बिहार के विश्वविद्यालयों में छात्र-छात्राओं के भविष्य से क्यों किया जा रहा है खिलवाड़?

ज्ञान की जब भी चर्चा होती है तो वो बिहार के ऐतिहासिक नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय का ज़िक्र किए बिना पूरी नहीं होती, लेकिन उसी बिहार में आज शिक्षा व्यवस्था का हाल ये है कि आधा दर्जन विश्वविद्यालयों में विभिन्न सत्रों की परीक्षाएं कई सालों से लटकी हुई हैं.

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(फोटो साभार: फेसबुक)

ज्ञान की जब भी चर्चा होती है तो वो बिहार के ऐतिहासिक नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय का ज़िक्र किए बिना पूरी नहीं होती, लेकिन उसी बिहार में आज शिक्षा व्यवस्था का हाल ये है कि आधा दर्जन विश्वविद्यालयों में विभिन्न सत्रों की परीक्षाएं कई सालों से लटकी हुई हैं.

(फोटो साभार: फेसबुक)
(फोटो साभार: फेसबुक)

पिछले महीने की 22 तारीख़ को ओडिशा में आयोजित कार्यक्रम में एक सार्वजनिक मंच से ओडिशा का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा था, ‘मुझे यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि ओडिशा के विश्वविद्यालय बिहार के विश्वविद्यालयों से बेहतर कर रहे हैं. बिहार में शिक्षा व्यवस्था में माफिया राज है. परीक्षाएं उचित तरीके से नहीं होती हैं और अकादमिक कैलेंडर भी नहीं है. ओडिशा में ऐसी कोई समस्या नहीं है.’

इससे पहले 3 मई को पटना के एएन कॉलेज में आयोजित युवा महोत्सव में उन्होंने मंच से लगभग गुस्से से भरे लहज़े में कहा था, ‘बिहार में शायद ही कोई नेता हो, जिसने बीएड कॉलेज न खोल रखा हो. वे अवैध तरीके से छात्रों का एडमिशन ले लेते हैं. इसके बाद हमें मजबूरन उन कॉलेजों को मान्यता देनी पड़ती है क्योंकि मान्यता नहीं देने से छात्र-छात्राओं का भविष्य ख़तरे में आ जाता है. कॉलेज खोलने के लिए न तो मुझसे और न ही मुख्यमंत्री से ही अनुमति ली जाती है.’

उन्होंने आगे कहा था, ‘मैं किसी से नहीं डरता. मुझे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से समर्थन मिला हुआ है. मेरे पास रूलबुक है और मैं नियमों का कठोरता से पालन करूंगा.’

देश-दुनिया में शिक्षा के इतिहास को लेकर किसी भी तरह की चर्चा बिहार के ऐतिहासिक नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय का ज़िक्र किए बिना पूरी नहीं होती है, लेकिन उसी बिहार में शिक्षा व्यवस्था दिनोंदिन बद से बदतर स्थितियों की ओर बढ़ रही है. राज्यपाल सत्यपाल मलिक की दो तल्ख़ टिप्पणियां इसकी गवाह हैं.

मुज़फ़्फ़रपुर में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय (जिसे बिहार विश्वविद्यालय भी कहा जाता है), मधेपुरा में भूपेंद्र नारायण (बीएन) मंडल विश्वविद्यालय, भागलपुर में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, छपरा में जयप्रकाश विश्वविद्यालय, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा में ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी, दरभंगा में ही मगध विश्वविद्यालय, पटना में मौलाना मज़हरूल हक अरेबिक एंड पर्सियन विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, समस्तीपुर में राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, आरा में तिलका मांझी (भागलपुर) विश्वविद्यालय, भागलपुर में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय समेत एक दर्जन विश्वविद्यालयों (कुछ निजी विश्वविद्यालय भी शामिल) में से आधा दर्जन विश्वविद्यालय ऐसे हैं जहां परीक्षाएं एक-दो साल से हुई ही नहीं हैं.

कुछ मामलों में तो तीन साल से किसी सेमेस्टर की परीक्षा हुई ही नहीं है. लिहाज़ा तीन साल का स्नातक 5 से 6 साल में पूरा हो रहा है. छात्र या तो हाथ पर हाथ धरे डिग्री का इंतज़ार कर रहे हैं या फिर नौकरी की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर रवाना हो रहे हैं.

मोतिहारी ज़िले के पिपरा थानांतर्गत महारानी गांव के रहने वाले निरंजन कुमार ने बिहार विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले आरडीएस कॉलेज में वर्ष 2016 में स्नातक में नामांकन लिया था.

नामांकन करवाने के बाद से अभी तक एक भी सेमेस्टर की परीक्षा नहीं हुई, जबकि अब तक दो सेमेस्टर की परीक्षा पूरी हो जानी चाहिए थी.

निरंजन कहते हैं, ‘मेरे पिताजी किसानी करते हैं. घर में तीन बहनें हैं. दो की शादी हो चुकी है और एक की होनी है. मैंने सोचा था कि 2019 तक स्नातक की डिग्री लेकर अफसर ग्रेड की नौकरी की तैयारी करूंगा लेकिन लगता है कि स्नातक करने में ही 6 साल लग जाएंगे.’

निरंजन बताते हैं, ‘घर का इकलौता चिराग हूं, इसलिए घरवालों की उम्मीदें मुझसे ही हैं, लेकिन परीक्षा में लगातार हो रही देरी से अधिक दबाव में आ गया हूं. कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि करूं तो क्या करूं.’

निरंजन की तरह ही मोतिहारी के श्रीकृष्ण नगर में रहने वाले रामसागर कुमार ने सोचा था कि 2019 में स्नातक कर वह स्नातक के स्तर पर होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठेंगे.

उन्होंने 2016 में बिहार विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल कॉलेज में एडमिशन लिया था. अब तक दो सेमेस्टर की परीक्षा पूरी हो जानी चाहिए थी, लेकिन पहले सेमेस्टर की परीक्षा भी नहीं हुई है.

निरंजन ने कहा, ‘सोचा था कि ग्रेजुएशन करके कुछ किया जाएगा, लेकिन अब लग रहा है कि इंटरस्तरीय प्रतियोगी परीक्षाएं ही देनी होंगी. यूनिवर्सिटी के भरोसे रहेंगे, तो करिअर ही चौपट हो जाएगा.’

बिहार विश्वविद्यालय में तीन दर्जन अंशभूत कॉलेज व करीब 40 अंगीभूत कॉलेज आते हैं. इस विश्वविद्यालयों में तकरीबन तीन लाख छात्र पढ़ते हैं और करीब-करीब हर कोर्स की परीक्षाएं अपने निर्धारित समय से लेट हैं.

परीक्षाओं को लेकर अनिश्चितता के कारण कई छात्रों ने मुक्त विश्वविद्यालयों में एडमिशन करवा लिया है.

छात्रों का कहना है कि परीक्षाएं नियमित करने को लेकर वे जब भी आंदोलन करते हैं तो विश्वविद्यालय प्रबंधन का रटा-रटाया जवाब आता है कि पूर्व के पदाधिकारियों ने ही प्रक्रिया विलंब कर रखी थी, इसलिए इसे ठीक करने में वक़्त लगेगा.

मधेपुरा स्थित भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की स्थापना 10 जनवरी 1992 को हुई थी. इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत 27 अंशभूत कॉलेज, 47 अंगीभूत कॉलेज, दो इंजीनियरिंग कॉलेज, 13 बीएड कॉलेज, चार लॉ कालेज, दो मेडिकल कॉलेज व एक सरकार प्रायोजित बीएड/एमएड कॉलेज हैं.

इस विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट पर इसके बारे में जो सूचना दी गई है, उसमें साफ तौर पर कहा गया है कि यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि यहां शिक्षकों की भी कमी है.

इस विश्वविद्यालय में सभी सत्र निर्धारित समय से दो वर्ष पीछे चल रहे हैं. स्नातक के लिए 2015 में नामांकन करवाने वाले छात्रों को डिग्री मिल जानी चाहिए थी, लेकिन अब तक पहले सत्र की ही परीक्षा हो पाई है.

वर्ष 2016, 2017 और 2018 में नामांकन कराने वाले छात्रों के एक सत्र की भी परीक्षा अब तक नहीं हुई है. छात्रों ने बताया कि वर्ष 2016 में एडमिशन लेने वाले छात्रों के पहले सत्र की परीक्षा के लिए अभी फॉर्म भरने की तिथि घोषित हुई है, लेकिन परीक्षा कब होगी, इसकी कोई सूचना नहीं है.

यही हाल स्नातकोत्तर में एडमिशन लेने वाले छात्रों का भी है. वर्ष 2015 में एडमिशन लेने वाले छात्र पहले सत्र की परीक्षा ही दे पाए हैं, जबकि इस साल उन्हें डिग्री हासिल हो जानी चाहिए थी.

भूपेंद्र नारायण मंडल यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आरडीएस कॉलेज (कटिहार) में स्नातक के छात्र अशोक कुमार ने वर्ष 2014 में ही दाख़िला लिया था, लेकिन पहले सत्र की परीक्षा पिछले साल सितंबर में ली गई.

अशोक कटिहार के ग्वालटोली गांव में रहते हैं. उन्होंने बताया, ‘वर्ष 2016 में दूसरे सत्र की परीक्षा होनी चाहिए थी, लेकिन दूसरे सत्र में एडमिशन इस साल लेना पड़ा, क्योंकि पहले सत्र की परीक्षा ही पिछले साल हुई.’

अशोक की उम्र अभी 25 साल है. उन्होंने बताया, ‘मैंने सोचा था कि 24 साल की उम्र तक स्नातक कर लूंगा और फिर डीएलटीई करके टीचर बनूंगा, लेकिन लगता है कि 28 साल की उम्र में स्नातक की डिग्री मिल पाएगी.’

वह गुस्से में कहते हैं, ‘आप ही बताइए कि एक ही सत्र की किताबें कोई कितने साल तक पढ़ता रहेगा? परीक्षाएं इतनी देर से हो रही हैं कि धीरे-धीरे पढ़ने की इच्छा ही मरती जा रही है.’

अशोक को समझ में नहीं आ रहा है कि आख़िर इस स्थिति से वह कैसे निपटे. उन्होंने कहा, ‘सरकार इतनी निकम्मी हो चुकी है कि क्या कहें! हम जो सोचते हैं, सरकार वह होने ही नहीं देती है. हमारा जो तीन महत्वपूर्ण साल बर्बाद होगा, क्या उसकी भरपाई सरकार करेगी?’

अशोक अकेले नहीं हैं. इस विश्वविद्यालय के तहत आने वाले कॉलेजों में हज़ारों छात्र पढ़ते हैं और सभी का दर्द कमोबेश एक-सा है.

वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के अंतर्गत बक्सर, भोजपुर, आरा, रोहतास व कैमूर के 17 अंशभूत कॉलेज और 83 अंगीभूत कॉलेज आते हैं.

यहां भी स्नातक व स्नातकोत्तर के सत्र लेट चल रहे हैं.

2015 में स्नातक में एडमिशन लेने वाले छात्रों की अब तक आख़िरी सत्र की परीक्षा नहीं हुई है, जबकि उनके हाथों में डिग्री होनी चाहिए थी. 2016 में स्नातक में दाखिला लेने वाले छात्रों की दो सत्रों की परीक्षा ख़त्म होनी थी, लेकिन अभी तक एक सत्र की ही परीक्षा हो सकी है. 2017 में नामांकन कराने वाले छात्रों के एक सेमेस्टर की भी परीक्षा अब तक नहीं हुई है.

2016 में स्नातकोत्तर में दाख़िला लेने वाले छात्रों की इस साल आख़िरी परीक्षा होनी थी, लेकिन अब तक परीक्षा की तिथि घोषित नहीं हुई है. छात्रों को पता नहीं है कि आख़िर परीक्षा कब होगी.

स्नातक व स्नातकोत्तर मिलाकर इस विश्वविद्यालय में करीब एक लाख छात्र पढ़ते हैं. विश्वविद्यालय के छात्र नेता शिव प्रकाश कहते हैं, ‘यहां बीएड की परीक्षा भी लेट चल रही थी, लेकिन हम लोगों ने लगातार आंदोलन चलाकर इसे ठीक कराया है.’

जयप्रकाश विश्वविद्यालय में भी परीक्षाएं लेट चल रही हैं. यहां 2013 में स्नातक में एडमिशन कराने वाले छात्रों को 2016 में डिग्री मिल जानी चाहिए थी, लेकिन आखिरी सत्र की परीक्षा इस साल ली गई.

2014 में स्नातक में दाखिला लेने वाले छात्र अब तक दो सेमेस्टर की परीक्षा ही दे पाए हैं, जबकि 2015 में नामांकन कराने वाले छात्रों के एक सेमेस्टर की परीक्षा भी नहीं हो पाई है. यही हाल 2016 और 2017 में एडमिशन कराने वाले छात्रों का भी है.

तिलका मांझी (भागलपुर) यूनिवर्सिटी में 2013 में स्नातक में एडमिशन लेने वाले छात्रों की पढ़ाई 2016 में ही पूरी हो जानी चाहिए थी, लेकिन अब तक वे कॉलेज में हैं क्योंकि सेमेस्टर लेट है. इसी तरह दूसरे सत्रों में नामांकन कराने वाले छात्रों का भी सेमेस्टर लेट चल रहा है.

छात्र-छात्राओं का आरोप है कि परीक्षा विभाग की लापरवाही के कारण छात्रों के करिअर की बलि चढ़ रही है.

मगध विश्वविद्यालय के तहत सबसे अधिक कॉलेज आते हैं.

पिछले साल जून में राज्य सरकार ने मगध विश्वविद्यालय के 61 डिग्री कॉलेजों की संबद्धता इस बिना पर रद्द कर दी थी कि इन कॉलेजों में बुनियादी संरचनाओं का घोर अभाव था. संबद्धता रद्द किए जाने के साथ ही इन कॉलेजों में नामांकन भी रोक दिया गया था.

नियमानुसार कॉलेजों की संबद्धता के लिए विश्वविद्यालय कॉलेज का निरीक्षण करके रिपोर्ट बनाता है और मंज़ूरी के लिए सीमेट व सिंडिकेट से मंज़ूरी ली जाती है. इसके बाद संबद्धता के लिए राज्य सरकार के पास भेजा जाता है.

इस पूरे मामले में विश्वविद्यालय से जुड़े कतिपय अधिकारियों पर मिलीभगत के आरोप भी लगे थे. बताया जाता है कि इन कॉलेजों की संबद्धता रद्द करने से जुड़ा पत्र राज्य सरकार ने विश्वविद्यालय को बहुत पहले भेज दिया था, लेकिन कतिपय अफसरों ने शिक्षा माफियाओं की मदद करते हुए उस पत्र को दबा दिया.

इस विश्वविद्यालय में भी विभिन्न सेमेस्टर की परीक्षाएं देरी से हो रही हैं. 2015 में स्नातकोत्तर में दाख़िला लेने वाले छात्रों की एक भी परीक्षा अब तक नहीं हुई है. इसी तरह 2016 और 2017 में स्नातकोत्तर में दाख़िला लेने वाले छात्रों की भी परीक्षा नहीं हुई है.

स्नातक की बात करें तो 2015 में एडमिशन लेने वाले छात्रों के दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा इस साल हुई है जबकि इस साल उनकी पढ़ाई पूरी हो जानी चाहिए थी. इसी तरह 2016 में स्नातक में दाख़िला लेने वाले छात्रों की परीक्षा भी एक साल देरी से चल रही है.

छात्रों ने बताया कि 2016 में छात्रों की पहले सेमेस्टर की परीक्षा के लिए इस साल रजिस्ट्रेशन हुआ है. परीक्षा अभी तक नहीं हुई है.

वर्ष 2015 में मगध विश्वविद्यालय में स्नातक में दाख़िला लेने वाले छात्र जयंत ने बताया कि अभी तक तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा नहीं हुई है.

उन्होंने कहा, ‘बहुत सारे छात्र जुलाई में होने वाले कम्बाइंड ग्रेजुएशन लेवल की परीक्षा देना चाहते हैं. इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर इनकम टैक्स अफसर के स्तर की नौकरी मिलती है. लेकिन छात्रों को डर है कि अगर प्रतियोगी परीक्षा पास भी कर गए तो निर्धारित समय पर स्नातक का रिजल्ट ही नहीं निकल पाएगा. रिजल्ट नहीं निकलेगा, तो वे यह साबित नहीं कर पाएंगे कि उन्होंने स्नातक किया है और इस तरह उनके हाथ से नौकरी निकल जाएगी.’

मगध विश्वविद्यालय में बीएड की परीक्षाएं भी देरी से चल रही हैं. बताया जाता है कि बीएड में 2015 में दाख़िला लाने वाले छात्रों की फाइनल परीक्षा इस साल हुई है जबकि 2016 में दाखिला लेने वाले छात्रों की के पहले सेमेस्टर की परीक्षा अभी तक हो पाई है.

मगध विश्वविद्यालय में स्नातक में करीब पांच लाख, स्नातकोत्तर में 20 हज़ार और बीएड में 10 हज़ार छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं.

परीक्षा में देरी के साथ ही इस विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के सामने एक और नई समस्या आ खड़ी हुई है.

दरअसल, राज्य सरकार ने हाल ही में पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय नाम से नए विश्वविद्यालय की स्थापना की है. मगध विश्वविद्यालय से अंशभूत व अंगीभूत जो कॉलेज पटना और नालंदा में स्थित हैं, उन्हें पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय के अधीन कर दिया जाएगा. लेकिन, इस बारे में छात्रों को कोई सूचना नहीं दी गई है.

पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय के अंतर्गत एएन कॉलेज के छात्र नेता ललित कुमार ने कहा, ‘मगध विश्वविद्यालय चाहता है कि पटना और नालंदा के जितने भी कॉलेज पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय के अधीन जाएंगे, उन सभी कॉलेजों के सभी सत्रों के छात्रों का दायित्व पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय प्रबंधन ले, लेकिन पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय का कहना है कि 2017 के बाद जिन छात्र-छात्राओं ने नामांकन कराया है, उनका दायित्व ही वह लेगा. प्रबंधन की इस खींचतान से तीन लाख छात्र-छात्राएं प्रभावित होंगे.’

राज्य के शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि 18 जून से पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय चालू हो जाएगा और छात्र-छात्राओं की सारी दुविधाएं दूर हो जाएंगी.

ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आईसा) के स्टेट प्रेसिडेंट मुख़्तार आलम ने कहा कि आधा दर्जन विश्वविद्यालयों में परीक्षाएं देरी से हो रही हैं, जिससे लाखों छात्रों का करिअर बर्बाद हो रहा है. इसको लेकर अनगिनत बार शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय प्रबंधन से मुलाकातें की गईं, लेकिन इस दिशा में अब तक कोई सुधार नहीं दिख रहा है.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता सौरभ कुमार ने भी परीक्षा में विलंब को लेकर बिहार सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सरकार छात्र-छात्राओं के दुख-दर्द को समझना ही नहीं चाहती है.

शिक्षाविद और मगध विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर मोहम्मद इश्तियाक का कहना है, ‘विश्वविद्यालय में तमाम तरह की समस्याएं ज़रूर हैं, लेकिन वाइस चांसलर चाह लें, तो परीक्षाएं समय पर ली जा सकती हैं.’

उन्होंने वाइस चांसलर रहते हुए परीक्षा नियमित समय पर लेने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी देते हुए कहा, ‘मैं जब मगध विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर बनकर आया था, तो परीक्षाएं निर्धारित समय से देरी से चल रही थीं. मैंने सभी अधिकारियों, कॉलेज के टीचरों व अन्य पदाधिकारियों की बैठक की और सीधे तौर पर यह कह दिया कि परीक्षा तय समय के भीतर ही लेनी होगी.’

मोहम्मद इश्तियाक ने बताया, ‘मैंने छात्र यूनियनों से भी साफ कह दिया कि परीक्षा की तारीख़ किसी भी सूरत में नहीं बढ़ेगी. परीक्षा के दौरान निगरानी चुस्त की गई और उत्तर पुस्तिकाएं निर्धारिस सेंटरों में जमा करवाकर डेढ़ महीने के भीतर उनकी जांच कराकर रिजल्ट जारी कर दिया.’

उन्होंने कहा, ‘यह सच है कि बिहार के कॉलेजों में टीचरों की किल्लत है, लेकिन इसके बावजूद अगर वाइस चांसलर चाहें, तो समय पर परीक्षा हो सकती है. बहुत कुछ इच्छाशक्ति पर भी निर्भर करता है.’

आधा दर्जन विश्वविद्यालयों में परीक्षाएं विलंब से चलने को लेकर बिहार के शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा के मोबाइल नंबर पर फोन किया गया, लेकिन कई बार संपर्क करने के बावजूद उन्होंने फोन नहीं उठाया.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है.)

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