आरटीआई में बदलाव से भ्रष्ट बाबुओं को जांच से बचने का मिलेगा मौका: सूचना आयुक्त

सूचना आयुक्तों को लिखे पत्र में श्रीधर आचार्युलु ने कहा कि आरटीआई कानून के प्रावधानों में संशोधन के किसी भी प्रस्ताव पर जनता और विशेष तौर पर सूचना आयुक्तों के बीच व्यापक चर्चा के बिना विचार नहीं किया जाए.

(​फोटो साभार: विकिपीडिया)

सूचना आयुक्तों को लिखे पत्र में श्रीधर आचार्युलु ने कहा कि आरटीआई कानून के प्रावधानों में संशोधन के किसी भी प्रस्ताव पर जनता और विशेष तौर पर सूचना आयुक्तों के बीच व्यापक चर्चा के बिना विचार नहीं किया जाए.

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नई दिल्ली: जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा समिति की ओर से आरटीआई कानून के निजता प्रावधान में जो परिवर्तन सुझाए गए हैं उससे भ्रष्ट अधिकारियों को सार्वजनिक जांच से बचने का मौका मिलेगा.

यह बात मौजूदा केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कही है. श्रीधर आचार्युलू ने निजी डाटा संरक्षण विधेयक, 2018 के मसौदे में प्रस्तावित परिवर्तन को गैरजरूरी बताते हुए मुख्य सूचना आयुक्त आरके माथुर और अन्य सभी आयुक्तों को पत्र लिखकर सिफारिशों पर चर्चा करने और सूचना के अधिकार की रक्षा के लिए इसके विरोध में रुख अपनाने की अपील की है.

मसौदा विधेयक सरकार की ओर से जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा समिति के नेतृत्व में गठित समिति की सिफारिशों पर आधारित है.

आचार्युलू ने सभी आयुक्तों को लिखे गए पत्र में कहा, ‘हमें इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि आरटीआई कानून के प्रावधानों में संशोधन के किसी भी प्रस्ताव पर जनता और विशेष तौर पर सूचना आयुक्तों के बीच व्यापक चर्चा के बिना विचार नहीं किया जाए.’

मसौदा विधेयक आरटीआई कानून की धारा 8(1) (जे) में संशोधन की बात करता है.

आरटीआई कानून की धारा 8(1) (जे) ऐसी सूचना के खुलासे से छूट देता है जो निजी सूचना से संबंधित है और जिसके खुलासे से किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित का कोई संबंध नहीं है या जिससे व्यक्ति के निजता का अवांछित उल्लंघन होगा.

इसमें कहा गया है कि जब तक केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या अपीलीय प्राधिकार जैसा भी मामला हो, इससे संतुष्ट न हो कि ऐसी सूचना के खुलासे में व्यापक जनहित है तब तक इस तरह की किसी भी जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा.

आचार्युलू ने कहा कि निजी डेटा की प्रस्तावित परिभाषा बहुत व्यापक, अस्पष्ट विस्तृत और असीमित है.

इससे पहले सरकार राज्यसभा में आरटीआई संशोधन विधेयक लेकर आई थी जिसमें केंद्रीय सूचना आयुक्तों और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन और उनके कार्यकाल को केंद्र सरकार द्वारा तय करने का प्रावधान रखा गया है. हालांकि भारी विरोध के चलते इस प्रस्ताव को स्थगित कर दिया गया है.

इस मामले पर भी सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य सूचना आयुक्तों को पत्र लिखा था. उन्होंने कहा था कि ये संशोधन सूचना आयोगों को कमजोर कर देगा. उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त से गुजारिश की कि वे सरकार से आधिकारिक रूप से कहें कि सूचना का अधिकार कानून में संशोधन का प्रस्ताव वापस लिया जाए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)