भाजपा कोषाध्यक्ष को लेकर पारदर्शिता की कमी पर पार्टी और संघ के वरिष्ठ नेता नाख़ुश

भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक यह इस बात का प्रमाण है कि किस तरह मोदी-शाह की जोड़ी पार्टी के आतंरिक लोकतंत्र और उससे जुड़ी परंपराओं को ख़त्म कर रही है.

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Narendra Modi and Amit Shah during BJP's Diwali Milan on 28 Oct 2017. PTI10_28_2017_000027B
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भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक यह इस बात का प्रमाण है कि किस तरह मोदी-शाह की जोड़ी पार्टी के आतंरिक लोकतंत्र और उससे जुड़ी परंपराओं को ख़त्म कर रही है.

Narendra Modi and Amit Shah during BJP's Diwali Milan on 28 Oct 2017. PTI10_28_2017_000027B
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के करोड़ों का चंदा लेकर चुनाव आयोग या जनता को अपने कोषाध्यक्ष का नाम न बताने पर द वायर  की रिपोर्ट के बाद पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेताओं ने हैरानी जताई है कि पार्टी द्वारा चुनाव आयोग में जमा किए रिटर्न पर अधिकारिक पार्टी कोषाध्यक्ष के दस्तखत नहीं थे.

चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों के अनुसार एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल को उनके कोषाध्यक्ष- या जो व्यक्ति आधिकारिक रूप से पार्टी के अकाउंट संभालता है- का नाम बताना होता है. ऐसा करना ज़रूरी होता है.

द वायर  से बात करते हुए पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने भी इस बात की पुष्टि की, लेकिन 2016-17 के लिए पार्टी द्वारा चुनाव आयोग में जमा किए रिटर्न पर पार्टी कोषाध्यक्ष के नाम पर अनाम व्यक्ति ने एक अस्पष्ट दस्तखत किए, जो देखने में ‘फॉर ट्रेजरर’ (कोषाध्यक्ष के बदले) लिखा दिखता है. पार्टी के किसी भी अन्य दस्तावेज या बयान में भी कहीं पार्टी के कोषाध्यक्ष का नाम नहीं लिखा मिलता.

पार्टी के एक नेता, जो कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्य और संघ के करीबी भी हैं, ने गोपनीयता की शर्त पर मंगलवार को द वायर  से बात करते हुए कहा कि पार्टी में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, अब तक हर जगह नियमों का पूरी सतर्कता से पालन किया जाता रहा है. उन्होंने कहा कि पार्टी में कोषाध्यक्ष का पद बहुत महत्वपूर्ण है और पार्टी ने कभी पहले इस पद की अनदेखी नहीं की है.

वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक आर्थिक मामलों में पारदर्शिता के लिए जरूरी इतने महत्वपूर्ण पहलू पर भाजपा का लापरवाह रवैया पार्टी मामलों का मोदी-शाह की जोड़ी और उनके आस-पास के मुट्ठी भर लोगों के इर्द-गिर्द केंद्रीकृत होने को दिखाता है. पार्टी नेतृत्व का एक ऐसा वर्ग है जो सत्ता के इस केंद्रीकरण से क्षुब्ध है, जहां पीएमओ मंत्रियों को बता रहा है कि किसे निजी स्टाफ या चपरासी रखा जाए.

एक अन्य पार्टी नेता ने कहा कि आम चुनाव से महज साल भर पहले वित्तीय पारदर्शिता का सवाल खास मायने रखता है और लोगों का पार्टी के कोषाध्यक्ष के बारे में सवाल उठाना बिल्कुल वाजिब है.

2014 तक भाजपा के आखिरी कोषाध्यक्ष पीयूष गोयल थे. फिलहाल उनके केंद्रीय मंत्री बनने के बाद से इस पद पर किसकी नियुक्ति की गई है, इसका खुलासा नहीं किया गया है. द वायर  द्वारा इस मामले पर की गई रिपोर्ट के दो दिन बाद भी पार्टी की इस मसले पर चुप्पी बनी हुई है.

इस मामले के सामने आने के बाद विभिन्न मीडिया संस्थानों के तमाम पत्रकारों ने भाजपा के प्रवक्ताओं से इस पर स्पष्टीकरण मांगा, लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया.

जहां एक ओर भाजपा नेतृत्व को इस बात का डर है कि कहीं यह मुद्दा प्राइम टाइम की बहस का हिस्सा न बन जाए, वहीं संघ परिवार के एक वरिष्ठ सदस्य का मानना है कि हर समस्या का उचित समाधान निकाला जाना जरूरी है.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है, ‘मोदी-शाह के युग में पार्टी के आतंरिक लोकतंत्र से जुड़ीं कई पुरानी परम्पराएं खत्म हुई हैं. ये मुद्दे इतनी जल्दी खत्म होने वाले नहीं हैं.’

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.