,22,392 लोगों में से 67.1 प्रतिशत लोग पटना, गया, मोतिहारी जेल क्षेत्रों में बंद हैं.

मोतिहारी केंद्रीय जेल (छपरा, सिवान, गोपालगंज, बेतिया ज़िला जेल और बगहा उप जेल) में 24672 क़ैदी हैं. सामान्य वर्ग के 2845 (11.5 प्रतिशत), ओबीसी 8691 (35.2 प्रतिशत) ईबीसी 3917 (15.8 प्रतिशत) अनुसूचित जाति 5541 (22.4 प्रतिशत) और अनुसूचित जनजाति 3678 (14.9 प्रतिशत) हैं.

गया केंद्रीय जेल (औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद ज़िला जेल और शेरघाटी, दाऊदनगर और गया सब जेल) में 25,002 क़ैदी हैं. सामान्य वर्ग के 3376 (13.5 प्रतिशत) ओबीसी 8926 (35.7 प्रतिशत) ईबीसी 4550 (18.2 प्रतिशत) अनुसूचित जाति 7550 (30.2 प्रतिशत) और अनुसूचित जनजाति 600 (2.4 प्रतिशत) हैं.

पटना सेंट्रल जेल (फुलवारी शरीफ़, बिहार शरीफ़ और हाजीपुर ज़िला जेल और बाढ़, पटना सिटी, हिलसा, दानापुर और मसौढ़ी उप जेल) में 32,501 क़ैदी हैं. सामान्य वर्ग के 5233 (16.1 प्रतिशत) ओबीसी 11,473 (35.3 प्रतिशत) ईबीसी 5980 (18.4 प्रतिशत) अनुसूचित जाति 8840 (27.2 प्रतिशत) और अनुसूचित जनजाति 975 (3 प्रतिशत) हैं.

गया जेल में गिरफ़्तार किए गए लोगों में 30 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति से हैं. जबकि राज्य में वे कुल आबादी का 15 प्रतिशत हैं. मोतीहारी जेल में 15 प्रतिशत गिरफ्तार किए गए लोग अनुसूचित जनजाति से आते हैं, जो कि जनसंख्या में उनकी कुल आबादी का 10 गुना है.

ये आंकड़े राज्य के गृह विभाग के जेल निरीक्षणालय के तहत एक वरिष्ठ अधिकारी ने जुटाए हैं. एक केंद्रीय जेल के इंचार्ज ने बताया कि बीते 12 मार्च को मुख्यालय से उन्हें एक संदेश आया था जिसमें शराबबंदी क़ानून के तहत जेल में बंद लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि यानी जनरल, ओबीसी, ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़े) एससी, एसटी के आधार पर आंकड़े मांग गए थे.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘यह एक अनौपचारिक सर्वे था ताकि जाति और आर्थिक आधार पर शराब पीने की आदतों का अध्ययन किया जा सके. सभी जेल अधीक्षकों ने मार्च के अंत तक के आंकड़े भेज दिए हैं. जेल के रजिस्टर में जाति का कॉलम है, इसलिए आंकड़े जुटाने बहुत दिक्कत नहीं हुई.’

जेल विभाग के अधिकारियों ने इस सवाल को टाल दिया, जब उनसे पूछा गया कि क़ैदियों का जाति आधारित सर्वे क्यों किया गया जबकि इसका आदेश मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से नहीं दिया गया था जिसके तहत गृह विभाग आता है.

जेल के सहायक पुलिस महानिरीक्षक राजीव कुमार झा का कहना है कि उन्होंने ऐसी कोई रिपोर्ट अभी देखी नहीं है. जब उनसे कैदियों के जाति आधारित आंकड़ें जुटाने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘मुझे इस बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है क्योंकि मैं कुछ दिन से छुट्टी पर था.’

Bihar Liquor Ban

कैदियों के जाति आधारित आंकड़ें जुटाने के बारे में बिहार पुलिस के डीजी केएस द्विवेदी का कहना है, ‘मुझे आंकड़ों की जानकारी नहीं है. जेल विभाग के पास शायद इसकी जानकारी होगी. पर मैं यह कह सकता हूं कि आंकड़ों में रसूखदार और उच्च जाति के कम लोग होंगे क्योंकि पुलिस को छोटी कॉलोनी और झुग्गी बस्ती में रेड करने में आसानी होती है.’

बिहार के गृह सचिव आमिर सुभानी ने भी कहा कि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है और वे भी जानना चाहते हैं कि आख़िर ऐसे आंकड़ें जुटाने का आदेश जेल अधीक्षकों को किसने भेजा था.

मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव चंचल कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है और कहा है कि इसके लिए आपको संबंधित विभागों से बात की जानी चाहिए.

तीन जेल क्षेत्रों के अध्ययन पर अधिकारियों का कहना है सबसे ज़्यादा क़ैदी राजधानी पटना का हैं, क्योंकि पटना में जनसंख्या घनत्व ज़्यादा है.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि मोतिहारी और गया क्षेत्र राज्य के शराब तस्करी वाले मार्ग पर पड़ते हैं, इसलिए शराबबंदी क़ानून के तहत सबसे ज़्यादा मामले इन्हीं इलाकों से हैं. उत्तर-पश्चिम बिहार में मोतीहारी नेपाल सीमा पर है और गोपालगंज होकर यहां से उत्तर प्रदेश भी जाया जा सकता है. वहीं गया झारखंड के सीमा पर है.

बिहार उत्पाद शुल्क और निषेध अधिनियम के धारा 29 से 41, जो छह अप्रैल, 2016 को लागू हुआ, के तहत शराब पीना, रखना, बेचना और बनाना ग़ैर-ज़मानती अपराध है.

इस क़ानून के तहत अगर कोई बालिग व्यक्ति घर में शराब पी रहा है तो उसके अलावा घर में मौजूद अन्य बालिग सदस्यों पर भी समान धारा के तहत मामला दर्ज़ होगा. बिना अदालती वारंट के गिरफ्तारी की जा सकती हैं लेकिन अभियुक्त बाद में नियमित ज़मानत मांग सकता है.