हिंसा से 2017 में देश की जीडीपी पर प्रतिकूल प्रभाव, 80 लाख करोड़ का नुकसान

एक ऑस्ट्रेलियाई संस्थान की 163 देशों की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि हिंसा से 2017 के दौरान भारत को जीडीपी के नौ प्रतिशत के बराबर नुकसान हुआ है. यह नुकसान प्रति व्यक्ति 40 हजार रुपये से अधिक है.

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Panchkula: Vehicles burn in violence following Dera Sacha Sauda chief Gurmeet Ram Rahim’s conviction in Panchkula on Friday. PTI Photo (PTI8_25_2017_000183B)

एक ऑस्ट्रेलियाई संस्थान की 163 देशों की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि हिंसा से 2017 के दौरान भारत को जीडीपी के नौ प्रतिशत के बराबर नुकसान हुआ है. यह नुकसान प्रति व्यक्ति 40 हज़ार रुपये से अधिक है.

Panchkula: Vehicles burn in violence following Dera Sacha Sauda chief Gurmeet Ram Rahim’s conviction in Panchkula on Friday. PTI Photo (PTI8_25_2017_000183B)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्लीभारतीय अर्थव्यवस्था को क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के संदर्भ में हिंसा के कारण पिछले साल 1,190 अरब डॉलर यानी 80 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है. यह नुकसान प्रति व्यक्ति के हिसाब से करीब 595.40 डॉलर यानी 40 हजार रुपये से अधिक है. एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है.

इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने 163 देशों एवं क्षेत्रों का अध्ययन करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा से 2017 के दौरान देश को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के नौ प्रतिशत के बराबर नुकसान हुआ है.

इस दौरान हिंसा से वैश्विक अर्थव्यवस्था को पीपीपी आधार पर 14,760 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. यह वैश्विक जीडीपी का 12.4 प्रतिशत है जो प्रति व्यक्ति 1,988 डॉलर होता है.

रिपोर्ट में कहा गया कि आकलन में हिंसा के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रभावों समेत आर्थिक गुणात्मक प्रभाव को भी शामिल किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, गुणात्मक प्रभाव उन अतिरिक्त आर्थिक गतिविधियों का भी आकलन करता है जो हिंसा के प्रत्यक्ष प्रभाव को टाल दिए जाने की सूरत में हो सकते थे.

रिपोर्ट में कहा गया कि इंसान को नियमित तौर पर घर, काम, दोस्तों के बीच संघर्ष का सामना करना पड़ता है. जातीय, धार्मिक और राजनीतिक समूहों के बीच यह संघर्ष और अधिक व्यवस्थित तरीके से होता है. लेकिन, इनमें से अधिकांश संघर्ष हिंसा में नहीं बदलते.

रिपोर्ट में कहा गया कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र कुछ गिरावट के बाद भी विश्व का सबसे शांत क्षेत्र बना हुआ है. इस दौरान बाह्य एवं आंतरिक दोनों संघर्षों तथा पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार हुआ है लेकिन हिंसक अपराध, आतंकवाद के प्रभाव, राजनीतिक अस्थिरता और राजनीतिक आतंकवाद ने क्षेत्र में स्थिति को बिगाड़ा है.

दक्षिण एशिया क्षेत्र में अफगानिस्तान और पाकिस्तान दो सबसे खराब देश बने हुए हैं तथा इनकी स्थिति और खराब हुई है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘2017 के दौरान हिंसा का कुल वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पिछले दशक के किसी भी अन्य साल से अधिक रहा है.’

रिपोर्ट के अनुसार मुख्यत: आंतरिक सुरक्षा खर्च में वृद्धि के कारण हिंसा का वैश्विक आर्थिक प्रभाव 2016 की तुलना में 2017 में 2.1 प्रतिशत बढ़ा है.

सीरिया इस दौरान जीडीपी के 68 प्रतिशत खर्च के साथ सबसे खराब देश रहा है. इसके बाद 63 प्रतिशत के साथ अफगानिस्तान और 51 प्रतिशत के साथ इराक का स्थान है.

शीर्ष दस खराब देशों में अल सल्वाडोर, दक्षिणी सुडान, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, साइप्रस, कोलंबिया, लीसोथो और सोमालिया भी शामिल हैं.

हिंसा से हुए नुकसान के मामले में सबसे बेहतर स्थिति स्विट्जरलैंड की रही है. इसके बाद इंडोनेशिया और बुर्किना फासो का स्थान है.

उभरते हुए बाजारों में चीन की अर्थव्यवस्था को पीपीपी के मामले में हिंसा से करीब 1704 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. तो वहीं, ब्राजील की अर्थव्यवस्था को लगभग 510 अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा. रूस को करीब 1,000 अरब डॉलर और दक्षिण अफ्रीका को 240 अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा.

विकसित देशों के बीच, अमेरिका को 2670 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा दो कि जीडीपी का 8 प्रतिशत था. वहीं, ब्रिटेन को करीब 312 अरब डॉलर यानी कि जीडीपी का 7 प्रतिशत नुकसान उठाना पड़ा.

क्रय शक्ति समता या पीपीपी एक आर्थिक सिद्धांत है. जिसके तहत विभिन्न देशों की मुद्राओं की तुलना समान वस्तु के अलग-अलग देशों में दाम के बीच के अंतर को निकाल कर की जाती है. इस तरह पीपीपी से पता चलता है कि किसी वस्तु या सेवा को दो अलग-अलग देशों में खरीदने पर कितना अंतर पाया जाएगा. इससे फिर पीपीपी एक्सचेंज रेट निकलता है. जिसके आधार पर एक देश की सकल राष्ट्रीय आय को डॉलर में बदला जाता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट)

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