भीख मांगना अपराध नहीं क्योंकि सरकार ने लोगों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचाईं नहीं: अदालत

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि लोग इसलिए भीख नहीं मांगते कि ऐसा करना उनकी इच्छा है, बल्कि इसलिए मांगते हैं क्योंकि ये उनकी ज़रूरत है. भीख मांगना जीने के लिए उनका अंतिम उपाय है, उनके पास जीवित रहने का कोई अन्य साधन नहीं है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (साभार: theindiansociety.org)

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि लोग इसलिए भीख नहीं मांगते कि ऐसा करना उनकी इच्छा है, बल्कि इसलिए मांगते हैं क्योंकि ये उनकी ज़रूरत है. भीख मांगना जीने के लिए उनका अंतिम उपाय है, उनके पास जीवित रहने का कोई अन्य साधन नहीं है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (साभार: theindiansociety.org)
प्रतीकात्मक तस्वीर. (साभार: theindiansociety.org)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया. कोर्ट ने कहा कि भीख मांगने वालों को दंडित करने का प्रावधान असंवैधानिक है और यह रद्द किए जाने लायक है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरिशंकर की पीठ ने कहा कि भीख मांगने को अपराध बनाने वाले ‘बॉम्बे भीख रोकथाम कानून’ के प्रावधान संवैधानिक जांच में टिक नहीं सकते.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने इस कानून की कुल 25 धाराओं को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया. क़ानून का दायरा दिल्ली तक बढ़ाया गया था.

बॉम्बे रोकथाम अधिनियम, 1959 के आधार पर ही सभी राज्यों में भिक्षा विरोधी लागू हैं. कई भिखारियों को राजधानी में इस कानून के तहत जेल में डाला गया है.

कोर्ट ने कहा, ‘लोग सड़कों पर इसलिए भीख नहीं मांगते कि ऐसा करना उनकी इच्छा है, बल्कि इसलिए मांगते हैं क्योंकि ये उनकी जरूरत है. भीख मांगना जीने के लिए उनका अंतिम उपाय है, उनके पास जीवित रहने का कोई अन्य साधन नहीं है.’

कोर्ट ने आगे कहा, ‘सरकार के पास जनादेश सभी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए होता है जिससे सभी नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं मिलना सुनिश्चित हो सके. लेकिन, भीख मांगने वालों की मौजूदगी इस बात का सबूत है कि राज्य इन सभी नागरिकों को ये जरुरी चीजें उपलब्ध कराने में कामयाब नहीं रहा है.’

पीठ ने कहा, ‘भीख मांगने को अपराध बनाना हमारे समाज के कुछ सबसे कमजोर लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. इस स्तर के लोगों की भोजन, आश्रय और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंच नहीं है. और ऊपर से  उन्हें अपराधी बताना उन्हें अपनी दुर्दशा से निपटने के मौलिक अधिकार से रोकता है.’

पीठ ने अपने 23 पृष्ठीय फैसले में कहा कि इस फैसले का अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि कथित रूप से भीख मांगने का अपराध करने वालों के खिलाफ कानून के तहत मुकदमा खारिज करने योग्य होगा.

अदालत ने कहा कि इस मामले के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर अनुभव आधारित विचार करने के बाद दिल्ली सरकार भीख के लिए मजबूर करने वाले गिरोहों पर काबू करने के लिए वैकल्पिक कानून लाने को स्वतंत्र है.

हाई कोर्ट ने यह फैसला हर्ष मंदर और कर्णिका साहनी की जनहित याचिकाओं पर सुनाया जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने वालों के लिए मूलभूत मानवीय और मौलिक अधिकार मुहैया कराए जाने का अनुरोध किया गया था.

याचिका में बॉम्बे भीख रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों को भी चुनौती दी गई थी. केंद्र सरकार ने इस पर कहा था कि भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर नहीं किया जा सकता है और कानून में नियंत्परण और संतुलन के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं.

हालांकि, इस मामले में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर नहीं कर सकती क्योंकि कानून में पर्याप्त संतुलन है और इस कानून के तहत भीख मांगना अपराध की श्रेणी में है.

अदालत ने 16 मई को पूछा था कि ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है जहां सरकार भोजन या नौकरियां प्रदान करने में असमर्थ है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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