देश में प्रतिबंध के बावजूद चार गुना बढ़े मैला ढोने वाले

सरकार द्वारा जारी एक आंकड़े के अनुसार देश के 12 राज्यों के करीब 53 हज़ार से ज़्यादा लोग मैला ढोने के काम में लगे हुए हैं.

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(फोटो: जाह्नवी सेन/द वायर)

सरकार द्वारा जारी एक आंकड़े के अनुसार देश के 12 राज्यों के करीब 53 हज़ार से ज़्यादा लोग मैला ढोने के काम में लगे हुए हैं.

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उत्तर प्रदेश के इटावा में मैला साफ करती एक मैनुअल स्कैवेंजर (फोटो: जाह्नवी सेन/द वायर)

देश में मैला ढोने की प्रथा खत्म करने से जुड़ा पहला कानून 1993 आया था, इसके बाद 2013 में इससे संबंधित दूसरा कानून बना, जिसके मुताबिक नाले-नालियों और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए रोज़गार या ऐसे कामों के लिए लोगों की सेवाएं लेने पर प्रतिबंध है.

विभिन्न अदालतों द्वारा समय-समय पर मानवाधिकार और गरिमामय जीवन जीने के संवैधानिक अधिकार का हवाला देते हुए कहा गया कि सरकार मैला ढोने (मैनुअल स्कैवेंजर) वाले लोगों को पहचानकर उनके पुनर्वास के लिए काम करे. लेकिन स्थिति यह है कि कानून और अदालती निर्देशों के बावजूद मैनुअल स्कैवेंजर की संख्या बढ़ती जा रही है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक एक अंतर-मंत्रालयी कार्यबल (इंटर-मिनिस्टीरियल टास्क फोर्स) द्वारा देश में मौजूद मैनुअल स्कैवेंजर की संख्या का आंकड़ा जारी किया गया है. उनके मुताबिक देश के 12 राज्यों में 53, 236 लोग मैला ढोने के काम में लगे हुए हैं.

यह आंकड़ा साल 2017 में दर्ज पिछले आधिकारिक रिकॉर्ड का चार गुना है. उस समय यह संख्या 13,000 बताई गयी थी.

हालांकि यह पूरे देश में काम कर रहे मैनुअल स्कैवेंजर का असली आंकड़ा नहीं है क्योंकि इसमें देश के 600 से अधिक जिलों में से केवल 121 जिलों का आंकड़ा शामिल है.

द वायर  द्वारा इस बारे में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया भी गया था कि सरकार द्वारा पहले फेज में देश में काम कर रहे मैनुअल स्कैवेंजर की गिनती की जा रही है.

पहले फेज में वो सफाईकर्मी शामिल थे जो रात के समय सूखे शौचालयों को साफ करते हैं. सरकार द्वारा दिए गये आंकड़े में सीवर और सेप्टिक टैंक साफ करने वाले सफाईकर्मियों का आंकड़ा नहीं है. इस टास्क फोर्स को 30 अप्रैल तक यह सर्वे देना था लेकिन इसमें देर हुई.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इसकी वजह राज्यों का असहयोग था क्योंकि वे यह बात नहीं स्वीकारना चाहते थे कि वे इस मुद्दे से निपटने और इससे जुड़े लोगों के पुनर्वास में नाकाम रहे हैं.  इस सर्वे का संपूर्ण आंकड़ा इस महीने के अंत तक आने की उम्मीद है.

सरकार द्वारा नेशनल सर्वे में बताए 53 हज़ार मैनुअल स्कैवेंजर की संख्या में से राज्यों ने 6,650 को ही आधिकारिक रूप से स्वीकारा है. राज्य सरकारों का यह रवैया स्पष्ट रूप से मैला ढोने की प्रथा और सफाई कर्मचारियों की समस्याओं को लेकर उनकी उदासीनता दिखाता है.

पहले फेज का सर्वे 18 राज्यों के 170 जिलों में किया जाना था लेकिन अधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक यह सर्वे 12 राज्यों के 121 जिलों में किया गया. सर्वे में बिहार, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल शामिल नहीं हैं.

टास्क फोर्स के एक सदस्य ने बताया, ‘जिन 12 राज्यों ने सर्वे में हिस्सा लिया, वे भी हमारे द्वारा दी गयी मैनुअल स्कैवेंजर की संख्या की पुष्टि करने में अनिच्छुक दिखे.’

सबसे ज्यादा 28, 796 मैनुअल स्कैवेंजर उत्तर प्रदेश में रजिस्टर किए गए हैं, वहीं मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे राज्य जहां राज्यों द्वारा शून्य से 100 तक की संख्या दर्ज की गयी थी, वहां यह आंकड़ा काफी बढ़ा है.

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