‘मैं बचपन में कृष्ण की जिन लीलाओं को सुनकर बड़ी हुई, आज उनसे मेरी असहमति है’

क्या कृष्ण की लीलाओं को यौन उत्पीड़न के नज़रिये से देखा जा सकता है? रासलीला और नटखटपन के नाम पर कृष्ण द्वारा गोपियों के प्रति किया गया व्यवहार मेरे मन में कई सवाल खड़े करता है.

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क्या कृष्ण की लीलाओं को यौन उत्पीड़न के नज़रिये से देखा जा सकता है? रासलीला और नटखटपन के नाम पर कृष्ण द्वारा गोपियों के प्रति किया गया व्यवहार मेरे मन में कई सवाल खड़े करता है.

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(फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स/Metropolitan Museum of Art N-Y)

आज के समय में हर महिला आंदोलन और अभियान में आपने सुना होगा, ‘अपनी बेटी को कैद करने और यौन उत्पीड़न संबंधित अपराधों से बचने के तरीके सिखाने से बहुत बेहतर है अपने लड़कों को सिखाएं कि लड़कियों के साथ कैसे व्यवहार करना है.’

क्या अपने बेटों को आप यह बात कृष्ण की कहानियों से सिखाना चाहते हैं. तो एक बार एक नई नजर से इन कहानियों को दोबारा पढ़ लीजिए.

यह एक खुला खत उन सभी अभिभावकों और शिक्षकों के लिए है जिन्होंने हाल ही में जन्माष्टमी के मौके पर अपने बच्चों या छात्र-छात्राओं को कृष्ण बनाया, जिन्हें कृष्ण का किरदार ‘एक आदर्श और नटखट बच्चे’ का लगता है- जो मक्खन चुराता है, वृंदावन के लोगों को, खासकर गोपियों को हीरो बन कर मुसीबतों से बचाता है और गोपियों के साथ ‘रासलीला’ करता है.

मैं बचपन में जिन कहानियों और किस्सों को सुनकर बड़ी हुई हूं, उन कहानियों को आज वैसे नहीं देखती जैसे तब देखती थी. आज के दिन की अगर बात करूं तो कुछ कहानियों, किस्सों, रीतियों और नाटकों से मेरी थोड़ी असहमति है, कुछ से पूरी असहमति है और अभी भी मेरी सोच में लगातार बदलाव आ रहे हैं.

सहमति, असहमति और अपनी राय बनाने के लिए किसी का पक्ष सुनना जरूरी होता है लेकिन आज के समय में इसकी बहुत कमी है. आप सत्ता द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार पर सवाल नहीं कर सकते हैं, आस्था तो फिलहाल दूर की कौड़ी है.

वह भी ऐसे वक्त में आस्था पर बात करना और भी मुश्किल है जब धर्म व राजनीति में धागे भर का फर्क नहीं रह गया है.

इसके अलावा मॉब लिंचिंग के इस दौर में आप समाज को भी असहिष्णु नहीं कह सकते हैं क्योंकि जवाब आएगा अगर लोग असहिष्णु होते तो मैं यह सब लिख और बोल नहीं पाती.

फिलहाल यह सब इसलिए कहना पड़ा क्योंकि आप लोग मेरे पक्ष को ध्यान से सुने और पढ़ें. मैं उस डिबेट में नहीं जा रही कि इतिहास और पौराणिक कथाएं किसने लिखी हैं और उनके कितने अलग-अलग संस्करण हैं. इनमें कितना सही है और कितना सही नहीं है.

मैं बात कृष्ण के किरदार की करने जा रही हूं. उस समय नहीं जब वह किरदार अर्जुन को राजनीति के उपदेश देता है (उस पर भी बात करने की बहुत जरूरत है) बल्कि उस समय कि जब कृष्ण का किरदार बचपन को छोड़ धीरे-धीरे बड़ा हो रहा होता है. इस समय की कहानियां बच्चों में सबसे अधिक प्रचलित हैं.

हर साल मैं सोशल मीडिया पर देखती हूं कि कितने सारे मां-बाप अपने बच्चों को कृष्ण बनाकर उनकी तस्वीरें साझा करते हैं. स्कूल में प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं और बच्चे राधा-कृष्ण बनकर इससे संबंधित गानों पर नाचते-गाते हैं.

इसे आप उनकी निजी पसंद बता सकते हैं लेकिन सवाल उठता है कि जो पसंद बनी ही समाज में प्रचलित कहानियों और आस्था से है और जिसका असर भी समाज पर पड़ता है वो मात्र निजी पसंद तक सीमित कैसे हुई.

दूसरी बात ऐसा भी नहीं है कि कृष्ण की बात सिर्फ जन्माष्टमी पर ही होती है. कृष्ण के किरदार पर ढेरों कहानियां, कॉमिक्स, टीवी सीरियल और फिल्में बनी हैं जिन पर आए दिन बातचीत होती है. जिनमें से कुछ बातें मुझे बेहद परेशान करती हैं सबसे ज्यादा ‘रासलीला’ वाला भाग.

कृष्ण की कहानियों में ‘रासलीला’ के नाम पर गोपियों को पनघट पर छेड़ने को बहुत सुंदर तरीके से दिखाया गया है. सच कहूं तो ‘रोमांटीसाइज’ किया गया है. बताया जाता है कि कृष्ण गोपियों की मटकी पर कंकड़ मारकर उसे तोड़ देते थे और गोपियों के कपड़े गीले हो जाते हैं.

कृष्ण की कहानियों में एक हिस्सा यह भी है कि जब गोपियां नहा रही होती थीं तो कृष्ण उनके कपड़े चुरा लेते थे. मैंने पहली बार यह किस्सा कृष्ण पर बने एक कार्टून सीरियल में देखा था कि कृष्ण और उनके कुछ मित्र गोपियों के कपड़े चुरा लेते हैं और बाद में गोपियां उनसे कपड़े वापस करने की विनती करती हैं और तब वे उनके कपड़े लौटा देते हैं.

मैं जब इस कहानी को गूगल पर सर्च कर रही थी तो उसमें लिखा था कृष्ण गोपियों को सबक सिखाने के लिए ऐसा करते हैं. लेकिन ज्यादातर बच्चों के दिमाग में इस एपिसोड का यह भाग रह जाता है उसके पीछे की कहानी नहीं.

बहरहाल पीछे की कहानी जो भी हो कृष्ण के किरदार द्वारा गोपियों के कपड़े चुराने को सही नहीं ठहराया जा सकता. इस कार्टून के पीछे से जो महिला कहानी सुना रही होती है वो भी कुछ इस तरीके से बताती है जैसे बहुत सामान्य बात है कि ‘नटखट कृष्ण’ ने कपड़े चुरा लिए और फिर गोपियों की ‘विनती’ पर उन्होंने वापस भी कर दिए. इसके लिए सारी गोपियों ने उनका धन्यवाद किया, मतलब एक तरीके से आभार व्यक्त किया.

बहरहाल इस तरह की बहुत सी कहानियां हैं जब मुझे रासलीला और नटखटपन के नाम पर कृष्ण द्वारा गोपियों के प्रति किया गया व्यवहार अनुचित लगा. कल्पना कीजिये कृष्ण जैसा कोई किरदार आज के समय में ये करे तो शायद भारतीय दंड संहिता की धारा 294 (अश्लील कृत्यों और गीत), 354 (महिला की गरिमा को अपमानित करना) और 509 (शब्दों या किसी कृत्य द्वारा महिला की गरिमा का अपमान) , यौन उत्पीड़न (354-ए) और स्टॉकिंग यानी पीछा करना (354-डी) का मुकदमा दर्ज किया जा सकता है जिनके तहत दंड का प्रावधान है.

इस बात से शायद कुछ लोग को आपत्ति हो, इसे पढ़कर शायद कुछ लोग नाराज़ भी हो सकते हैं कि आख़िर मैं सवाल किस पर उठा रही हूं.आप कहेंगे यह बहुत पहले की बात हैं और इन्हें आज के समय से जोड़कर देखना ठीक नहीं है.

तो बताइये क्या आपको आज के समय में इस तरह के अपराध सुनने में नहीं आते. हर दिन इस तरह की खबरें आती हैं. आज ये सारे अपराध स्टॉकिंग, ईव टीजिंग और यौन उत्पीड़न के अंदर आते है. लेकिन यह सब सुनकर भी आपके मन की जो हिचक है वो भी मैं समझ सकती हूं. इसमें आपकी गलती नहीं है, इन कहानियों को ‘रोमांटीसाइज’ करके सुनाने के अलावा आपको यह भी बखूबी सिखाया गया है कि भगवान या धर्म पर सवाल नहीं खड़ा कर सकते, यह गलत है.

जो हमें सिखाया गया है वो नैतिकता यही कहती कि राम का किरदार चाहे सीता को शक के आधार पर छोड़ दें और कोई जिम्मेदारी न लें या नटखट कृष्ण का किरदार गोपियों के साथ अनुचित व्यवहार करें, उनकी नैतिकता पर सवाल उठाना नैतिक रूप से गलत होगा.

बहरहाल आप लोग जो सोशल मीडिया पर अपने बच्चों को कृष्ण बनाकर तस्वीरें साझा कर रहे थे, वही लोग समाज में छेड़छाड़, स्टॉकिंग, ईव टीजिंग अभियान चलाते हैं और किसी भी यौन उत्पीड़न से जुड़े कृत्य की निंदा करते हुए बड़े-बड़े पोस्ट भी लिखते हैं.

याद रखियेगा बच्चे इन्हीं कहानियों से सीखते हैं, खुद को कहानी का हीरो समझते हैं और उस हीरो की तरह सब करने की कोशिश करते हैं. सोचिये आपका बच्चा अगर सच में इस उम्र में आज के समय में कृष्ण का किरदार निभाए तो समाज उसे नहीं अपनाएगा. शायद समाज उसे सुधारने की भी कोई कोशिश नहीं करेगा.

अब यह समाज इन अपराधों में सिर्फ कड़ी से कड़ी सजा की मांग करता है. खुद की गलती खुद का माहौल किसी को भी सुधारने की बात उसे बहुत कठिन लगती है और सजा दिलवाना सबसे आसान.

कल्पना कीजिए आपकी बच्ची भी अगर किसी मुसीबत में फंसे और वो उससे खुद निकलने की बजाय या आपको बताने की बजाय उम्मीद करे कि कोई हीरो, कृष्ण आकर उसे बचा लेगा, जैसा कि आपने कहानियों में सुनाया है, या उसने कृष्ण पर बने टीवी सीरियल में देखा है, तो यह खतरनाक हो सकता है.

आप कहेंगे कृष्ण का किरदार अपने बचपन में मासूमियत में शैतानियां करता था पर हम सबने अनुभव किया है कि 11-12 साल के बच्चों द्वारा किसी भी लड़की पर कमेंट पास करना या गलत इशारे करना, आम बात है. यह मासूमियत, शैतानी या नासमझी नहीं उनके आस-पास के माहौल का नतीजा है. वो वही कर रहें हैं जो वो अपने आस-पास बड़ों को करता देख रहे हैं.

आप अपने बच्चे की किसी गलती पर सारा दोष मोबाइल फोन, टीवी के अश्लील गाने और दूसरे बच्चों के घर के खराब माहौल को तो दे सकते हैं लेकिन अपने घर के अंदर सिखाई जाने वाली बातों पर दोबारा कौन सोचेगा? इन कहानियों पर सवाल कौन उठाएगा?

बॉलीवुड ने भी इस तरह के बहुत गाने बनाए हैं, सबसे प्रसिद्ध है ‘मईया यशोदा’ इस गाने पर हर जन्माष्टमी पर बच्चे खूब नाचते हैं और सारे माता-पिता, शिक्षक, समाज के लोग सब बैठ कर बहुत खुशी से ताली बजाते हैं और कहते हैं, डांस के साथ-साथ चेहरे के भाव कितने अच्छे थे, एकदम नेचुरल… सही बात नेचुरल ही हैं.

फिलहाल इन लाइनों को पढ़िए…

पनघट पे ‘मेरी पकड़े है बैंया’

‘तंग मुझे करता है’, संग मेरे लड़ता हाय

गोकुल की गलियों में, जमुना किनारे

वो ‘मोहे कंकरिया छुप-छुपके मारे’

नटखट अदाएं, सूरत है भोली

‘होली में मेरी, भिगोये वो चोली’

‘बैय्या ना छोड़े, कलैय्यां मरोड़े

‘पैय्यां पडूं, फिर भी पीछा ना छोड़े’

‘मीठी-मीठी बातों में मुझको फंसाये हाय’

रामजी की कृपा से मैं बची….

अब अगर इन सारी लाइनों पर हंसी-मजाक, नाचना-गाना हो सकता है तो आपकी बच्ची छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न की गंभीरता को कैसे समझ कर आपको बताएगी कि उसके साथ क्या हुआ.

बहरहाल आज के समय में जब राम रहीम, आसाराम जैसे स्वयंभू बाबाओं या किसी भी धार्मिक केंद्र चलाने वाले व्यक्ति पर यौन उत्पीड़न जैसे आरोप साबित हो जाते हैं. उसके बाद इन लोगों के पक्ष में जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आती हैं, लोग हिंसक होकर इनका समर्थन करने को उतर जाते हैं तो मैं सोचती हूं महिलाओं की मानसिक स्थिति और आध्यात्मिक संवेदनशीलता, श्रद्धा से खेलना कितना आसान है और किसी भी पूजनीय हीरो पर सवाल उठाना कितना मुश्किल है.

मैं कृष्ण के किरदार की इन स्वयंभू बाबाओं से तुलना नहीं कर रही. इन स्वयंभू बाबाओं ने जो अपराध किया है, वे बेहद संगीन हैं, उनकी गंभीरता अलग है. लेकिन आप अगर कृष्ण की रासलीला पर भी सवाल उठाने पर रोक लगा देंगे तो इस तरह के स्वयंभू बाबा कृष्ण के नाम पर ही अपने समर्थन में ऐसी फौज खड़ी कर लेंगे जिनसे लड़ना मुश्किल होगा. क्योंकि लोग मान चुके होंगे कि कुछ लोगों पर सवाल उठाना ही गलत है.