जांच के नाम पर वॉर्डन ने 70 छात्राओं के कपड़े उतरवाए, विरोध के बाद बर्ख़ास्त

मुज़फ्फरनगर के खतौली के एक बालिका विद्यालय में बाथरूम में खून के धब्बे मिलने पर वॉर्डन ने 70 छात्राओं को धमकाया और बिना कपड़ों के क्लास में बैठने को मजबूर किया.

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मुज़फ़्फ़नगर के एक बालिका विद्यालय में बाथरूम में खून के धब्बे मिलने पर वॉर्डन ने 70 छात्राओं को धमकाया और बिना कपड़ों के क्लास में बैठने को मजबूर किया.

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स्कूल के बाहर नारेबाज़ी करती छात्राएं (फोटो साभार : वीडियो स्क्रीनशॉट न्यूज़18 डॉट कॉम)

मामला ज़िले के खतौली कस्बे के तिगाई गांव स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय का है. यहां की छात्राओं ने वॉर्डन सुरेखा तोमर पर आरोप लगाया है कि उन्होंने उनके कपड़े उतरवा कर क्लास में बैठने को मजबूर किया.

मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक छात्राओं ने बताया कि 29 मार्च को स्कूल के बाथरूम में खून के धब्बे देखने के बाद वॉर्डन सुरेखा तोमर ने छात्राओं से पूछताछ की. जब किसी छात्र ने इस बारे में जानकारी होने से मना किया तब सुरेखा ने यह जांचने के लिए कि किस छात्रा को पीरियड्स हो रहे हैं, उन्हें कपड़े उतारकर दिखाने को कहा.

उन्होंने कहा कि कपड़े नहीं उतारे तो वे उन्हें मारेंगी. कुछ छात्राओं का कहना है कि उन्हें ‘बड़ी मैडम’ ने धमकाया और मारा भी. एक छात्रा ने मीडिया को बताया, ‘मैडम ने हमें कपड़े उतारने को कहा और ऐसा न करने पर उन्होंने हमें पीटने की बात कही, हम बच्चें हैं हम क्या कर सकते थे? अगर हम उनका कहना नहीं मानते तो वह हमें पीटतीं.’

गौरतलब है कि इस विद्यालय में 6 साल से 14 साल तक की बच्चियां पढ़ती हैं. घटना के बाद बच्चियों ने अपने परिजनों को इस घटना की जानकारी दी, जिसके बाद उन्होंने स्कूल आकर हंगामा किया. कुछ अभिभावक अपनी बेटियों को स्कूल से घर वापस भी ले गए. छात्राओं ने भी इसका विरोध करते हुए नारेबाज़ी की.

मीडिया में मामले के तूल पकड़ने के बाद आनन-फानन में बेसिक शिक्षा अधिकारी चंद्रकेश यादव ने वॉर्डन के ख़िलाफ़ पांच सदस्यीय जांच-समिति का गठन किया, जिसकी जांच रिपोर्ट आने के बाद वॉर्डन को बर्ख़ास्त कर दिया गया. वहीं वॉर्डन सुरेखा तोमर का कहना है कि उनके ख़िलाफ़ साजिश की जा रही है. जैसा बताया जा रहा है वैसा कुछ नहीं हुआ था.

मीडिया से बात करते हुए सुरेखा ने कहा, ‘बच्चों के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है. बाथरूम की दीवार और दरवाज़े पर खून पाया गया. तो बच्चों से ये पूछा गया कि किसी को मासिक जैसी कोई समस्या तो नहीं है. 10-12 साल की बच्चियों के साथ ऐसा हो जाता है और उन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं होती. ये सब जानने के लिए ही कि कहीं किसी बच्चे को ऐसी कोई परेशानी तो नहीं है मैंने पूछा था. ये सब स्टाफ की साज़िश है. स्टाफ नहीं चाहता कि मैं यहां रहूं. मुझसे कहा गया था कि चेक करती रहूं कि वे लोग क्लास ले रहे हैं या नहीं. मैं उनके साथ सख्त व्यवहार करती हूं मगर पढ़ाई के लिए, इसलिए वो मुझसे नफ़रत करती हैं. मुझसे चिढ़ते हैं. सच यही है कि स्टाफ उन्हें (छात्राओं को) भड़का रहा है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ) 

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