गंगा तो साफ़ नहीं हुई लेकिन सरस्वती को खोज निकालने का दावा किया जा रहा है

हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार यमुनानगर में सरस्वती नदी को खोजने का दावा कर रही है. लोगों में यह विश्वास गढ़ा जा रहा है कि सरस्वती नदी मिल गई है. इधर, हुज़ूर अपना वक़्त नाले से निकलने वाली गैस से चाय बनाने की थ्योरी में टाइम बर्बाद कर रहे हैं.

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गंगा नदी (फोटो: रॉयटर्स)

हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार यमुनानगर में सरस्वती नदी को खोजने का दावा कर रही है. लोगों में यह विश्वास गढ़ा जा रहा है कि सरस्वती नदी मिल गई है. इधर, हुज़ूर अपना वक़्त नाले से निकलने वाली गैस से चाय बनाने की थ्योरी में टाइम बर्बाद कर रहे हैं.

FILE PHOTO: Untreated sewage flows from an open drain into the river Ganges in Kanpur, India, April 4, 2017. REUTERS/Danish Siddiqui/File Photo
(फोटो: रॉयटर्स)

नए लोगों से मिला कीजिए, दुनिया थोड़ी सी नई हो जाती है. शर्ली अब्राहम से ऐसी ही एक मुलाक़ात मुझे एक नई विधा तक ले गई. मैं चाहता हूं कि वो आप तक भी पहुंचे. हो सकता है कि आप जानते हों मगर मैं चूंकि कम जानता हूं इसलिए हर जानकारी मुझे नई लगती है और उत्सुकता से भर देती है.

2011 में द न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने यहां Op-Eds की तरह Op-Docs शुरू किया था. जिस तरह से संपादकीय पन्नों पर जानकार अपनी टिप्पणी लिखते हैं उसी शैली में इसमें डॉक्यूमेंट्री की शक्ल में एक नज़रिया पेश किया जाता है.

सर्च फॉर सरस्वती फिल्म का पोस्टर. (फोटो साभार: ट्विटर/@shirley_abraham)
सर्च फॉर सरस्वती फिल्म का पोस्टर. (फोटो साभार: ट्विटर/@shirley_abraham)

इसे न्यूयॉर्क टाइम्स का संपादकीय विभाग ही चलाता है. बिल्कुल फिल्म के कैनवास और उसकी रचनात्मकता के साथ, जिसमें कहानी ख़ुद बोलती है. मौके पर मौजूद लोग किरदार बन जाते हैं. शब्दों की स्क्रिप्ट नहीं होती, तस्वीरों की होती है.

शर्ली अब्राहम और अमित मधेशिया ने न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए भारत से पहला Op-Docs बनाया है. शर्ली और अमित की डॉक्यूमेंट्री द सिनेमा ट्रावेलर्स (The Cinema Travellers) को कान फिल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कार मिल चुका है.

यह डॉक्यूमेंट्री 120 फिल्म समारोहों में दिखाई जा चुकी है. भारत में इसे नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी मिला है. अमित मधेशिया की तस्वीरों को वर्ल्ड प्रेस फोटो पुरस्कार मिल चुका है. दोनों की नई पेशकश का नाम है सर्चिंग फॉर सरस्वती (Searching for Sarawasti).

हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सरकार ने सरस्वती नदी की खोज में जाने कितने करोड़ बहा दिए. एक नदी की खोज का दावा कर लिया गया है. यमुनानगर के मुग़लावली गांव के आस-पास सरस्वती नदी को लेकर जो नई संस्कृति गढ़ी जा रही है.

कैसे भोले लोगों में यह विश्वास गढ़ा जा रहा है कि सरस्वती नदी मिल गई है. किसी वैज्ञानिक रिपोर्ट का दावा किया जा रहा है जो किसी ने देखा नहीं है. किस तरह लोग चमत्कार के नाम पर दावों को पुख़्ता कर रहे हैं.

लोगों की कल्पनाओं में कोढ़ ठीक करने से लेकर समृद्धि देने के नाम पर बोतल बंद पानी के सहारे सरस्वती नदी को ज़िंदा किया जा रहा है.

किसी कुएं को दिखाकर बता रहे हैं कि नदी मिल गई है. एक नदी कुएं में मिली है. इस डॉक्यूमेंट्री को देखते हुए आप देख सकते हैं कि धर्म और मान्यताओं के नाम पर तर्क के दरवाज़ों को बंद कर देना कितना आसान है.

एक मामूली से डर के आगे लोग किस तरह अपने वजूद का त्याग कर देते हैं.

यह उतना ही आसान है जैसे प्रधानमंत्री मोदी का वो किस्सा कि नाले से निकलती गैस के ऊपर बर्तन ढक दिया और एक छेद से पाइप के ज़रिये चूल्हे को जोड़ दिया.

फिर लगा उस पर चाय बनाने. जो काम प्रधानमंत्री कर रहे हैं वही काम यमुनानगर के उस गांव के दो चार लोग कर रहे हैं जहां सरस्वती खोज ली गई है.

पत्रकारिता के छात्रों को शर्ली अब्राहम और अमित मधेशिया की इस डॉक्यूमेंट्री को ज़रूर देखना चाहिए. जिसे बनाने के लिए कई हफ़्ते की मेहनत लगी है. भारत के न्यूज़ चैनलों पर बेहूदगी छाई हुई है, कैमरे की कला समाप्त हो चुकी है.

आप इस डॉक्यूमेंट्री के ज़रिए यह भी देखेंगे कि टीवी क्या कर सकता है, आप क्या कर सकते थे और आप अब क्या नहीं कर पाएंगे.

सर्चिंग फॉर सरस्वती डॉक्यूमेंट्री के निर्देशक शर्ली अब्राहम और अमित मधेशिया. (फोटो साभार: फेसबुक)
सर्चिंग फॉर सरस्वती डॉक्यूमेंट्री के निर्देशक शर्ली अब्राहम और अमित मधेशिया. (फोटो साभार: फेसबुक)

मुझे यह डॉक्यूमेंट्री बहुत पसंद आई है. हमारे समय का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है. किस तरह एक नदी को खोज लेने का दावा किया जाता है और किस तरह भुला दिया जाता है. मगर स्थानीय स्तर पर धीरे-धीरे उसे ज़िंदा रखा जाता है ताकि मेला लगने लगे.

एक बार मेला शुरू हो जाए तो फिर बस दुनिया मान लेगी कि यही वो सरस्वती नदी है, यही है.

गंगा तो साफ़ नहीं हुई, सरस्वती मिल गई और हुज़ूर अपना वक़्त नाले से निकलने वाली गैस से चाय बनाने की थ्योरी में टाइम बर्बाद कर रहे हैं. एक नदी खोजी गई है इसके लिए दुनिया भर के वैज्ञानिकों को बुलाकर लेक्चर देना चाहिए था. यही कि वो विज्ञान छोड़ कर इनका भाषण सुनें. वैसे इस डॉक्यूमेंट्री में लोगों ने ट्रम्प जी को भी याद किया है.

(ये लेख मूल रूप से रवीश कुमार ने अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखा है.)