मल्टीप्लेक्स में खाद्य पदार्थ महंगे, सरकार कीमतें नियमित क्यों नहीं कर सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट

मल्टीप्लेक्स में खाद्य पदार्थ ले जाने पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ लगाई जनहित याचिका में दावा किया गया है कि ऐसा कोई क़ानूनी या संवैधानिक प्रावधान नहीं है जो थिएटर के अंदर अपनी भोजन सामग्री या पानी ले जाने से रोकता है.

(फोटो साभार: फेसबुक/@INOXLEISURE)

मल्टीप्लेक्स में खाद्य पदार्थ ले जाने पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ लगाई जनहित याचिका में दावा किया गया है कि ऐसा कोई क़ानूनी या संवैधानिक प्रावधान नहीं है जो थिएटर के अंदर अपनी भोजन सामग्री या पानी ले जाने से रोकता है.

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(फोटो साभार: फेसबुक/@INOXLEISURE)

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि वह राज्य के मल्टीप्लेक्स में अधिक कीमतों पर बिकने वाले खाद्य पदार्थों के दाम नियंत्रित क्यों नहीं कर सकती.

जस्टिस रणजीत मोरे और जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई की पीठ ने पाया कि कुछ पदार्थों की कीमतें अत्यधिक हैं. उन्होंने राज्य से बॉम्बे पुलिस अधिनियम का अध्ययन कर यह पता लगाने को कहा है कि सिनेमा हॉल में बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थों को नियंत्रित किया जा सकता है या नहीं?

पीठ ने कहा, ‘मल्टीप्लेक्स में बेचे जाने वाले खाद्य एवं पेय पदार्थों की कीमतें अत्यधिक हैं. कई बार, कुछ खाद्य पदार्थ सिनेमा टिकट से भी महंगे होते हैं.’

उसने कहा, ‘हम समझते हैं कि सरकार लोगों को घर से भोजन लाने की अनुमति नहीं दे सकती. लेकिन, वह सिनेमा थिएटर में बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थों की कीमतें नियंत्रित करने के लिए कदम क्यों नहीं उठा सकती?’

पीठ ने यह टिप्पणियां उस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कीं जिसमें सिनेमा थिएटर और मल्टीप्लेक्स में खाद्य पदार्थ ले जाने पर प्रतिबंध को चुनौती दी गई है.

यह जनहित याचिका जैनेंद्र बक्सी ने अपने वकील आदित्य प्रताप के जरिए दायर की है.

याचिका में दावा किया गया है कि ऐसा कोई कानूनी या संवैधानिक प्रावधान नहीं है जो फिल्म थिएटर के अंदर स्वयं की भोजन सामग्री या पानी ले जाने से रोकता है.

प्रताप ने कोर्ट को यह भी बताया कि महाराष्ट्र सिनेमा (विनियमन) नियम सिनेमाघरों और सभागारों के अंदर भोजन को बेचने पर रोक लगाता है.

हालांकि, मल्टीप्लेक्स मालिक संघ ने वरिष्ठ वकील इक़बाल चागला के माध्यम से कहा कि संघ थिएटर के अंदर खाद्य सामग्री बेचने के दाम रिटेलर द्वारा तय किए जाने के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है.

चागला ने कहा, ‘अगर मैं कल एक फाइव स्टार होटल में जाता हूं, मैं उन्हें नहीं कह सकता कि वे जो कॉफी बेच रहे हैं उसकी कीमत करें. ऐसा इसलिए क्योंकि एक महंगे होटल में जाना मैंने ही चुना है. इसी तरह, यह एक व्यक्ति की पसंद है कि वह मल्टीप्लेक्स में जाए और एक कोल्ड ड्रिंक का ग्लास 200 रुपये में खरीदे. अब, मैं कोला कंपनी को नहीं कह सकता कि वह अपनी कीमतें कम करे.’

उन्होंने कहा, ‘जब कोई फिल्म का टिकट खरीदता है तो यह समझौता का हिस्सा बन जाता है कि उसे बाहर का खाना अंदर ले जाने की अनुमति नहीं होगी.’

उन्होंने आगे कहा, ‘और लोगों को घर से खाना लाने के लिए सुरक्षा कारणों से रोका जाता है. वे स्वतंत्र हैं कि इन तीन घंटों (फिल्म की अवधि) के दौरान कुछ न खरीदें. चूंकि पानी जरूरी होता है इसलिए हम फिल्टर और आरओ का पानी निशुल्क उपलब्ध कराते हैं.’

हालांकि पीठ ने गौर किया कि वरिष्ठ नागरिक जन और वे जो किसी स्वास्थ्य समस्या का सामना कर रहे हैं जैसे डायबिटीज, उन्हें नियमित अंतराल पर खाने की जरूरत होती है और वे हमेशा मल्टीप्लेक्स में जो बेचा जा रहा है, उसे नहीं खा सकते हैं.

पीठ ने कहा, ‘सामान्यत: आप (संघ और मल्टीप्लेक्स मालिक) जनता को वह खरीदने और खाने के लिए विवश कर रहे हैं जो आप अपनी सुविधानुसार कीमत पर बेचते हैं.’

पीठ ने राज्य को निर्देश दिया कि वह चार हफ्तों में एक शपथ-पत्र पेश करे और अपना रुख आवश्यक विनियमन लागू किए जाने पर स्पष्ट करे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)