सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया से यौन शोषण ​पीड़िताओं की तस्वीरें प्रकाशित/प्रसारित न करने को कहा

देश में बलात्कार से संबंधित राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ सोशल मीडिया पर पीड़िताओं की धुंधली या संपादित तस्वीरें प्रकाशित न करने का निर्देश दिया.

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(फोटो: रॉयटर्स)

देश में बलात्कार से संबंधित राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ सोशल मीडिया पर पीड़िताओं की धुंधली या संपादित तस्वीरें प्रकाशित न करने का निर्देश दिया.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने देश में हर तरफ महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर मंगलवार को गहरी चिंता व्यक्त करते हुए प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया को लेकर कहा कि देश में यौन उत्पीड़न पीड़िताओं की तस्वीरें किसी भी रूप में प्रकाशित या प्रदर्शित नहीं की जाएं.

सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िताओं की तस्वीरें धुंधली (ब्लर) हो या संपादित (मॉर्फ्ड) करके भी प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया पर प्रकाशित या प्रसारित न करने का निर्देश दिया है.

शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि हर दिन इस तरह की चार घटनाएं देश में दर्ज की जा रही हैं. अदालत ने इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए कार्रवाई पर जोर दिया.

शीर्ष अदालत ने यौन उत्पीड़न से पीड़ित नाबालिगों का इंटरव्यू नहीं करने की चेतावनी देते हुए कहा कि इसका दिमाग पर गंभीर असर पड़ता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि बाल यौन उत्पीड़न से पीड़ित बच्चों से सिर्फ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोगों के सदस्य ही काउंसलर की मौजूदगी में इंटरव्यू कर सकते हैं.

हालांकि, पीठ ने साफ कर दिया कि उसका आदेश जांच एजेंसियों को इस मामले की जांच करने से नहीं रोकेगा और कहा कि वे दो अगस्त के शीर्ष अदालत के निर्देश से बंधे रहेंगे.

न्यायालय ने बिहार के मुजफ्फरपुर में एक एनजीओ द्वारा संचालित बालिका गृह में लड़कियों के यौन शोषण की घटना को डरावना बताया और इस आश्रय गृह का संचालन करने वाले मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ सेवा संकल्प एवं विकास समिति को वित्तीय सहायता देने के लिए बिहार सरकार को आड़े हाथों लिया.

इस बालिका गृह में रह रहीं 42 लड़कियों में से 34 के साथ बलात्कार होने की पुष्टि हो चुकी है. बलात्कार की शिकार हुईं लड़कियों में से कुछ 7 से 13 साल के बीच की हैं.

जस्टिस मदन बी. लोकुर, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से देशभर में आश्रय गृहों में नाबालिगों के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए प्रस्तावित कदमों के बारे में उसे जानकारी देने को कहा.

पीठ ने कहा, ‘क्या किया जाना है. लड़कियों और महिलाओं से हर तरफ बलात्कार किया जा रहा है. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2016 में भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार की 38,947 बलात्कार की घटनाएं हुईं. इसका मतलब है कि हर दिन चार महिलाओं से बलात्कार हुआ. ये रिपोर्ट किए गए आंकड़े हैं.’

पीठ ने कहा कि भारत में बलात्कार के रिपोर्ट होने वाले मामलों की संख्या परेशान करने वाली है. पीठ ने पटना के एक व्यक्ति के पत्र लिखने के बाद बिहार की घटना का संज्ञान लिया है.

मंगलवार की सुनवाई के दौरान पीठ ने उत्तर प्रदेश के देवरिया में एक आश्रय गृह में लड़कियों के कथित यौन शोषण, मध्य प्रदेश में लड़कियों को खुला बेचे जाने की खबरों का उल्लेख करते हुए कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश बलात्कार के मामले में दो शीर्ष राज्य हैं.

पीठ ने कहा, ‘यह गंभीर चिंता का विषय है. किसी को तो इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए कदम उठाना है. किसी को तो इसे करना है. भारत में हर छह घंटे में एक महिला से बलात्कार होता है.’

शीर्ष अदालत ने मुजफ्फरपुर में आश्रय गृह चलाने वाले एनजीओ को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए बिहार सरकार को आड़े हाथ लेते हुए पूछा कि संगठन की पृष्ठभूमि की जांच क्यों नहीं की गई?

पीठ ने कहा, ‘इन सबका मतलब है कि लोग जिस कर का भुगतान कर रहे हैं, जनता के उस धन का इस तरह की गतिविधियों में इस्तेमाल हो रहा है. क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं ? क्यों राज्य ने ऐसा होने दिया? ऐसा लगता है कि राज्य ने इस तरह की गतिविधियों का वित्तपोषण करने के लिए धन दिया.’

बिहार सरकार की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि राज्य ने घटना के प्रकाश में आने के बाद जरूरी कदम उठाए हैं.

बिहार के बालिका गृह में यौन उत्पीड़न का खुलासा मुंबई स्थित टाटा इंस्टिट्यूट आॅफ सोशल साइंसेस (टिस) की टीम ने किया था. टिस का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि मुजफ्फरपुर की घटना बिहार में अकेली नहीं है क्योंकि राज्य में एनजीओ द्वारा संचालित इस तरह के 110 संस्थानों में से 15 संस्थानों के बारे में गंभीर चिंता जताई गई है, जो सरकार द्वारा वित्तपोषित हैं.

कुमार ने कहा कि इन 15 संस्थानों में से मुजफ्फरपुर आश्रय गृह मामले समेत नौ मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई है और इन मामलों के सिलसिले में गिरफ्तारियां की गई हैं.

पीठ ने सुझाव दिया कि एनजीओ द्वारा संचालित आश्रय गृह की दैनिक आधार पर उचित निगरानी की जानी चाहिए और इस तरह के संस्थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए ताकि मुजफ्फरपुर जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके.

पीठ ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 अगस्त को निर्धारित कर दी.

बीते दो अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरपुर बालिका गृह में लड़कियों के यौन शोषण की घटनाओं पर केंद्र और बिहार सरकार से जवाब मांगा.

शीर्ष अदालत की पीठ ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया था और बालिका गृह में कथित यौन शोषण की शिकार लड़कियों का मीडिया द्वारा बार-बार साक्षात्कार लिए जाने पर भी चिंता जताई.

पीठ ने बिहार सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किए थे और पीड़िताओं की तस्वीरों का रूप बदलकर भी इन्हें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रसारित करने पर रोक लगाई थी.

न्यायालय ने मीडिया को यौन शोषित पीड़िताओं का साक्षात्कार नहीं करने का निर्देश दिया और कहा कि उन्हें बार-बार अपने अपमान को दोहराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)