राजस्थान में कांग्रेस पर ज़मीनों की बंदरबांट का आरोप लगाने वाली भाजपा अब ख़ुद ऐसा क्यों कर रही है?

भाजपा सरकार सामाजिक संगठनों को ज़मीन आवंटित करने के लिए इतनी उतावली है कि स्वायत्त शासन व नगरीय विकास मंत्री श्रीचंद कृपलानी कह रहे हैं कि चाहे मुझे जेल ही क्यों न जाना पड़े, लेकिन सामाजिक संस्थाओं को रियायती दर पर ज़मीनें आवंटित की जाएंगी.

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मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (फोटो: फेसबुक)

भाजपा सरकार सामाजिक संगठनों को ज़मीन आवंटित करने के लिए इतनी उतावली है कि स्वायत्त शासन व नगरीय विकास मंत्री श्रीचंद कृपलानी कह रहे हैं कि चाहे मुझे जेल ही क्यों न जाना पड़े, लेकिन सामाजिक संस्थाओं को रियायती दर पर ज़मीनें आवंटित की जाएंगी.

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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (फोटो साभार: फेसबुक/@VasundharaRajeOfficial)

यदि आप राजनीतिक रूप से किसी प्रभावशाली जाति से ताल्लुक रखने वाले संगठन के मुखिया हैं अथवा आपने कोई संस्था बना रखी है तो राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार आपको रियायती दर पर जमीन देने के लिए तैयार बैठी है. सरकार ने ऐसे कई संगठनों व संस्थाओं को 50 फीसदी रियायती दर पर जबकि कुछ को नि:शुल्क जमीन आवंटित करने की तैयारी कर ली है.

हैरत की बात यह है कि सूबे में भाजपा जब विपक्ष में थी तो उसने न सिर्फ अशोक गहलोत सरकार पर सामाजिक संगठनों व संस्थाओं को जमीनों की बंदरबांट करने का आरोप लगाया, बल्कि 13 दिसंबर, 2013 को सत्ता संभालने के बाद वसुंधरा राजे सरकार ने पूर्ववर्ती सरकार ने अंतिम छह महीने के कार्यकाल में रियायती दर पर जो जमीनें आवंटित की थीं, उन्हें रद्द भी कर दिया.

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि भाजपा अब वही काम क्यों कर रही है जिसका वह विपक्ष में रहते हुए विरोध करती थी. दरअसल, प्रदेश में इस साल के आखिर में विधानसभा के चुनाव होने हैं, जिसकी तैयारी के सिलसिले में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राज्य के विभिन्न जिलों का दौरा कर रही हैं.

इस दौरान वे विभिन्न जातियों के प्रभावशाली लोगों से मिल रही हैं. इनमें से कई रियायती दर पर जमीन आवंटित करने की मांग कर रहे हैं. जानकारी के मुताबिक सरकार के पास रियायती दर पर जमीन आवंटन के 115 से ज्यादा मामले लंबित हैं. इनमें से ज्यादातर ने स्कूल, छात्रावास, धर्मशाला, सामुदायिक भवन व सामाजिक गतिविधियों के लिए सरकार से जमीन मांगी है.

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के हस्तक्षेप के बाद इन आवेदनों के निपटारे की कार्यवाही शुरू हो गई है. सूत्रों के अनुसार स्वायत्त शासन विभाग ने ज्यादातर आवेदकों को जमीनें आवंटित करने की अनुशंसा कर दी है.

स्वायत्त शासन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो जमीनों के इस खेल में नियमों की खुलेआम अनदेखी की जा रही है. वे कहते हैं, ‘आवंटन नीति के अनुसार नगरीय निकायों को सबसे पहले योग्य भूमि चिह्नित कर इसकी पूरी सूचना पोर्टल पर डालनी होती है. यदि आवंटन के लिए कोई आवेदन आता है तो इसे पोर्टल पर अपलोड कर आपत्तियां मांगना जरूरी है. इसके बाद ही सक्षम स्तर पर आवंटन का फैसला लिया जा सकता है.’

अधिकारी आगे कहते हैं, ‘सरकार के पास जमीन आवंटन के जो आवेदन लंबित हैं उनमें से ज्यादातर तय प्रक्रिया के अनुरूप नहीं हैं. स्थानीय निकाय नियमों का पालन नहीं कर रहे. कई प्रकरण तो ऐसे हैं जिनमें आवेदन सीधा मुख्यमंत्री अथवा स्वायत्त शासन व नगरीय विकास मंत्री के पास भेजा गया है. विभाग अब इन्हें स्थानीय निकायों के पास भेज रहा है. आश्चर्य की बात यह है कि सब ऑन रिकॉर्ड हो रहा है. यदि भविष्य में जांच हुई तो कई प्रकार की गड़बड़ियां सामने आना तय है.’

बावजूद इसके सरकार रियायती दर पर जमीन आवंटित करने के लिए कितनी उतावली है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्वायत्त शासन व नगरीय विकास मंत्री श्रीचंद कृपलानी किसी भी कीमत पर आवेदनों का निपटारा करना चाहते हैं.

वे कहते हैं, ‘चाहे मुझे जेल ही क्यों न जाना पड़े, लेकिन सामाजिक संस्थाओं को रियायती दर पर जमीनें आवंटित की जाएंगी. ये संस्थाएं समाज हित में अच्छा काम कर रही हैं. इन्हें आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सरकार की है इसलिए इन्हें जमीनें आवंटित की जा रही हैं.’

रियायती दर पर जमीनें देने के लिए सरकार की यह चुस्ती सामाजिक संस्थाओं तक ही सीमित रहती तो समझ में आता, लेकिन आवेदकों की सूची में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी शामिल है. सूत्रों के अनुसार संघ से जुड़ी आदर्श शिक्षण संस्था और आदर्श विद्या भारती ने सरकार से शिवगंज, झालरापाटन, फलौदी, आसींद, आबू, राजसमंद, मांडलगढ़ व सरवाड़ में कुल 69 बीघा जमीन देने की मांग की है. चर्चा है कि स्वायत्त शासन विभाग ने इन्हें नि:शुल्क जमीन देने की तैयारी कर ली है.

जमीनों की इस बंदरबांट में खुद भाजपा भी सीधे रूप में शामिल है. सरकार ने भाजपा के कार्यालयों के लिए 17 जिलों में जमीनें आवंटित की हैं जबकि कई जिलों में इसकी प्रक्रिया चल रही है.

कांग्रेस ने न सिर्फ इसका विरोध किया है, बल्कि सत्ता में आने पर जांच करवाने की बात भी कही है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं, ‘राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने पर सभी जमीन आवंटनों की जांच की जाएगी.’

कांग्रेस के आरोपों पर पंचायतीराज मंत्री राजेंद्र राठौड़ कहते हैं कि सरकार ने 2015 में राजनीतिक दलों को जमीन आवंटन की नीति बनाई थी, उसी के अंतर्गत भाजपा को जिलों में जमीन मिली है. वे कहते हैं, ‘यदि कांग्रेस भी नीति के प्रावधानों के मुताबिक आवेदन करती है तो उसे भी नियमानुसार आवंटन होता. यह आरोप गलत है कि जमीनों का आवंटन सिर्फ भाजपा को ही हुआ है. कांग्रेस ने आवेदन ही नहीं किया तो आवंटन कैसे होता.’

राठौड़ के इस तर्क से कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट सहमत नहीं हैं. वे कहते हैं, ‘भाजपा ने गुपचुप तरीके से पॉलिसी बनाकर जिलों में अपने ऑफिस बनाने के लिए जमीने आवंटित की हैं. अधिकारियों पर दवाब बनाकर इन जमीनों को कनवर्ट करवाया जा रहा है. इस सरकार ने जमीनों के आवंटन में बड़ा घोटाला किया है. कांग्रेस के सत्ता में आने ही इस सभी मामलों की जांच की जाएगी.’

इस मुद्दे पर कांग्रेस के आक्रामक होने के बाद सरकार ने नया शिगूफा छोड़ा है. नगरीय विकास व आवासन विभाग ने कांग्रेस के शासनकाल में  सभी स्कूल, अस्पताल, एनजीओ, ट्रस्ट और संस्थाओं को नि:शुल्क या रियायती दर पर आवंटित जमीनों की जांच के आदेश दिए हैं.

अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे सभी जमीनों का भौतिक सत्यापन कर यह देखें कि यहां अन्य प्रकार की गतिविधियां तो संचालित नहीं हो रही हैं. सभी अधिकारियों को 25 जून तक रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है.

भाजपा सरकार की इस कवायद को पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार में नगरीय विकास मंत्री रहे शांति धारीवाल अपनी खामियों को ढंकने का जतन बता रहे हैं. वे कहते हैं, ‘इस सरकार ने 2013 में कार्यभार संभालते ही हमारी सरकार के  अंतिम छह माह के जमीन आवंटनों की जांच गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया की अध्यक्षता वाली कमेटी से जांच करवाई. इस कमेटी को एक भी आवंटन में घपला नहीं मिला. अब गड़े मुर्दे उखाडक़र खुद की ओर से किए गए गलत आवंटनों से ध्यान हटाना चाहती है.’

हालांकि शांति धारीवाल के इस तर्क से नगरीय विकास व आवासन मंत्री श्रीचंद कृपलानी सहमत नहीं हैं. वे कहते हैं, ‘सरकार को इस प्रकार की शिकायतें मिली हैं कि कांग्रेस के शासन काल में आवंटित जमीनें दूसरे काम आ रही हैं. इन शिकायतों की सत्यता जांचने के लिए नि:शुल्क या 50 फीसदी से अधिक रियायत पर दी गई जमीनों का भौतिक सत्यापन करवाया जा रहा है. यदि यह पाया जाता है कि जमीन दूसरे काम आ रही है तो नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और जयपुर में रहते हैं.)