अलवर मॉब लिंचिंग: पुलिस समय पर अस्पताल ले जाती तो बच सकती थी रकबर की जान

ग्राउंड रिपोर्ट: रकबर ख़ान उर्फ अकबर के साथ बेहरमी से मारपीट का आरोप झेल रही रामगढ़ थाने की पुलिस ने यह स्वीकार किया है कि वह उसे अस्पताल ले जाने के बजाय कागजी कार्रवाई करने के लिए थाने ले गई थी.

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ग्राउंड रिपोर्ट: रकबर ख़ान उर्फ अकबर के साथ बेहरमी से मारपीट का आरोप झेल रही रामगढ़ थाने की पुलिस ने यह स्वीकार किया है कि वह उसे अस्पताल ले जाने के बजाय कागजी कार्रवाई करने के लिए थाने ले गई थी.

Alwar Lynching ANI
घटनास्थल पर पुलिस (फोटो साभार: एएनआई)

अलवर: राजस्थान के अलवर जिले में गो तस्करी के शक में मारे गए अकबर खान उर्फ रकबर की मौत पर संदेह बढ़ता जा रहा है. रामगढ़ थाने में तैनात एएसआई मोहन सिंह ने स्वीकार किया है कि रकबर को अस्पताल ले जाने की बजाय पहले थाने लेकर आए थे. वे कहते हैं, ‘थाने पर लिखत-पढ़त में ज्यादा समय लग गया इसलिए रकबर को अस्पताल ले जाने में देरी हो गई.’

रामगढ़ के सरकारी अस्पताल में रकबर को देखने वाले डॉ. हसन अली का कहना है कि यदि पुलिस उसे सीधे अस्पताल ले आती तो उसकी जान बच सकती थी. वे कहते हैं, ‘मीडिया में आ रहा है कि पुलिस रकबर को रात एक बजे ही घटनास्थल से ले आई थी. उसे तब ही अस्पताल ले आते तो उसकी जान बचाई जा सकती थी. रामगढ़ पुलिस उसे सुबह 4 बजे अस्पताल लाई. तब तक वह मर चुका था.’

अलवर के राजीव गांधी मेमोरियल अस्पताल की ओर से जारी प्रारंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार रकबर की मौत अंदरूनी चोटों की वजह से बहे ख़ून से हुई. यानी रकबर को समय पर उपचार मिल जाता तो उसकी जान बचाई जा सकती थी.

ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि पुलिस रकबर खान को तीन घंटे तक थाने में लेकर क्यों बैठी रही. ऐसे कौन से कागज थे, जिन्हें तैयार करने में इतना समय लग गया? क्या पुलिस ने मृतक के साथ मारपीट की?

इन सवालों पर पुलिस का कोई अधिकारी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है. वे मारपीट नहीं होने की बात कहकर ही पल्ला झाड़ रहे हैं. इस बीच एक और महिला सामने आई है, जिसने पुलिसकर्मियों को रकबर खान के साथ मारपीट करते हुए देखा.

ललावंडी गांव की मायादेवी के मुताबिक शुक्रवार की रात को वे चिल्लाने की आवाज सुनकर बाहर आई तो उन्होंने पुलिस वालों को मारपीट व गाली-गलौच करते हुए देखा. उल्लेखनीय है कि यह गांव घटनास्थल और रामगढ़ थाने के रास्ते में पड़ता है.

मायादेवी कहती हैं, ‘चिल्लाने की आवाज सुनकर मैं बाहर आई तो पुलिस वाले जीप में पटककर किसी को मार रहे थे. जब मैंने इसकी वजह पूछी तो गाड़ी में बैठे हमारे गांव के नवल किशोर शर्मा ने मुझसे कहा कि चाची तुम भीतर जाओ, यह गो तस्कर है. मैं आकर सो गई. अब पता चला कि पुलिस वाले जिसे मार रहे थे वह मर गया है. पुलिस हमारे गांव के ही तीन लोगों को पकड़कर ले गई है.’

काबिलेगौर है कि ललावंडी गांव के नवल किशोर शर्मा ने ही पुलिस को यह सूचना दी थी कि कुछ लोग गायों को लेकर हरियाणा की तरफ जा रहे हैं. वे पुलिस के साथ न सिर्फ घटनास्थल पर गए, बल्कि सुबह तक उनके साथ ही रहे. उन्होंने ही सबसे पहले यह कहा कि पुलिस वालों ने रकबर खान को बेरहमी से मारा, जिससे उसकी मौत हुई. रामगढ़ से भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने भी इन्हीं आरोपों को दोहराया.

यह भी सामने आया है कि पुलिस ने अकबर को अस्पताल पहुंचाने से ज़्यादा फुर्ती गायों को गोशाला पहुंचाने में दिखाई. जानकारी के अनुसार पुलिस ने ललावंडी गांव के किशन लाल के वाहन से दोनों गायों को 10 किलोमीटर दूर सुधासागर गोशाला पहुंचाया. यहां रात्रि 3 बजे गायें पहुंच गई थीं.

इस बीच पुलिस ने तीसरे आरोपी को भी गिरफ्तार कर लिया है. रामगढ़ थाने के प्रभारी सुभाष शर्मा ने बताया, ‘इस मामले में चार लोगों को नामजद किया गया था, जिनमें से परमजीत सिंह और धर्मेंद यादव को घटना के कुछ घंटे बाद ही गिरफ्तार कर लिया जबकि नरेश राजपूत को शनिवार देर रात गिरफ्तार किया गया. चौथा आरोपी विजय मूर्तिकार अभी फरार है.’

धर्मेंद यादव ने एक फेसबुक पोस्ट में शेयर भगवा रेली का एक पोस्टर.
आरोपी धर्मेंद्र यादव के फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट भगवा रैली का पोस्टर.

इन आरोपियों के बारे में जो जानकारी सामने आई है वह चौंकाने वाली है. धर्मेंद यादव ने एक फेसबुक पोस्ट में भगवा रेली का एक पोस्टर शेयर किया है. इसमें उन्होंने ख़ुद व परमजीत सिंह को विश्व हिंदू परिषद के गोरक्षा विभाग से जुड़ा बताया है. पोस्टर में घटना की सूचना देने वाले नवल किशोर शर्मा को इस विभाग के प्रमुख के तौर पर दिखाया गया है.

स्थानीय भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने पुलिस की कार्रवाई पर नाराजगी जाहिर की है. ‘द वायर’ से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘पुलिस अपनी गलती का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ रही है. रकबर खान की मौत पुलिस की मारपीट से हुई है. पुलिस जिन चार लोगों को हत्यारा साबित करने पर तुली है, वे पूर्व में भी पुलिस की मदद करते रहे हैं. उस दिन भी इन्होंने पुलिस की सहायता की.’

अपनी ही पार्टी के विधायक की ओर से पुलिस पर आरोप लगने के बाद सरकार इस मामले में फूंक-फूंककर कदम रख रही है. मामले की जांच अब रामगढ़ पुलिस नहीं करेगी. जयपुर रेंज के आईजी हेमंत प्रियदर्शी ने केस की जांच क्राइम ब्रांच विजिलेंस के एडिशनल एसपी वीर सिंह को सौंप दी है.

प्रियदर्शी ने ‘द वायर’ को बताया, ‘रकबर की मौत मामले में सभी पहलुओं को शामिल कर जांच की जा रही है. जांच जयपुर रेंज के क्राइम एंड विजिलेंस एडिशनल एसपी वीर सिंह को दी गई है.’

विधायक ज्ञानदेव आहूजा इससे संतुष्ट नहीं हैं. वे कहते हैं, ‘जब तक मामले की न्यायिक जांच नहीं होगी तब तक सच्चाई सामने नहीं आएगी. पुलिस अपनी जांच में खुद के साथियों को ही दोषी क्यों मानेगी. रामगढ़ थाने के अंदर हिरासत में मौत का यह पहला मामला नहीं है. पिछले साल मई में जहानपुर गांव के सतनाम सिंह की मौत भी इसी थाने में हुई थी.’

आहूजा के आरोपों पर गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया और पुलिस के उच्च अधिकारी तो कुछ भी बोलने का तैयार नही हैं. अलवर के पुलिस अधीक्षक राजेंद्र सिंह भी संभलकर बोल रहे हैं. वे कहते हैं, ‘फिलहाल मामले की जांच चल रही है. किसी भी निर्दोष को फंसाया नहीं जाएगा और दोषी को बख्शा नहीं जाएगा.’

हिरासत में मौत के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘यदि जांच में पुलिसकर्मियों की भूमिका भी संदेहास्पद मिली तो उनके खिलाफ भी निश्चित रूप से कार्रवाई होगी. अब तक की जांच में अगर कोई तथ्य छूट गया है या टाइमलाइन में कोई गड़बड़ी है तो इसकी निष्पक्ष जांच होगी. कोई चश्मदीद गवाह है तो वह भी अपने बयान दर्ज करवा सकता है.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और जयपुर में रहते हैं.)