अब गोवंश का लिंगानुपात दुरुस्त करने के लिए सरकार का ‘बछड़ा हटाओ’ अभियान

गोरक्षा के गर्माए माहौल के बीच सरकार बछड़ों की संख्या रोककर बढ़ाएगी बछियों की संख्या.

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फोटो: पीटीआई

गोरक्षा के गर्माए माहौल के बीच सरकार बछड़ों की संख्या रोककर बढ़ाएगी बछियों की संख्या.

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एक तरफ देश भर के कई राज्यों में गोवंश की हत्या को लेकर कड़े क़ानून बनाए जा रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ भारत सरकार बछड़ों की बढ़ती संख्या रोकने की योजना बना चुकी है. इसके लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 500 करोड़ रुपये का फंड निर्धारित किया है.

गोवंश में भी लिंगानुपात गड़बड़ा गया है और सरकार ने इसके मद्देनजर गोवंश में बछड़ों की बढ़ती संख्या को अमेरिकी तकनीक से नियंत्रित करने की योजना बनाई है. इसके तहत सेक्स सॉर्टेड सीमेन प्रोडक्शन (एसएसएसपी) तकनीक के जरिए बछड़ों की जन्मदर को कम करके बछिया की जन्मदर को बढ़ाया जा सकेगा. केंद्रीय कृषि मंत्रालय की यह योजना दिल्ली सहित अन्य महानगरों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की जाएगी.

मंत्रालय द्वारा दिल्ली सरकार के पशुपालन विभाग को भेजी गई योजना का मक़सद बछड़ों की बेक़ाबू होती तादाद को नियंत्रित करना है. इस असंतुलन की वजह से गायों की संख्या लगातार कम हो रही है. योजना की कार्ययोजना रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में जगह की कमी के कारण गायों के लिए स्थान का अभाव हो गया है. वहीं खेती के साधनों में बैलों का उपयोग लगभग ख़त्म होने के कारण गोवंश में नर अब बोझ बन गए हैं.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश भर में गोवंश की संख्या 30 करोड़ है. इनमें 8.5 करोड़ दुधारू गाएं, 8.4 करोड़ बैल और शेष 13.1 करोड़ अनुत्पादक गोधन है. अधिक संख्या में मौजूद बैल चारा आदि संसाधनों का बड़ा हिस्सा चट कर जाते हैं. इसका सीधा असर गायों से होने वाले दुग्ध उत्पादन पर पड़ता है.

रिपोर्ट के मुताबिक सीमित संसाधनों वाले छोटे और सीमांत किसान ही 71 प्रतिशत गोधन का पालन करते हैं. इनमें दुधारू गायों की संख्या बढ़ाकर अनुपयुक्त गोधन का दायरा सीमित करने में यह तकनीक अहम भूमिका निभाएगी. दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक साल 2012 में राजधानी में 62,292 गायों में बछड़े-बछियों की संख्या 24,141 थी जबकि उपयोगी बैलों और सांड़ों की संख्या 1077 थी. हालांकि गोधन गणना में अनुपयुक्त नर की संख्या शामिल नहीं है क्योंकि इनमें अधिकांश आवारा पशुओं में शुमार हैं.

एसएसएसपी तकनीक द्वारा एक्स और वाई गुणसूत्र में डीएनए का अनुपात संतुलित कर नर और मादा की जन्मदर को नियंत्रित किया जाता है. भारत में फिलहाल इस तकनीक का इस्तेमाल उत्तर अमेरिकी देशों में पाई जाने वाली होल्सटीन फ्रीसियन और जर्सी नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाने पर किया जाता है. अब इसका इस्तेमाल साहीवाल, हरियाणा, रेड सिंधी, राठी और गिर आदि देसी नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाने में होगा. योजना के लिए सरकार ने 500 करोड़ रुपये का फंड निर्धारित किया है. इससे मुट्टुपट्टी, पाटन, हिसार, नाभा और भोपाल सहित अन्य पशुधन शोध संस्थान केन्द्रों में इस तकनीक को व्यापक बनाने पर ज़ोर दिया जाएगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

 

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